यदि आरोपी पहले से ही एक अन्य आपराधिक मामले में हिरासत में है तो अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

Sharafat

12 Dec 2022 3:26 PM GMT

  • यदि आरोपी पहले से ही एक अन्य आपराधिक मामले में हिरासत में है तो अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य नहीं  : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि एक आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है यदि वह समान या अलग-अलग अपराध के लिए किसी अन्य आपराधिक मामले में पहले से ही जेल में है।

    जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने सुनील कलानी बनाम लोक अभियोजक के माध्यम से राजस्थान राज्य 2021 एससीसी ऑनलाइन राज 1654 के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए यह निष्कर्ष निकाला।

    अदालत ने कहा,

    " यह अदालत सुनील कालानी (सुप्रा) के मामले में निर्धारित कानून के मद्देनजर सीबीआई के वकीलों द्वारा की गई प्रारंभिक आपत्ति को बरकरार रखती है और मानती है कि चूंकि आवेदक एक अन्य मामले के सिलसिले में हिरासत में है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत वर्तमान ज़मानत आवेदन टिकाऊ नहीं होगा और यह सुनवाई योग्य नहीं होगा। इसके मद्देनज़र यह आवेदन खारिज किया जाता है।"

    कोर्ट 2022 के धोखाधड़ी और जालसाजी के मामले में अग्रिम जमानत की मांग करने वाले राजेश कुमार शर्मा की याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें उस पर भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया है।

    सीबीआई ने एक प्रारंभिक आपत्ति जताई कि चूंकि आरोपी को पहले ही सितंबर 2022 में एक अन्य मामले में गिरफ्तार किया जा चुका है और इसलिए , सुनील कालानी के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के मद्देनजर अग्रिम ज़मानत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

    दूसरी ओर आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि हालांकि आवेदक चंडीगढ़ के एक अन्य मामले में जेल में है, लेकिन अदालत के लिए उसे अग्रिम जमानत देने में कोई बाधा नहीं होगी क्योंकि उसे डर है कि वर्तमान मामले में भी उसे फिर से हिरासत में ले लिया जाएगा।

    वकीलों की दलीलों को ध्यान में रखते हुए अदालत ने सीबीआई के वकील द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्ति पर फैसला किया।

    न्यायालय ने सुनील कलानी (उपरोक्त) के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट की टिप्पणियों को ध्यान में रखा , जिसमें यह कहा गया था कि एक आपराधिक मामले के संबंध में पहले से ही हिरासत में एक व्यक्ति की अग्रिम जमानत अर्जी दूसरे मामले या एक जैसे या अलग-अलग अपराध में दर्ज आपराधिक मामले के संबंध में सुनवाई योग्य नहीं होगी।

    राजस्थान हाईकोर्ट ने उस मामले में भी टिप्पणी की थी कि यह और कुछ नहीं बल्कि ऐसे अभियुक्त को अग्रिम जमानत की अनुमति देना न्याय का उपहास होगा जो पहले से ही हिरासत में है।

    कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 438 और सीआरपीसी की धारा 46 का विश्लेषण करते हुए कहा,

    "... गिरफ्तारी का अनिवार्य हिस्सा कार्पस, व्यक्ति के शरीर को पुलिस अधिकारियों की हिरासत में रखना है, चाहे वह पुलिस स्टेशन में हो या उसके सामने या संबंधित जेल में। प्राकृतिक परिणाम इसलिए है कि एक व्यक्ति जो पहले से ही जेल में हिरासत में है, यह विश्वास करने का कारण नहीं हो सकता है कि उसे गिरफ्तार किया जाएगा क्योंकि वह पहले से ही गिरफ्तार है। इसके मद्देनजर, सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर की जाने वाली जमानत अर्जी की पूर्व शर्त अर्थात "यह मानने के कारण कि उसे गिरफ्तार किया जा सकता है" अस्तित्व में नहीं है क्योंकि एक व्यक्ति किसी अन्य मामले में पहले ही गिरफ्तार हो चुका है और हिरासत में है चाहे वह पुलिस के सामने हो या जेल में हो। "

    केस टाइटल- राजेश कुमार शर्मा बनाम सीबीआई [आपराधिक विविध सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत आवेदन नंबर - 4633/2022]

    केस साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (एबी) 525

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