लोक अदालतों के पास कोई न्यायिक शक्ति नहीं, केवल पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर निर्णय दे सकती है: राजस्थान हाईकोर्ट
Shahadat
15 March 2023 11:09 AM IST
राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि लोक अदालतों के पास कोई न्यायनिर्णय शक्ति नहीं है और केवल पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर अवार्ड दे सकती है।
न्यायालय ने रिट याचिका की अनुमति देते हुए लोक अदालत के लोक अभियोजक को अभियोजन वापस लेने की अनुमति देने के फैसले को रद्द कर दिया। साथ ही आपराधिक मामले की बहाली का आदेश दिया, जिससे पक्षकारों को सक्षम न्यायालय के समक्ष कानून के अनुसार आगे बढ़ने की स्वतंत्रता मिली।
अदालत के सामने यह सवाल उठाया गया कि क्या विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अध्याय VI के तहत लोक अदालतों के पास न्यायिक शक्ति है या केवल पक्षकारों के बीच आम सहमति पर निर्णय पारित करने की आवश्यकता है।
संक्षेप में मामला यह है कि लोक अदालत, जयपुर की खंडपीठ ने सहायक लोक अभियोजक को एफआईआर से उत्पन्न होने वाले आपराधिक मुकदमे को वापस लेने की अनुमति दी और इस तरह अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 323 और 341 के तहत अपराधों से मुक्त कर दिया।
याचिकाकर्ता उसी एफआईआर का शिकायतकर्ता था, जिसने दो पड़ोसियों के बीच विवाद का खुलासा किया। इसकी जांच के बाद पुलिस ने आईपीसी की धारा 341 और 323 के तहत अपराध के लिए आरोप पत्र प्रस्तुत किया।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि लोक अदालत केवल पक्षों के बीच समझौता होने पर ही मामलों का निस्तारण कर सकती है।
उत्तरदाताओं की ओर से पेश वकील ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि सीआरपीसी की धारा 321 के तहत लोक अभियोजक आपराधिक मुकदमे को वापस लेने के लिए सक्षम है, विशेष रूप से कथित अपराधों की तुच्छ प्रकृति को देखते हुए, जो कंपाउंडेबल और जमानती है।
अदालत ने कहा,
"उपर्युक्त प्रावधानों का एकमात्र अवलोकन यह स्पष्ट करता है कि जब न्यायालय के समक्ष लंबित मामला (जैसा कि वर्तमान मामले में) को लोक अदालत में भेजा जाता है तो उसके पक्षकारों को संदर्भ के लिए सहमत होना चाहिए। यदि कोई एक पक्ष केवल इस तरह के संदर्भ के लिए न्यायालय में आवेदन करता है तो दूसरे पक्ष के पास न्यायालय द्वारा निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पहले से ही सुनवाई का अवसर होना चाहिए कि मामला लोक अदालत में भेजने के लिए उपयुक्त है।
पक्षकारों के बीच समझौता होने पर ही अधिनिर्णय दिया जा सकता है और यदि पक्षकार किसी समझौते पर नहीं पहुंचते हैं तो लोक अदालत अधिनियम की धारा 20 की उप-धारा (6) के तहत मामले को न्यायालय के समक्ष वापस भेजने के लिए बाध्य है।"
अदालत ने तब कहा,
"अध्याय VI (उपरोक्त) के तहत पूरी योजना के साथ-साथ पूर्वोक्त प्रावधानों के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाएगा कि लोक अदालतों के पास कोई न्यायिक शक्ति नहीं है और अभियोजन वापस लेने के लिए लोक अभियोजक की प्रार्थना की अनुमति देकर लोक अदालत ने न्यायिक क्षेत्राधिकार का प्रयोग किया, जो इसमें निहित नहीं है। परिणामस्वरूप, लोक अदालत द्वारा पारित आक्षेपित आदेश रद्द किया जाता है और इस रिट याचिका की अनुमति दी जाती है।"
केस टाइटल: श्याम बच्चन बनाम राजस्थान राज्य एस.बी. आपराधिक रिट याचिका नंबर 365/2023
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