"आपराधिक प्रकृति के निजी विवाद में शामिल कोई व्यक्ति सार्वजनिक शांति को कैसे भंग कर सकता है?": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 111 के तहत जारी नोटिस पर रोक लगाई

LiveLaw News Network

18 Aug 2021 4:14 AM GMT

  • आपराधिक प्रकृति के निजी विवाद में शामिल कोई व्यक्ति सार्वजनिक शांति को कैसे भंग कर सकता है?: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 111 के तहत जारी नोटिस पर रोक लगाई

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक एसडीएम द्वारा नूर आलम को भेजे गए सीआरपीसी की धारा 111 के तहत नोटिस पर रोक लगा दी, जिसमें उसके खिलाफ 'कड़े शब्द' थे। कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ-साथ किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा से कीमती कुछ भी नहीं हो सकता है।

    जस्टिस मो. फैज आलम खान की पीठ ने कहा कि धारा 111 सीआरपीसी नोटिस में यह भी स्पष्ट नहीं है कि आपराधिक प्रकृति के निजी विवाद में खुद को शामिल करके आवेदक द्वारा सार्वजनिक शांति को कैसे भंग किया जा सकता है।

    संक्षेप में मामला

    उपमंडल दंडाधिकारी, सदर, बहराइच द्वारा सीआरपीसी की धारा 111 के तहत भेजे गए नोटिस को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता नूर आलम ने दलील दी कि एकल के आधार पर आईपीसी की धारा 323, 504, 506 के तहत मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 111 के प्रावधानों को लागू किया।

    नोटिस में उसे कारण बताने के लिए निर्देशित किया गया था कि उन्हें अगले तीन वर्षों के लिए शांति बनाए रखने के लिए पचार हजार रुपये का निजी बॉन्ड भरने और जमानतदार पेश करने की शर्त के साथ जमानत देने का निर्देश क्यों नहीं दिया गया।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    अदालत ने शुरुआत में कहा कि इस प्रस्ताव में कोई संदेह नहीं हो सकता है कि किसी भी आपराधिक अदालत द्वारा किसी भी उद्देश्य के लिए किसी व्यक्ति को समन करना एक बहुत ही गंभीर मामला है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 111 के तहत नोटिस करते समय मजिस्ट्रेट के लिए यह अनिवार्य है कि किसी भी आकस्मिक स्थिति के अस्तित्व के बारे में खुद को संतुष्ट करने के लिए और यदि ऐसा है तो वह धारा 111 सीआरपीसी के तहत किसी भी आरोपी व्यक्ति को नोटिस जारी करने के कारणों को दर्ज करने के लिए बाध्य है।

    अदालत ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि आवेदक केवल एक आपराधिक मामले में शामिल है और कथित विवाद पूरी तरह से व्यक्तिगत प्रकृति का है।

    कोर्ट ने नोट किया, सब डिविजनल मजिस्ट्रेट, सदर, बहराइच द्वारा नोटिस में बहुत कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। यह कहा गया है कि आवेदक एक आदतन अपराधी है जिसका मुख्य व्यवसाय 'चोरी', दंगा करना' है। अपराधी और हमले करने वाले हैं और इसके कारण बड़े पैमाने पर जनता डर में जी रही है और इससे सार्वजनिक शांति भंग होने की प्रबल संभावना है।

    कोर्ट ने कहा कि,

    "यह स्पष्ट नहीं है कि मजिस्ट्रेट को यह जानकारी कैसे मिली कि आवेदक आदतन अपराधी है, जो 'मारपीट', चोरी और दंगों में लिप्त है और जनता उसके कारण भय में जी रही है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि आपराधिक प्रकृति के निजी विवाद में एक व्यक्ति के शामिल होने से सार्वजनिक शांति कैसे भंग हो सकती है।"

    कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह राय है कि तत्काल मामला संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा समझ के साथ विचार न करने का एक उदाहरण है।

    कोर्ट ने मामले में आगे की कार्यवाही पर रोक लगाते हुए मामले में एक विस्तृत जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए यूपी राज्य को नोटिस जारी किया और मामले को 8 सितंबर, 2021 के लिए सूचीबद्ध किया।

    केस का शीर्षक - नूर आलम @ नूर आलम खान बनाम यूपी राज्य एंड अन्य।

    आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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