पत्नी के परिवार में उसके साथ कोर्ट आने के लिए किसी का उपलब्ध न होना, वैवाहिक मामले के स्थानांतरण के लिए अच्छा आधारः इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

28 Nov 2021 9:45 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ने हाल ही में तलाक के मामले की कार्यवाही को स्थानांतरित (ट्रांसफर) करने की मांग करने वाले एक महिला की तरफ से दायर स्थानांतरण आवेदन को अनुमति देते हुए कहा है कि आवेदक-पत्नी के परिवार में ऐसा कोई भी नहीं है जो उसके साथ कोर्ट आ सके,इसलिए यह केस को ट्रांसफर करने का एक अच्छा आधार है।

    न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने पत्नी के आवेदन को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि वैवाहिक मामलों में, पत्नी की सुविधा एक मामले के हस्तांतरण को सही ठहराने के लिए प्रमुख कारक है।

    संक्षेप में मामला

    आवेदक के पति ने तलाक की मांग करते हुए आवेदक के खिलाफ कानपुर कोर्ट के समक्ष हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-a) के साथ पठित धारा 10 के तहत एक अर्जी दायर की है।

    इसके बाद, पत्नी ने सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 24 के तहत मामले की कार्यवाही को उत्तर प्रदेश में स्थित कानपुर कोर्ट से प्रयागराज कोर्ट में स्थानांतरित करने के लिए वर्तमान स्थानांतरण आवेदन दायर किया।

    उसने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि एक युवा महिला होने के नाते, वह प्रयागराज (जहां वह वर्तमान में कमला नेहरू मेमोरियल अस्पताल में एक रेजिडेंट डॉक्टर के रूप में काम कर रही है) से लगभग दो सौ किलोमीटर की दूरी तय करके जिला कानपुर की कोर्ट में केस की सुनवाई के लिए नहीं आ सकती है क्योंकि वह प्रयागराज में अकेली रहती है और वहां उसके परिवार का कोई ऐसा व्यक्ति उपलब्ध नहीं है,जो उसके साथ कानपुर कोर्ट आ सके।

    दूसरी ओर, उसके पति ने अदालत के समक्ष अपने हलफनामे में दावा किया कि आवेदक-पत्नी केवल अस्थायी अवधि के लिए प्रयागराज (इलाहाबाद) में रहेगी और यह भी आरोप लगाया कि वर्तमान स्थानांतरण आवेदन केवल तलाक की कार्यवाही को लंबा खींचने और तलाक में देरी करवाने के लिए दायर किया गया है।

    उसने यह भी कहा कि प्रयागराज में उसकी जान को गंभीर खतरा है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    शुरूआत में कोर्ट ने कहा कि ट्रांसफर की कार्यवाही को निर्धारित करने के लिए कोई स्ट्रेट-जैकेट फॉर्मूला नहीं अपनाया जा सकता है।

    न्यायालय ने यह भी कहा कि यह अनिवार्य नियम नहीं है कि स्थानांतरण आवेदन हमेशा पत्नी की मांग पर स्वीकार किए जाने चाहिए, परंतु अगर पत्नी ऐसी स्थिति में है, जहां वह मान्यता प्राप्त मानकों से वंचित है, तो ऐसे में निष्पक्षता के लिए उसके हितों की रक्षा की जानी चाहिए।

    यात्रा में आने वाली लागत के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि इलाहाबाद से कानपुर आने-जाने में होने वाला खर्च वर्तमान मामले में बहुत प्रासंगिक नहीं है क्योंकि न्यायालय हमेशा पति को पत्नी की यात्रा के लिए भुगतान करने का निर्देश दे सकता है।

    हालांकि, पीठ ने यह भी कहा, चूंकि आवेदक-पत्नी के परिवार में ऐसा कोई नहीं है जो कोर्ट आते-जाते समय उसके साथ आ सके, इसलिए इसे मामले के हस्तांतरण की मांग के लिए अच्छा आधार माना गया है।

    इस संबंध में, कोर्ट ने अंजलि अशोक साधवानी बनाम अशोक किशनचंद साधवानी, एआईआर 2009 एससी 1374 और सुमिता सिंह बनाम कुमार संजय व अन्य, एआईआर 2002 एससी 396 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों का उल्लेख किया।

    जहां तक आवेदक के पति द्वारा प्रयागराज में अपने जीवन को खतरा होने के संबंध में आरोप लगाने का मामला है तो इस पर अदालत ने कहा कि यह आरोप किसी भी ठोस सामग्री पर आधारित नहीं है और इसलिए, उक्त दलील को न्यायालय द्वारा स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

    अंत में, स्थानांतरण आवेदन की अनुमति देते हुए, न्यायालय ने आदेश दिया है कि प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, कानपुर नगर के न्यायालय में लंबित मामले को प्रयागराज के सक्षम न्यायालय में स्थानांतरित किया जाए।

    कानपुर की अदालत को निर्देश दिया गया है कि वह सुनिश्चित करे कि मामले का रिकॉर्ड जल्द से जल्द जिला प्रयागराज कोर्ट को भेज दिया जाए और ट्रांसफरी यानी प्रयागराज की कोर्ट को कहा गया है कि वह सुनिश्चित करे कि रिकॉर्ड प्राप्त होने के छह महीने की अवधि के भीतर मामले का निपटारा कर दिया जाए।

    केस का शीर्षक - श्रीमती गरिमा त्रिपाठी बनाम सुयश शर्मा

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