हाईकोर्ट के सहायक रजिस्ट्रार पद पर पदोन्नति योग्यता के आधार पर उम्मीदवारों की वरिष्ठता ही एकमात्र मानदंड नहीं हो सकती: राजस्थान हाईकोर्ट
Amir Ahmad
21 July 2025 4:50 PM IST

चार कोर्ट मास्टरों द्वारा सहायक रजिस्ट्रारों की वरिष्ठता सूची को चुनौती देते हुए दायर याचिका में राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि इस पद पर पदोन्नति का मानदंड योग्यता पर आधारित है। इस याचिका में दावा किया गया था कि सीनियर होने के बावजूद उन्हें वरिष्ठता सूची में प्रशासनिक अधिकारी (न्यायिक) से नीचे रखा गया और उन्हें पदोन्नति से वंचित कर दिया गया।
याचिकाकर्ताओं को 2013-14 की रिक्तियों के संबंध में 26.09.2015 को कोर्ट मास्टर के रूप में पदोन्नत किया गया। प्रतिवादियों को 2014-15 की रिक्तियों के विरुद्ध 12.03.2015 को प्रशासनिक अधिकारी न्यायिक (एओजे) के पद पर पदोन्नत किया गया। कोर्ट मास्टर और एओजे सहायक रजिस्ट्रार के पद के लिए फीडर कैडर हैं।
याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादियों को 18.01.2021 को सहायक रजिस्ट्रार (AR) के पद पर पदोन्नत किया गया था। सहायक रजिस्ट्रार की अनंतिम वरिष्ठता सूची 13.09.2021 को प्रसारित की गई और याचिकाकर्ताओं को प्रतिवादियों से नीचे रखा गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि कोर्ट मास्टर के रूप में वे प्रतिवादियों से वरिष्ठ हैं, क्योंकि उन्हें 2013-14 की रिक्तियों के विरुद्ध पदोन्नत किया गया था और इसलिए एआर के पद के लिए वरिष्ठता बरकरार रखी जानी चाहिए।
जस्टिस अवनीश झिंगन और जस्टिस भुवन गोयल की खंडपीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट कर्मचारी सेवा नियम 2002 के नियम 4, 5 और 7 के अनुसरण में जारी 5 दिसंबर 2002 के खंड 12 का हवाला दिया और कहा कि आदेश की भाषा स्पष्ट थी कि सहायक रजिस्ट्रार के पद पर पदोन्नति के मानदंड योग्यता पर आधारित होंगे।
खंड 12 (सहायक रजिस्ट्रार/न्यायालय अधिकारी) में कहा गया कि सहायक रजिस्ट्रार/न्यायालय अधिकारी के पद पर भर्ती, नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा नामित समिति की सिफारिश पर पदोन्नति द्वारा की जाएगी, जो प्रशासनिक अधिकारी न्यायिक, अतिथि गृह प्रबंधक ग्रेड-I, सहायक लेखा अधिकारी, मुख्य लेखाकार-सह-प्रशासनिक अधिकारी न्यायिक और कोर्ट मास्टरों में से योग्यता के मानदंडों के आधार पर उम्मीदवारों की उपयुक्तता का निर्धारण करेगी।
इसके बाद अदालत ने कहा,
"स्वीकार्य तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता और प्रतिवादी क्रमशः कोर्ट मास्टर और एओजे थे; दोनों पदों की वरिष्ठता सूची अलग-अलग थी। दोनों ही पद एआर के पद पर पदोन्नति के लिए फीडर कैडर हैं।
याचिकाकर्ताओं को 2013-14 की रिक्तियों के विरुद्ध कोर्ट मास्टर के पद पर काल्पनिक रूप से पदोन्नत किया गया और प्रतिवादियों को 2014-15 की रिक्तियों के विरुद्ध पदोन्नत किया गया। हालांकि, प्रतिवादियों की पदोन्नति समय से पहले हुई। 2002 के आदेश के खंड 12 की भाषा स्पष्ट और सुस्पष्ट है कि एआर के पद पर पदोन्नति का मानदंड योग्यता होगी। दूसरे शब्दों में 2002 के आदेश के खंड 12 के अनुसार कोर्ट मास्टर और एओजे के पद की वरिष्ठता पदोन्नति का एकमात्र मानदंड नहीं हो सकती।"
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि चूंकि याचिकाकर्ताओं को 2013-14 की रिक्तियों के विरुद्ध पदोन्नत किया गया, वे प्रतिवादियों से वरिष्ठ थे और सहायक रजिस्ट्रार के पद के लिए ऐसी वरिष्ठता बनाए रखी जानी चाहिए थी।
इसके विपरीत हाईकोर्ट के वकील ने आदेश के खंड 12 का हवाला दिया और तर्क दिया कि सहायक रजिस्ट्रार के पद पर पदोन्नति का मानदंड योग्यता है। समिति ने कोर्ट मास्टर, एओजे और अन्य पात्र उम्मीदवारों में से उनकी उपयुक्तता का आकलन करने के बाद उम्मीदवारों की सिफारिश की।
तर्कों को सुनने के बाद न्यायालय ने अभिलेखों का अवलोकन किया और हाईकोर्ट के वकील द्वारा प्रस्तुत तर्क से सहमत हुआ। माना कि आदेश के खंड 12 में स्पष्ट है कि सहायक रजिस्ट्रार के पद पर पदोन्नति का मानदंड योग्यता होगी। मुख्य रजिस्ट्रार और एओजे के पद की वरिष्ठता ऐसी पदोन्नति का एकमात्र मानदंड नहीं हो सकती।
यह भी माना गया कि याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा नियम 20 के परंतुक (iii) पर भरोसा करना अनुचित है। यह परंतुक वरिष्ठता-सह-योग्यता और वरिष्ठता-सह-दक्षता के आधार पर चयन से संबंधित है, जबकि 2002 के आदेश के खंड 12 के तहत पदोन्नति का मानदंड योग्यता है।
तदनुसार, यह माना गया कि वरिष्ठता सूची में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
याचिकाकर्ताओं की इस शिकायत के संबंध में कि उनकी याचिका के लंबित रहने के दौरान अनंतिम वरिष्ठता सूची पर उनकी आपत्तियों से अवगत करा दिया गया और याचिकाकर्ताओं को उम्मीदवारों की योग्यता निर्धारण के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराने के अवसर से वंचित कर दिया गया न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को अपनी शेष शिकायत के निवारण के लिए हाईकोर्ट में अभ्यावेदन दायर करने की स्वतंत्रता प्रदान की।
अदालत ने आगे कहा,
"यदि ऐसा कोई अभ्यावेदन प्रस्तुत किया जाता है तो उस पर कानून के अनुसार शीघ्रता से अधिमानतः इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तिथि से चार महीने के भीतर विचार किया जाएगा।"
इसके साथ ही याचिका का निपटारा कर दिया गया।
केस टाइटल: आनंद प्रकाश अग्रवाल एवं अन्य बनाम राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर एवं अन्य।

