सीनियर सिटीजन भरण-पोषण न्यायाधिकरण संपत्ति स्वामित्व के दावों पर निर्णय नहीं दे सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया
Amir Ahmad
24 July 2025 12:45 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 की धारा 7 के अंतर्गत भरण-पोषण न्यायाधिकरण को संपत्ति स्वामित्व के दावों पर विशेष रूप से तृतीय पक्ष विवाद के मामले में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है और इसका निर्णय सिविल कोर्ट में ही किया जाना चाहिए।
जस्टिस अरिंदम सिन्हा और डॉ. जस्टिस योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि सीनियर सिटीजन एक्ट का उद्देश्य सीनियर सिटीजन को भरण-पोषण प्रदान करना और उनका कल्याण करना है।
खंडपीठ ने कहा,
“इस अधिनियम के अंतर्गत गठित भरण-पोषण न्यायाधिकरणों को बच्चों के विरुद्ध भरण-पोषण के दावों से संबंधित आवेदनों पर या निःसंतान सीनियर सिटीजन के मामले में, उसके उस रिश्तेदार के विरुद्ध, जो संपत्ति का उत्तराधिकारी होगा, विचार करने का अधिकार दिया गया है। संपत्ति और स्वामित्व अधिकारों से संबंधित प्रश्नों पर विशेष रूप से तृतीय पक्षों के साथ विवाद होने पर, निर्णय लेने का कोई अधिकार क्षेत्र प्रदान नहीं किया गया। इस संबंध में विवादों का निर्णय सक्षम अधिकार क्षेत्र वाले सिविल कोर्ट में किया जाना चाहिए।”
याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश माता-पिता एवं सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण एवं कल्याण नियम, 2014 के नियम 21 के तहत अपने जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की मांग की। दलील दी गई कि याचिकाकर्ता को निजी प्रतिवादियों द्वारा धमकी दी गई थी क्योंकि वह अपनी निजी संपत्ति पर एक गेट बनाना चाहता था। तर्क दिया गया कि सीनियर सिटीजन एक्ट और नियम उन्हें न केवल उनके बच्चों से बल्कि तीसरे पक्ष से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
न्यायालय ने कहा कि यह अधिनियम भारत में संयुक्त परिवारों की जर्जर होती संरचना के कारण उपेक्षित सीनियर सिटीजन की सुरक्षा के लिए लागू किया गया। न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा 4 ऐसे सीनियर सिटीजन को, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, भरण-पोषण का अधिकार देती है। अधिनियम की धारा 5 ऐसे सीनियर सिटीजन को एक्ट की धारा 7 के तहत गठित भरण-पोषण न्यायाधिकरण के समक्ष आवेदन करने का अधिकार देती है।
न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता के पड़ोसी द्वारा उसकी संपत्ति पर गेट बनाने में बाधा डालना सीनियर सिटीजन एक्ट के दायरे में नहीं आता। इसके तहत किसी भी कानूनी अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ।
तदनुसार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: इशाक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 4 अन्य

