Evidence Act के तहत अनिवार्य सर्टिफिकेट के बिना व्हाट्सएप कंवर्सेशन को साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

5 July 2024 4:20 AM GMT

  • Evidence Act के तहत अनिवार्य सर्टिफिकेट के बिना व्हाट्सएप कंवर्सेशन को साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Evidence Act) के तहत अनिवार्य सर्टिफिकेट के बिना व्हाट्सएप कंवर्सेशन (WhatsApp Conversation) को साक्ष्य के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता।

    जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद डेल इंटरनेशनल सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई। उक्त आदेश में जिला आयोग के उस आदेश को बरकरार रखा गया, जिसमें आयोग ने लिखित बयान को रिकॉर्ड पर लेने से इस आधार पर इनकार कर दिया कि यह बयान समय-सीमा के बाद दायर किया गया।

    डेल के खिलाफ 2022 में जिला आयोग के समक्ष अदील फिरोज नामक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई। डेल इंटरनेशनल ने अपने और फिरोज के बीच हुई बातचीत का स्क्रीनशॉट दाखिल किया, जिससे यह साबित किया जा सके कि शिकायत की पूरी कॉपी और सभी अनुलग्नक उसे नहीं मिले और उसे 31 जनवरी, 2023 को जिला आयोग के समक्ष उसके वकील को सौंपा गया।

    जिला आयोग ने माना कि लिखित बयान दाखिल करने में सात दिनों की देरी के लिए डेल का आवेदन सही नहीं था। याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका पर विचार करते समय व्हाट्सएप कंवर्सेशन के स्क्रीनशॉट को ध्यान में नहीं रखा जा सकता, जब यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं था कि बातचीत राज्य आयोग के समक्ष पेश की गई थी।

    अदालत ने कहा,

    "इसके अलावा, राज्य आयोग के आदेश में इस पर कोई चर्चा नहीं है। किसी भी स्थिति में साक्ष्य अधिनियम, 1872 के तहत अनिवार्य उचित सर्टिफिकेट के बिना व्हाट्सएप कंवर्सेशन को साक्ष्य के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता।"

    इसमें आगे कहा गया कि डेल ने अपना लिखित बयान पिछले साल 31 जनवरी को ही दाखिल किया था और दलील दी थी कि उसे समन के साथ दस्तावेजों का पूरा सेट नहीं मिला, जबकि वास्तव में समन के साथ दस्तावेजों का पूरा सेट उसे दिया गया था।

    न्यायालय ने कहा,

    "उपर्युक्त के मद्देनजर, इस न्यायालय को यह मानने का कोई कारण नहीं मिला कि जिला आयोग द्वारा लिखित प्रस्तुतिकरण दाखिल करने में देरी को माफ करने से इनकार करने का कारण गलत है। तदनुसार, रिट याचिका खारिज की जाती है।"

    केस टाइटल: डेल इंटरनेशनल सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम अदील फिरोज और अन्य।

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