मजिस्ट्रेट UAPA मामलों की जांच पूरी करने के लिए समय नहीं बढ़ा सकता : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

10 Sep 2021 5:01 AM GMT

  • मजिस्ट्रेट UAPA मामलों की जांच पूरी करने के लिए समय नहीं बढ़ा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि गैर-कानूनी गतिविधि अधिनियम (यूएपीए) मामलों की जांच पूरी करने के लिए समय बढ़ाना मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है।

    जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने कहा कि जैसा कि यूएपीए की धारा 43-डी (2) (बी) में प्रावधान में निर्दिष्ट है, उसके अनुसार इस तरह के अनुरोध पर विचार करने के लिए एकमात्र सक्षम प्राधिकारी "कोर्ट" होगा।

    इस मामले में, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, भोपाल ने यूएपीए की धारा 43-डी (2) (बी) के तहत जांच तंत्र द्वारा दायर एक आवेदन में मांगे गए विस्तार को मंजूरी दे दी थी। साथ ही, जांच एजेंसी द्वारा 90 दिनों के भीतर कोई आरोप-पत्र दायर नहीं किये जाने के आधार पर जमानत की मांग संबंधी आरोपी की अर्जी खारिज कर दी थी।

    हाईकोर्ट ने इन आदेशों को यह कहते हुए बरकरार रखा कि चूंकि सीजेएम, भोपाल ने एक उचित आदेश पारित किया था, जांच मशीनरी के लिए जांच पूरी करने के लिए समय सीमा 180 दिनों तक बढ़ा दी गई थी और इस तरह अपीलकर्ताओं द्वारा आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत किया गया अनुरोध स्वीकार करने योग्य नहीं था।

    शीर्ष अदालत के समक्ष, अभियुक्तों का प्रतिनिधित्व करते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने 'बिक्रमजीत सिंह बनाम पंजाब सरकार (2020) 10 एससीसी 616' मामले में दिये गये निर्णय पर भरोसा जताते हुए कहा कि सीजेएम, भोपाल द्वारा मौजूदा मामले में दिया गया विस्तार अधिकार क्षेत्र से परे था और इसलिए इस आदेश का कोई मतलब नहीं होगा।

    'बिक्रमजीत' मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यूएपीए के तहत सभी अपराध के लिए, चाहे वे राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा या राज्य सरकार की जांच एजेंसियों द्वारा जांच की जाती हों, एनआईए अधिनियम के तहत खासतौर पर स्थापित विशेष अदालतों द्वारा मुकदमा चलाया जाता है।

    न्यायमूर्ति रोहिंटन फली नरीमन की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की तत्कालीन पीठ ने कहा था कि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 43-डी (2) (बी) में पहले प्रावधान के तहत अकेले विशेष अदालत के पास 180 दिनों तक समय बढ़ाने का अधिकार क्षेत्र है।

    पीठ ने उक्त निर्णय पर संज्ञान लेते हुए इस प्रकार कहा:

    संबंधित कानून के विभिन्न प्रावधानों पर विचार करने के बाद, यह निष्कर्ष निकाला गया कि "जहां तक यूएपीए के तहत सभी अपराधों का संबंध है, धारा 43-डी (2) (बी) में पहले प्रावधान के तहत समय बढ़ाने के लिए मजिस्ट्रेट का अधिकार क्षेत्र अस्तित्व विहीन है।" नतीजतन, जहां तक "जांच पूरी करने के लिए समय विस्तार" का संबंध है, मजिस्ट्रेट अनुरोध पर विचार करने के लिए सक्षम प्राधिकार नहीं होगा और इस तरह के अनुरोध पर विचार करने के लिए एकमात्र सक्षम प्राधिकारी "कोर्ट" होगा जैसा कि यूएपीए की धारा 43-डी (2)(बी) के प्रावधान में निर्दिष्ट है।

    यह मानते हुए कि आरोपी डिफ़ॉल्ट जमानत के हकदार हैं, अदालत ने अपील मंजूर कर ली।

    मामला: सादिक बनाम मध्य प्रदेश सरकार; क्रिमिनल अपील संख्या 963/2021

    साइटेशन: एलएल 2021 एससी 434

    कोरम: जस्टिस उदय उमेश ललित, जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी

    वकील: अपीलकर्ताओं के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे, प्रतिवादियों के लिए एओआर पशुपति नाथ राजदान

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