मृतक कर्मचारी की पत्नी मृत्यु की तिथि से ही मुआवजे की हकदार, चाहे आवेदन किसी भी कारण से किया गया हो: झारखंड हाईकोर्ट

Amir Ahmad

6 July 2024 3:23 PM IST

  • मृतक कर्मचारी की पत्नी मृत्यु की तिथि से ही मुआवजे की हकदार, चाहे आवेदन किसी भी कारण से किया गया हो: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट की जस्टिस दीपक रोशन की पीठ ने एक रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए कहा कि मृतक कर्मचारी की पत्नी कर्मचारी की मृत्यु की तिथि से ही मुआवजे की हकदार है, चाहे मुआवजे के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया हो या नहीं।

    मामले की पृष्ठभूमि

    मृतक कर्मचारी BCCL द्वारा रोपवे डिवीजन में टिंडल के रूप में कार्यरत था। कर्मचारी की पहली पत्नी से कोई संतान नहीं थी। उसकी सहमति से कर्मचारी ने अपनी दूसरी पत्नी से विवाह किया, जिससे उसे एक बेटी और दो बेटे हुए। कर्मचारी की 27 जनवरी, 2007 को सेवा के दौरान मृत्यु हो गई।

    उसकी मृत्यु के बाद दोनों पत्नियों ने राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौते (NCWA) के तहत रोजगार के लिए आवेदन किया। दूसरी पत्नी ने 5 जून 2007 को एनसीडब्ल्यूए-VIII के पैरा 9.3.2 के तहत आवेदन किया। पहली पत्नी ने भी उसी धारा के तहत रोजगार के लिए आवेदन किया।

    दूसरी पत्नी को रोजगार देने से मना कर दिया गया, क्योंकि दूसरी पत्नी होने के नाते उसे इसका कोई कानूनी अधिकार नहीं था।

    नियोक्ता ने पहली पत्नी को 4 जुलाई 2007 को सूचित किया कि क्योंकि वह 45 वर्ष से अधिक उम्र की थी। इसलिए वह एनसीडब्ल्यूए-VIII के पैरा 9.3.2 के अनुसार रोजगार के लिए पात्र नहीं थी। नियोक्ता ने 2007 में स्वीकार किया कि पहली पत्नी अपनी उम्र के कारण मौद्रिक मुआवजे की हकदार थी। लेकिन उसने मुआवजे के लिए आवेदन नहीं किया। पहली पत्नी ने 5 जून 2008 को नियोक्ता से अनुरोध किया कि वह एनसीडब्ल्यूए-VIII के पैरा 9.5.0.(III) के तहत अपने सौतेले बेटे को रोजगार देने पर विचार करे।

    पिता की मृत्यु के समय सौतेला बेटा 12 वर्ष का था। इस धारा के अनुसार 12 से 18 वर्ष की आयु के पुरुष आश्रित को 18 वर्ष की आयु होने पर रोजगार प्रदान किया जाना चाहिए, जबकि महिला आश्रित को मौद्रिक मुआवजा प्रदान किया जाना चाहिए। लेकिन नियोक्ता सौतेले बेटे को रोजगार प्रदान करने में विफल रहा।

    इससे व्यथित होकर पहली पत्नी और सौतेले बेटे ने क्रमशः मौद्रिक मुआवजा और रोजगार की मांग करते हुए एक रिट याचिका दायर की।

    याचिकाकर्ताओं द्वारा यह तर्क दिया गया कि मृतक कर्मचारी के आश्रित नाबालिग बच्चे के रूप में सौतेला बेटा NCWA-VIII के पैरा 9.5.0.(III) के तहत रोजगार का हकदार था। उन्होंने तर्क दिया कि यदि मौद्रिक मुआवजे को स्वीकार किया गया था तो सौतेले बेटे के लिए रोजगार भी उन्हीं सिद्धांतों के तहत अनिवार्य होना चाहिए। यह दावा किया गया कि सौतेले बेटे का रोजगार NCWA-VIII के तहत एक कानूनी अधिकार था और केवल BCCL द्वारा विवेकाधीन निर्णय नहीं था।

    दूसरी ओर नियोक्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि उन्होंने पहली पत्नी को मौद्रिक मुआवजा स्वीकार किया, जिससे समझौते के तहत उनका दायित्व पूरा हो गया। उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता सौतेले बेटे के लिए और रोजगार लाभ की मांग नहीं कर सकते। यह भी तर्क दिया गया कि सौतेले बेटे का नाम कर्मचारी के सेवा अंश में नहीं था।

    न्यायालय के निष्कर्ष

    न्यायालय ने स्वीकार किया कि रोजगार लाभ के लिए दूसरी शादी को कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी गई थी। यह माना गया कि दूसरी पत्नी का रोजगार का दावा अमान्य था क्योंकि वह मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी थी। न्यायालय ने NCWA-VIII के प्रावधानों की जांच की और पाया कि पहली पत्नी, 45 वर्ष से अधिक आयु की होने के कारण NCWA-VIII के अनुसार रोजगार के लिए पात्र नहीं थी।

    न्यायालय ने देखा कि पहली पत्नी को प्रदान किया गया मौद्रिक मुआवजा सौतेले बेटे को रोजगार देने की संभावना को नकारता नहीं है। यह देखा गया कि NCWA-VIII के 9.5.0.(iii) के अनुसार, नियोक्ता वयस्क होने पर नाबालिग बच्चे को रोजगार प्रदान करने और उक्त अवधि के दौरान विधवा को मौद्रिक लाभ प्रदान करने के लिए बाध्य था।

    न्यायालय ने पाया कि पहली पत्नी ने आज तक मौद्रिक मुआवजे के लिए आवेदन नहीं किया है। यह माना गया कि नियोक्ता की ओर से यह तर्क देना अनुचित है कि अब मौद्रिक मुआवजा प्रदान नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने इसके लिए आवेदन नहीं किया है और सौतेला बेटा रोजगार का हकदार नहीं है। यह माना गया कि नियोक्ता पहली पत्नी के सौतेले बेटे को रोजगार में रखने के दावे को खारिज कर सकता था।

    एनसीडब्ल्यूए-VIII की धारा 9.5.0 (iii) के अनुसार नियोक्ता को मृतक कर्मचारी की मृत्यु की तारीख से 60 वर्ष की आयु प्राप्त करने की तारीख तक पहली पत्नी को मौद्रिक मुआवजा देने का निर्देश दिया गया। गंगिया देवी बनाम बीसीसीएल के मामले पर भरोसा किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मृतक कर्मचारी की पत्नी कर्मचारी की मृत्यु की तारीख से मौद्रिक मुआवजे की हकदार होगी भले ही ऐसे मौद्रिक मुआवजे के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया हो या नहीं।

    नियोक्ता को सौतेले बेटे को रोजगार देने का भी निर्देश दिया गया जो वयस्क हो गया था। इन टिप्पणियों के साथ रिट याचिका को अनुमति दी गई।

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