सुप्रीम कोर्ट में साल 2021 कैसा रहा : ईयरली राउंड अप, 100 प्रमुख जजमेंट, भाग 4 (76 से 100 तक)

LiveLaw News Network

31 Dec 2021 9:15 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट में साल 2021 कैसा रहा : ईयरली राउंड अप, 100 प्रमुख जजमेंट, भाग 4 (76 से 100 तक)

    लाइव लॉ आपके लिए लाया है साल 2021 का सुप्रीम कोर्ट वार्षिक विशेषांक, जिसमें हम वर्ष 2021 के सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख 100 जजमेंट के बारे में चर्चा करेंगे। ईयरी राउंड अप चार भागों में होगा, जिसके प्रत्येक भाग में 25 जजमेंट होंगे।

    सुप्रीम कोर्ट 2021 विशेषांक का पहला, दूसरा और तीसरा भाग प्रकाशित हो चुका है, जिसमें जनवरी 2021 से लेकर मार्च 2021 तक और अप्रैल से लेकर जून 2021 तक और जुलाई 2021 से लेकर सितंबर 2021 के प्रमुख 25-25 जजमेंट दिए गए हैं।

    सुप्रीम कोर्ट में साल 2021 कैसा रहा : ईयरली राउंड अप, 100 प्रमुख जजमेंट, भाग 1

    सुप्रीम कोर्ट में साल 2021 कैसा रहा : ईयरली राउंड अप, 100 प्रमुख जजमेंट, भाग 2

    सुप्रीम कोर्ट में साल 2021 कैसा रहा : ईयरली राउंड अप, 100 प्रमुख जजमेंट, भाग 3 (51 से 75 नंबर तक)

    इस सीरीज़ का चौथा और अंतिम भाग यहां दिया जा रहा है, जिसमें अक्टूबर 2021 से लेकर दिसंबर 2021 तक के प्रमुख जजमेंट दिए जा रहे हैं।

    76. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियां निहित हैं: सुप्रीम कोर्ट

    [मामला: ग्रेटर मुंबई नगर निगम बनाम अंकिता सिन्हा ; प्रशस्ति पत्र : एलएल 2021 एससी 549]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा की कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में पत्रों, अभ्यावेदन और मीडिया रिपोर्टों के आधार पर स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियां निहित हैं। जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने याचिकाओं के एक बैच पर फैसला सुनाया, जिसमें यह मुद्दा उठाया गया था कि क्या एनजीटी के पास स्वत: संज्ञान अधिकार क्षेत्र है (ग्रेटर मुंबई बनाम अंकिता सिन्हा और अन्य और जुड़े मामले)।

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    77. प्रवर्तन निदेशक को दो वर्ष से अधिक की अवधि के लिए नियुक्त किया जा सकता है

    [ मामला: सामान्य कारण (एक पंजीकृत सोसायटी) बनाम भारत संघ ; प्रशस्ति पत्र: एलएल 2021 एससी 429]

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक संजय कुमार मिश्रा को दिए गए कार्यकाल के विस्तार में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा 13 नवंबर, 2020 को पारित आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसने वर्तमान ईडी निदेशक के नियुक्ति आदेश को पूर्वव्यापी रूप से संशोधित करके उन्हें एक और वर्ष का पद दिया था।

    वह इसी साल मई में सेवा से सेवानिवृत्त होने वाले थे। जस्टिस एलएन राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कॉमन कॉज ( एक रजिस्टर्ड सोसाइटी) बनाम भारत संघ और अन्य मामले में फैसला सुनाते हुए ईडी निदेशक के कार्यकाल को दो साल से आगे बढ़ाने के लिए "दुर्लभ और असाधारण परिस्थितियों"में भारत संघ की शक्ति को बरकरार रखा।" चल रही जांच को सुविधाजनक बनाने के लिए ऐसा विस्तार दिया जा सकता है।

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    78. मजिस्ट्रेट UAPA मामलों की जांच पूरी करने के लिए समय नहीं बढ़ा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गैर-कानूनी गतिविधि अधिनियम (यूएपीए) मामलों की जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाना मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

    जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा कि जैसा कि यूएपीए की धारा 43-डी (2) (बी) में प्रावधान में निर्दिष्ट है, उसके अनुसार इस तरह के अनुरोध पर विचार करने के लिए एकमात्र सक्षम प्राधिकारी "कोर्ट" होगा। इस मामले में, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, भोपाल ने यूएपीए की धारा 43-डी (2) (बी) के तहत जांच तंत्र द्वारा दायर एक आवेदन में मांगे गए विस्तार को मंजूरी दे दी थी।

    साथ ही, जांच एजेंसी द्वारा 90 दिनों के भीतर कोई आरोप-पत्र दायर नहीं किये जाने के आधार पर जमानत की मांग संबंधी आरोपी की अर्जी खारिज कर दी थी।

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    79. पीसी एक्ट खुद में एक कोड है- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के आरोपी का बैंक खाता सीआरपीसी की धारा 102 के तहत अटैच नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    [ मामला: रतन बाबूलाल लाठ बनाम कर्नाटक राज्य 2021 एससी 440]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसीए) के तहत आरोपी व्यक्ति के बैंक खाते को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 102 के तहत कुर्क (अटैच) नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील मंजूर करते कहा, "सीआरपीसी की धारा 102 का सहारा लेकर अपीलकर्ता के बैंक खाते की फ्रीजिंग को जारी रखना संभव नहीं है, क्योंकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम अपने आप में एक संहिता (कोड) है।"

    इस मामले में, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(ए) के साथ पठित 13(2), भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 465, 468, 471 और धारा 34 के साथ पठित धारा 120बी के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाते हुए 14 व्यक्तियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था। उनपर आरोप था कि उनलोगों ने बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) के अधिकारियों के साथ-साथ निजी व्यक्तियों के साथ मिलीभगत करके करीब 56.37 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की थी।

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    80. अप्रयुक्त इनपुट टैक्स क्रेडिट का रिफंड इनपुट सेवाओं के आधार पर नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने सीजीएसटी अधिनियम की धारा 54 (3) को वैध ठहराया

    [ मामला: भारत संघ बनाम वीकेसी फुटस्टेप्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एससी 446]

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि केंद्रीय वस्तु और सेवा कर अधिनियम की धारा 54 (3) (ii) इनपुट सेवाओं के कारण जमा हुए अप्रयुक्त इनपुट टैक्स क्रेडिट को बाहर करती है। जब न तो संवैधानिक गारंटी है और न ही वापसी के लिए वैधानिक अधिकार, यह प्रस्तुत करना कि अप्रयुक्त आईटीसी की वापसी के मामले में वस्तुओं और सेवाओं को समान रूप से माना जाना चाहिए, स्वीकार नहीं किया जा सकता है, अदालत ने इस आधार पर धारा 54 (3) के खिलाफ चुनौती को खारिज करते हुए कहा यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।

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    81. आईबीसी की धारा 61 के तहत आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की सीमा अवधि आदेश सुनाने की तारीख से शुरू होगी, अपलोड करने में देरी परिसीमन को बाहर नहीं करेगी: सुप्रीम कोर्ट

    केस और उद्धरण: वी नागराजन बनाम एसकेएस इस्पात एंड पावर लिमिटेड LL 2021 SC 581

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि दिवाला और दिवालियापन संहिता की धारा 61 के अनुसार एक आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की सीमा की अवधि उसी समय शुरू हो जाएगी, जैसे ही यह सुनाया गया है, और यह उस तारीख पर निर्भर नहीं है जब आदेश अपलोड किया गया है।

    एक पक्ष जो आदेश की प्रमाणित प्रति के लिए तुरंत आवेदन दाखिल करने में विफल रहा, वह आदेश को अपलोड करने में देरी के आधार पर सीमा की अवधि बढ़ाने के लिए याचिका दायर नहीं कर सकता।

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    82.आईबीसी की धारा 14 के तहत आदेशित मोहलत कॉरपोरेट देनदार के निदेशकों / प्रबंधन के संबंध में लागू नहीं होती : सुप्रीम कोर्ट

    केस : अंजलि राठी बनाम टुडे होम्स एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्रा लिमिटेड

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिवाला और दिवालियापन संहिता की धारा 14 के तहत आदेशित मोहलत कॉरपोरेट देनदार के निदेशकों / प्रबंधन के संबंध में लागू नहीं होती है।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा, यह केवल कॉरपोरेट देनदार के संबंध में लागू होता है और इसके निदेशकों / प्रबंधन के खिलाफ कार्यवाही जारी रह सकती है।

    इस मामले में याचिकाकर्ताओं, जो एक समूह आवास परियोजना में घर खरीदार थे, ने टुडे होम्स एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग से संपर्क किया था और सीमित ब्याज के साथ अपने पैसे की वापसी की मांग की थी। '

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    83.आईपीसी की धारा 120बी – दिमागी साठगांठ दिखाने वाले साक्ष्य के अभाव में आपराधिक साजिश के लिए किसी व्यक्ति को दोषी ठहराना सुरक्षित नहीं: सुप्रीम कोर्ट

    केस टाइटल: परवीन @सोनू बनाम हरियाणा सरकार| आपराधिक अपील संख्या 1571/2021

    सुप्रीम कोर्ट ने देखा है कि किसी अवैध कार्य को करने के उद्देश्य से साजिशकर्ताओं के बीच साजिश रचने के लिए दिमागी साठगांठ दिखाने के सबूत के अभाव में किसी व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120-बी के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराना सुरक्षित नहीं है।

    न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा पारित 17 मार्च, 2020 के फैसले ("आक्षेपित आदेश") के खिलाफ एक आपराधिक अपील पर विचार कर रही थी। आक्षेपित आदेश के माध्यम से उच्च न्यायालय ने अपीलकर्ता/आरोपी द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया था और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, रेवाड़ी द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा के आदेश को बरकरार रखा था।

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    84. सुप्रीम कोर्ट मामलों को दायर करने की सीमा अवधि बढ़ाने के स्वत: संज्ञान आदेश को 1 अक्तूबर से वापस लेने को तैयार

    [ मामला: सीमा के विस्तार के लिए संज्ञान एलएल 2021 एससी 498]

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वह 27 अप्रैल, 2021 के स्वत: संज्ञान आदेश को वापस लेगा, जिसने 14 मार्च, 2021 से मामलों को दायर करने की सीमा अवधि बढ़ा दी थी। कोर्ट ने कहा कि सीमा अवधि का स्वत: विस्तार 1 अक्टूबर, 2021 से वापस ले लिया जाएगा। इसने यह भी संकेत दिया कि 90 दिनों की एक सीमा अवधि 1 अक्टूबर से प्रभावी होगी। कोर्ट ने कहा कि वह इस आशय के लिए एक आदेश पारित करेगा और नियम और शर्तों को निर्धारित करेगा।

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    85. बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों को उस अदालत में नियमित अभ्यास करने वाले वकीलों द्वारा चुना जाएगा, बाहरी लोगों को इसमें हिस्सा लेने की इजाजत नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    [ मामला: अमित सचान और अन्य बनाम बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश एलएल 2021 एससी 507]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों को वास्तविक मतदाताओं और संबंधित उच्च न्यायालय/न्यायालय में नियमित रूप से अभ्यास करने वाले अधिवक्ताओं द्वारा चुना जाना चाहिए।

    अदालत ने कहा कि बाहरी लोग जो उस अदालत में नियमित रूप से अभ्यास नहीं कर रहे हैं, उन्हें बार एसोसिएशन के सदस्यों के चुनाव की प्रक्रिया में भाग लेने की अनुमति देकर सिस्टम को हाईजैक करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा, "बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों को वास्तविक मतदाताओं और अधिवक्ताओं द्वारा उच्च न्यायालय और/या संबंधित न्यायालय में वास्तव में/नियमित रूप से अभ्यास करने वाले अधिवक्ताओं द्वारा चुना जाना चाहिए, और उस अदालत में नियमित रूप से अभ्यास नहीं करने वाले बाहरी लोगों को अनुमति देकर उन्हें बार एसोसिएशन के सदस्यों के चुनाव की प्रक्रिया में भाग लेकर सिस्टम को हाईजैक करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।"

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    86. जमानत के लिए आवेदन करने का अधिकार अनुच्छेद 14, 19 और 21 में निहित एक व्यक्तिगत अधिकार है: सुप्रीम कोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश द्वारा जमानत याचिकाओं को सूचीबद्ध नहीं करने और लॉकडाउन के दौरान तत्काल मामलों के रूप में सजा के निलंबन के व्यापक आदेशों को खारिज करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जमानत के लिए आवेदन करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 में निहित एक व्यक्तिगत अधिकार है।

    न्यायालय ने पाया है कि इस तरह के व्यापक प्रतिबंध व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों को निलंबित कर देंगे और जमानत के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता चाहने वालों के लिए पहुंच को अवरुद्ध कर देंगे।

    न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट के आदेशों के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें रजिस्ट्री को जमानत, अपील, अपील और सजा के निलंबन के लिए आवेदनों और संशोधनों को अति आवश्यक मामलों की श्रेणी में सूचीबद्ध नहीं करने का निर्देश दिया गया था।

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    87 . सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल में पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाला कलकत्ता हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया

    केस शीर्षक: गौतम रॉय और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल राज्य में पटाखों के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने वाले कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया।

    सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "हम आश्वस्त हैं कि कलकत्ता हाईकोर्ट को इस तरह के आदेश को पारित करने से पहले पक्षों को स्पष्टीकरण देने के लिए कहा जाना चाहिए था।" सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए यदि कोई तंत्र मौजूद था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई अनुमति के अनुसार केवल "ग्रीन क्रैकर्स" का उपयोग किया जा रहा है तो हाईकोर्ट को अधिकारियों को इस तथ्य से संबंधित सामग्री को रिकॉर्ड पर रखने का अवसर देना चाहिए था।

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    88. केस हार जाना वकील की ओर से 'सेवा में कमी' नहीं है कि उपभोक्ता शिकायत दर्ज कराई जाए : सुप्रीम कोर्ट

    [ मामला: नंदलाल लोहरिया बनाम जगदीश चंद पुरोहित ; प्रशस्ति पत्र: एलएल 2021 एससी 636]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक केस हारने वाले वकील को उसकी ओर से सेवा में कमी नहीं कहा जा सकता है। "हर मुकदमे में, किसी भी पक्ष को हारना तय है और ऐसी स्थिति में जो पक्ष मुकदमे में हारेगा, वह सेवा में कमी का आरोप लगाते हुए मुआवजे के लिए उपभोक्ता मंच से संपर्क कर सकता है, जो बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है" । जिसमें न्यायाधीश एमआर शाह और BV Nagarathna जबकि एक विशेष अवकाश याचिका नेशनल कंज्यूमर द्वारा पारित आदेश के खिलाफ दायर खारिज मनाया विवाद निपटान आयोग।

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    89. मुआवजे / जुर्माने को अवैध रूप से खनन किए गए खनिज के मूल्य तक सीमित नहीं किया जा सकता; पर्यावरण की बहाली की लागत पर भी विचार हो : सुप्रीम कोर्ट

    [ मामला: बजरी लीज एलओआई होल्डर्स वेलफेयर सोसाइटी बनाम राजस्थान राज्य एलएल 2021 एससी 638]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अवैध रेत खनन में लिप्त लोगों द्वारा भुगतान किए जाने वाले मुआवजे / जुर्माने को अवैध रूप से खनन किए गए खनिज के मूल्य तक सीमित नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि पर्यावरण की बहाली की लागत के साथ-साथ पारिस्थितिक सेवाओं की लागत भी मुआवजे का हिस्सा होनी चाहिए। अदालत के अनुसार, प्रदूषक व्यक्तिगत रूप से पीड़ित व्यक्ति को मुआवजे का भुगतान करने के साथ-साथ क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी को बदलने के जुर्माने का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है।

    राजस्थान राज्य में अवैध रेत खनन के मुद्दे के पैमाने को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति ("सीईसी") को रेत खनन से व्यापारियों, उपभोक्ताओं, ट्रांसपोर्टरों, राज्य और अन्य हितधारकों से संबंधित समस्याओं,और अवैध रेत खनन को रोकने के उपायों पर भी पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।

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    90. रेरा के प्रावधानों के तहत मजबूत नियामक तंत्र और 'बिक्री के लिए समझौते' का मसौदा पहले ही निर्धारित है; मॉडल बिल्डर खरीदार समझौते की याचिका पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

    केस: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ और अन्य

    एक मॉडल बिल्डर खरीदार समझौते की मांग करने वाली याचिका के जवाब में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया है कि रेरा [रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम ] के प्रावधानों के तहत एक मजबूत नियामक तंत्र और 'बिक्री के लिए समझौते' का मसौदा पहले ही निर्धारित किया जा चुका है।

    केंद्र के अनुसार, रेरा के तहत निर्धारित तंत्र घर खरीदारों और प्रमोटरों के अधिकारों और हितों को जवाबदेह और पारदर्शी तरीके से संतुलित करता है।

    फ्लैट-खरीदारों की शिकायतों को उठाने वाली याचिकाओं के एक बैच में भारत संघ द्वारा दायर एक जवाबी हलफनामे के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है कि समान बिल्डर-खरीदार और एजेंट-खरीदार समझौतों की अनुपस्थिति में, खरीदारों को लगाए गए नियमों और शर्तों पर डेवलपर्स की दया पर छोड़ दिया जाता है। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने अपने हलफनामे में प्रस्तुत किया है कि रेरा विवादों के त्वरित निर्णय के माध्यम से उचित लेनदेन, समय पर वितरण और गुणवत्ता निर्माण के महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करता है, इस प्रकार घर खरीदारों को सशक्त बनाता है।

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    91. भ्रष्टाचार के मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं, आरोपी इसे अधिकार के रूप में नहीं मांग सकता: सुप्रीम कोर्ट

    [ मामला: केंद्रीय जांच ब्यूरो बनाम थोमांड्रु हन्ना विजयलक्ष्मी ; प्रशस्ति पत्र : एलएल 2021 एससी 551]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार के मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है।

    जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, विक्रम नाथ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, "यदि शिकायत या "स्रोत की जानकारी" के माध्यम से सीबीआई द्वारा प्राप्त जानकारी में संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह प्रारंभिक जांच करने के बजाय सीधे एक नियमित मामला दर्ज कर सकती है, जहां अधिकारी संतुष्ट है कि जानकारी के खुलासे से एक संज्ञेय अपराध का गठन होता है।"

    अदालत ने फैसले में कहा, "एक प्राथमिकी इसलिए समाप्त नहीं होगी क्योंकि प्रारंभिक जांच नहीं की गई है।"

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    92. सीआरपीसी की धारा 482 - हाईकोर्ट को अंतरिम चरण में इंटरलोक्यूटरी निर्देश जारी करने के लिए कारण प्रस्तुत करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    केस का नाम और उद्धरण: थवाहा फ़सल बनाम भारत संघ LL 2021 SC 605

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए अंतरिम चरण में एक इंटरलोक्यूटरी निर्देश जारी करते समय, हाईकोर्ट को कारण प्रस्तुत करना होगा।

    न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, "अंतरिम चरण में भी, हाईकोर्ट को विवेक का प्रदर्शन करना चाहिए और किसी भी इंटरलोक्यूटरी निर्देश जारी करने के लिए कारण प्रस्तुत करना चाहिए, जो इस न्यायालय के समक्ष एक उपयुक्त मामले में परीक्षण करने में सक्षम है।"

    93. यूएपीए - अगर आरोप पत्र में प्रथम दृष्टया मामले का खुलासा नहीं होता तो धारा 43डी(5) के तहत जमानत देने पर प्रतिबंध लागू नहीं होगा : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अगर आरोप पत्र में प्रथम दृष्टया मामले का खुलासा नहीं होता है तो गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम की धारा 43डी(5) के तहत जमानत देने पर प्रतिबंध लागू नहीं होगा।

    जस्टिस अजय रस्तोगी और अभय श्रीनिवास ओका की पीठ ने कहा, "धारा 43 डी की उप-धारा (5) में जमानत देने के लिए कठोर शर्तें केवल 1967 के अधिनियम के अध्याय IV और VI के तहत दंडनीय अपराधों पर लागू होंगी ... आरोप पत्र पर विचार करने के बाद ही प्रतिबंध लागू होगा।

    न्यायालय की यह राय है कि यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि ऐसे व्यक्ति के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सच हैं। इस प्रकार, यदि आरोप पत्र को देखने के बाद, यदि न्यायालय इस तरह के प्रथम दृष्टया निष्कर्ष निकालने में असमर्थ है, तो प्रावधान द्वारा बनाया गया प्रतिबंध लागू नहीं होगा।"

    यूएपीए - यदि चार्जशीट में प्रथम दृष्टया मामले का खुलासा नहीं होता है, तो धारा 43डी(5) के तहत जमानत के लिए प्रतिबंध लागू नहीं होगा: सुप्रीम कोर्ट

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    94. यूएपीए - अगर आरोप पत्र में प्रथम दृष्टया मामले का खुलासा नहीं होता तो धारा 43डी(5) के तहत जमानत देने पर प्रतिबंध लागू नहीं होगा : सुप्रीम कोर्ट

    [मामला: नासर बिन अबू बक्र याफाई बनाम महाराष्ट्र राज्य ; प्रशस्ति पत्र : एलएल 2021 एससी 576]

    सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अगर आरोप पत्र में प्रथम दृष्टया मामले का खुलासा नहीं होता है तो गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम की धारा 43डी(5) के तहत जमानत देने पर प्रतिबंध लागू नहीं होगा।

    अदालत ने कहा कि एनआईए द्वारा दायर मामले को फिर से नंबर देने मात्र से राज्य पुलिस (एटीएस) की जांच जारी रखने की शक्ति समाप्त नहीं हो जाती।

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    95. सेवानिवृत्ति के समय मौजूद नियमों पर ही पेंशन निर्धारित की जाएगी: सुप्रीम कोर्ट

    [मामला: डॉ. जी. सदाशिवन नायर वी. कोचीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ;2021 एससी 701]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सेवानिवृत्ति पर किसी कर्मचारी को देय पेंशन सेवानिवृत्ति के समय मौजूद नियमों पर निर्धारित की जाएगी। न्यायालय ने यह भी कहा कि कानून नियोक्ता को समान रूप से स्थित व्यक्तियों के संबंध में नियमों को अलग तरीके से लागू करने की अनुमति नहीं देता है।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ केरल उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच द्वारा पारित 29 अगस्त, 2019 के एक आदेश के खिलाफ एक सिविल अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें उच्च न्यायालय ने अपील को खारिज कर दिया था।

    अपील की अनुमति देते हुए पीठ ने डॉ जी सदाशिवन नायर बनाम कोचीन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, इसके रजिस्ट्रार द्वारा प्रतिनिधित्व, और अन्य में कहा , "जबकि हम कानून की स्थापित स्थिति को स्वीकार करते हैं कि पेंशन के निर्धारण के मामलों में लागू नियम वह है जो सेवानिवृत्ति के समय मौजूद है, हम प्रतिवादी विश्वविद्यालय की कार्रवाई में किसी भी कानूनी आधार को चुनिंदा रूप से नियम 25 (ए) के तहत लाभ की अनुमति देने में असमर्थ हैं। देवकी नंदन प्रसाद और सैयद यूसुफुद्दीन अहमद (सुप्रा) में इस न्यायालय द्वारा मान्यता प्राप्त कानून स्पष्ट रूप से कहता है कि सेवानिवृत्ति पर एक कर्मचारी को देय पेंशन सेवानिवृत्ति के समय मौजूद नियमों पर निर्धारित किया जाएगा। हालांकि , कानून नियोक्ता को समान रूप से स्थित व्यक्तियों के संबंध में नियमों को अलग तरीके से लागू करने की अनुमति नहीं देता है।"

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    96. हवाईअड्डे की सुरक्षा जांच में विकलांगों को कृत्रिम अंग हटाने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

    [मामला: जीजा घोष बनाम भारत संघ ; एलएल 2021 एससी 704]

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने विकलांग व्यक्तियों के लिए सुविधाजनक हवाई यात्रा सुनिश्चित करने के लिए दायर एक याचिका में बुधवार को कहा कि कृत्रिम अंगों (Prosthetic Limbs) / कैलिपर वाले विकलांग व्यक्तियों को हवाई अड्डे की सुरक्षा जांच में कृत्रिम अंग को हटाने के लिए नहीं कहा जाना चाहिए ताकि मानवीय गरिमा बनाए रखी जा सके। कोर्ट ने यह भी देखा कि हवाई यात्रा या सुरक्षा जांच के दौरान विकलांग व्यक्ति को उठाना अमानवीय है और कहा कि ऐसा व्यक्ति की सहमति के बिना नहीं किया जाना चाहिए।

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    97. राज्य COVID से मरने वाले व्यक्तियों के परिजनों को मुआवजे से इस आधार पर इनकार नहीं करेंगे कि मृत्यु प्रमाण पत्र में COVID कारण नहीं लिखा है: सुप्रीम कोर्ट

    [केस: गौरव कुमार बंसल बनाम भारत संघ | एमए 1120/2021 डब्ल्यू.पी (सी) संख्या 539/2021

    सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि कोई भी राज्य COVID से मरने वाले व्यक्तियों के परिजनों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि से केवल इस आधार पर इनकार नहीं करेगा कि मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु के कारण के रूप में COVID का उल्लेख नहीं है।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने COVID मौत के मामलों में मुआवजा देने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को मंजूरी देते हुए आदेश पारित किया।

    पीठ ने आदेश में कहा, "कोई भी राज्य इस आधार पर अनुग्रह राशि से इनकार नहीं करेगा कि मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु का कारण 'कोविड के कारण मृत्यु' का उल्लेख नहीं है।"

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    98. एनसीडीआरसी रोक के लिए एससीडीआरसी द्वारा निर्धारित पूरी राशि या 50% से अधिक राशि जमा करने का निर्देश दे सकता है: सुप्रीम कोर्ट

    [मामला: मनोहर इंफ्रास्ट्रक्चर एंड कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड बनाम संजीव कुमार शर्मा और अन्य ; 2021 एससी 714]

    सुप्रीम कोर्ट ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 पर एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि सशर्त रोक के लिए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा निर्धारित पूरी राशि या 50% से अधिक राशि जमा करने का निर्देश दे सकता है। कोर्ट ने कहा कि हालांकि इस तरह के आदेश को पारित करने के लिए, एनसीडीआरसी को स्पष्ट कारण बताते हुए एक बोलने वाला आदेश पारित करना होगा।

    कोर्ट ने यह भी माना कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 51 के तहत अपील पर सुनवाई के लिए पूर्व जमा की शर्त अनिवार्य है। न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 51 की व्याख्या से जुड़े एक मामले में यह मिसाल रखी, जो एनसीडीआरसी के समक्ष अपील दायर करने के लिए पूर्व जमा निर्धारित करता है।

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    99. उपभोक्ता मामलों में देरी पर माफी के आवेदनों पर विरोधाभासी फैसले- सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच को भेजा

    [मामला: डायमंड एक्सपोर्ट्स और दूसरा बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य ; प्रशस्ति पत्र : एलएल एससी 736]

    केस : भसीन इन्फोटेक एंड इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड बनाम नीमा अग्रवाल और अन्य | 2021 की सीए 73-44

    सुप्रीम कोर्ट की 2 जजों की बेंच ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम हिली मल्टीपर्पज कोल्ड स्टोरेज प्राइवेट लिमिटेड के मामले में संविधान पीठ के फैसले के संभावित संचालन के संबंध में इस मुद्दे पर एक बड़ी बेंच के फैसले की आवश्यकता जताई है। संविधान पीठ ने कहा था कि उपभोक्ता फोरम विरोधी पक्ष द्वारा जवाब दाखिल करने में 45 दिनों से अधिक की देरी को माफ नहीं कर सकता है।

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    100. धारा 397 आईपीसी : पीड़ित के मन में डर या आशंका पैदा करने के लिए खुले तौर पर हथियार लहराना या दिखाना अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त : सुप्रीम कोर्ट

    केस: राम रतन बनाम मध्य प्रदेश राज्य | 2018 की आपराधिक अपील संख्या 1333

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पीड़ित के मन में डर या आशंका पैदा करने के लिए अपराधी द्वारा खुले तौर पर हथियार लहराना या दिखाना आईपीसी की धारा 397 के तहत अपराध का गठन करने के लिए पर्याप्त है। सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आईपीसी की धारा 392/397 और मध्य प्रदेश डकैती और व्यापार प्रभाव क्षेत्र अधिनियम 1981 ("अधिनियम") की धारा 11/13 के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषसिद्धि को बरकरार रखने के आदेश की अपील पर विचार कर रही थी।

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