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कोरोनावायरस और संविधान: घरेलू कर्मचारियों की नौकरी की सुरक्षा दया नहीं दायित्व है
उदित भाटिया कॉविड-19 का प्रकोप रोकने के लिए देश भर में लागू किए लॉक डाउन के बाद अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों की स्थिति और प्रतिबंध के बाद उन पड़ने वालों प्रभावित को लेकर चिंता व्यक्त की जा रही है? राष्ट्र के नाम दिए अपने संदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकों से अनुरोध किया था कि वे अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देना जारी रखें, लॉकडाउन की अवधि में जिन्हें ज्यादा नुकसान हो सकता था। गौतम भाटिया ने हाल ही में संवैधानिक ढांचे (विशेष रूप से, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23) के तहत...
जानिए आरोप में होने वाली गलतियों का प्रभाव और आरोपों में परिवर्तन
कोई भी दंड न्यायालय जब आरोप तय करता है तो वह आरोप धारा 211 एवं धारा 212 के अंतर्गत बताए गए प्ररूप के अनुसार तय होते पर कभी-कभी न्यायालय आरोप तय करने में गलतियां कर देता है। ऐसी गलतियों के प्रभाव पर प्रश्न खड़ा होता है। इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 215 में गलतियों के प्रभाव संबंधी प्रावधान दिए गए हैं। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 216 में न्यायालय को यह शक्ति दी गयी है कि वह आरोपों को परिवर्तित कर सकता है तथा उनका परिवर्धन भी कर सकता है। अर्थात आरोपों को बदल भी सकता है और आरोपों को बढ़ा...
COVID-19 के दौर में न्यायः सुप्रीम कोर्ट में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई का अनुभव
निधि मोहन पाराशर10 से ज्यादा दिनों तक खुद को क्वारंटाइन रखने के बाद सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर कारण सूची में अपने केस की तारीख देखना रोमांचक था। मेरा केस 27 मार्च 2020 को 3 बजे सूचीबद्ध किया गया था। ज्यादा काबिल-ए-तारीफ यह है कि COVID-19 के कारण जारी लॉकडाउन के दौर में सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही जरूरी मामलों को सूचिबद्घ करने और सुनवाई सुनिश्चित करने की एक असाधारण प्रक्रिया विकसित की है। मामले को सूचीबद्ध कराने का तरीका सरल है और मेरा अनुभव यह है कि सामान्य दिनों की मामले को सूचीबद्ध करने के...
जस्टिस एपी शाह के खिलाफ रंजन गोगोई के आरोपः सच्चाई क्या है?
प्रशांत भूषणजस्टिस रंजन गोगोई ने, कई पूर्व न्यायाधीशों की आलोचना का सामना, जिनमें कई उनके पूर्व सहयोगी जैसे जस्टिस एके पटनायक, जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस एम लोकुर, जस्टिस के जोसेफ और जस्टिस एपी शाह आदि थे, सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद राज्यसभा की सदस्यता के केंद्र सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करने और आयोध्या, सबरीमाला, राफेल जैसे मामलों केंद्र सरकार के पक्ष में फैसले देने के बाद, अपना बचाव अपने पुराने सहकर्मियों, जजों और जिन्हें वह वकीलों की 'लॉबी' कहते हैं, जिनमें उन्होंने मुझे और श्री कपिल...
औचित्यहीन हैं लॉकडाउन में पुलिस की ज्यादतियां
राधिका रॉयप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोनोवायरस (COVID-19) का प्रसार रोकने के लिए 24 मार्च को राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन की घोषणा की। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने अनुशंसा की थी कि कोरोनावायरस का प्रभाव रोकने के लिए 25 मार्च 2020 से राष्ट्रीय स्तर पर 21 दिनों की अवधि के लिए सख्त कर्फ्यू लागू किया जाए, जिसके बाद लॉकडाउन की घोषणा की गई। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद गृह मंत्रालय ने लॉक डाउन की अवधि में आवागमन को नियंत्रित करने के लिए उपायों के दिशा-निर्देश जारी किए, जिनमें स्पष्ट रूप से...
जानिए आरोप का अर्थ और आरोप का प्ररूप
आपराधिक प्रकरण संचालन के लिए प्रक्रिया विधि में आरोप का महत्वपूर्ण स्थान है। दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 17 में आरोप के लिए यह पूरा अध्याय है, जिसमें धारा 211 से लेकर 224 तक आरोप संबंधित सभी प्रावधान दिए गए हैं। इस लेख तथा इसके बाद के अन्य लेखों के माध्यम से हम आरोप क्या होता है और आरोप का प्ररूप क्या है इसे समझने का प्रयास करेंगे तथा अगले लेखों में आरोप से संबंधित अन्य विशेष जानकारियों पर चर्चा होगी। आरोप का अर्थ आरोप अभियोजन की प्रथम कड़ी होती है तथा आरोप के बाद ही अभियोजन की अगली...
श्रेया सिंघल जजमेंट के पांच सालः अब तक पूरी तरह से अमल में नहीं आ पाया फैसला
देवदत्ता मुखोपाध्याय व सिद्घार्थ देवसुप्रीम कोर्ट का 24 मार्च 2015 को श्रेया सिंघल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में दिया गया फैसला भारत में अभिव्यक्ति की आजादी के क्षेत्र में दिया गया महत्वपूर्ण फैसला है। यह पहला और इकलौता मौका था, जब केवल अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने वाले एक कानून असंवैधानिक करार दिया गया था। जैसा कि सेखरी और गुप्ता ने कहा है कि धारा 66 ए का प्रावधान ऐसा उत्तर संवैधानिक कानून था, जिसे पुलिस नियमित रूप से इस्तेमाल करती थी, वही इसे कई पूर्व-संवैधानिक कानूनों और धारा 377, आईपीसी...
कोविड लॉकडाउन: जानिए मिथ्या दावे (FalseClaim) एवं चेतावनी (Warning) के मामलों में कौन सी परिस्थितियों में हो सकती है जेल?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (24 मार्च) रात 12 बजे से अगले 21 दिनों के लिए तीन सप्ताह के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की। पीएम ने कहा कि COVID-19 वायरस को फैलने से रोकने के लिए यह उपाय नितांत आवश्यक था।दरअसल COVID-19 महामारी के फैलने से रोकने के लिए केंद्र सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत शक्तियों का उपयोग करते हुए 21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की है। हालाँकि, 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान कुछ आवश्यक सामग्री और सेवाएं बंद से मुक्त रहेंगी, आप उनकी जानकारी इस लेख से...
भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 की धारा 24: गलत व्याख्याओं की एक शृंखला
भूमिका-इंदौर विकास प्राधिकरण बनाम मनोहरलाल व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट एक संविधान पीठ ने छह मार्च, 2020 (आईडीए 2020) को दिए अपने फैसले में एक विवाद को समाप्त करने की कोशिश की थी। यह विवाद भूमि अधिग्रहण के मामलों में उचित मुआवजा, पारदर्शिता का अधिकार, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 (2013 अधिनियम) की धारा 24 की व्याख्या से पैदा हुआ था। धारा 24 का संबंध निरस्त हो चुके भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 (1894 अधिनियम) के तहत शुरू की गई भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही की वैधता या अभाव से है।...
महामारी रोग अधिनियम, 1897: COVID 19 का मुकाबला करने के लिए लाया गया 123 वर्ष पुराना कानून [व्याख्या]
COVID-19 के आसन्न खतरे का मुकाबला करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लागू एपेडेमिक डिसीसेज एक्ट यानी महामारी रोग अधिनियम, 1897 एक विशेष कानून है, जिससे सरकार को विशेष उपायों को अपनाने और कठोर नीतियों को लागू करने के लिए सशक्त बनाया जा सके, ताकि किसी भी खतरनाक महामारी के प्रकोप को रोका जा सके। यह कानून, जो सरकार को निर्धारित उपायों के उल्लंघन में पाए जाने वाले किसी भी व्यक्ति को कैद करने का अधिकार देता है, को पहली बार 1896 में तत्कालीन बॉम्बे में फैले बुबोनिक प्लेग को नियंत्रित...
क्या साध्य, साधन की पवित्रता तय करेंगे? पोलिश छात्र के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय की हानिप्रद व्याख्या
(स्वप्निल त्रिपाठी)कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें विदेशियों के क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय, कोलकाता की ओर से भारत में पढ़ रहे एक पोलिश नागरिक को दिए गए भारत छोड़ने के नोटिस ( Leave India Notice या LIN) को रद्द कर दिया। पोलिश नागरिक को हालिया नागरिक संशोधन कानून के विरोध में आयोजित राजनीतिक रैलियों में शामिल होने के कारण कथित रूप से वीजा शर्तों का उल्लंघन करने के आरोप में भारत छोड़ने का नोटिस दिया गया था, जिसे उसने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उसका...
पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई का राज्यसभा जाना : न्यायपालिका और विधायिका का बेमेल मिलन एवं अन्य असहमतियां
यह बात समझ से परे है कि जो व्यक्ति, उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय में न्याय की मूर्ती के तौर पर पद ग्रहण करते हुए, संविधान एवं विभिन्न कानूनों की व्याख्या करते हुए न्याय कर रहे होते हैं, और सवा सौ करोंड़ लोगों का भाग्य तय कर रहे होते हैं, वो लोग अपनी सेवानिवृत्ति के बाद स्वयं के हित को क्यों अपनी प्रामाणिकता एवं सत्यनिष्ठा से ऊपर रख देते हैं?
जानिए मास्क और सैनिटाइज़र को 'आवश्यक वस्तु' घोषित करने के क्या हैं मायने? इससे क्या बदल जाएगा?
COVID-19 (नॉवेल कोरोनावायरस) के फैलने पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने बीते शुक्रवार को मास्क और हैंड सैनिटाइज़र को 30 जून, 2020 तक "आवश्यक वस्तुएं" घोषित किया था।केंद्र सरकार और राज्य सरकार (प्रतिनिधिमंडल द्वारा) को मास्क (2 प्लाई और 3 प्लाई सर्जिकल मास्क, एन 95 मास्क और सैनिटाइज़र) के उत्पादन, गुणवत्ता और वितरण को विनियमित करने के लिए इन्हें आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत रखा गया था।बीते समय में हम सभी अपने निजी अनुभव से इस बात का एहसास कर पा रहे थे कि बाज़ार में मास्क और सैनिटाइज़र के...
उत्तर प्रदेश बैनर मामला : सुप्रीम कोर्ट के मामले को बड़ी बेंच को भेजने के आदेश के निहितार्थ
मनु सेबेस्टियन सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश बैनर के मामले को बड़ी पीठ से सुनवाई का जो आदेश दिया है उसमें वह गंभीरता नहीं दिखाई देती है जो इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में दिखाई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का मानना है कि इससे नागरिकों का मौलिक अधिकार प्रभावित होता है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन बैनरों को तत्काल प्रभाव से हटा लेने को कहा जिन्हें उत्तर प्रदेश प्रशासन ने लगाया है, जिनमें उन लोगों के नाम, पाते और फ़ोटो दिए गए हैं जिन पर सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल होने का आरोप...
कोर्ट रूल्स एवं आरटीआई : सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सूचना का अधिकार कमजोर हुआ
शैलेष गांधीआरटीआई कानून पर कोर्ट रूल्स को अधिक महत्व दिये जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सूचना के अधिकार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने 'मुख्य सूचना आयुक्त बनाम गुजरात हाईकोर्ट' के मामले में चार मार्च 2020 को एक फैसला सुनाया है। इसका नागरिकों के सूचना के अधिकार (आरटीआई) के मौलिक अधिकार पर बहुत बुरा असर होगा। कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि यदि कोई नागरिक न्यायिक कार्यवाही से संबंधित कोई दस्तावेज हासिल करना चाहता है तो वह आरटीआई के जरिये इसे हासिल नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट और सभी...
आखिर क्यों उत्तर-प्रदेश सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों से सम्बंधित पोस्टर/बैनर लगाना है 'अत्यधिक अन्यायपूर्ण'? कुछ विचार
बीते सोमवार को उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार को गंभीर झटका देते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ में उत्तर-प्रदेश पुलिस द्वारा लगाए गए सभी पोस्टरों और बैनरों को हटाने का आदेश दिया था। दरअसल, इन बैनरों में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध प्रदर्शन के दौरान कथित तौर पर हिंसा फैलाने के आरोपी व्यक्तियों के नाम, उनका पता, उनके पिता का नाम और फोटो लगाये गए थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने इस सम्बन्ध...
क्या एक जज का प्रधानमंत्री की सराहना करना नैतिक है?
अनुराग भास्करसुप्रीम कोर्ट की मेजबानी में 22-23 फरवरी को एक अंतरराष्ट्रीय न्यायिक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया, जिसका विषय था- 'न्यायपालिका व बदलती दुनिया'। भारतीय और विदेशी जजों के बीच विचारों का संवाद सहज बनाना कान्फ्रेंस का उद्देश्य था। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा में की गई जस्टिस अरुण मिश्रा की एक टिप्पणी ने बीस से अधिक देशों (यूनाइटेड किंगडम और ऑस्ट्रेलिया सहित) के जजों को न्यायिक नैतिकता और औचित्य के विषयों पर विचार करने को मजबूर किया होगा, जबकि यह सम्मेलन का एजेंडा नहीं...
सलाम बॉम्बे : सामूहिक हिंसा के दौर में चाइल्ड इन नीड ऑफ़ केयर एंड प्रोटेक्शन की कहानी
"क्यों एक व्यक्ति जिसने एक अमानवीय जघन्य अपराध किया है, उसे एक वयस्क व्यक्ति से कम सजा दी जाये, मात्र इसलिए कि वह अभी तक 18 साल का नहीं हुआ है?" यह सवाल मैंने पहली बार लॉ स्कूल के दौरान जेजे एक्ट (जुवेनाइल जस्टिस एक्ट) पर एक ट्रेनिंग प्रोग्राम में एक पब्लिक प्रासिक्यूटर द्वारा सुना। तब से यह सवाल मैंने बार-बार सुना है। क्यों 18 साल से कम उम्र के बाल अपराधियों को वयस्कों की तरह न माना जाए और उसी मुताबिक़ सजा न दी जाए? ये आवाज बार-बार उठी है और इसीलिए सरकार ने भी जेजे एक्ट की मूल भावना को...
चिन्मयानन्द जमानत : रेप मिथकों और पूर्वग्रहों पर आधारित बेल ऑर्डर
इलाहबाद हाईकोर्ट ने पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानन्द को 3 फरवरी को जमानत दे दी। चिन्मयानन्द पर 23 वर्षीय LLM छात्रा के बलात्कार का आरोप है। पीड़िता उस विश्विद्यालय से LLM कर रही थी जहां चिन्मयानन्द डायरेक्टर है। गौरतलब है कि डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज, शाहजांहपुर ने इस मामले में चिन्मयानन्द की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी।मेरा यह मत है कि हाईकोर्ट का ऑर्डर कानूनी रूप से अरक्षणीय है यह जमानत ऑर्डर, एक जमानत ऑर्डर के स्कोप और जमानत देते वक़्त कौन-कौन से कारक आवश्यक है- इस बात की अनदेखी करता है।...