स्तंभ
जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा, राफेल मामले में फैसले पर के बाद भी सीबीआई याचिकाकर्ताओं की शिकायत पर कानूनी कार्रवाई कर सकती है
जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा है कि राफेल मामले में दायर पुनर्विचार याचिका पर आया फैसला राफेल खरीद में लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर कानूनी कार्रवाई करने के मामले में सीबीआई के लिए रोड़ा नहीं बनेगा.
अयोध्या का फैसला ऐतिहासिक गलतियों में सुधार के लिए नज़ीर नहीं बना सकता
मनु सेबेस्टियनराम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट की कुछ टिप्पणियों पर गौर करें तो ये नहीं कहा जा सकता कि ये फैसला मौजूदा दौर के उन मालिकाना दावों के समर्थन में कानूनी नजीर बन सकता, जिनमें किसी मौजूदा इमारत पर कथित तौर पर पुराने दौर के शासकों की ऐतिहासिक गलतियों के आधार दावा किया जा रहा हो। 1045 पृष्ठ के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारतीय संविधान द्वारा निर्मित मौजूदा कानूनी तंत्र में पुराने शासकों की गई ऐतिहासिक गलतियों का सुधार नहीं किया जा सकता। पांच जजों...
न्याय को सुलभ बनाने के लिए सरकारें कर रही हैं धन खर्च, फिर हैं कुछ बुनियादी बाधाएं
तारिका जैन और श्रेया त्रिपाठी यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि भारत में मुक़दमों के भार के नीचे दबे ज़िला न्यायालय पर उच्च न्यायालयों की तुलना में कम ध्यान दिया जाता है। कई बार न्यायिक रिक्तियों को भरने को मुक़दमों के अंबार से निजात पाने का एकमात्र तरीक़ा मान लिया जाता है। हालाँकि, अदालतों में अदालत कक्ष नहीं होने की वजह से वहाँ सारे रिक्त पदों को भरा नहीं जा सकता है। इस वास्तविकता का तब पता चला जब सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों में उपलब्ध भौतिक सुविधाओं की ख़राब स्थिति और न्यायिक...
जब अवमानना की कार्रवाई का सामना करते हुए गांधी ने पत्रकारिता का बचाव किया
अशोक कीनीआज राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी की 150वीं जन्मतिथि है। महात्मा गांधी का जीवन ही दुनिया के लिए संदेश था। महात्मा ने अपने ख़िलाफ़ अवमानना की कार्रवाई से किस तरह पेश आए, यह जानना आज के लिए काफ़ी संगत होगा। प्रेस की स्वतंत्रता को वह कितना महत्त्व देते थे, इस वाक़ये से वह स्पष्ट होता है और इस मामले में उन्होंने अपना बचाव कैसे किया यह भी समझने लायक़ है। गांधी और महादेव हरिभाई देसाई "यंग इंडिया" के संपादक और प्रकाशक थे। इस अख़बार में बॉम्बे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार को लिखे...
नए युग में कोर्ट की रिपोर्टिंग : बार और बेंच दोनों हैं कसौटी पर
संजोय घोष हाल में कॉस्मेटिक क्लीनिक की निगरानी के लिए एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के एक जज ने हल्के-फुल्के अन्दाज़ में इस तरह के क्लीनिक की बहुत सारे लोगों के जीवन में केंद्रीय भूमिका के बारे में अपनी टिप्पणी को वापस लेते हुए कहा, "हम जो भी कहते हैं प्रेस में उसकी रिपोर्टिंग हो जाती है!" सुप्रीम कोर्ट ने भी यह संकेत दिया है कि वह अयोध्या मामले की रिकॉर्डिंग/ब्रॉड्कैस्टिंग की अनुमति देने के आग्रह पर विचार करेगा। 24x7 घंटे न्यूज़ और जरुरत से ज्यादा सक्रीय सोशल मीडिया के इस...
राम जेठमलानी : एक चतुर वक़ील और एक चालाक मुवक्किल
रणवीर सिंह राम जेठमलानी अमूमन यह कहा करते थे –"मैं भगवान के डिपार्चर लाउंज मैं बैठा हुआ हूं, ताकि उनसे अदालत के अंदर और बाहर मोलभाव कर सकूं।" ज़ाहिर है कि किसी ने उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया। अप्रैल 2007 में एक चर्चित मामले में सुप्रीम कोर्ट में शीघ्र सुनवाई की मांग करते हुए जेठमलानी ने अपने ज्योतिषी का हवाला देते हुए कहा कि उसके हिसाब से वे जुलाई के आगे ज़िंदा नहीं रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट उनकी बातों में नहीं आया और कहा, "हम आपके ज्योतिषी की बातों में नहीं आते"। इससे काफ़ी पहले,...
अनिश्चितता और डर के बीच न्याय का इंतज़ार करता जम्मू-कश्मीर
जो वक़ील ग़रीब हैं उनके लिए ज़िंदा बचे रहने का मामला सबसे बड़ा होता है। अधिकतर वक़ील जिसमें जूनियर भी शामिल हैं, छोटे-छोटे पेशेवर कार्य से होने वाली मामूली आय पर ज़िंदा रहते हैं। कर्फ़्यू ने उनके अस्तित्व को प्रभावित कर दिया है और उन्हें काम की तलाश में कहीं और जाने को बाध्य होना पड़ा है।
युवा वकीलों के सपनों पर भारी ऑल इंडिया बार एग्ज़ामिनेशन की विफलता
राधिका रॉयबार काउन्सिल ऑफ़ इंडिया ने 26.08.2019 को एक सूचना जारी की थी जो ऑल इंडिया बार एग्ज़ामिनेशन (एआईबीई) नहीं पास करनेवालों के बारे में थी। इस सूचना के अनुसार 2010 से अब तक कुल 4,778 वक़ील यह परीक्षा पास नहीं कर पाए और इस तरह वे "प्रैक्टिस करने या बार में वोट डालने जैसे अधिकारों व अन्य लाभों के हक़दार नहीं हैं"। किसी उम्मीदवार को अपने राज्य के बार काउन्सिल में पंजीकरण के बाद दो साल तक प्रैक्टिस की अनुमति मिलती है और इस अवधि के दौरान उनसे इस परीक्षा में पास होने की उम्मीद की जाती है अगर...
क्या किसी हाईकोर्ट के न्यायाधीश के खिलाफ दर्ज की जा सकती है FIR?: समझिये न्यायमूर्ति एस. एन. शुक्ला मामला
मंगलवार (31-07-2019) को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने CBI को इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ पीठ के जज न्यायमूर्ति एस. एन. शुक्ला(श्री नारायण शुक्ला) के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA) के तहत FIR दर्ज करने की अनुमति दे दी है। भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जहाँ किसी मौजूदा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ एक FIR दर्ज करने की अनुमति दी गयी है। दिल्ली न्यायिक सेवा संघ तीस हजारी कोर्ट बनाम गुजरात राज्य (1991 AIR 2176) के मामले में यह अच्छी तरह से तय किया गया था कि...
वायु प्रदूषण और सुप्रीम कोर्ट : वेहिकुलर पॉल्यूशन केस (१९८५-२०१९) की एक समीक्षा
'बीटिंग एयर पॉल्यूशन' इस वर्ष के पर्यावरण दिवस की थीम है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए वैश्विक स्तर पर पर्यावरण और वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरों के प्रति जागरूकता फ़ैलाने की ओर प्रयास किये जा रहे है. यह थीम भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि IQ AIR, AIR VISUAL एवं GREEPEACE के सर्वे के मुताबिक़ विश्व के ३० सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से २२ शहर भारत में है. यह बात अविलम्ब और प्रभावी रूप से प्रदूषण रोकने के लिए कदम उठाने की जरुरत का एहसास करवाती है. प्रदूषण रोकने हेतू कानूनी...
उपाय जिनसे आप अपने ऋण की प्रतिभूति कर सकते है
इस दौर के प्रतिस्पर्धा युक्त बाजार मे, वित्तीय सहायता (क़र्ज़ द्वारा) बाजार में उक्त प्राइवेट कारोबारियों को एवं उद्यमों को दी जाती रही है। इस उद्देश्य से संस्थाओं को बनाया गया है, जो कि बाजार में क़र्ज़ प्रदान करने का व्यवसाय करती हैं जो कि अंततः आर्थिकसंवृद्धि में ईंधन की तरह बज़ार में कार्य करती हैं। परन्तु कर्ज देने के व्यवसाय में एक अहितकारी परिणाम होता हैं, जिसमे कर्ज़दार ऋण की अदायगी में चूक जाता है (default) और इस परिणाम से बचने के लिए उधारदाता को उस क़र्ज़ को प्रतिभूती (secure) करनेके...
समझिये IPC के अंतर्गत क्षम्य एवं तर्कसंगत कृत्य : धारा 76 एवं 79 में 'तथ्य की भूल' विशेष ['साधारण अपवाद श्रृंखला' 1]
भारतीय दंड संहिता का चैप्टर IV (4th), 'साधारण अपवाद' (General exception) की बात करता है। जैसा कि नाम से जाहिर है, यह अध्याय उन परिस्थितियों की बात करता है जहाँ किसी अपराध के घटित हो जाने के बावजूद भी उसके लिए किसी प्रकार की सजा नहीं दी जाती है।यह अध्याय ऐसे कुछ अपवाद प्रदान करता है, जहाँ किसी व्यक्ति का आपराधिक दायित्व खत्म हो जाता है। इन बचाव का आधार यह है कि यद्यपि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है, परन्तु उसे उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अपराध के समय, या तो मौजूदा हालात...
कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम २०१३ भाग-१
१६ अक्टूम्बर 2017 को कलाकार और एक्टिविस्ट Alyassa Milano ने अपने ट्विटर वॉल पर यह कहते हुए पोस्ट लिखा कि अगर सभी महिलाएं जिनके साथ किसी भी तरह का यौन उत्पीड़न हुआ है वो उनके पोस्ट के जवाब में #MeToo लिखे तो शायद समाज को यह नज़र आ जाये कि सेक्सुअल हरासमेंट कितनी बड़ी और व्यापक समस्या है. उस ट्वीट पर मात्र २४ घंटों में लगभग २४ मिलियन महिलाओं ने जवाब दिया और अगले १० दिनों में आंदोलन लगभग ८५ देशों तक पहुँच गया. भारत भी ...
सूचना का अधिकार भाग -३
पिछले दो लेखों में हमने ये जाना कि सूचना का अधिकार क्या है (भाग -१), सूचना पाने के लिए कैसे आवेदन करना होता है आदि (भाग-२). आज हम जानेंगे कि सूचना न मिलने पर क्या कार्यवाही करनी होती है. सूचना देने की समय सीमा- सूचना आवेदन के ३० दिनों के भीतर उपलब्ध करवाना अनिवार्य हैं. अगर किसी व्यक्ति की जीवन या स्वतंत्रता से सम्बंधित मामला है तो सूचना ४८ घंटों के भीतर देना अनिवार्य है. (धारा -७) आवेदन के पश्चात् क्या होता है? ...
सूचना का अधिकार भाग-२
पिछले लेख में हमनेसूचना के अधिकार के इतिहास, अधिकार का लोकतंत्र से क्या सम्बन्ध है और सूचना पाने के लिए कैसे आवेदन करें - ये सब जाना। आज हम अधिनयम की धारा -४ और कौन- कौन सी सूचनाएँ नहीं दी जाती है- ये जानेगें. लोक प्राधिकरण के कर्तव्य - २००५ के अधिनियम तहत नागरिकों के अधिकारों के साथ- साथ लोक प्राधिकरणों के कुछ कर्तव्य भी है, जो इस प्रकार से है- स्व- प्रेरणा से सूचना देने का कर्तव्य- सरकारी प्राधिकरण को स्वप्रेरणा से अर्थात स्वयं ही, बिना किसी आवेदन के अपने प्राधिकरण की...
सीआरपीसी की धारा 482 और उच्च न्यायालय की अन्तर्निहित शक्तियां: विस्तार से जानिए इस प्रावधान की महत्वता
अगर हम दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की बात करें तो इसमें कोई भी संशय नहीं है कि यह अपने आप में एक सम्पूर्ण एवं विस्तृत कानून है। यही नहीं, इसके अंतर्गत आपराधिक मामलो में अन्वेषण, ट्रायल, अपराध की रोकथाम एवं तमाम अन्य प्रकार की कार्यवाही का सम्पूर्ण ब्यौरा मिलता है। हालाँकि इसमें कोई दो राय नहीं है कि कानून बनाते वक़्त, हर प्रकार की संभावनाओं को ध्यान में रखने के बावजूद कुछ विषय ऐसे होते हैं जिन्हे 'केस टू केस' देखने की जरुरत होती है।ऐसे मामलों में प्रायः कानून द्वारा अदालत के ऊपर यह निर्णय छोड़ दिया...