'पुलिस की पुलिसिंग कौन करेगा?' इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिकरू एनकाउंटर षडयंत्र मामले में यूपी के 2 पुलिसकर्मियों को जमानत देने से किया इनकार

LiveLaw News Network

21 Sep 2021 1:09 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश पुलिस दो कर्मचारियों एसओ विनय कुमार तिवारी और बीट ऑफिसर कृष्ण कुमार शर्मा को जमानत देने से इनकार कर दिया। उन पर तीन जुलाई, 2020 को बिकरु गांव में पुलिस पर हुए घात लगा कर हुए हमले, जिसमें आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे, की साजिश रचने का आरोप है। गैंगस्टर विकास दुबे पर पुलिस वालों को मारने का आरोप लगा था।

    कोर्ट ने 40 साल पहले एक फैसले में जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर द्वारा दिए गए प्रसिद्ध बयान "पुलिस को पुलिस कौन करेगा" से शुरुआत की। कोर्ट ने कहा, "लगभग 40 साल बीत चुके हैं, लेकिन, यह सवाल अब भी एक बड़े प्रश्न चिह्न के साथ खड़ा है।"

    जस्टिस प्रदीप कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि यह कोई छुपी बात नहीं है कि ऐसे पुलिसकर्मी हैं, शायद उनकी संख्या बहुत कम हैं, जो अपने विभाग की तुलना में ऐसे गैंगस्टरों के प्रति अधिक वफादारी दिखाते हैं, जिन्हें वे बखूबी जानते हैं।

    कोर्ट ने कहा, "ऐसे पुलिसकर्मी पुलिस की छवि, नाम और प्रसिद्धि को धूमिल करते हैं और यह आवश्यक है कि संदिग्ध पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई की जाए और उनके आचरण की नियमित रूप से निगरानी की जाए, जिसके लिए एक तंत्र विकसित किया जाना चाहिए, और यदि यह पहले से मौजूद है, तो इसे विभिन्न स्तरों पर कसा जाना किया जाना चाहिए।"

    आरोपित-आवेदकों के खिलाफ मामला

    आरोपी आवेदक विनय कुमार तिवारी और केके शर्मा के खिलाफ धारा 147, 148, 149, 302, 307, 504, 506, 353, 332, 333, 396, 412, 120 बी, 34 आईपीसी, आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम की धारा 7 धारा 3/4 विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा के तहत मामला दर्ज किया गया है।

    आरोप है कि साजिश के तहत उन्होंने दुबे को पुलिस छापेमारी की सूचना लीक कर दी थी और उन्हें तैयार रहने का मौका दिया और साथ ही दोनों ने न तो पुलिस कर्मियों को उचित सहयोग दिया और न ही पुलिस बल को अपनी तैयारियों के बारे में सूचित किया।

    आरोपी आवेदकों पर आरोप है कि गैंगस्टर विकास दुबे के साथ उनके घनिष्ठ मैत्रीपूर्ण संबंध थे। उसका आपराध‌िक गतिविधियां उसी थाने के अधिकार क्षेत्र में फल-फूल रही थीं, जिनमें वे तैनात थे।जांच अधिकारी ने मामले में कई गवाहों से पूछताछ की है और उन्होंने गैंगस्टर विकास दुबे और गिरोह के साथ आवेदकों के करीबी संबंधों के बारे में बताया है।

    न्यायालय के समक्ष प्रस्तुतियां

    राज्य ने प्रस्तुत किया कि विकास दुबे ने अपनी मृत्यु से पहले आईओ को एक बयान दिया था कि उन्हें छापे के बारे में पूर्व सूचना थी।

    सीडीआर के एक अध्ययन के आधार पर, राज्य ने तर्क दिया कि घटना की तारीख पर, घटना से पहले, आरोपी व्यक्तियों ने एक-दूसरे से संपर्क किया और पिछले एक महीने में यह कॉल पैटर्न असाधारण है क्योंकि उनके बीच इस प्रकार का अनोखा संचार था। यह भी तर्क दिया गया कि घटना से पहले आरोपी द्वारा दुबे को कई कॉल किए गए थे।

    महत्वपूर्ण रूप से यह भी तर्क दिया गया कि आरोपी-आवेदक केके शर्मा ने गैंगस्टर को जानकारी दी और गैंगस्टर की सहायता के लिए एक एजेंट के रूप में काम कर रहा था और इसीलिए उसने खुद को जानबूझकर पुलिस स्टेशन में रखा।

    अंत में, यह प्रस्तुत किया गया कि किसी भी समय आवेदक विनय तिवारी ने अपनी टीम के सदस्यों को कोई बैकअप प्रदान नहीं किया।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    शुरुआत में, अदालत ने पाया कि यह स्पष्ट था कि आरोपी, जो एक ही पुलिस स्टेशन में तैनात थे, का गैंगस्टर और उसके आदमियों के साथ कोई पेशेवर संबंध नहीं हो सकता है, और उसके साथ मोबाइल पर संचार निश्चित रूप से एक प्रासंगिक परिस्थिति हो सकती है। अदालत ने कहा कि अपराध की प्रकृति और दोष की राशि गंभीर, जघन्य, चौंकाने वाली और अभूतपूर्व है।

    कोर्ट कहा- "यह भी स्पष्ट है कि मुख्य आरोप‌ियों को पुलिस छापे की पूर्व सूचना थी और स्वाभाविक रूप से, वर्तमान तथ्यों के सेट में, पुलिस द्वारा यह जानकारी प्रकट की गई थी, जिसने न केवल 30 मुख्य अभियुक्तों को सतर्क किया बल्कि उन्हें पूरा अवसर भी प्रदान किया..अपराध की स्थिति इतनी अचानक थी कि पुलिस बल को टिकने और काउंटर करने का अवसर नहीं मिला और कुछ भी नहीं कर सका। आरोपी-आवेदकों के खिलाफ आरोप यह है कि उन्होंने मुख्य आरोपी के साथ अपने अच्छे संबंध और वफादारी के कारण अपराध करने के लिए मुख्य आरोपी के साथ साजिश रची और साथ ही वे अंचल अधिकारी के साथ अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी भी निभाना चाहते थे।"

    अंत में उनकी जमानत याचिका खारिज करने के निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए अदालत ने निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा:

    -अपराध की भयावहता और गैंगस्टर विकास दुबे और उसके सहयोगियों की ओर से तैयारियां;

    -विकास दुबे का मृत्यु से पहले आईओ को दिया गया बयान कि उन्हें छापेमारी की पूर्व सूचना थी;

    -घटना से पहले और उसके दौरान आरोपी-आवेदकों का आचरण;

    -आवेदक विनय कुमार तिवारी हालांकि एक टीम का नेतृत्व कर रहे थे, लेकिन उन्होंने कोई बैकअप नहीं दिया और न ही उन्हें कोई चोट लगी और पूरी निष्क्रियता दिखाई;

    -आवेदक केके शर्मा ने जानबूझकर छापेमारी में भाग लेने से परहेज किया और वह गैंगस्टर को सूचना देने के लिए जानबूझकर थाने को छोड़ दिया था।

    आदेश/निर्णय डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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