पति के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला-''पत्नी को चिकित्सा सहायता प्रदान करना, उसे अपराधबोध से मुक्त नहीं करेगा'': इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

8 Feb 2021 8:15 AM GMT

  • पति के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला-पत्नी को चिकित्सा सहायता प्रदान करना, उसे अपराधबोध से मुक्त नहीं करेगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में उस पति की जमानत याचिका को खारिज कर दिया, जिस पर अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था। पीठ ने कहा कि केवल अपनी पत्नी को चिकित्सा सहायता प्रदान करना आवेदक को उसके आरोपों से मुक्त नहीं करेगा।

    न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने आगे कहा कि पति का निरंतर आचरण गलत रहा है। उसने अपनी पत्नी को अपने बेटे से मिलने की अनुमति भी नहीं दी थी, जो उसकी पत्नी के लिए गंभीर उदासीनता का कारण बन गया और गंभीर मनोवैज्ञानिक उथल-पुथल के इस चरण में उसके पास यह चरम कदम उठाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं रह गया था।

    न्यायालय के समक्ष मामला

    आवेदक/आदमी/पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 498ए, 304बी और डी.पी एक्ट की धारा 3/4 के तहत आदिल (मृतक/ महिला/ पत्नी का भाई) ने एक प्राथमिकी दर्ज करवाई थी। यह आरोप लगाया गया था कि महिला ने आवेदक से लगभग छह महीने पहले शादी की थी और यह उसकी तीसरी शादी थी, जबकि उसकी पहली शादी से उसका एक बेटा था।

    यह भी कहा गया था कि उसका पति और अन्य ससुरालवाले अतिरिक्त दहेज के लिए उसके साथ क्रूर व्यवहार करते थे।

    प्राथमिकी में यह भी आरोप लगाया गया कि 13 जनवरी 2020 को साजिश रचने के बाद आरोपी व्यक्तियों ने उसे कुछ जहरीला पदार्थ खिलाया और उसकी हत्या कर दी।

    सामग्री एकत्र करने के बाद, पुलिस ने मामले की बनावट बदल दी और सीआरपीसी की धारा 173 (2) के तहत आईपीसी की धारा 306 के तहत किए गए अपराध के लिए रिपोर्ट पेश की और बाकी उन धाराओं को छोड़ दिया गया,जिनके तहत शुरूआत में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

    कोर्ट का अवलोकन

    अदालत ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि गवाह शबनम (मृतक की बहन) ने आरोप लगाया कि लगभग तीन दिन पहले मृतक ने उसे फोन किया था और अपने बेटे से मिलने की इच्छा व्यक्त की थी। साथ ही यह भी कहा था कि आवेदक/ उसका पति उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित करता है और उसे अपने बेटे से मिलने की अनुमति नहीं दे रहा है।

    इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि सह-आरोपी रजनी सिंह ने भी स्वीकार किया है कि 13 जनवरी 2020 को मृतक अपने बेटे को वापस लाने के लिए जोर दे रही थी, जो उसके पूर्व पति इस्लाम के साथ रह रहा था।

    जब आवेदक ने उसकी मांग का गंभीर रूप से विरोध किया तो मृतक ने कुछ जहरीला पदार्थ खा लिया।

    यह प्रस्तुत किया गया था कि आवेदक ने मृतक को जिला अस्पताल मुरादाबाद और उसके बाद सनराइज अस्पताल पहुंचाया और जब उसे तीर्थंकर मेडिकल यूनिवर्सिटी में शिफ्ट कर रहे थे तो रास्ते में उसकी मौत हो गई।

    शुरुआत में ही अदालत ने कहा कि आवेदक ने अपनी पत्नी को अपने बेटे से मिलने की अनुमति न देकर उस पर कठोर रोक लगा दी थी।

    कोर्ट ने कहा कि,

    ''इस कदम ने शायद एक माँ को भावनात्मक झटका दिया था, जो अपने बेटे से मिल भी नहीं सकती थी। एक माँ की तरफ से आकलन या कल्पना करना, जिसे अपने बच्चे के प्रति पहला और सबसे संवेदनशील व्यक्ति कहा जाता है, उसे अपने ही पति ने मिलने की अनुमति नहीं दी थी, जिसके साथ उसने चार महीने पहले ही शादी की थी।''

    महत्वपूर्ण रूप से, न्यायालय ने कहा,

    ''अपने पति के इस क्रूर व्यवहार के कारण मृतक को मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और भावुक झटके का सामना करना पड़ा होगा और मानसिक उथल-पुथल के इस चरण में, उसने यह चरम कदम उठाया है।''

    न्यायालय ने आगे कहा कि उकसाने का अपराध सीधे तौर पर किया जा सकता है, लेकिन इसके साथ ही ऐसी परिस्थितियों का निर्माण भी किया जा सकता है, जो उकसाने के समान हो।

    विशेष रूप से, अदालत ने कहा कि,

    ''आवेदक प्रथम दृष्टया अपनी पत्नी के प्रति अत्यधिक क्रूरता करने का दोषी लगता है और आवेदक ने इस तरह के व्यवहार किया कि अपने बेटे के प्रति गहन स्नेह के कारण, मृतक-पत्नी के पास इस तरह का चरम कदम उठाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा था।''

    अंत में, न्यायालय को सीआरपीसी की धारा 439 के तहत अपनी शक्तियों का उपयोग करने का कोई अच्छा कारण नहीं मिला और इसप्रकार जमानत आवेदन खारिज कर दिया गया।

    केस का शीर्षक - समीर अली खान बनाम स्टेट ऑफ यूपी, आपराधिक मिश्रित आवेदन संख्या -37032/ 2020

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