मजिस्ट्रेट के सीआरपीसी की धारा 156(3) के आवेदन में लगाए गए आरोपों पर प्रारंभिक रिपोर्ट मांगने के बाद पुलिस सीधे एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

Shahadat

17 March 2023 6:01 AM GMT

  • मजिस्ट्रेट के सीआरपीसी की धारा 156(3) के आवेदन में लगाए गए आरोपों पर प्रारंभिक रिपोर्ट मांगने के बाद पुलिस सीधे एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती: जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

    Jammu and Kashmir and Ladakh High Court

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि जब मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत प्रारंभिक जांच का निर्देश देता है और पुलिस मजिस्ट्रेट को वापस रिपोर्ट किए बिना सीधे बिना किसी निर्देश के एफआईआर दर्ज करती है तो यह मजिस्ट्रेट की शक्तियों का हड़पने के समान मात्रा में होती है।

    जस्टिस संजय धर ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने उधमपुर पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर को चुनौती दी थी।

    याचिकाकर्ता ने अन्य बातों के साथ-साथ इस आधार पर अपनी याचिका को आधार बनाया कि चूंकि मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत प्रारंभिक जांच का आदेश दिया, इसलिए पुलिस ने मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट जमा करने के बजाय अपने आप ही आक्षेपित एफआईआर दर्ज कर ली, जिसने मजिस्ट्रेट द्वारा शुरू की गई कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया।

    जस्टिस धर ने कहा कि शिकायतकर्ता/प्रतिवादी ने शुरू में पुलिस स्टेशन और उसके बाद संबंधित एसएसपी से संपर्क किया, लेकिन जब शिकायतकर्ता एफआईआर दर्ज करने का वांछित परिणाम प्राप्त करने में विफल रहा तो उसने न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन दायर किया।

    कोर्ट ने आगे कहा कि मजिस्ट्रेट ने तदनुसार उधमपुर के एसएचओ को आरोपों की पुष्टि करने और सुनवाई की अगली तारीख तक अपनी रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया। 17 मई 2021 को एसएचओ द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दिया गया, जिसमें अपनी रिपोर्ट जमा करने के लिए 15 दिन का समय बढ़ाने की मांग की गई और इन चल रही कार्यवाही के बीच आक्षेपित एफआईआर दर्ज की गई।

    खंडपीठ से जिस सवाल का जवाब मांगा गया, वह यह है कि जब मजिस्ट्रेट ने मामला दर्ज करने के लिए कोई निर्देश नहीं दिया तो क्या पुलिस की एफआईआर दर्ज करने की कार्रवाई कानून के अनुसार है, खासकर तब जब मजिस्ट्रेट ने विशेष रूप से आवेदन में लगाए गए आरोपों की पुष्टि करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए संबंधित एसएचओ को निर्देश दिया।

    जस्टिस धर ने मामले पर विचार करते हुए कहा कि यह सच है कि संज्ञेय अपराध के संबंध में सूचना दिए जाने के बाद पुलिस स्टेशन के प्रभारी को एफआईआर दर्ज करने की शक्ति निहित है। यह भी विवाद में नहीं है कि मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत निर्देश पारित करते हुए। संज्ञेय अपराध के संबंध में एफआईआर दर्ज करने के लिए अपने वैधानिक कर्तव्य के बारे में पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी को केवल याद दिला रहा है।

    हालांकि, एक बार जब मजिस्ट्रेट ने प्रारंभिक रिपोर्ट मांगी तो पुलिस तुरंत एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती है, क्योंकि इससे मजिस्ट्रेट को उचित निर्देश पारित करने से पहले सामग्री पर अपना विवेक लगाने की अनुमति नहीं होगी।

    अदालत ने कहा,

    "वर्तमान मामले में इससे पहले कि मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता के आवेदन पर अपना विवेक लगा पाते और पुलिस को रिपोर्ट करते, उनके सामने लंबित कार्यवाही को पुलिस की कार्रवाई से बेमानी बना दिया गया। यह अवैधता की मात्रा है, जो कि रिकॉर्ड के आधार पर बड़ी है।"

    एफआईआर रद्द करते हुए अदालत ने जांच एजेंसी को न्यायिक मजिस्ट्रेट, उधमपुर के समक्ष अपनी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया, जो पुलिस की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद कानून के अनुसार आदेश पारित करने के लिए स्वतंत्र होंगे।

    केस टाइटल: फारूक अहमद व अन्य बनाम जम्मू-कश्मीर व अन्य राज्य।

    साइटेशन: लाइवलॉ (जेकेएल) 58/2023

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