सरोगेसी के माध्यम से मातृत्व प्राप्त करने वाली महिला को मातृत्व अवकाश का अधिकार: उड़ीसा हाईकोर्ट

Shahadat

5 July 2024 11:14 AM GMT

  • सरोगेसी के माध्यम से मातृत्व प्राप्त करने वाली महिला को मातृत्व अवकाश का अधिकार: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय में माना कि सरोगेसी के माध्यम से मातृत्व प्राप्त करने वाली महिला कर्मचारी को भी मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) का लाभ उठाने का अधिकार है, क्योंकि यह न केवल संबंधित महिला के लिए फायदेमंद है, बल्कि नवजात शिशु के स्वस्थ पालन-पोषण के लिए भी आवश्यक है।

    महिला कर्मचारियों के महत्वपूर्ण अधिकार को न्यायिक स्वीकृति प्रदान करते हुए डॉ. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा,

    “संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में मातृत्व का अधिकार और प्रत्येक बच्चे के पूर्ण विकास का अधिकार भी शामिल है। यदि सरकार दत्तक माता को मातृत्व अवकाश प्रदान कर सकती है तो सरोगेसी प्रक्रिया के माध्यम से बच्चे को जन्म देने वाली माता को मातृत्व अवकाश प्रदान करने से इंकार करना पूरी तरह से अनुचित होगा।”

    संक्षिप्त पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ता ने गोपबंधु प्रशासन अकादमी में संयुक्त निदेशक (लेखा) के रूप में काम करते हुए 25.10.2018 से 22.04.2019 तक मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया, क्योंकि वह 20.10.2018 को सरोगेसी के माध्यम से मातृत्व प्राप्त कर चुकी है।

    इसके बाद मातृत्व अवकाश को जारी रखते हुए उसने 23.04.2019 से 09.09.2019 तक अर्जित अवकाश के लिए भी आवेदन किया। वह 10.09.2019 को अपनी ड्यूटी पर शामिल हुई। छुट्टी के लिए उसके आवेदन को मंजूरी के लिए वित्त विभाग को भेज दिया गया।

    हालांकि, वित्त विभाग में सरकार के अवर सचिव ने अधिकारियों से सरकारी कर्मचारियों के लागू अवकाश नियमों के अनुसार इस तरह की छुट्टी की वैधता की जांच करने के अनुरोध के साथ आवेदन वापस कर दिया।

    यह भी संकेत दिया गया कि वर्तमान में सहायक प्रजनन तकनीक या सरोगेसी के माध्यम से बच्चे को जन्म देने वाली महिला कर्मचारियों को छुट्टी देने का कोई प्रावधान नहीं है। इस प्रकार, छुट्टी के प्रावधान की अनुपलब्धता से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    न्यायालय ने नोट किया कि ओडिशा सेवा संहिता के नियम 194 के तहत महिला कर्मचारी 180 दिनों की मातृत्व छुट्टी का लाभ उठाने की हकदार है। ऐसा लाभ उन महिला कर्मचारियों को भी दिया जाता है, जो एक वर्ष की आयु तक के बच्चे को गोद लेने के माध्यम से मातृत्व प्राप्त करती हैं। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से 'सरोगेसी' के माध्यम से मातृत्व प्राप्त करने वाली महिलाओं के मामले में ऐसा प्रावधान स्पष्ट रूप से अनुपस्थित है।

    इस आशय के लिए न्यायालय ने चंदा केसवानी बनाम राजस्थान राज्य में राजस्थान हाईकोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि एक बार संसद द्वारा सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 को अधिनियमित करके सरोगेसी को मान्यता दे दी गई तो किसी महिला को सरोगेसी के माध्यम से बच्चा पैदा करने के लिए मातृत्व अवकाश से वंचित नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस पाणिग्रही ने डॉ. श्रीमती हेमा विजय मेनन बनाम महाराष्ट्र राज्य में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले का भी उल्लेख करते हुए कहा,

    “सरोगेसी के माध्यम से मां बनने वाली कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश दिया जाना चाहिए, जिससे सभी नई माताओं के लिए समान उपचार और सहायता सुनिश्चित की जा सके, चाहे वे किसी भी तरह से माता-पिता बनें। इसके अतिरिक्त, बच्चे के जन्म के बाद की प्रारंभिक अवधि देखभाल और पालन-पोषण में मां की भागीदारी के लिए महत्वपूर्ण होती है, जो बच्चे के विकास के लिए महत्वपूर्ण होती है।”

    न्यायालय ने अनुज गर्ग बनाम होटल एसोसिएशन ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें यह माना गया कि कानून को बनाए रखने के लिए बदली हुई सामाजिक मानसिकता और अपेक्षाएं महत्वपूर्ण हैं। इस प्रकार, हाईकोर्ट ने कहा कि नियमों और विनियमों की व्याख्या मेडिकल साइंस में प्रगति और सामाजिक परिस्थितियों में बदलाव के आलोक में की जानी चाहिए।

    न्यायालय ने आगे कहा,

    “माता-पिता बनने के वैध साधन के रूप में सरोगेसी को मान्यता देना और उसका समर्थन करना प्रजनन अधिकारों और लैंगिक समानता पर भारत के प्रगतिशील रुख के अनुरूप है। इन माताओं को मातृत्व अवकाश प्रदान करना सुनिश्चित करता है कि उनके पास अपने बच्चे के लिए स्थिर और प्रेमपूर्ण वातावरण बनाने के लिए आवश्यक समय है, जिससे मां और बच्चे दोनों की भलाई को बढ़ावा मिलता है।”

    परिणामस्वरूप, न्यायालय ने राज्य को याचिकाकर्ता को 180 दिनों का मातृत्व अवकाश प्रदान करने का निर्देश दिया और नियमों में कमीशनिंग माताओं को मातृत्व अवकाश प्रदान करने का प्रावधान शामिल करने का भी आदेश दिया, जिससे सरोगेसी के माध्यम से पैदा हुए बच्चों को उनकी माताओं के समान समान उपचार प्रदान किया जा सके।

    केस टाइटल: सुप्रिया जेना बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।

    Next Story