पीसी एक्ट खुद में एक कोड है- भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के आरोपी का बैंक खाता सीआरपीसी की धारा 102 के तहत अटैच नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
11 Sept 2021 10:14 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसीए) के तहत आरोपी व्यक्ति के बैंक खाते को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 102 के तहत कुर्क (अटैच) नहीं किया जा सकता है।
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील मंजूर करते कहा,
"सीआरपीसी की धारा 102 का सहारा लेकर अपीलकर्ता के बैंक खाते की फ्रीजिंग को जारी रखना संभव नहीं है, क्योंकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम अपने आप में एक संहिता (कोड) है।"
इस मामले में, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(ए) के साथ पठित 13(2), भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 465, 468, 471 और धारा 34 के साथ पठित धारा 120बी के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाते हुए 14 व्यक्तियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया था। उनपर आरोप था कि उनलोगों ने बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) के अधिकारियों के साथ-साथ निजी व्यक्तियों के साथ मिलीभगत करके करीब 56.37 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की थी।
अतिरिक्त सिटी सिविल एंड सेशन जज, बेंगलुरु ने सीआरपीसी की धारा 102 के तहत बैंक खातों को डीफ्रीज करने (खोलने) की मांग को लेकर सीआरपीसी की धारा 451 और 457 के तहत आरोपियों द्वारा दायर आवेदनों को खारिज कर दिया। कुछ आरोपियों ने इस आदेश को दो आधार पर हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
पहला- आरोप पत्र में लगाए गए आरोप, इस बात का संकेत देते हैं कि कथित लेनदेन के कारण न तो बीबीएमपी और न ही सरकार को कोई नुकसान हुआ है और दूसरा- सीआरपीसी की धारा 102 के तहत जब्ती को प्रभावी करने में जांच अधिकारी द्वारा अपेक्षित औपचारिकताओं का पालन नहीं किया गया है। हाईकोर्ट ने इन दोनों दलीलों को खारिज कर दिया और बैंक खातों को डी-फ्रीज करने से इनकार करने वाले निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, एकमात्र मुद्दा उठाया गया था कि क्या अपीलकर्ता के बैंक खाते की कुर्की सीआरपीसी की धारा 102 के तहत प्रदत्त शक्तियों के दायरे में टिकाऊ है?
सीआरपीसी की धारा 102 के तहत, एक पुलिस अधिकारी वैसी किसी भी संपत्ति को जब्त कर सकता है, जिसके कथित तौर पर चोरी हो जाने का संदेह हो सकता है, या जो ऐसी परिस्थितियों में पाया जा सकता है जो किसी भी अपराध के होने का संदेह पैदा करती है।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 18ए के अनुसार, आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश, 1944 के प्रावधान, जहां तक हो, पीसी अधिनियम के तहत अपराध वाले तरीकों से प्राप्त की गयी रकम या सम्पत्तियों की कुर्की या उसकी जब्ती के निष्पदान पर लागू होंगे।
सरकार की ओर से दलील दी गयी कि वे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 18A के तहत एक आवेदन दाखिल करने की प्रक्रिया में हैं, क्योंकि सरकार द्वारा आपराधिक कानून संशोधन अध्यादेश, 1944 की धारा 3 के तहत जारी पूर्व प्राधिकार शासनादेश के प्रारूप के अनुरूप नहीं था।
कोर्ट ने अपील की अनुमति देते हुए कहा,
"जैसा कि हो सकता है, उस आधार पर, सीआरपीसी की धारा 102 का सहारा लेकर अपीलकर्ताओं के बैंक खाते को फ्रीज करके रखना संभव नहीं है क्योंकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम अपने आप में एक संहिता है। पूर्वोक्त स्थिति के मद्देनजर, अपीलकर्ता के खाते को फ्रीज करके नहीं रखा जा सकता है और तदनुसार, निरस्त किया जाता है।"
केस: रतन बाबूलाल लाठ बनाम कर्नाटक सरकार; क्रिमिनल अपील नं. 949/2021
साइटेशन: एलएल 2021 एससी 440
कोरम: जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश
ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें