हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2025-03-15 12:15 GMT
हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (10 मार्च, 2025 से 14 मार्च, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

90% श्रवण बाधित अभ्यर्थी को गलती से दिव्यांग श्रेणी में नहीं माना गया: राजस्थान हाईकोर्ट ने मानवीय आधार पर नियुक्ति का निर्देश दिया

राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य को याचिकाकर्ता को नियुक्ति देने का निर्देश दिया, जो 90% श्रवण बाधित है और उसने 2018 में सफाई कर्मचारी के पद के लिए आवेदन किया था, लेकिन कुछ सॉफ्टवेयर त्रुटि के कारण दिव्यांग श्रेणी के तहत लॉटरी के लिए उसका नाम नहीं माना गया, जिसके परिणामस्वरूप उसकी नियुक्ति नहीं हो पाई।

जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति अनुचित लग सकती है, क्योंकि उसने दिव्यांग श्रेणी के तहत पद के लिए लॉटरी में भाग नहीं लिया। हालांकि, मुकदमेबाजी की ऐसी अनिश्चितताएं हैं, जिसमें कभी-कभी उम्मीदवारों को आकस्मिक लाभ मिल जाता है।

केस टाइटल: पंकज वसीटा बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।

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न्यायालय दोषी कर्मचारी के विरुद्ध आरोपों की सत्यता का निर्णय करने के लिए अनुशासनात्मक प्राधिकारी के रूप में कार्य नहीं कर सकता: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि अनुशासनात्मक कार्यवाही में जारी आरोप-पत्र के विरुद्ध सामान्यतः रिट याचिका तब तक नहीं दायर की जा सकती, जब तक कि यह सिद्ध न हो जाए कि आरोप-पत्र ऐसे प्राधिकारी द्वारा जारी किया गया, जो अनुशासनात्मक कार्यवाही आरंभ करने के लिए सक्षम नहीं है।

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने कहा कि न्यायालय द्वारा आरोप-पत्र में हल्के या नियमित तरीके से हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता तथा प्रारंभिक चरण में आरोप-पत्र को निरस्त करने की मांग करने के बजाय दोषी कर्मचारी को अनुशासनात्मक प्राधिकारी के समक्ष जवाब प्रस्तुत करना चाहिए तथा कार्यवाही के समापन की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

केस टाइटल: जगदीश प्रसाद बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य।

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वैवाहिक स्थिति से संबंधित विवाद फैमिली कोर्ट के अनन्य क्षेत्राधिकार में आता है: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि पक्षकारों की वैवाहिक स्थिति से संबंधित विवाद फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 (Family Court Act) के तहत स्थापित फैमिली कोर्ट के अनन्य क्षेत्राधिकार में आता है। इसका निर्णय किसी अन्य सिविल कोर्ट द्वारा नहीं किया जा सकता।

जिला जज के आदेश द्वारा परिवर्तित किए जा रहे सिविल जज (सीनियर डिवीजन) द्वारा पारित आदेश निरस्त करते हुए जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल पीठ ने कहा - "यह आश्चर्यजनक है कि फैमिली कोर्ट की स्थापना और संचालन के बाद भी ट्रायल कोर्ट ने न केवल मुकदमे को आगे बढ़ाया, बल्कि अंतिम रूप से इसका निर्णय भी किया। इससे भी अधिक आश्चर्यजनक बात यह है कि प्रथम अपीलीय न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय और डिक्री से उत्पन्न अपील पर विचार किया और उसे उलट दिया।"

केस टाइटल: क्षीरबती @ खरबती नाइक बनाम प्रेमसिला नाइक और अन्य।

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राज्य अल्पसंख्यक आयोग आरक्षण नीति को अपनाने की पुष्टि करने के लिए अल्पसंख्यक संस्थानों से रिकॉर्ड नहीं मांग सकता: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने माना कि राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पास आरक्षण नियम को अपनाने की पुष्टि करने के लिए अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान से रिकॉर्ड मांगने का कोई अधिकार नहीं है।

जस्टिस एल विक्टोरिया गौरी ने कहा कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को अनुच्छेद 15(5) के दायरे से छूट दी गई है, जो राज्य को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के नागरिकों या अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिए निजी संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश से संबंधित कानून के विशेष प्रावधान बनाने की शक्ति देता है।

केस टाइटल: सचिव और अन्य बनाम तमिलनाडु राज्य

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इस्तीफा देने वाले जज भी रिटायर जज की तरह पेंशन लाभ के हकदार: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट जज का 'इस्तीफा' हाईकोर्ट जज (वेतन और सेवा की शर्तें) अधिनियम 1954 के तहत 'रिटायरमेंट' माना जाता है। इस प्रकार सेवा से इस्तीफा देने वाले जज भी रिटायरमेंट के बाद रिटायर होने वाले जज के समान पेंशन लाभ के हकदार होंगे।

चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस भारती डांगरे की खंडपीठ ने पेंशन देने के लिए हाईकोर्ट की पूर्व एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला की याचिका स्वीकार की। जस्टिस गनेडीवाला ने रजिस्ट्रार (मूल पक्ष), हाईकोर्ट, बॉम्बे के दिनांक 02.11.2022 के आदेश को चुनौती दी, जिसमें कहा गया था कि वह पेंशन की हकदार नहीं हैं।

केस टाइटल: पुष्पा पत्नी वीरेंद्र गनेडीवाला बनाम बॉम्बे हाईकोर्ट रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से (WP/15018/2023)

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नियमित विभागीय जांच के बिना दंडात्मक छंटनी औद्योगिक विवाद अधिनियम का उल्लंघन: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के जज जस्टिस अजय मोहन गोयल की एकल पीठ ने दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी की सेवा समाप्ति रद्द की। न्यायालय ने कहा कि प्रारंभिक जांच के बाद छंटनी की आड़ में सेवा समाप्ति की गई। इसने श्रम न्यायालय के इस निष्कर्ष को बरकरार रखा कि उचित विभागीय जांच किए बिना कथित कदाचार के आधार पर सेवा समाप्ति अवैध थी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि औद्योगिक विवाद अधिनियम (Industrial Disputes Act) के तहत दंड के रूप में सेवा समाप्ति को साधारण छंटनी नहीं माना जा सकता।

केस टाइटल: हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम रमेश चंद

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संभल की जामा मस्जिद की सफेदी से इनकार पर ASI की 'कोई प्रतिक्रिया नहीं' पर हाईकोर्ट ने फटकार लगाई, इसे 'कथित मस्जिद' बताया

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को एक सप्ताह के भीतर संभल की जामा मस्जिद की सफेदी कराने का निर्देश देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को मस्जिद के बाहरी हिस्से की सफेदी से इनकार करने में ASI की अपर्याप्त प्रतिक्रिया के लिए आलोचना की।

जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने अपने आदेश में कहा, "इस न्यायालय को लगता है कि रमजान के पवित्र महीने के दौरान कथित मस्जिद के बाहरी हिस्से की सफेदी कराने से इनकार करने पर ASI ने कोई उपयुक्त जवाब नहीं दिया।"

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मजिस्ट्रेट CrPC की धारा 200 के तहत शिकायत की जांच शुरू करने के बाद धारा 156 के तहत पूर्व-संज्ञान चरण में वापस नहीं जा सकते: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि एक बार जब मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता का प्रारंभिक बयान दर्ज कर लेता है और मामले की सच्चाई का पता लगाने के लिए जांच का निर्देश देता है, तो मजिस्ट्रेट के लिए पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश देना खुला नहीं है।

जस्टिस संजय धर ने कहा कि एक बार जब मजिस्ट्रेट शिकायतकर्ता का CrPC की धारा 200 के तहत शपथ पर प्रारंभिक बयान लेकर शिकायत मामले की प्रक्रिया का विकल्प चुनता है तो वह CrPC की धारा 156 के तहत FIR दर्ज करने का निर्देश देकर पूर्व-संज्ञान चरण में वापस नहीं जा सकता। अदालत ने कहा कि CrPC की धारा 156 पूर्व-संज्ञान चरण से संबंधित है, जबकि CrPC की धारा 200 संज्ञान के बाद के चरण से संबंधित है।

केस-टाइटल: रेणु शर्मा और अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और अन्य, 2025, लाइव लॉ (जेकेएल)

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राज्य मेट्रो जैसी सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए मंदिर की जमीन अधिग्रहित कर सकता है, यह अनुच्छेद 25, 26 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है: मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने सीएमआरएल की फेज-2 परियोजना के संबंध में मेट्रो स्टेशन के निर्माण के लिए यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस की संपत्ति का अधिग्रहण करने का प्रस्ताव देने वाली चेन्नई मेट्रो रेल लिमिटेड की ओर से जारी नोटिस को खारिज कर दिया है।

जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा कि सीएमआरएल के लिए अपनी मूल योजना के अनुसार, पास के मंदिर की संपत्ति का अधिग्रहण करना खुला है। हाल ही में केरल हाईकोर्ट के एक फैसले के शब्दों को उधार लेते हुए, जस्टिस आनंद वेंकटेश ने कहा कि सर्वशक्तिमान मेट्रो स्टेशन के विकास के लिए सभी पर दया और परोपकार दिखाएगा, जिससे लाखों लोगों को लाभ होगा।

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JJ Act के तहत जमानत कार्यवाही में शिकायतकर्ता को सुनवाई का अधिकार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि किशोर न्याय अधिनियम (JJ Act) के तहत जमानत कार्यवाही के हर चरण में शिकायतकर्ता को सुनवाई का अधिकार नहीं है। जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने कहा, "शिकायतकर्ता की भागीदारी न्यायिक विवेक का विषय है, न कि लागू करने योग्य अधिकार का। किशोर न्याय का मूल सिद्धांत यानी प्रतिशोध पर पुनर्वास ऐसे किसी भी निर्धारण में सर्वोपरि होना चाहिए।"

टाइटल: मोहम्मद मुनीब बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) और अन्य।

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FIR में जमानत प्राप्त आरोपी को अनुचित देरी के बाद उसी मामले में अलग अपराध के लिए दोबारा गिरफ्तार नहीं किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि अगर किसी आरोपी को पहले ही FIR में जमानत मिल चुकी है और उसे 15 साल की अवधि के बाद किसी दूसरे अपराध के लिए आरोपित और गिरफ्तार किया जाता है तो यह उसकी स्वतंत्रता का घोर हनन होगा।

निचली अदालत ने अंतिम रिपोर्ट को कानून के अनुसार नहीं बताते हुए लौटा दिया। इसने इस बात पर जोर दिया था कि मामले की जांच ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट (NDPS Act) के तहत आने वाले अपराधों के तहत शुरू हुई थी। पंद्रह साल की अवधि तक जारी रही और अब जांच के अंतिम चरण में NDPS Act की धारा 8/21 के तहत अपराध को मामले की FIR में जोड़ दिया गया।

केस-टाइटल: मोहम्मद अब्बास माग्रे बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर, 2025, लाइवलॉ (जेकेएल)

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गलत तरीके से बर्खास्तगी के लिए हर्जाने का मुकदमा तब तक सुनवाई योग्य नहीं, जब तक कि बर्खास्तगी को चुनौती न दी जाए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि गलत तरीके से बर्खास्तगी के कारण हर्जाने का मुकदमा तब तक सुनवाई योग्य नहीं है, जब तक कि बर्खास्तगी को पहले चुनौती न दी जाए और गलत घोषित न कर दिया जाए। न्यायालय ने पाया कि वादी ने न तो दलील दी और न ही यह साबित करने का कोई प्रयास किया कि बर्खास्तगी का विवादित आदेश उसके रोजगार की किसी भी शर्त का उल्लंघन था।

जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की पीठ ने माना कि वादी ने अपनी सेवाओं की समाप्ति को कानून के अनुसार गलत करार देने के लिए घोषणात्मक राहत नहीं मांगी थी। ऐसी प्रार्थना के अभाव में ट्रायल कोर्ट ने बर्खास्तगी को कानून के अनुसार गलत घोषित करके और फिर से बहाल करने के अधिकार की अनुमति देकर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम किया, जिसकी पहली बार में प्रार्थना नहीं की गई।

केस-टाइटल: पंजाब नेशनल बैंक बनाम वी के गंडोत्रा, 2025, लाइव लॉ, (जेकेएल)

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अनुच्छेद 16(4ए) के तहत पदोन्नति में आरक्षण का लाभ सभी को उपलब्ध, जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के साथ अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता: हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी उस परिपत्र पर कड़ी असहमति व्यक्त की है, जिसमें सभी प्रशासनिक सचिवों को आरक्षित श्रेणी के कर्मचारियों के लिए निर्धारित स्लॉट खाली रखने का निर्देश दिया गया है। न्यायालय ने कहा कि अनुसूचित जातियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ न देने और उनकी सीटें खाली रखने से जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के साथ अन्य राज्यों से अलग व्यवहार होगा।

अदालत ने कहा, “यह समझ में नहीं आता है कि वर्ष 2019 में संवैधानिक प्रावधानों के लागू होने के साथ जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश पर लागू संवैधानिक प्रावधानों की पूरी तरह से अवहेलना करते हुए उक्त निर्देश कैसे पारित किए जा सकते हैं।”

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