हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-07-07 04:30 GMT

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (01 जुलाई, 2024 से 05 जुलाई, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

मृतक कर्मचारी की पत्नी मृत्यु की तिथि से ही मुआवजे की हकदार, चाहे आवेदन किसी भी कारण से किया गया हो: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट की जस्टिस दीपक रोशन की पीठ ने एक रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए कहा कि मृतक कर्मचारी की पत्नी कर्मचारी की मृत्यु की तिथि से ही मुआवजे की हकदार है, चाहे मुआवजे के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया हो या नहीं।

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भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत प्रशासन पत्र जारी करने की कार्यवाही में किरायेदार को पक्षकार बनाने की अनुमति नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 278 की कार्यवाही के संबंध में सीपीसी के आदेश 1 नियम X के तहत किरायेदार को पक्षकार नहीं बनाया जा सकता। अधिनियम की धारा 278 अनिवार्य रूप से किसी संपत्ति के संबंध में प्रशासन का पत्र जारी करने से संबंधित है, यदि मालिक की कानूनी वसीयत के बिना मृत्यु हो जाती है।

जस्टिस दिनेश मेहता की पीठ ट्रायल कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें अधिनियम की धारा 278 की कार्यवाही में उदयपुर मिनरल डेवलपमेंट, सिंडिकेट प्राइवेट लिमिटेड ("कंपनी") को पक्षकार बनाने के याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि कंपनी उस संपत्ति की किरायेदार होने के नाते, जिसके संबंध में धारा 278 की कार्यवाही चल रही थी, मामले में एक आवश्यक पक्ष थी।

केस टाइटल: श्री बृजेंद्र मालेवार बनाम श्री रवींद्र प्रकाश और अन्य।

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राजस्थान हाईकोर्ट ने 28 साल पहले सेवा से बर्खास्त किए गए कांस्टेबल को दी राहत, सरकार को सभी सेवानिवृत्ति लाभ देने का निर्देश दिया

राजस्थान हाईकोर्ट ने 28 साल पहले सेवा से बर्खास्त किए गए एक कांस्टेबल को उसकी नियुक्ति के समय उसकी उम्र के संबंध में जाली दस्तावेज बनाने के आधार पर राहत दी है।

सक्षम प्राधिकारी के अनुसार, याचिकाकर्ता की नियुक्ति के समय (जैसा कि लागू नियमों के तहत आवश्यक है) 25 वर्ष से कम आयु का नहीं हो सकता था क्योंकि वह शादीशुदा था और उसके तीन बच्चे थे। इस प्रकार उन्हें 1996 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।

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लोक अदालत पक्षकारों की गैर-हाजिरी के आधार पर मामला खारिज नहीं कर सकती: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि लोक अदालत के पास पक्षकारों की गैर-हाजिरी के आधार पर मामला खारिज करने का अधिकार नहीं है। न्यायालय ने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 की धारा 20(5) पर प्रकाश डाला, जिसके अनुसार जहां पक्षकारों के बीच कोई समझौता नहीं होने के कारण लोक अदालत कोई निर्णय देने में सक्षम नहीं है तो मामले का रिकॉर्ड लोक अदालत द्वारा न्यायालय को वापस किया जाना चाहिए।

जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसका मामला अधिनियम के तहत लोक अदालत के समक्ष निपटान के लिए भेजा गया था।

केस टाइटल- कृपाल सिंह बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैंगस्टर एक्ट मामले में दोषसिद्धि के खिलाफ सांसद अफजाल अंसारी की अपील पर फैसला सुरक्षित रखा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को सांसद (MP) अफजाल अंसारी द्वारा दायर अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रखा। वह गैंगस्टर एक्ट मामले में अपनी दोषसिद्धि को चुनौती दे रहे हैं, जिसमें गाजीपुर एमपी/एमएलए कोर्ट ने उन्हें 4 साल जेल की सजा सुनाई थी। यह दोषसिद्धि 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या से जुड़ी है।

जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने अंसारी की अपील और राज्य सरकार और राय के बेटे पीयूष कुमार राय द्वारा अंसारी की सजा बढ़ाने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा।

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नाबालिग लड़कियों के साथ डेटिंग करने वाले किशोर लड़कों को POCSO Act के तहत गिरफ्तार करने के बजाय काउंसलिंग पर विचार किया जाए: उत्तराखंड हाईकोर्ट

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सोमवार को राज्य सरकार से कहा कि वह नाबालिग लड़कियों के साथ डेटिंग करने वाले किशोर लड़कों को यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत गिरफ्तार करने के बजाय काउंसलिंग की संभावना तलाशे।

चीफ जस्टिस रितु बाहरी और जस्टिस राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने POCSO Act के तहत सहमति से रोमांटिक संबंधों में शामिल किशोर लड़कों की गिरफ्तारी को रोकने के लिए निर्देश देने की मांग करने वाली एक जनहित याचिका (PIL) पर भारत संघ और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया।

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सरोगेसी के माध्यम से मातृत्व प्राप्त करने वाली महिला को मातृत्व अवकाश का अधिकार: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय में माना कि सरोगेसी के माध्यम से मातृत्व प्राप्त करने वाली महिला कर्मचारी को भी मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) का लाभ उठाने का अधिकार है, क्योंकि यह न केवल संबंधित महिला के लिए फायदेमंद है, बल्कि नवजात शिशु के स्वस्थ पालन-पोषण के लिए भी आवश्यक है।

केस टाइटल: सुप्रिया जेना बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।

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स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति बलात्कार के आरोपियों को बरी करने की आवश्यकता नहीं अगर पीड़िता की गवाही विश्वसनीय: तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा है कि स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति स्वचालित रूप से एक आरोपी के बरी होने का वारंट नहीं करती है जब आरोप गंभीर हैं, जैसे कि बलात्कार। कोर्ट ने दोहराया कि जब पीड़िता के बयान में किसी गवाह का खुलासा नहीं किया गया है, तो अदालत इसके विपरीत नहीं मान सकती है।

हाईकोर्ट ने कहा, "यहां तक कि यह स्वीकार करते हुए कि दुकान एक व्यस्त जगह पर थी, पीड़िता के अनुसार उसके साथ मारपीट की गई और वह कुछ समय के लिए होश खो बैठी। उक्त परिस्थितियों में, जब यह अभियुक्त का मामला नहीं है कि जिस समय कथित हमला या पीड़ित को दुकान में घसीटते हुए, कोई पड़ोसी या कोई अन्य मौजूद था, यह तर्क कि जांच के दौरान पुलिस द्वारा स्वतंत्र गवाहों की जांच नहीं की गई थी, सही नहीं है। अदालत यह नहीं मान सकती कि लोग मौजूद थे और उनकी जांच नहीं की गई थी, जब तक कि गवाहों द्वारा नहीं कहा गया हो।"

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POCSO अपराध कथित दुष्प्रेरक के हस्तक्षेप के बिना नहीं किया जा सकता, दुष्प्रेरक का इरादा दिखाया जाना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने माना कि अपराध को सुविधाजनक बनाने के 'इरादे' से की गई सहायता POCSO Act के तहत दंडनीय दुष्प्रेरक का अपराध होगी। POCSO Act की धारा 16 दुष्प्रेरक को परिभाषित करती है और धारा 17 के तहत सजा का प्रावधान है।

जस्टिस पी.जी. अजितकुमार ने पाया कि याचिकाकर्ता ने नाबालिग पीड़िता को आरोपी की मौजूदगी में किराए पर फ्लैट दिलाने में मदद की और जानबूझकर अपराध को बढ़ावा दिया। उस पर धारा 17 के तहत आरोप लगाया जा सकता है।

केस टाइटल- जेफिन कुरियाकोस बनाम केरल राज्य

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संविदा कर्मचारियों का लगातार काम करना स्थायी रोजगार के लिए कोई निहित अधिकार नहीं बनाता: राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया

राजस्थान हाईकोर्ट ने पुष्टि की कि प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से संविदा के आधार पर काम पर रखे गए व्यक्तियों का सरकार द्वारा नियोजित होने में कोई निहित स्वार्थ नहीं है। न्यायालय ने इस स्थिति पर पहुंचने के लिए के.के. सुरेश और अन्य बनाम भारतीय खाद्य निगम के सुप्रीम कोर्ट के मामले पर भरोसा किया।

इसके अलावा गणेश दिगंबर झांभरुंडकर और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामले पर भी भरोसा किया गया, जिसमें यह माना गया कि लंबे समय तक सेवाएं प्रदान करने से संविदा कर्मचारियों को उनके पक्ष में रोजगार का निहित अधिकार प्राप्त करने का अधिकार नहीं मिलता।

केस टाइटल- अमिता सिंह और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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बच्चे का अपने माता-पिता को जानने और उनसे मिलने का स्वाभाविक अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि बच्चे को ट्रायल कोर्ट में कस्टडी के मामले के लंबित रहने के दौरान अपने माता-पिता, जिसमें पिता भी शामिल है, उनको जानने और उनसे मिलने का अधिकार है।

मां ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें पिता को हर महीने के एक रविवार को सार्वजनिक स्थान पर तीन घंटे के लिए अपने बेटे से मिलने की अनुमति दी गई थी। मां ने अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश के अधिकार क्षेत्र की कमी के आधार पर आदेश को चुनौती दी।

केस टाइटल- प्रियंका अग्रवाल बनाम अभिषेक अग्रवाल [प्रथम अपील संख्या - 576/2024]

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Evidence Act के तहत अनिवार्य सर्टिफिकेट के बिना व्हाट्सएप कंवर्सेशन को साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Evidence Act) के तहत अनिवार्य सर्टिफिकेट के बिना व्हाट्सएप कंवर्सेशन (WhatsApp Conversation) को साक्ष्य के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद डेल इंटरनेशनल सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई। उक्त आदेश में जिला आयोग के उस आदेश को बरकरार रखा गया, जिसमें आयोग ने लिखित बयान को रिकॉर्ड पर लेने से इस आधार पर इनकार कर दिया कि यह बयान समय-सीमा के बाद दायर किया गया।

केस टाइटल: डेल इंटरनेशनल सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम अदील फिरोज और अन्य।

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घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत महिला द्वारा दायर आवेदन को ट्रायल कोर्ट द्वारा नोटिस जारी किए बिना या जांच किए बिना खारिज नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 के प्रावधानों के तहत महिला द्वारा दायर आवेदन को ट्रायल कोर्ट द्वारा प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए बिना या जांच किए बिना खारिज नहीं किया जा सकता।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने महिला द्वारा दायर याचिका स्वीकार की और ट्रायल द्वारा पारित दिनांक 18-03-2024 का आदेश रद्द कर दिया, जिसने आवेदन पर विचार करते हुए इसे खारिज कर दिया था। साथ ही कहा था कि मामला किसी भी घरेलू हिंसा को दर्शाता नहीं है।

केस टाइटल- ABC और XYZ और अन्य

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CBI जांच का निर्देश देने से पहले आरोपी की सुनवाई की जरूरत नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

CBI जांच का आदेश पारित करने से पहले आरोपी की सुनवाई की जरूरत न होने पर जोर देते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने केंद्रीय एजेंसी को पंजाब में करोड़ों रुपये के धोखाधड़ी मामले की जांच करने का निर्देश दिया।

जस्टिस जसजीत बेदी ने उदाहरणों का अवलोकन करते हुए कहा, "यह न्यायालय धारा 173(2) सीआरपीसी के तहत रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने के बाद भी CBI द्वारा जांच का आदेश दे सकता है। ऐसा आदेश पारित करने से पहले आरोपी की सुनवाई की जरूरत नहीं।"

केस टाइटल- सुनीत कौर बनाम पंजाब राज्य एवं अन्य

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शिक्षक द्वारा बच्चों पर हाथ उठाना JJ Act के तहत दंडनीय, अनुशासन लागू करने के लिए सुधारात्मक उपाय दंडनीय नहीं: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने माना कि स्कूलों में अनुशासन बनाए रखने के लिए सरल सुधारात्मक उपायों का उपयोग करने के लिए शिक्षकों पर किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 (Juvenile Justice Act (JJ Act)) के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने याचिकाकर्ता के खिलाफ किशोर न्याय अधिनियम की धारा 82 (शारीरिक दंड) और आईपीसी की धारा 324 के तहत शुरू की गई कार्यवाही रद्द की।

उन्होंने कहा, “यदि शिक्षकों को स्कूल या शैक्षणिक संस्थान के अनुशासन को बनाए रखने के लिए सरल और कम बोझिल सुधारात्मक उपाय तैयार करने के लिए किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों के तहत शामिल किया जाता है तो स्कूल या संस्थान का अनुशासन खतरे में पड़ जाएगा। साथ ही जब शिक्षक अपनी सीमा से परे अपने अधिकार का प्रयोग करता है और गंभीर चोट या इसी तरह की शारीरिक हमला करता है तो निश्चित रूप से JJ Act के दंडात्मक प्रावधान सीधे लागू होंगे।”

केस टाइटल- जोमी बनाम केरल राज्य

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कॉलेजियम द्वारा हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति खारिज करने के कारणों प्रकाशित नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि हाईकोर्ट जजों की नियुक्ति खारिज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा किए गए कारणों को प्रकाशित करना उन लोगों के हितों और प्रतिष्ठा के लिए हानिकारक होगा, जिनके नामों की सिफारिश हाईकोर्ट द्वारा की गई।

एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि कॉलेजियम विचार-विमर्श करता है और उस सूचना के आधार पर निर्णय लेता है, जो विचाराधीन व्यक्ति के लिए निजी होती है।

केस टाइटल: सीए राकेश कुमार गुप्ता बनाम सुप्रीम कोर्ट सेक्रेटरी जनरल के माध्यम से

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बिना साक्ष्य के जांच अधिकारी की रिपोर्ट पर आधारित अनुशासनात्मक प्राधिकारी का आदेश टिकाऊ नहीं: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने माना कि अनुशासनात्मक कार्यवाही में जांच अधिकारी की रिपोर्ट को अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा साक्ष्य नहीं माना जा सकता, जब अधिकारी ने किसी साक्ष्य की उचित जांच नहीं की हो। ज‌स्टिस बिबेक चौधरी ने कहा कि ऐसे साक्ष्यों के आधार पर अनुशासनात्मक प्राधिकारी का आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

केस टाइटलः उमेश कुमार सिन्हा बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (सीडब्ल्यूजेसी नंबर 6902/2022)

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Rape On False Promise To Marry | शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों की उम्र, शिक्षा, पेशा जैसे कारक प्रासंगिक: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि शादी के झूठे वादे के आधार पर बलात्कार के मामले में फैसला सुनाते समय न्यायालय को आरोपी और पीड़ित की तुलनात्मक उम्र, उनकी शैक्षिक, सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि और उनके पेशे की प्रकृति जैसे कारकों को ध्यान में रखना चाहिए। सूची संपूर्ण नहीं है और न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की संपूर्णता पर विचार करना होगा।

यह अवलोकन याचिकाकर्ता विवाहित व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोप तय करने के ट्रायल कोर्ट का आदेश खारिज करते हुए किया गया, जो महिला द्वारा दायर की गई शिकायत पर था, जिसके साथ वह शारीरिक संबंध में शामिल था। महिला भी शादीशुदा है और उसके बच्चे भी हैं।

केस टाइटल- XXXX बनाम XXXX [सीआरआर-1844-2022]

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अनुकंपा के आधार पर लाइसेंस ट्रांसफर करने की मांग करने वाला व्यक्ति मृतक का 'आश्रित' होना चाहिए: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि अनुकंपा के आधार पर लाइसेंस के हस्तांतरण की मांग करने वाला व्यक्ति मृतक का आश्रित होना चाहिए और अनुकंपा के आधार पर लाइसेंस का दावा करना चाहिए।

झारखंड लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली नियंत्रण आदेश, 2022 के खंड-11 CHAऔर खंड-11 JA के आवेदन को स्पष्ट करते हुए, जस्टिस आनंद सेन ने कहा, "आदेश, 2022 के खंड-11 चा में प्रावधान है कि अनुकंपा के आधार पर, मृतक के आश्रित को लाइसेंस हस्तांतरित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, खण्ड-11क के अनुसार, यह प्रावधान है कि यदि अनुकम्पा के आधार पर उक्त लाइसेंस के लिए अधिक दावेदार हैं तो अन्य दावेदारों से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त किया जाना चाहिए। इस प्रकार, उपरोक्त प्रावधानों से, यह स्पष्ट है कि जो व्यक्ति अनुकंपा के आधार पर उक्त लाइसेंस के हस्तांतरण की मांग कर रहा है, उसे मृतक पर निर्भर होना चाहिए और अनुकंपा के आधार पर उक्त लाइसेंस के लिए दावा करना चाहिए।

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वक्फ एक्ट के लागू होने से पहले शुरू किए गए लंबित संपत्ति मुकदमों पर वक्फ ट्रिब्यूनल विचार नहीं कर सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि वक्फ ट्रिब्यूनल के पास विवादित संपत्ति के स्वामित्व की प्रकृति के संबंध में सिविल न्यायालयों में लंबित मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है, जो वक्फ (मध्य प्रदेश संशोधन) अधिनियम1994 के लागू होने से पहले शुरू किए गए।

जस्टिस संजय द्विवेदी की एकल न्यायाधीश पीठ ने निम्नलिखित निर्णय दिया, “धारा 7 की उपधारा (5) के मद्देनजर अधिनियम उन लंबित मुकदमों या कार्यवाही या अपील या पुनर्विचार पर लागू नहीं होगा, जो 01.01.1996 से पहले शुरू हुए हैं, अर्थात वक्फ अधिनियम, 1995 के लागू होने से पहले नही होगा।”

केस टाइटल- रुबाब बाई एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड एवं अन्य।

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धारा 311 सीआरपीसी | पिछले वकील द्वारा अपर्याप्त जांच के आधार पर गवाह को वापस बुलाने का आवेदन वैध: मेघालय हाईकोर्ट

मेघालय हाईकोर्ट ने पाया कि अभियुक्त द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 311 के तहत गवाह को वापस बुलाने की मांग करने वाला आवेदन इस आधार पर उचित है कि पिछले वकील ने आवश्यक तथ्यों पर गवाह की जांच नहीं की थी और नए वकील द्वारा फिर से जांच करना मुकदमे के परिणाम के लिए महत्वपूर्ण है।

जस्टिस बी भट्टाचार्जी याचिकाकर्ताओं/राज्य द्वारा ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर आपराधिक याचिका पर फैसला कर रहे थे, जिसने गवाह को वापस बुलाने के लिए धारा 311 सीआरपीसी के तहत अभियुक्त/प्रतिवादी द्वारा दायर आवेदन को अनुमति दी थी।

केस टाइटलः मेघालय राज्य और अन्य बनाम श्री ट्राइबोरलांग खोंगरीम्माई (Crl. Petn. No. 104 of 2023)

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धार्मिक समूहों में धर्मांतरण नहीं रोका गया तो एक दिन भारत की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाएगी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज कहा कि यदि धार्मिक सभाओं में धर्मांतरण की वर्तमान प्रवृत्ति को जारी रहने दिया गया तो देश की बहुसंख्यक आबादी अंततः एक दिन खुद को अल्पमत में पा सकती है। इस टिप्पणी के साथ, जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने कहा कि धार्मिक सभाएं, जहां धर्मांतरण हो रहा है और जहां भारत के नागरिकों का धर्म बदला जा रहा है, उन्हें तुरंत रोका जाना चाहिए।

न्यायालय ने कहा, "यदि इस प्रक्रिया को जारी रहने दिया गया तो एक दिन इस देश की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाएगी और ऐसे धार्मिक सभाओं को तुरंत रोका जाना चाहिए जहाँ धर्मांतरण हो रहा है और भारत के नागरिकों का धर्म बदला जा रहा है।"

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सरकार किसी उम्मीदवार को नौकरी के विज्ञापन में उल्लेख न किए गए आधार पर अयोग्य घोषित नहीं कर सकती: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, राजस्थान सरकार का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें उम्मीदवार को सरकारी पद के लिए इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि अयोग्यता के कारण को पद के लिए विज्ञापन में अयोग्यता मानदंड के रूप में उल्लेख नहीं किया गया। न्यायालय ने आदेश को पूरी तरह से अवैध, मनमाना और अनुचित करार दिया।

उन्होंने कहा: "याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी खारिज करने का आधार पूरी तरह से अवैध और मनमाना प्रतीत होता है, क्योंकि विज्ञापन की शर्तों और नियमों में कहीं भी किसी विशेष बोर्ड से योग्यता और पेशेवर प्रशिक्षण के बारे में नहीं बताया गया।"

केस टाइटल- सुमित्रा कुमारी बनाम चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, राजस्थान सरकार

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अपराध की आय से जुड़ी न होने वाली संपत्तियों को PMLA के तहत कुर्क नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने माना कि PMLA के तहत कुर्क की जाने वाली संपत्तियां अपराध की आय से अर्जित संपत्तियां होनी चाहिए। इसने कहा कि PMLA के प्रावधानों का अनुचित तरीके से उन संपत्तियों को कुर्क करने के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता, जो किसी आपराधिक गतिविधि से संबंधित नहीं हैं।

वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसमें धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (PMLA Act) के तहत जांच के दौरान बैंक अकाउंट फ्रीज करने और अचल संपत्ति के खिलाफ अनंतिम कुर्की के आदेश को चुनौती दी गई।

केस टाइटल- सतीश मोतीलाल बिदरी बनाम भारत संघ

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सत्र न्यायालय को घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत पूरी कार्यवाही रद्द करने का अधिकार नहीं, पक्षकार को हाईकोर्ट जाना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत शुरू की गई पूरी कार्यवाही पर सवाल उठाने वाली याचिका हाईकोर्ट के समक्ष विचारणीय होगी, सत्र न्यायालय के समक्ष नहीं।

हालांकि, यदि अधिनियम की धारा 18, 19, 20 या 22 के तहत दायर किसी आवेदन पर कोई विशेष आदेश पारित किया जाता है, तो उन विशिष्ट आदेशों को अधिनियम की धारा 29 का हवाला देते हुए सत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

केस टाइटल: ए रमेश बाबू और अन्य तथा धरणी एस

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घरेलू हिंसा अधिनियम | धारा 12 के तहत अनुमेय संशोधन, अतिरिक्त राहत धारा 23 के तहत नए आवेदन द्वारा मांगी जा सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 12 के तहत अनुमेय संशोधन और अतिरिक्त राहत, घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 23 के तहत एक नए आवेदन के रूप में स्वीकार्य होगी।

जस्टिस जयंत बनर्जी ने कहा, "जहां धारा 12 के तहत आवेदन में, बाद के घटनाक्रमों या अन्यथा के मद्देनजर अनुमेय संशोधन किया जाता है और अतिरिक्त अनुमेय राहत मांगी जाती है, धारा 23 के तहत एक नया आवेदन स्वीकार्य होगा।"

केस टाइटल: महाराज कुमारी विष्णुप्रिया बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य। [अनुच्छेद 227 संख्या 8348/2023 के अंतर्गत मामले]

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लोक अदालतों के निर्णय स्वतंत्र निर्णय नहीं, उन्हें नियमित न्यायाधीशों की भूमिका निभाने के प्रलोभन से बचना चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया कि लोक अदालतों द्वारा पारित 'निर्णय' स्वतंत्र न्यायिक निर्णय नहीं हैं बल्कि 'निष्पादन योग्य आदेश' के रूप में पक्षों द्वारा सहमत समझौते या समझौते की शर्तों को शामिल करने का प्रशासनिक कार्य है।

डॉ. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने लोक अदालतों को नियमित न्यायालयों के रूप में कार्य करने से परहेज करने की सलाह दी और कहा - “लोक अदालतों को नियमित न्यायाधीशों की भूमिका निभाने के अपने प्रलोभन से बचना चाहिए। उन्हें लगातार मध्यस्थ के रूप में कार्य करने का प्रयास करना चाहिए। लोक अदालतों का प्रयास और प्रयास पक्षों को न्याय, समानता और निष्पक्षता के सिद्धांतों के संदर्भ में उनके संबंधित दावों के पक्ष और विपक्ष, ताकत और कमजोरियों, लाभ और हानि को समझाकर विवाद को सुलझाने के लिए मार्गदर्शन और राजी करना होना चाहिए।”

केस टाइटल- स्टेशन प्रबंधक, रेलवे स्टेशन, बलांगीर टाउन व अन्य बनाम अध्यक्ष, स्थायी लोक अदालत (पीएसयू), बलांगीर व अन्य।

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