हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

18 Dec 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (12 दिसंबर, 2022 से 16 दिसंबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    धारा 37 एनडीपीएस एक्ट की कठोरता उन मामलों में लागू नहीं होती है, जहां वर्जित नमूने का संग्रह खुद दोषपूर्ण हो: दिल्ली हाईकोर्ट

    नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट के तहत दर्ज एक मामले में एक व्यक्ति को जमानत देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 37 की कठोरता उन मामलों में लागू नहीं होगी, जहां वर्जित नमूने का संग्रह ही दोषपूर्ण था।

    धारा 37 में कहा गया है कि किसी अभियुक्त को जमानत तब तक नहीं दी जानी चाहिए जब तक कि अभियुक्त दोहरी शर्तों को पूरा करने में सक्षम न हो, यानी यह विश्वास करने के लिए उचित आधार हो कि अभियुक्त इस तरह के अपराध का दोषी नहीं है और जमानत मिलने पर अभियुक्त ऐसा अपराध नहीं करेगा या ऐसा करने की संभावना नहीं है।

    केस टाइटल: लक्ष्मण ठाकुर बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली सरकार)

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    विधेय अपराध का 'पीड़ित' यूपी गैंगस्टर एक्ट मामले में जमानत याचिका का विरोध कर सकता है : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एक विधेय अपराध का पीड़ित यूपी गैंगस्टर एक्‍ट के तहत आरोपित व्यक्ति की जमानत याचिका का विरोध करने के लिए सुनवाई के अधिकार का दावा कर सकता है।

    सुधा सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य एलएल 2021 एससी 229 और जगजीत सिंह और अन्य बनाम आशीष मिश्रा @ मोनू और अन्य 2022 लाइवलॉ (एससी) 376 के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को ध्यान में रखते हुए, जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने कहा, "यदि विधेय अपराध का शिकार गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराध में जमानत आदेश के खिलाफ अपील दायर कर सकता है, तो उसे निश्चित रूप से उक्त अधिनियम के तहत अपराध में जमानत आवेदन का विरोध करने का अधिकार है और उसके लिए उसे गैंगस्टर एक्ट के तहत अपराध के शिकार के रूप में माना जाना चाहिए।

    केस टाइटल- रमेश राय @ मटरू राय बनाम यूपी राज्य

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    एनडीपीएस एक्ट| भांग के बीज और पत्तियां, जब फूल या फलदार शीर्ष के साथ न हो, केवल तभी उन्हें एनडीपीएस एक्ट की धारा 2 (iii) (बी) के तहत 'गांजा' की परिभाषा से बाहर रखा जाता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि भांग के बीज और पत्तियां, जब फलदार या पुष्प शीर्ष के साथ न हो, केवल तभी उन्हें एनडीपीएस एक्ट की धारा 2 (iii) (बी) के तहत 'गांजा' की परिभाषा से बाहर रखा जा सकता है। प्रावधान में कहा गया है- भांग का मतलब गांजा है, यानी भांग के पौधे के फूल या फलदार शीर्ष (बीज और पत्तियां, जब शीर्ष के साथ न हो को छोड़कर)। इस आलोक में जस्टिस के नटराजन की सिंगल जज बेंच ने कहा, "केवल पत्ते और बीज साथ ना हों, तो इसे गांजा नहीं माना जा सकता है। गांजा की परिभाषा से बाहर होने के लिए बीज और पत्ते केसाथ शीर्ष और फल नहीं होने चाहिए।"

    केस टाइटल: रंगप्पा बनाम राज्य बासवपटना पीएस

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    धारा 33(5) पॉक्सो एक्ट | मामले के न्यायोचित निर्णय के लिए बाल गवाह को वापस बुलाया जा सकता है; विशेष अदालतों पर रोक निरपेक्ष नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 33 (5) द्वारा विशेष अदालतों पर लगाई गई वैधानिक रोक यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक बच्चे को अदालत में गवाही देने के लिए बार-बार बुलाना निरपेक्ष नहीं है।

    जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा, "पोक्सो एक्ट की धारा 33(5) के तहत प्रतिबंध पूर्ण नहीं है। उपयुक्त मामलों में, यदि यह मामले के न्यायोचित निर्णय के लिए आवश्यक है, तो निश्चित रूप से बाल गवाह को वापस बुलाया जा सकता है।"

    केस टाइटल: विनीत बनाम केरल राज्य

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    प्रिवेंटिव डिटेंशन आदेश को पूर्व निष्पादन स्टेज में चुनौती दी जा सकती है, बशर्ते बंदी साबित करे कि डिटेंशन आदेश अवैध है: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि प्रिवेंटिव डिटेंशन आदेश को पूर्व निष्पादन स्टेज में चुनौती दी जा सकती है, बशर्ते याचिकाकर्ता / बंदी अदालत को संतुष्ट करें कि डिटेंशन आदेश स्पष्ट रूप से अवैध है।

    जस्टिस राजेश ओसवाल और जस्टिस पुनीत गुप्ता की पीठ ने प्रिवेंटिव डिटेंशन को रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज करने के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए कहा, "अगर यह पाया जाता है कि यह स्पष्ट रूप से अवैध है, तो निश्चित रूप से उसे जेल जाने और फिर डिटेंशन आदेश को चुनौती देने के लिए नहीं कहा जा सकता है। अपीलकर्ता को यह प्रदर्शित करने में सक्षम होना चाहिए कि डिटेंशन का आदेश पूर्व दृष्टया इस आधार पर अवैध है जैसा कि अलका सुभाष गादिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था।"

    केस टाइटल : हरविंदर पाल सिंह उर्फ रेम्बो बनाम यूटी ऑफ जेएंडके

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    इस 'ज्ञान' के साथ कि दुर्घटना मृत्यु का कारण बनेगी, तेज गति से वाहन चला रहे व्यक्ति के खिलाफ आईपीसी की धारा 304 (II) के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को एक मोटर दुर्घटना मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 भाग II के तहत कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि मामला अभी भी जांच के स्तर पर है और यह संभावना है कि याचिकाकर्ता को "जानकारी" थी कि उसकी लापरवाह ड्राइविंग एक घातक दुर्घटना का कारण बनेगी।

    जस्टिस बिबेक चौधरी ने कहा कि प्रारंभिक पुलिस रिपोर्ट से यह पाया गया कि याचिकाकर्ता यह जानते हुए भी अत्यधिक तेज गति से वाहन चला रहा था कि इस तरह की लापरवाह ड्राइविंग से किसी भी राहगीर, खुद और उसके साथी यात्रियों की मौत हो सकती है।

    केस का शीर्षक: अर्नव चौधरी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।

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    अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत आरोपी अग्रिम जमानत के लिए सीधे हाईकोर्ट नहीं जा सकता, पहले विशेष अदालतों में जाना चाहिए: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत आरोपी को पहले अग्रिम जमानत के लिए विशेष अदालत से संपर्क करने की आवश्यकता है, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत हाईकोर्ट का मूल अधिकार क्षेत्र ऐसे मामलों मेंं शामिल नहीं है।

    जस्टिस अशोक कुमार वर्मा ने सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले अभियुक्त की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम के प्रावधानों के तहत अग्रिम जमानत देने या खारिज करने का आदेश अधिनियम की धारा 14ए के तहत अपीलीय क्षेत्राधिकार के अधीन होगा न कि सीआरपीसी की धारा 438 के अधीन।

    केस टाइटल: विनोद बिंदल बनाम हरियाणा राज्य

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    मजिस्ट्रेट के पास धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरणपोषण का अंतरिम आदेश देने की अंतर्निहित शक्ति: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि किसी भी स्पष्ट रोक या निषेध के अभाव में धारा 125 सीआरपीसी की व्याख्या भरणपोषण का अंतरिम आदेश देने की शक्ति प्रदान करने के रूप में की जा सकती है, हालांकि यह अंतिम परिणाम के अधीन होगा।

    जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस पीजी अजितकुमार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने शैला कुमारी देवी बनाम कृष्णन भगवान पाठक (2008) में कहा है, "... जहां तक 'अंतरिम' भरणपोषण का संबंध है, यह सच है कि मूल रूप से अधिनियमित संहिता की धारा 125 ने मजिस्ट्रेट को स्पष्ट रूप से अंतरिम भरण-पोषण के भुगतान का निर्देश देने का आदेश देने का अधिकार नहीं दिया हे। हालांकि संहिता मजिस्ट्रेट को ऐसा आदेश देने से प्रतिबंधित नहीं करती। कार्यवाही की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, संहिता का प्राथमिक उद्देश्य परित्यक्त और निराश्रित पत्नियों, परित्यक्त और उपेक्षित बच्चों और विकलांग और असहाय माता-पिता को राहत दिलाना और यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी पत्नी, बच्चा या माता-पिता भिखारी और निराश्रित न रह जाए...

    केस टाइटल: एमके घीवर्गीस बनाम मरियम घीवर्गीस

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    यदि यह क्लॉज नहीं है कि अंतरिती पर भरणपोषण का दायित्व होगा, संपत्ति हस्तांतरण को वरिष्ठ नागरिक अधिनियम की धारा 23 के तहत शून्य नहीं माना जा सकताः मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत कुछ संपत्ति हस्तांतरण को शून्य घोषित करने का प्रावधान है, लेकिन संपत्ति का समझौता तब तक रद्द नहीं किया जा सकता जब तक कि यह अधिनियम की शर्तों को पूरा नहीं करता है।

    माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम की धारा 23(1) में कहा गया है, "जहां कोई वरिष्ठ नागरिक, जिसने इस अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद उपहार के जरिए या अन्यथा, अपनी संपत्ति स्थानांतरित कर दी है, इस शर्त के अधीन कि जिसे संपत्ति ट्रांसफर की गई है यानि अंतरिती,, अंतरणकर्ता को बुनियादी सुविधाएं और मूलभूत भौतिक आवश्यकताएं प्रदान करेगा और यदि अंतरिती ऐसी सुविधाओं और भौतिक आवश्यकताओं को प्रदान करने से इनकार करता है या विफल रहता है, संपत्ति का कथित हस्तांतरण धोखाधड़ी या ज़बरदस्ती या अनुचित प्रभाव के तहत किया गया माना जाएगा और हस्तांतरणकर्ता के विकल्प पर ट्रिब्यूनल उसे शून्य घोषित कर सकता है।"

    केस टाइटल: एस सेल्वराज सिम्पसन बनाम डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर और अन्य

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    लोक अदालत अवार्ड के प्रवर्तन के लिए स्टाम्प ड्यूटी/रजिस्ट्रेशन के भुगतान की आवश्यकता नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि लोक अदालत का फैसला, सिविल कोर्ट के आदेश के बराबर होने के कारण निष्पादन सूट के माध्यम से लागू किया जा सकता है और इसे लागू करने के लिए रजिस्ट्रेशन और स्टांप ड्यूटी के भुगतान की आवश्यकता नहीं होती। अदालत ने कहा, "लोक अदालत द्वारा दर्ज किए गए निपटान में डिक्री के बाध्यकारी बल के लिए स्टांप ड्यूटी या रजिस्ट्रेशन के भुगतान की आवश्यकता नहीं होगी।"

    केस टाइटल- श्रीचंद @ चंदनमल सुगनामल पंजवानी बनाम अहमद इस्माइल वलोदिया और अन्य।

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    [OVI, R17, CPC] केवल इसलिए कि प्रस्तावित संशोधन समान संपत्ति से संबंधित हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि पार्टी मुकदमे की प्रकृति बदल सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक संशोधन जो मुकदमे की प्रकृति को पूरी तरह से बदल देता है, की अनुमति नहीं दी जा सकती। जस्टिस संदीप वी मार्ने ने निचली अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें यह देखते हुए कि वादी संशोधन के माध्यम से एक नया मामला ला रहे थे, एक संपत्ति विवाद में प्रार्थनाओं में संशोधन की अनुमति दी गई थी।

    कोर्ट ने फैसले में कहा, "इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बावजूद कि वादी वाद में संशोधन करके एक पूरी तरह से नया मामला पेश कर रहे थे, ट्रायल कोर्ट ने अभी भी इस आधार पर संशोधन के लिए आवेदन की अनुमति दी है कि चूंकि संशोधन उसी संपत्ति के संबंध में है, वादी यह प्रार्थना करने के लिए स्वतंत्र हैं कि वे वाद संपत्ति के हकदार कैसे हैं। मेरे विचार से यह तर्क पूरी तरह से गलत है।"

    केस टाइटलः दामोदरदास गोविंदप्रसाद संगी बनाम फतेहसिंह सन/ऑफ कल्याणजी ठक्कर व अन्य।

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    अनुच्छेद 14 | अस्थायी कर्मचारी को समान कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले नियमित कर्मचारी के वेतन के न्यूनतम ग्रेड के बराबर वेतन का भुगतान करने लिए निर्देशित किया जा सकता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि संविधान के अनुच्छेद 39 के तहत "समान काम के लिए समान वेतन" के दावे के अलावा, समानता की अवधारणा अस्थायी कर्मचारियों पर भी लागू होगी और उन्हें , समान कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले नियमित कर्मचारी के वेतन के निम्नतम ग्रेड के बराबर मजदूरी का भुगतान के लिए निर्देशित किया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा, समानता की अवधारणा को वेतन समानता के मुद्दे पर भी लागू किया जाना है और इस प्रकार, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 को लागू करके भी एक अस्थायी कर्मचारी (कार्य-प्रभार, दैनिक वेतन, आकस्मिक, तदर्थ, संविदात्मक के रूप में नामित, और इसी प्रकार के), चयन और नियुक्ति के तरीके को शामिल किए बिना, समान कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले नियमित कर्मचारी के निम्नतम ग्रेड पर वेतन के बराबर मजूदरी का भुगतान करने के लिए निर्देशित किया जा सकता है।

    केस टाइटल: सचिव, डीएवी कॉलेज प्रबंध समिति और अन्य बनाम जिला न्यायाधीश, करनाल और अन्य

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    सीआरपीसी की धारा 340 के तहत जांच अनिवार्य, ऐसा ना कर पाने पर पूरी कार्यवाही गैर-स्थायी (Non-Est) होगी: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि सीआरपीसी की धारा 340 के तहत परिकल्पित जांच अनिवार्य प्रकृति की है। आईपीसी की धारा 192, 193 और 195 के तहत अपराधों से जुड़े मामलों में आगे बढ़ने से पहले ऐसी जांच की जानी चाहिए।

    जस्टिस ए बदरुद्दीन ने कहा, ...सीआरपीसी की धारा 340 के तहत परिकल्पित जांच अनिवार्य प्रकृति की है। आईपीसी की धारा 192, 193 और 195 के तहत अपराधों के आरोप से जुड़े मामलों में आगे बढ़ने से पहले ऐसी जांच की जानी चाहिए। मौजूदा मामले में स्पष्ट रूप से ऐसी जांच नहीं की गई थी और इसलिए, उसके बाद की पूरी कार्यवाही Non-Est है।

    केस टाइटल: सजीवन बनाम केरल राज्य

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    धारा 143 एनआई एक्ट| आदेश में कार्यवाही की प्रकृति का सारांश रिकॉर्ड करने में विफलता तब तक ट्रायल को खराब नहीं करती, जब तक कि पूर्वाग्रह न दिखाया जाए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि अपीलीय अदालत को मामले को नए सिरे से ट्रायल के लिए वापस भेजने का निर्णय सतर्कता और विवेकपूर्ण तरीके से लेना चाहिए। जस्टिस डॉ एचबी प्रभाकर शास्त्री की पीठ ने 2 सितंबर, 2013 को अपीलीय अदालत द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया, जिसने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत ट्रायल कोर्ट की ओर से दी गई सजा को रद्द कर दिया था। मामले को नए सिरे से सुनवाई का आदेश देते हुए ट्रायल कोर्ट को वापस भेज दिया गया।

    केस टाइटल: मैसर्स प्रधान मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड बनाम मैसर्स वर्जिन अपैरल्स और अन्य।

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    यदि आरोपी पहले से ही एक अन्य आपराधिक मामले में हिरासत में है तो अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है यदि वह समान या अलग-अलग अपराध के लिए किसी अन्य आपराधिक मामले में पहले से ही जेल में है। जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने सुनील कलानी बनाम लोक अभियोजक के माध्यम से राजस्थान राज्य 2021 एससीसी ऑनलाइन राज 1654 के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए यह निष्कर्ष निकाला।

    केस टाइटल- राजेश कुमार शर्मा बनाम सीबीआई [आपराधिक विविध सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत आवेदन नंबर - 4633/2022]

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    राज्य अपने विवेक से लोक सेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी को अस्वीकार कर सकता है; लोकायुक्त के पास इसे चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि लोकायुक्त के पास भ्रष्टाचार के मामले में लोक सेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से राज्य के इनकार को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।

    चीफ जस्टिस रवि मालिमथ और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की खंडपीठ ने कहा कि लोकायुक्त की भूमिका राज्य को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के साथ समाप्त हो जाती है- सिविल सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के मामले में मंजूरी देना बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है। यह सुनिश्चित करने का इरादा है कि कोई तुच्छ मुकदमा नहीं चलाया जाता है। यही कारण है कि स्वीकृति प्रदान करने का प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिए एक बार जब लोकायुक्त सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपने के अपने कर्तव्य का पालन कर लेता है तो उसकी भूमिका समाप्त हो जाती है। स्वीकृति देना या न देना सरकार के विवेक पर है। जब ऐसी मंजूरी देने से मना कर दिया गया हो तो लोकायुक्त उक्त आदेश को चुनौती नहीं दे सकता।

    केस टाइटल: विशेष पुलिस स्थापना बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य।

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    [विभागीय कार्रवाई] जांच अधिकारी आरोपों के उन निष्कर्षों का लाभ नहीं ले सकता जो चार्जशीट का हिस्सा नहीं है: जेकेएल हाईकोर्ट ने दोहराया

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने दोहराया कि जांच अधिकारी आरोपों के उन निष्कर्षों का लाभ नहीं ले सकता जो चार्जशीट का हिस्सा नहीं है जस्टिस संजीव कुमार की एक पीठ ने कहा, "अनुशासनात्मक जांच करने वाले जांच अधिकारी का काम अपराधी के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच करना है और अपनी जांच को लगाए गए आरोपों तक सीमित रखना है। वह जांच किए जाने या पूछताछ किए जाने वाले आरोपों से परे अपने संदर्भ की शर्तों से परे अपने निष्कर्षों का लाभ नही ले सकता।"

    केस टाइटल: लक्ष्मण दास बनाम भारत संघ व अन्य

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    मध्यस्थ के पक्षपात से संबंधित चुनौती को ए&सी अधिनियम की धारा 14 के तहत नहीं उठाया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्वाग्रह के आधार पर मध्यस्थ के जनादेश को दी गई चुनौती पर कहा कि ए एंड सी अधिनियम की धारा 14 के तहत स्वतंत्रता और निष्पक्षता के संबंध में न्यायोचित संदेह नहीं उठाया जा सकता।

    जस्टिस यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 14 न्यायालय को मध्यस्थ के जनादेश को समाप्त करने की शक्ति प्रदान करती है और केवल उन परिस्थितियों में स्थानापन्न मध्यस्थ नियुक्त करती है, जो अधिनियम की 7 वीं अनुसूची के अंतर्गत आती हैं और जो कानूनी रूप से मध्यस्थ अयोग्यता से संबंधित है। हालांकि, पक्षपात का आधार या स्वतंत्रता और निष्पक्षता के रूप में न्यायोचित आधार 5वीं अनुसूची सपठित धारा 12(3) के अंतर्गत आता है, जिसमें केवल ट्रिब्यूनल ही चुनौती पर निर्णय ले सकता है।

    केस टाइटलः यूनियन ऑफ इंडिया बनाम रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड, OMP (T) (COMM) 125/2022

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