हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (21 जुलाई, 2025 से 25 जुलाई, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
ट्रायल कोर्ट के जजों को ट्रांसफर के बाद आरक्षित मामलों में दो-तीन सप्ताह के भीतर आदेश सुनाना होगा: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि राष्ट्रीय राजधानी की निचली अदालतों के सभी न्यायाधीश अपने स्थानांतरण के बाद दो या तीन सप्ताह के भीतर आरक्षित मामलों में आदेश या निर्णय सुनाएंगे और उन्हें बाद के न्यायाधीश के समक्ष पुनर्विचार के लिए सूचीबद्ध नहीं किया
जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा ने कहा, "पीठासीन अधिकारी ऐसे सभी मामलों में पहले से तय तिथि पर या, अधिक से अधिक, स्थानांतरण की तिथि से 2-3 सप्ताह के भीतर, जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, और स्थानांतरण सूची में संलग्न टिप्पणियों के अनुसार निर्णय/आदेश सुनाने के लिए बाध्य रहेंगे।"
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S.138 NI Act | 20,000 रुपये से अधिक के नकद ऋण के लिए चेक अनादर का मामला वैध स्पष्टीकरण के बिना मान्य नहीं: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक निर्णय पारित किया, जिसमें कहा गया कि आयकर अधिनियम, 1961 (IT Act) का उल्लंघन करते हुए बीस हज़ार रुपये से अधिक के नकद लेनदेन से उत्पन्न ऋण को तब तक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय ऋण नहीं माना जा सकता जब तक कि उसके लिए कोई वैध स्पष्टीकरण न हो।
जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन ने स्पष्ट किया कि फिर भी, परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत अपराध के आरोपी व्यक्ति को ऐसे लेनदेन को साक्ष्य के रूप में चुनौती देनी होगी और NI Act की धारा 139 के तहत अनुमान का खंडन करना होगा।
Case Title: P.C. Hari v. Shine Varghese and Anr.
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पैरोल या फर्लो पर रिहाई के दौरान दोषी को आत्मसमर्पण की तारीख का लिखित नोट दें: दिल्ली हाईकोर्ट ने जेल अधिकारियों को निर्देश दिया
दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी के जेल अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे यह सुनिश्चित करें कि पैरोल या फर्लो पर रिहाई के समय दोषी की पावती लेने के बाद उसे आत्मसमर्पण की तारीख का लिखित नोट सौंप दिया जाए ताकि किसी भी तरह की अस्पष्टता न हो।
जस्टिस गिरीश कठपालिया ने कहा कि कई मामलों में यह देखा गया कि अशिक्षा और अज्ञानता के कारण पैरोल या फर्लो पर रिहा किया गया दोषी समय पर आत्मसमर्पण नहीं कर पाता और देरी से आत्मसमर्पण करने पर उसे सजा हो जाती है।
टाइटल: मोहम्मद आलम बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य
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पत्नी के रंग और खाना बनाने की क्षमता पर तंज कसना उच्च स्तर की प्रताड़ना नहीं, आत्महत्या के लिए उकसावा या क्रूरता नहीं मानी जा सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में 27 साल पुराने मामले में एक व्यक्ति को बरी करते हुए कहा कि यदि कोई महिला आत्महत्या कर ले, तो उसके रंग-रूप या खाना बनाने की क्षमता को लेकर उसे ताना देना इस हद तक की प्रताड़ना नहीं मानी जा सकती कि उस पर धारा 498-A (दांपत्य प्रताड़ना) और धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) लगाई जाए।
जस्टिस श्रीराम मोडक की एकल पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता पति द्वारा अपनी पत्नी को उसके गहरे रंग को लेकर और ससुर द्वारा उसके भोजन पकाने के तरीके को लेकर ताने देना भले ही प्रताड़ना हो सकता है, लेकिन यह इतनी गंभीर नहीं है कि इसे आपराधिक दायरे में लाया जा सके।
टाइटल: Sadashiv Parbati Rupnawar vs State of Maharashtra (Criminal Appeal 649 of 1998)
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Google India पर Google LLC और YouTube पर पोस्ट 'आपत्तिजनक' सामग्री के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता; वे अलग-अलग संस्थाएं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (Google India) पर Google LLC या YouTube द्वारा संचालित प्लेटफॉर्म पर पोस्ट या प्रसारित कथित मानहानिकारक सामग्री के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता, क्योंकि ये अलग-अलग कानूनी संस्थाएं हैं। इसके साथ ही, जस्टिस विजयकुमार ए. पाटिल की पीठ ने बेंगलुरु न्यायालय में लंबित मानहानि के मुकदमे से गूगल इंडिया को हटाने की मांग वाली रिट याचिका स्वीकार कर ली। पीठ ने कहा कि वाद में उसके खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं लगाए गए हैं।
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'सुप्रीम कोर्ट के 'तहसीन पूनावाला' संबंधी निर्देश राज्य और केंद्र पर बाध्यकारी, जनहित याचिका में मॉब लिंचिंग की घटनाओं की निगरानी नहीं की जा सकती': इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में जमीयत उलेमा-ए-हिंद द्वारा दायर आपराधिक जनहित याचिका (PIL) का निपटारा किया, जिसमें तहसीन एस. पूनावाला बनाम भारत संघ (2018) मामले में मॉब लिंचिंग और भीड़ हिंसा की घटनाओं को रोकने और उनसे निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का अनुपालन करने की मांग की गई थी।
जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने कहा कि मॉब लिंचिंग/भीड़ हिंसा की प्रत्येक घटना एक अलग घटना है और जनहित याचिका में इसकी निगरानी नहीं की जा सकती।
Case title - Jamiat Ulma E Hind (Arshad Madani) Public Trust And Another vs. Union Of India And 5 Others 2025 LiveLaw (AB) 265
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पति या पत्नी के ऑफिस में अफेयर की झूठी शिकायत करना 'क्रूरता': दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक पारिवारिक अदालत के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें एक दंपति की शादी इस आधार पर भंग कर दी गई थी कि पत्नी ने अपने नियोक्ता से अपमानजनक शिकायत करके पति के साथ क्रूरता की थी।
जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस रेणु भटनागर की खंडपीठ ने कहा कि विवाह में समायोजन की आवश्यकता होती है और पक्षों को एक-दूसरे के साथ समायोजित होने में लंबा समय लग सकता है, लेकिन पति और पत्नी दोनों से एक-दूसरे के प्रति उचित सम्मान दिखाने की उम्मीद की जाती है।
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6 फीट तक की सभी PoP मूर्तियों का कृत्रिम जल कुंडों में अनिवार्य रूप से विसर्जन होगा: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार (24 जुलाई) को स्पष्ट किया कि आगामी गणेशोत्सव और दुर्गा पूजा उत्सवों के लिए प्लास्टर ऑफ पेरिस (PoP) से बनी 6 फीट तक ऊँची मूर्तियों का कृत्रिम तालाबों/जल कुंडों में विसर्जन अनिवार्य रूप से करना होगा।
चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस संदीप मार्ने की खंडपीठ ने कहा कि पिछले वर्ष बृहन्मुंबई नगर निगम (BMC) ने 5 फीट से कम ऊंचाई वाली 1.95 लाख गणेश मूर्तियों के लिए लगभग 204 जल कुंड बनाए। हालांकि, इन 204 कुंडों में केवल 85,000 मूर्तियों का ही विसर्जन किया गया, जबकि शेष मूर्तियों का विसर्जन केवल प्राकृतिक जल स्रोतों में किया गया।
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सीनियर सिटीजन भरण-पोषण न्यायाधिकरण संपत्ति स्वामित्व के दावों पर निर्णय नहीं दे सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 की धारा 7 के अंतर्गत भरण-पोषण न्यायाधिकरण को संपत्ति स्वामित्व के दावों पर विशेष रूप से तृतीय पक्ष विवाद के मामले में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है और इसका निर्णय सिविल कोर्ट में ही किया जाना चाहिए।
जस्टिस अरिंदम सिन्हा और डॉ. जस्टिस योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि सीनियर सिटीजन एक्ट का उद्देश्य सीनियर सिटीजन को भरण-पोषण प्रदान करना और उनका कल्याण करना है।
केस टाइटल: इशाक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 4 अन्य
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होमगार्ड स्वयंसेवक, उनके आश्रित अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं कर सकते: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाीकोर्ट ने दो संबंधित याचिकाओं को खारिज कर दिया। न्यायालय ने कहा कि होमगार्ड के आश्रित राज्य सरकार की रोजगार सहायक योजना के तहत स्थायी नौकरी का दावा नहीं कर सकते, जबकि होमगार्ड ने केवल स्वैच्छिक और अस्थायी नौकरी की है।
जस्टिस सत्येन वैद्य ने कहा: "इस प्रकार, जब होमगार्ड द्वारा की गई नौकरी को पूरी तरह से अस्थायी प्रकृति का माना गया तो उनके आश्रितों को अनुकंपा नियुक्ति योजना के तहत लाभ का हकदार मानना विवेकपूर्ण नहीं होगा। होमगार्ड के आश्रित स्थायी नौकरी का दावा नहीं कर सकते, जबकि होमगार्ड स्वयं केवल स्वैच्छिक और अस्थायी नौकरी करता है।"
Case Name: Jogindra v/s State of H.P. & Ors.
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लोक अदालत बिना कारण बताए पक्षकार को क्रॉस एग्जामिनेशन का मौका देने से इनकार नहीं कर सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना है कि स्थायी लोक अदालत को कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 22-D में निहित प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, भले ही सारांश प्रक्रिया का पालन किया गया हो। अदालत ने एक दूरसंचार विधेयक से जुड़े विवाद में पीएलए के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि याचिकाकर्ता को बिना किसी कारण के प्रतिवादी के गवाह से जिरह करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया था।
जस्टिस एमएस सोनक और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ बिंदु नारंग द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पीएलए द्वारा मैट्रिक्स सेलुलर सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के पक्ष में 27 दिसंबर 2017 को पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे ब्याज के साथ 23,981 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।
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बीमा कंपनी बिना सबूत के परिवार के सदस्यों के बीच नियोक्ता-कर्मचारी के अवैध संबंध का हवाला देकर मुआवज़ा देने से इनकार नहीं कर सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि यदि विश्वसनीय साक्ष्य उपलब् हों, तो घनिष्ठ पारिवारिक संबंध कानून के तहत वैध नियोक्ता-कर्मचारी संबंध को नहीं रोकते। जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि तकनीकी रूप से यह संभावना है कि पति और पत्नी के बीच नियोक्ता और कर्मचारी का संबंध हो सकता है। यह ध्यान देने योग्य है कि पति और पत्नी का संबंध भाई के संबंध से कहीं अधिक घनिष्ठ होता है, क्योंकि सामान्य परिस्थितियों में, दोनों जीवनसाथी होने के कारण, उनसे कर्मचारी और नियोक्ता के रूप में कार्य करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। इसके बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसा संबंध संभव है।"
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तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों का पूर्वव्यापी नियमितीकरण चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के लिए लागू पेंशन लाभों के अनुरूप: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की जस्टिस ज्योत्सना रेवाल दुआ की पीठ ने यह निर्णय दिया कि तृतीय श्रेणी का कर्मचारी, जिसकी सेवाएं पूर्वव्यापी प्रभाव से नियमित की गई थीं, पूर्वव्यापी प्रभाव से नियमितीकरण की तिथि से अर्हक अवधि की गणना करके पेंशन संबंधी लाभों का हकदार है। इसके अतिरिक्त, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को पेंशन प्रदान करने वाले निर्णयों का लाभ समान पद पर कार्यरत तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों को भी दिया जा सकता है।
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वैवाहिक विवाद के बाद बच्चे को पति की कस्टडी में रखना IPC की धारा 498ए के तहत क्रूरता या उत्पीड़न नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच वैवाहिक विवाद उत्पन्न होने के बाद बच्चे का पति की देखरेख में होना भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498ए के तहत क्रूरता या उत्पीड़न नहीं है। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने कहा, "...सिर्फ़ इसलिए कि आपसी विवाद उत्पन्न होने के बाद बच्चा पति की देखरेख में था, इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत क्रूरता या उत्पीड़न के बराबर नहीं माना जा सकता।"
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दृष्टिबाधित उम्मीदवारों (कम दृष्टि और अंधे) के लिए एक प्रतिशत आरक्षण के भीतर पद-वार पहचान सुरक्षा कारणों से मान्य: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने कहा कि दृष्टिबाधितों के लिए 1% आरक्षण के अंतर्गत केवल अल्पदृष्टि के लिए उपयुक्त पदों की पहचान वैध है, क्योंकि आरक्षित रिक्तियों में कर्तव्यों की प्रकृति और सुरक्षा आवश्यकताओं के आधार पर पदवार पहचान स्वीकार्य है, और दृष्टिबाधित उम्मीदवार उन पदों का दावा नहीं कर सकते जो उनके लिए उपयुक्त नहीं हैं।
जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस अजय दिगपॉल की खंडपीठ ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने केंद्रीय रोजगार सूचना (सीईएन) संख्या 01/2019 की पूरी जानकारी के साथ चयन प्रक्रिया में भाग लिया था, जिसमें स्पष्ट रूप से दृष्टिबाधित, अल्पदृष्टि वाले या दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिए अनुपयुक्त पदों की पहचान का उल्लेख था। न्यायालय ने माना कि सीईएन का अनुलग्नक 'ए' परिचालन व्यवहार्यता और सुरक्षा आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विधिवत रूप से किए गए पहचान अभ्यास पर आधारित था। यह भी ध्यान दिया गया कि कुछ पदों को दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिए अनुपयुक्त के रूप में पहचानने में जन सुरक्षा और कार्य-कार्यक्षमता संबंधी चिंताएं वैध थीं।
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स्टाम्प फीस सेल डीड के निष्पादन के समय बाजार मूल्य के आधार पर निर्धारित किया जाता है, न कि सेल एग्रीमेंट के निष्पादन के समय: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सेल डीड पर देय स्टाम्प फीस के निर्धारण के लिए सेल डीड के निष्पादन के समय संपत्ति का बाजार मूल्य प्रासंगिक है, न कि सेल एग्रीमेंट। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस जस्टिस रोहित कपूर की खंडपीठ ने कहा, "ट्रांसफर डीड/सेल डीड पर स्टाम्प फीस की राशि निर्धारित करने के लिए सेल डीड के निष्पादन के समय प्रचलित बाजार मूल्य प्रासंगिक होगा, न कि उस समय जब पक्षकारों ने बिक्री के लिए समझौता किया था।"
केस टाइटल: उगगर सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य
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7/11 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट: बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी किया
बॉम्बे हाईकोर्ट ने विशेष मकोका अदालत के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें मुम्बई की पश्चिमी रेलवे लाइन पर बम बनाने की साजिश रचने और उसे अंजाम देने के आरोप में पांच आरोपियों को मौत और सात आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। मुंबई में लोकल लाइनों में 7 बम धमाके हुए थे। इन विस्फोटों में कुल 189 नागरिकों ने अपनी जान गंवाई और लगभग 820 निर्दोष लोग गंभीर रूप से घायल हुए, जिन्हें कुख्यात "7/11 मुंबई विस्फोट" के रूप में भी जाना जाता है।
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भर्ती के प्रत्येक चरण में शारीरिक रूप से दिव्यांग वर्ग के लिए अलग कट-ऑफ मार्क्स दिए जाने चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
दोनों आंखों में दृष्टिदोष से पीड़ित व्यक्ति को राहत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि शारीरिक रूप से दिव्यांग उम्मीदवारों को सेवा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक चरण में शारीरिक रूप से दिव्यांग वर्ग के लिए अलग कट-ऑफ अंक दिए जाने चाहिए।
Case Title: Prabhat Mishra v. State Of U.P. Thru. Secy. Higher Education Govt. U.P. Lko. And 2 Others [WRIT - A No. - 4991 of 2023]
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हाईकोर्ट के सहायक रजिस्ट्रार पद पर पदोन्नति योग्यता के आधार पर उम्मीदवारों की वरिष्ठता ही एकमात्र मानदंड नहीं हो सकती: राजस्थान हाईकोर्ट
चार कोर्ट मास्टरों द्वारा सहायक रजिस्ट्रारों की वरिष्ठता सूची को चुनौती देते हुए दायर याचिका में राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि इस पद पर पदोन्नति का मानदंड योग्यता पर आधारित है। इस याचिका में दावा किया गया था कि सीनियर होने के बावजूद उन्हें वरिष्ठता सूची में प्रशासनिक अधिकारी (न्यायिक) से नीचे रखा गया और उन्हें पदोन्नति से वंचित कर दिया गया।
याचिकाकर्ताओं को 2013-14 की रिक्तियों के संबंध में 26.09.2015 को कोर्ट मास्टर के रूप में पदोन्नत किया गया। प्रतिवादियों को 2014-15 की रिक्तियों के विरुद्ध 12.03.2015 को प्रशासनिक अधिकारी न्यायिक (एओजे) के पद पर पदोन्नत किया गया। कोर्ट मास्टर और एओजे सहायक रजिस्ट्रार के पद के लिए फीडर कैडर हैं।
केस टाइटल: आनंद प्रकाश अग्रवाल एवं अन्य बनाम राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर एवं अन्य।