आरोपी यह दावा नहीं कर सकता कि उसके इकबालिया बयान को केवल कुछ अपराधों के लिए माना जाए और दूसरों के लिए नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

20 Aug 2021 7:13 AM GMT

  • आरोपी यह दावा नहीं कर सकता कि उसके इकबालिया बयान को केवल कुछ अपराधों के लिए माना जाए और दूसरों के लिए नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    एक महत्वपूर्ण अवलोकन में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में यह माना कि जब किसी घटना या घटनाओं के सेट के संबंध में समग्र रूप से दोषसिद्ध किया जाता है तो आरोपी बाद में यह दावा नहीं कर सकता है कि उसके द्वारा दिए गए इकबालिया बयान पर केवल कुछ अपराधों के संबंध में विचार किया जाना चाहिए और दूसरों के लिए नहीं।

    जस्टिस अजय त्यागी की खंडपीठ अपीलकर्ता-आरोपी की एक दलील पर विचार कर रही थी कि उसे उसकी स्वीकारोक्ति के आधार पर धारा 413 IPC के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि निचली अदालत ने धारा 411 IPC के तहत उसकी दोषसिद्धि से संबंधित कम से कम दो निर्णय नहीं मांगे थे।

    उल्‍लेखनीय है कि धारा 411 बेईमानी से चोरी की संपत्ति प्राप्त करने से संबंध‌ित है, जबकि धारा 413, चोरी की संपत्ति की आदतन डी‌लिंग करने से संबंध‌ित है।

    तथ्य

    एक मुखबिर से प्राप्त सूचना के आधार पर 12 मार्च 2016 को पुलिस दल को पता चला कि अपीलकर्ता (अन्य के साथ) चोरी और डकैती की बात कर रहा है।

    आगे पूछताछ करने पर उसने स्वीकार किया कि वे सभी ट्रेन में यात्रा करने वाले यात्रियों के साथ चोरी या लूट करते थे और अगर उनके गिरोह के किसी सदस्य को लोगों ने पकड़ लिया तो वह पुलिस विभाग में होने के नाम पर उनकी मदद करता था।

    वहां खड़े सभी व्यक्तियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उन्होंने स्वीकार किया कि उनके पास अल्प्राजोलम पाउडर, चोरी की मोटरसाइकिल और चोरी के मोबाइल फोन आदि हैं।

    बाद में, ट्रायल कोर्ट ने धारा 177 (झूठी सूचना देना) , 171 (धोखाधड़ी के इरादे से लोक सेवक द्वारा इस्तेमाल किए गए वेश पहनना या टोकन ले जाना), 419 (भेष बदलकर धोखाधड़ी करने के लिए सजा) , 417 (धोखाधड़ी के लिए सजा) , 411 (बेईमानी से चोरी की संपत्ति प्राप्त करना) और 413 (आदतन चोरी की संपत्ति की डील‌िंग करना) के तहत आरोपी-अपीलकर्ता के खिलाफ चार्ज फ्रेम किए और उसे उपरोक्त सभी अपराधों के लिए दोषी ठहराया था।

    उल्लेखनीय है कि धारा 313 CrPC के तहत अपने बयान में उसने अपना अपराध कबूल किया और केवल उस स्वीकारोक्ति के आधार पर, निचली अदालत ने उसे सभी आरोपों में दोषी ठहराया।

    निचली अदालत के आक्षेपित निर्णय और आदेश से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने मौजूदा अपील दायर की।

    न्यायालय के समक्ष प्रस्तुतियां

    धारा 413 IPC के तहत सजा को चुनौती देते हुए, अपीलकर्ता ने यह तर्क दिया गया था कि धारा 413 IPC चोरी की संपत्ति के साथ आदतन डीलिंग से संबंधित है, इसलिए ट्रायल कोर्ट के लिए धारा 411 IPC ( बेईमानी से चोरी की संपत्ति प्राप्त करना) के तहत उसकी सजा के कम से कम दो निर्णय मांगना आवश्यक था।

    इस उद्देश्य के लिए, उन्होंने अजय सेठी बनाम राज्य 2017(4) जेसीसी 2495 में दिल्‍ली हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि आरोपी को आदतन होने के कारण धारा 411 IPC के तहत दो बार या दो बार से अधिक दोषी ठहराया जाना चाहिए था।

    यह भी तर्क दिया गया कि यदि अपीलकर्ता ने स्वीकारोक्ति कर ली होती, तब भी उसे उस अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता था क्योंकि रिकॉर्ड में कोई सबूत नहीं था कि आरोपी को कभी भी धारा 411 IPC के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने शुरू में यह देखा कि ट्रायल कोर्ट को दो फैसले मांगने की कोई जरूरत नहीं थी, जिसमें अपीलकर्ता को IPC की धारा 411 के तहत दोषी ठहराया गया था क्योंकि आरोपी द्वारा किए गए कबूलनामे को समग्र रूप से लिया जाएगा।

    वास्तव में, अदालत ने अपने 313 CrPC बयान में कहा, जब उससे विशेष रूप से पूछा गया था कि क्या वह आदतन चोरी के सामान का कारोबार करता है, तो अपीलकर्ता ने इस बात से इनकार नहीं किया और स्वीकार किया कि उसके द्वारा किए गए अपराधों के कारण उसके खिलाफ मुकदमा चलाया गया था।

    महत्वपूर्ण रूप से, अपीलकर्ता द्वारा किए गए अपराध जो, उसने स्वीकार किए हैं, उनमें धारा 413 IPC के तहत अपराध भी शामिल है।

    इस पृष्ठभूमि में न्यायालय ने कहा, "अपीलकर्ता द्वारा किए गए स्वीकारोक्ति के बाद, उसे दोषी ठहराने के लिए किसी अन्य सबूत की आवश्यकता नहीं थी। धारा 177, 171, 419, 417 और 411 IPC के तहत अन्य अपराधों के बारे में स्वीकारोक्ति को अपीलकर्ता द्वारा चुनौती नहीं दी जाती है। इसलिए, जब दोषसिद्धि को किसी भी घटना या घटनाओं के सेट के संबंध में संपूर्ण रूप में किया जाता है तो इसे समग्र रूप में लिया जाएगा। इसे टुकड़ों में विभाजित नहीं किया जा सकता है और आरोपी बाद में यह दावा नहीं कर सकता है कि उसके द्वारा दिए गए इकबालिया बयान पर केवल कुछ अपराधों के बारे में ही विचार किया जाना चाहिए।"

    अंत में, न्यायालय अपीलकर्ता के वकील के इस तर्क से सहमत नहीं था कि धारा 413 IPC के तहत आरोपी को दोषी ठहराने के लिए यह अनिवार्य है, विशेष रूप से स्वीकारोक्ति के बाद, कि आरोपी को पहले ही धारा 411 IPC के तहत दो बार या दो बार से अधिक दोषी ठहराया जाना चाहिए।

    अदालत ने अपील को खारिज करते हुए कहा," ... क्योंकि आरोपी अपीलकर्ता ने स्वयं निचली अदालत के समक्ष स्वीकार किया है कि उसे चोरी की संपत्तियों की ‌डीलिंग की आदत थी। यह अपीलकर्ता का मामला नहीं है और न ही उसने तर्क दिया कि आरोपी ने स्वेच्छा से स्वीकारोक्ति नहीं की।"

    केस का शीर्षक - विनोद माली बनाम यूपी राज्य

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