मजिस्ट्रेट के पास धारा 125 सीआरपीसी के तहत भरणपोषण का अंतरिम आदेश देने की अंतर्निहित शक्ति: केरल हाईकोर्ट
Avanish Pathak
15 Dec 2022 7:52 PM IST
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि किसी भी स्पष्ट रोक या निषेध के अभाव में धारा 125 सीआरपीसी की व्याख्या भरणपोषण का अंतरिम आदेश देने की शक्ति प्रदान करने के रूप में की जा सकती है, हालांकि यह अंतिम परिणाम के अधीन होगा।
जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस पीजी अजितकुमार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने शैला कुमारी देवी बनाम कृष्णन भगवान पाठक (2008) में कहा है,
"... जहां तक 'अंतरिम' भरणपोषण का संबंध है, यह सच है कि मूल रूप से अधिनियमित संहिता की धारा 125 ने मजिस्ट्रेट को स्पष्ट रूप से अंतरिम भरण-पोषण के भुगतान का निर्देश देने का आदेश देने का अधिकार नहीं दिया हे। हालांकि संहिता मजिस्ट्रेट को ऐसा आदेश देने से प्रतिबंधित नहीं करती। कार्यवाही की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, संहिता का प्राथमिक उद्देश्य परित्यक्त और निराश्रित पत्नियों, परित्यक्त और उपेक्षित बच्चों और विकलांग और असहाय माता-पिता को राहत दिलाना और यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी पत्नी, बच्चा या माता-पिता भिखारी और निराश्रित न रह जाए...
यह माना गया कि मजिस्ट्रेट के पास भरणपोषण के लिए अंतरिम आदेश देने के लिए 'अंतर्निहित शक्ति' है।
चैप्टर IX (पत्नियों, बच्चों और माता-पिता के भरणपोषण के लिए आदेश) के तहत मजिस्ट्रेट का अधिकार क्षेत्र पूणतः आपराधिक प्रकृति का नहीं है। साथ ही, संहिता की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के माध्यम से उचित राशि प्राप्त करने का उपाय एक संक्षिप्त उपाय है।"
इस प्रकार यह पाया गया कि उपरोक्त कानूनी सिद्धांतों के अनुसार, एक ईसाई बेटी भरण-पोषण का दावा करने की हकदार है।
मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 की धारा 7 के तहत दायर एक याचिका के तहत फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए गुजारा भत्ता के अंतरिम आदेश से व्यथित था।
वकीलों की ओर से यह प्रस्तुत किया गया कि फैमिली कोर्ट को अंतरिम भरणपोषण के भुगतान का आदेश देने का अधिकार नहीं था क्योंकि प्रतिवादी (उनकी बेटी) जैसा कि धारा 125 सीआरपीसी के तहत प्रदान किया गया है, फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 7(2) के संचालन के जरिए, भरणपोषण का दावा कर सकती थी।
यह दोहराने के बाद कि धारा 125 की व्याख्या भरण-पोषण का अंतरिम आदेश देने की शक्ति प्रदान करने के रूप में की जा सकती है, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के इस तर्क पर ध्यान दिया कि प्रतिवादी केवल फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 7(2) के तहत भरण-पोषण का दावा कर सकता है।
यह माना गया कि धारा 7(2) एक बेटी को संहिता की धारा 125 के तहत भरणपोषण का दावा करने में सक्षम बनाती है और इसके बदले में, संहिता की धारा 125(1)(बी) केवल एक अविवाहित बेटी, जिसे शारीरिक या मानसिक असामान्यता है या चोट है, या वह अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, उसे ही भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार देती है।
कोर्ट ने तदनुसार कहा कि चूंकि यह सवाल कि क्या प्रतिवादी सामान्य कानून के तहत भरण-पोषण का दावा कर सकती है या संहिता की धारा 125 के तहत ऐसा दावा कर सकती है, यह सवाल फैमिली कोर्ट केवल अंतिम निर्णय के समय ही तय कर सकती है और भरण-पोषण का दावा भी फैमिली कोर्ट के विचाराधीन था, याचिकाकर्ता को अंतरिम भरण-पोषण की राशि का भुगतान करना है, और कोर्ट को मामले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला।
केस टाइटल: एमके घीवर्गीस बनाम मरियम घीवर्गीस
साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (केरल) 654