सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2025-03-16 04:30 GMT
सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (10 मार्च, 2025 से 14 मार्च, 2025 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

Motor Accident Claims | कानूनी प्रतिनिधि वह होता है जिसे नुकसान होता है, जरूरी नहीं कि वह मृतक का जीवनसाथी, बच्चा या माता-पिता हो : सुप्रीम कोर्ट

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत कानूनी प्रतिनिधि शब्द की संकीर्ण व्याख्या नहीं की जानी चाहिए, जिससे उन लोगों को दावेदार के रूप में शामिल न किया जाए, जो मृतक की आय पर निर्भर थे।

कोर्ट ने कहा कि अगर दावेदार मृतक की आय पर निर्भर थे तो उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने मिसालों का हवाला देते हुए कहा कि कानूनी प्रतिनिधि वह होता है, जो मोटर वाहन दुर्घटना के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु के कारण पीड़ित होता है। जरूरी नहीं कि वह पत्नी, पति, माता-पिता या बच्चा ही हो।

केस टाइटल: साधना तोमर और अन्य बनाम अशोक कुशवाह और अन्य।

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Maharashtra Slum Act | 'जनगणना की गई झुग्गी-झोपड़ियां' भी 'झुग्गी-झोपड़ियां' हैं, पुनर्विकास के लिए अलग से अधिसूचना की आवश्यकता नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बार जब किसी झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्र को 'जनगणना की गई झुग्गी-झोपड़ियां' घोषित कर दिया जाता है, यानी सरकारी या नगर निगम के उपक्रम की भूमि पर स्थित झुग्गियां, तो ऐसी झुग्गियां महाराष्ट्र झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्र (सुधार, निकासी और पुनर्विकास) अधिनियम, 1971 (Maharashtra Slum Act) के तहत अलग से अधिसूचना की आवश्यकता के बिना ही झुग्गी-झोपड़ी अधिनियम के तहत पुनर्विकास के लिए स्वतः ही पात्र हो जाती हैं।

केस टाइटल: मंसूर अली फरीदा इरशाद अली और अन्य बनाम तहसीलदार-I, विशेष प्रकोष्ठ और अन्य

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पावर ऑफ अटॉर्नी के तहत हुई बिक्री पर बाद में रद्द करने का कोई प्रभाव नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक वैध पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर किए गए बिक्री लेनदेन को बाद में इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता कि उस पावर ऑफ अटॉर्नी को बाद में रद्द कर दिया गया था। इस निर्णय के साथ, कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश की पुष्टि की, जिसमें एक वादपत्र को खारिज कर दिया गया था, जिसमें बाद में पावर ऑफ अटॉर्नी रद्द होने के आधार पर कुछ पूर्व बिक्री लेनदेन को अमान्य घोषित करने की मांग की गई थी।

यह पावर ऑफ अटॉर्नी वादी द्वारा पहले प्रतिवादी के नाम 15.10.2004 को निष्पादित किया गया था। 2018 में, वादी ने 2004-2006 और 2009 के बीच किए गए कुछ बिक्री लेनदेन को रद्द करने के लिए एक मुकदमा दायर किया। वादी का दावा था कि उसे इन बिक्री लेनदेन के बारे में 21.09.2015 को ही जानकारी मिली और इस तारीख से तीन साल की सीमा अवधि के भीतर मुकदमा दायर किया गया था। पावर ऑफ अटॉर्नी को 22.09.2015 को रद्द कर दिया गया था।

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मजिस्ट्रेट द्वारा दी गई जमानत पर विचार किए बिना पारित किया गया निवारक निरोध आदेश रद्द किया जाएगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में भारत में विदेशी सोने की तस्करी करने वाले एक गिरोह के कथित प्रमुख सदस्य के खिलाफ निवारक निरोध आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि निरोध अधिकारी ने उसी आरोप से उत्पन्न मामले में उसे जमानत देते समय क्षेत्राधिकार वाले मजिस्ट्रेट द्वारा लगाई गई शर्तों पर विचार नहीं किया।

जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा लगाई गई शर्तों को निरोध आदेश में रेखांकित किया गया था, लेकिन निरोध अधिकारी ने इस बात पर चर्चा नहीं की कि क्या ये शर्तें बंदी को आगे तस्करी की गतिविधियों में शामिल होने से रोकने के लिए पर्याप्त थीं। अदालत ने इस आधार पर राहत दी, भले ही अपीलकर्ता-बंदी की पत्नी ने यह तर्क नहीं उठाया।

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