2024 के सुप्रीम कोर्ट के 100 महत्वपूर्ण फैसले - पार्ट 1 [1-25]
Shahadat
23 Dec 2024 1:00 PM IST
हर साल की इस तरह इस साल भी लाइव लॉ आपने अंत की ओर बढ़ते वर्ष, 2024 के सुप्रीम कोर्ट के 100 महत्वपूर्ण निर्णयों की सूची लेकर आया है। आइये जानते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने इस बीते वर्ष में किन अहम मुद्दों पर परिवर्तनकारी, रोचक और समाज-सुधार के क्षेत्र में अहम फ़ैसले दिए हैं। इन 100 फैसलों की पहली सूची- पार्ट-1
1.बीमा पॉलिसी जारी होने की तारीख से प्रभावी होती है, प्रस्ताव की तारीख या रसीद जारी करने की तारीख से नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बीमा सुरक्षा के संदर्भ में माना कि पॉलिसी जारी करने की तारीख सभी उद्देश्यों के लिए प्रासंगिक तारीख होगी। न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह था कि नीति प्रभावी होने की तारीख क्या होगी; क्या यह वह तारीख होगी, जिस दिन पॉलिसी जारी की जाती है, या पॉलिसी में उल्लिखित प्रारंभ की तारीख होगी, या यह जमा रसीद या कवर नोट जारी करने की तारीख होगी।
केस टाइटल: रिलायंस लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम जया वाधवानी, डायरी नंबर- 12162 - 2019
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2. शादी हो जाने के बाद शादी का झूठा वादा करके बलात्कार का मामला नहीं बनता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने (03 जनवरी को) शादी के बहाने 25 वर्षीय महिला से बलात्कार करने के आरोपी-अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करते हुए कहा कि सहमति से संबंध बनाया गया था, जो शादी में परिणत हुआ। इस प्रकार, अदालत को इस आरोप का कोई आधार नहीं मिला कि शारीरिक संबंध शादी के झूठे वादे के कारण था, क्योंकि अंततः, शादी संपन्न हुई थी।
जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्तल की खंडपीठ ने कहा, "इसलिए प्रथम दृष्टया, यह आरोप कि अपीलकर्ता द्वारा शादी के लिए दिए गए झूठे वादे के कारण शारीरिक संबंध बनाए, निराधार है, क्योंकि उनके रिश्ते के कारण विवाह संपन्न हुआ था।"
केस टाइटल: अजीत सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, डायरी नंबर- 42857 - 2016
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3. अभियोजन पक्ष ट्रायल में उस तथ्य को साबित करने की मांग नहीं कर सकता जिसे गवाह ने जांच के दौरान पुलिस को नहीं बताया था : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 4 जनवरी को आरोपी-अपीलकर्ता की आपराधिक अपील की अनुमति देते हुए कहा कि ट्रायल के दौरान, अभियोजन पक्ष उस तथ्य को साबित करने की कोशिश नहीं कर सकता जो गवाह ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 161 ( पुलिस द्वारा गवाहों से पूछताछ) के तहत अपने बयान में नहीं कहा है ।
जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार की तीन जजों की पीठ ने कहा, "अभियोजन ट्रायल के दौरान किसी गवाह के माध्यम से किसी तथ्य को साबित करने की कोशिश नहीं कर सकता है, जिसे ऐसे गवाह ने जांच के दौरान पुलिस को नहीं बताया था। उक्त बेहतर तथ्य के संबंध में उस गवाह के साक्ष्य का कोई महत्व नहीं है।"
केस : दर्शन सिंह बनाम पंजाब राज्य, डायरी नंबर- 30701/ 2009
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4. Evidence Act की धारा 27 को लागू करने के लिए चार शर्तें: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने (03 जनवरी को) साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) की धारा 27 के संबंध में महत्वपूर्ण फैसले में इस प्रावधान को लागू करने के लिए तीन शर्तों को दोहराया। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की खंडपीठ ने मोहम्मद इनायतुल्ला बनाम महाराष्ट्र राज्य, (1976) 1 एससीसी 828 पर भरोसा करते हुए उक्त फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि Evidence Act की धारा 27 लागू करते हुए चार शर्तों ध्यान रखा जाना चाहिए, पहली शर्त है किसी तथ्य की खोज। यह तथ्य किसी आरोपी व्यक्ति से प्राप्त जानकारी के परिणाम में प्रासंगिक होना चाहिए।
दूसरी शर्त यह है कि ऐसे तथ्य की खोज के लिए उसे अपदस्थ किया जाना चाहिए। तर्क यह है कि पुलिस को पहले से ज्ञात तथ्य ग़लत साबित होगा और इस शर्त को पूरा नहीं करेगा। तीसरी शर्त यह है कि सूचना प्राप्त होने के समय आरोपी पुलिस हिरासत में होना चाहिए (पुलिस हिरासत के संबंध में अदालत ने स्पष्ट किया कि यह केवल औपचारिक गिरफ्तारी के बाद की हिरासत नहीं है। इसमें पुलिस द्वारा किसी भी प्रकार का प्रतिबंध या निगरानी शामिल होगी). अंतिम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि केवल "इतनी ही जानकारी", जो खोजे गए तथ्य से स्पष्ट रूप से संबंधित हो, स्वीकार्य है। बाकी जानकारी को बाहर करना होगा।
केस टाइटल: पेरुमल राजा @ पेरुमल बनाम राज्य प्रतिनिधि पुलिस निरीक्षक द्वारा, डायरी नंबर- 4802 - 2018.
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5. Adani-Hindenburg Case: मीडिया आर्टिकल्स और OCCRP रिपोर्ट सेबी जांच पर संदेह करने के लिए निर्णायक सबूत नहीं: सुप्रीम कोर्ट
हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट में अडानी ग्रुप्स के खिलाफ लगाए गए आरोपों की विशेष जांच दल (SIT) द्वारा जांच का आदेश देने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (3 जनवरी) को मीडिया और संगठित अपराध और भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) द्वारा प्रकाशित रिपोर्टों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि स्वतंत्र समूहों या खोजी व्यक्तियों की रिपोर्ट भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) या एक्सपर्ट कमेटी के समक्ष इनपुट के रूप में कार्य कर सकती है, लेकिन नहीं। SEBI की जांच की पर्याप्तता को चुनौती देने के लिए निर्णायक सबूत के रूप में इस पर भरोसा किया जाना चाहिए।
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6. भुगतान के लिए तय समय सीमा का पालन न करने वाले खरीदार बिक्री अनुबंध के विशिष्ट प्रदर्शन की मांग नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल के एक फैसले में कहा कि जब कोई अनुबंध एक विशिष्ट समय सीमा निर्धारित करता है जिसके भीतर 'विक्रेता' द्वारा 'बिक्री के समझौते' को निष्पादित करने के लिए 'खरीदार' द्वारा प्रतिफल का भुगतान करने की आवश्यकता होती है, तो खरीदार को इसका सख्ती से पालन करना होगा। ऐसी स्थिति में, अन्यथा, 'खरीदार' सेल डीड के विशिष्ट प्रदर्शन के उपाय का लाभ नहीं उठा सकता है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने हाईकोर्ट और प्रथम अपीलीय न्यायालय द्वारा पारित समवर्ती निर्णयों को पलटते हुए कहा कि छह महीने के भीतर, संपूर्ण शेष राशि का भुगतान करने का दायित्व मौजूद था, हालांकि,यहां यह मामला नहीं है। उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्होंने छह महीने की अवधि की समाप्ति से पहले शेष/बची राशि का भुगतान करने की भी पेशकश की थी और स्पष्ट अर्थ यह होगा कि उत्तरदाताओं ने छह महीने की अवधि के भीतर समझौते के तहत अपने दायित्व का पालन नहीं किया था।
केस : अलागम्मल और अन्य बनाम गणेशन और अन्य
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7. ज्यूडिशियल सर्विस अन्य सरकारी सर्विस के बराबर नहीं; न्यायिक अधिकारियों की सर्विस शर्तें पूरे देश में समान होनी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ज्यूडिशियल सर्विस (Judicial Service) को सरकार के अन्य अधिकारियों की सर्विस के साथ बराबर नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इसके साथ ही इस तर्क को खारिज कर दिया कि न्यायिक अधिकारियों और अन्य सरकारी अधिकारियों के वेतन और भत्ते बराबर होने चाहिए। कोर्ट ने ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन मामले में पारित फैसले में यह टिप्पणी की, जिसमें राज्यों को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और भत्ते के संबंध में दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का निर्देश दिया गया।
केस टाइटल: ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन बनाम यूओआई और अन्य। डब्ल्यूपी(सी) नंबर 643/2015
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8. 'COTPA की धारा 5(1) उन व्यक्तियों पर लागू नहीं होगी, जो तंबाकू के कारोबार में शामिल नहीं': सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तमिल अभिनेता धनुष और 2014 की फिल्म 'वेला इल्ला पट्टाधारी' के निर्माताओं और वितरकों के खिलाफ सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पादों पर (Prohibition of Advertisement and Regulation of Trade and Commerce, Production, Supply and Distribution Act) 2003 (COTPA) की धारा 5 के तहत आपराधिक कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसने COTPA के तहत तमिलनाडु पीपुल्स फोरम फॉर टोबैको कंट्रोल (TNPFTC) के राज्य संयोजक एस. सिरिल अलेक्जेंडर द्वारा दायर शिकायत खारिज कर दी।
केस का नाम: एस. सिरिल अलेक्जेंडर बनाम राज्य, जिसका प्रतिनिधित्व डॉ. वी. के. पलानी द्वारा किया गया।
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9. सीआरपीसी की धारा 482 को लागू करने पर हाईकोर्ट को सावधानीपूर्वक जांच करनी चाहिए कि क्या आरोप अपराध बनते हैं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल के आदेश में कहा कि जब हाईकोर्ट को आपराधिक मामला रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति का उपयोग करने के लिए कहा गया तो यह इस सवाल पर विचार करने के लिए हाईकोर्ट के लिए बाध्य है कि क्या आरोप अपराध का गठन करेंगे, जो आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आरोप लगाया गया।
हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए, जिसने आरोपी व्यक्ति के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर असंतोष व्यक्त किया कि आईपीसी की धारा 420, 406, 504 और धारा 56 के तहत अपराध का गठन करने के लिए आवश्यक सामग्री आरोपी-अपीलकर्ता के खिलाफ नहीं बनती है।
केस टाइटल: राजाराम शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य।
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10. घर से चलने वाला वकील का दफ्तर व्यावसायिक भवन के रूप में प्रॉपर्टी टैक्स के अधीन नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि आवासीय भवन में चलने वाला वकील का कार्यालय दिल्ली नगर निगम अधिनियम के तहत "व्यावसायिक भवन" के रूप में प्रॉपर्टी टैक्स के अधीन नहीं है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने पुष्टि की कि वकीलों की व्यावसायिक गतिविधि वाणिज्यिक प्रतिष्ठान या व्यावसायिक गतिविधि की श्रेणी में नहीं आती। वकीलों की फर्म "व्यावसायिक प्रतिष्ठान" नहीं है।
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11. न्यायिक मजिस्ट्रेट के लिए आगे की जांच के बाद प्रस्तुत पूरक आरोप-पत्र पर संज्ञान लेना अस्वीकार्य, अगर इसमें कोई ताजा साक्ष्य शामिल न हों : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (22 जनवरी) को कहा कि न्यायिक मजिस्ट्रेट के लिए कानून के तहत आगे की जांच के बाद प्रस्तुत पूरक आरोप-पत्र पर संज्ञान लेना अस्वीकार्य होगा, अगर इसमें कोई ताजा मौखिक या दस्तावेज़ी साक्ष्य शामिल नहीं है और ये कानून के तहत अनुमति योग्य नहीं है।
हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के सहमति वाले निष्कर्षों को पलटते हुए, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि संहिता की धारा 178 (8) के तहत आगे की जांच के आदेश के परिणामस्वरूप पूरक आरोप-पत्र प्रस्तुत करते समय आपराधिक प्रक्रिया में जांच अधिकारी अपने द्वारा निकाले गए निष्कर्षों को साबित करने के लिए पाए गए नए सबूतों का उल्लेख करेगा। अन्यथा, इस तरह के पूरक आरोप-पत्र में जांच की कठोरता का अभाव होता है और यह सीआरपीसी की धारा 173(8) की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहता है।
मामले का विवरण: मरियम फसीहुद्दीन और अन्य बनाम अडुगोडी पुलिस स्टेशन द्वारा राज्य और अन्य
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12. प्रतिकूल कब्जे के आधार पर स्वामित्व की घोषणा की मांग की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि प्रतिकूल कब्जे की दलील के आधार पर स्वामित्व की घोषणा के लिए मुकदमा वादी द्वारा दायर किया जा सकता। जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के निष्कर्षों को पलटते हुए रविंदर कौर ग्रेवाल बनाम मंजीत कौर के फैसले का जिक्र किया।
खंडपीठ ने कहा कि यह कानून की स्थापित स्थिति है कि वादी प्रतिकूल कब्जे से स्वामित्व की घोषणा की मांग कर सकता। खंडपीठ ने कहा, “यह न्यायालय रविंदर कौर ग्रेवाल बनाम मंजीत कौर में; 2019 (8) एससीसी 729 ने कानून तय किया और सिद्धांत दिया कि वादी प्रतिकूल कब्जे से स्वामित्व की घोषणा की मांग कर सकता।
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13. अगर महिला की सहमति शुरू से ही शादी के झूठे वादे पर प्राप्त की गई, तो बलात्कार का अपराध बनता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि शादी के झूठे वादे के आधार पर बलात्कार का अपराध बरकरार रखने के लिए यह स्थापित किया जाना चाहिए कि शुरुआत से ही महिला की सहमति झूठे वादे के आधार पर प्राप्त की गई। जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्तल ने अनुराग सोनी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2019) 13 एससीसी 1 में फैसले का हवाला देते हुए कहा, "अगर शुरू से ही यह स्थापित हो जाता है कि पीड़िता की सहमति शादी के झूठे वादे का परिणाम है तो कोई सहमति नहीं होगी और ऐसे मामले में बलात्कार का अपराध बनाया जाएगा।"
केस टाइटल: शेख आरिफ़ बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य
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14. SC/ST Act के तहत दोषसिद्धि के लिए महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का अपराध जाति के आधार पर किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 (SC/ST Act) की धारा 3(1)(xi) के तहत दंडनीय अपराध के लिए सजा बरकरार नहीं रखी जा सकती, अगर जाति के आधार पर किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का कृत्य नहीं किया गया हो। कोर्ट ने कहा, "SC/ST Act की धारा 3(1)(xi) की भाषा में प्रावधान है कि अपराध अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति पर इस इरादे से किया जाना चाहिए कि यह जाति के आधार पर किया जा रहा है।"
केस टाइटल: दशरथ साहू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य
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15. पंजाब प्री-एम्प्शन एक्ट| सुप्रीम कोर्ट ने 'भूमि' और ' अचल संपत्ति ' के बीच के अंतर की व्याख्या की
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि एक किरायेदार पंजाब प्री-एम्प्शन एक्ट, 1913 के तहत 'शहरी अचल संपत्ति' में पूर्व- खरीद अधिकार का दावा कर सकता है, और शहरी अचल संपत्ति के बाद के खरीदार द्वारा किरायेदार के दावे को इस आधार पर कि खारिज नहीं किया जा सकता है कि राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना किरायेदारों को नगरपालिका सीमा में स्थित भूमि के लिए पूर्व- खरीद के लिए वाद दायर करने के अधिकार से रोकती है।
वर्तमान मामले में, किरायेदारों द्वारा दावा की गई अचल संपत्ति शहरी क्षेत्र में स्थित थी जिस पर कुछ निर्माण किया गया है। बाद के खरीददारों द्वारा यह तर्क दिया गया कि किरायेदार पूर्व- खरीद वाद दायर नहीं कर सकते क्योंकि विवादित संपत्ति भूमि नगरपालिका सीमा के अंतर्गत आती है और सरकार की अधिसूचना द्वारा वर्जित थी।
मामले का विवरण: जगमोहन और अन्य बनाम बद्री नाथ और अन्य | सिविल अपील संख्या/ 2024 (2015 की एसएलपी ( सी ) संख्या -18612 से उत्पन्न)
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16. Chandigarh Mayor Election | 'स्पष्ट है कि पीठासीन अधिकारी ने मतपत्रों को विरूपित किया, यह लोकतंत्र की हत्या है': सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (5 फरवरी) को चंडीगढ़ मेयर चुनाव कराने वाले पीठासीन अधिकारी को यह कहते हुए कड़ी फटकार लगाई कि "यह स्पष्ट है कि उन्होंने मतपत्रों को विकृत किया।" सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने विवादास्पद चुनाव का वीडियो देखने के बाद टिप्पणी की, "क्या वह इस तरह से चुनाव आयोजित करते हैं? यह लोकतंत्र का मजाक है। यह लोकतंत्र की हत्या है। इस आदमी पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। आपने कांग्रेस-आप गठबंधन के 8 उम्मीदवारों के वोट अवैध घोषित होने के बाद उम्मीदवार को विजेता घोषित कर दिया गया।
केस टाइटल: कुलदीप कुमार बनाम यू.टी. चंडीगढ़ एसएलपी (सी) नंबर 002998 - / 2024
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17. एनआई एक्ट | निदेशक अपने इस्तीफे के बाद कंपनी की ओर से जारी चेक के अनादरण के लिए उत्तरदायी नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (14 फरवरी) को कहा कि कंपनी का निदेशक अपनी सेवानिवृत्ति के बाद कंपनी की ओर से जारी किए गए चेक के अनादरण के लिए उत्तरदायी नहीं होगा, जब तक कि उसके अपराध को साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ विश्वसनीय सबूत पेश नहीं किए जाते हैं।
शीर्ष न्यायालय ने हाईकोर्ट के निष्कर्षों को पलटते हुए, जिसने आरोपी निदेशक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया था, जस्टिस बीआर गंवई और जस्टिस संजय करोल ने पाया कि निदेशक को उसकी सेवानिवृत्ति के बाद चेक के अनादरण के लिए तभी उत्तरदायी ठहराया जा सकता है जब यह साबित हो जाए कि कंपनी का कार्य निदेशक की मिलीभगत या सहमति से किया गया है या निदेशक उसके लिए जिम्मेदार हो सकता है।
केस डिटेलः राजेश वीरेन शाह बनाम रेडिंगटन (इंडिया) लिमिटेड | Crl.A. No. 000888 / 2024
18. सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (15 फरवरी) को चुनावी बांड मामले में अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया। उक्त फैसले में कहा गया कि गुमनाम इलेक्टोरल बॉन्ड संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। तदनुसार, इस योजना को असंवैधानिक करार दिया गया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की एक संविधान पीठ ने नवंबर में फैसला सुरक्षित रखने से पहले, तीन दिनों की अवधि में विवादास्पद इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाले मामलों की सुनवाई की।
केस टाइटल- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य। | 2017 की रिट याचिका (सिविल) संख्या 880
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19. सुप्रीम कोर्ट ने जिला जज के रूप में पदोन्नति के लिए साक्षात्कार में 50% न्यूनतम अंक के पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के मानदंड को बरकरार रखा
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने जिला जज पद पर पदोन्नति के लिए मानदंड निर्धारित किया था कि न्यायिक अधिकारियों को साक्षात्कार में न्यूनतम 50% अंक प्राप्त करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मानदंड को बरकरार रखा है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने उक्त निर्णय के साथ जिला जज पदों पर नियुक्त में असफल रहे उम्मीदवारों और हरियाणा सरकार की ओर से दायर विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया। उन्होंने न्यायिक अधिकारियों को पदोन्नत करने के लिए हाईकोर्ट द्वारा राज्य सरकार को जारी निर्देश को चुनौती दी थी।
केस टाइटल: डॉ.कविता कंबोज बनाम पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट और अन्य| डायरी नंबर.508/2024
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20. अनुच्छेद 300ए के तहत गैर-भारतीय नागरिक को भी संपत्ति का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत प्रदत्त संपत्ति का अधिकार उन लोगों तक भी है, जो भारत के नागरिक नहीं हैं।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ ने कहा, “अनुच्छेद 300-ए में व्यक्ति की अभिव्यक्ति न केवल कानूनी या न्यायिक व्यक्ति को कवर करती है, बल्कि ऐसे व्यक्ति को भी शामिल करती है, जो भारत का नागरिक नहीं है। संपत्ति की अभिव्यक्ति का दायरा भी व्यापक है। इसमें न केवल मूर्त या अमूर्त संपत्ति बल्कि संपत्ति के सभी अधिकार, शीर्षक और हित भी शामिल हैं।”
केस टाइटल: लखनऊ नगर निगम और अन्य बनाम कोहली ब्रदर्स कलर लैब प्रा. लिमिटेड एवं अन्य, 2024 की सिविल अपील नंबर 2878
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21. शादी से पीछे हटने को आईपीसी की धारा 417 के तहत धोखाधड़ी का अपराध नहीं माना जाएगा: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बुक किए गए मैरिज हॉल में आरोपी द्वारा शादी न करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 417 के तहत दंडनीय धोखाधड़ी का अपराध नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम यह नहीं देखते कि वर्तमान अपीलकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 417 के तहत भी अपराध कैसे बनता है। विवाह प्रस्ताव शुरू करने और फिर प्रस्ताव वांछित अंत तक नहीं पहुंचने के कई कारण हो सकते हैं। अभियोजन पक्ष के पास ऐसा कोई सबूत नहीं है और इसलिए धारा 417 के तहत कोई अपराध भी नहीं बनता।”
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22. CBSE और राज्य बोर्डों द्वारा मान्यता प्राप्त ओपन स्कूल के स्टूडेंट NEET एग्जाम के पात्र: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) और राज्य शिक्षा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त सभी ओपन स्कूल अब राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NEET) के लिए राष्ट्रीय चिकित्सा परिषद (NMC) द्वारा मान्यता प्राप्त होंगे। परिणामस्वरूप, ओपन स्कूल से 10+2 उत्तीर्ण करने वाले उम्मीदवार ऐसी परीक्षा में बैठने के पात्र होंगे। उल्लेखनीय है कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया रेगुलेशन ऑन ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन, 1997 के विनियमन 4(2)(ए) के प्रावधान ने ऐसे उम्मीदवारों को परीक्षा में बैठने से रोक दिया था।
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23. नियोक्ता चयन प्रक्रिया के बीच में विज्ञापन में निर्धारित योग्यता नहीं बदल सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चयन प्रक्रिया के बीच में भर्ती विज्ञापन में निर्धारित पात्रता/योग्यता में कोई भी बदलाव अनुचित प्रक्रिया है और यह मूल विज्ञापन के अनुसार चयनित होने के योग्य उम्मीदवार को अवसर से वंचित करने के समान होगा।
जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने कहा, “यह स्थापित कानून है कि किसी नियोक्ता के लिए चल रही चयन प्रक्रिया के दौरान विज्ञापन में निर्धारित योग्यता को बीच में बदलना संभव नहीं है। ऐसी कोई भी कार्रवाई मनमाने ढंग से की जाएगी, क्योंकि यह उन उम्मीदवारों को अवसर से वंचित करने के समान होगा, जो विज्ञापन के संदर्भ में पात्र हैं, लेकिन घोषणा के बाद नियोक्ता द्वारा पात्रता मानदंड में बदलाव के आधार पर अयोग्य घोषित कर दिए जाएंगे।”
केस टाइटल: अनिल किशोर पंडित बनाम बिहार राज्य और अन्य
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24. NEET-UG | महाराष्ट्र में MBBS सीट के लिए मूल निवासी ही हकदार, भले ही पेरेंट सर्विंग यूनियन राज्य के बाहर तैनात हो: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक उम्मीदवार को बड़ी राहत दी, जिसे पिछले साल NEET-UG 2023 में महाराष्ट्र में राज्य कोटा में मेडिकल एडमिशन से गलत तरीके से वंचित कर दिया गया था। कोर्ट ने निर्देश दिया कि उसे MBBS (UG) अगले सत्र यानी NEET UG-2024 में उसी कॉलेज में पाठ्यक्रम के पहले वर्ष में समायोजित किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, अदालत ने कॉलेज और महाराष्ट्र सरकार को अवैध और मनमाने ढंग से प्रवेश रद्द करने पर उम्मीदवार को 1 लाख (प्रत्येक 50,000/- रु.) रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया।
केस टाइटल: वंश पुत्र प्रकाश डोलास बनाम शिक्षा मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एवं अन्य।
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25. सुप्रीम कोर्ट ने IT Rules के तहत 'Fact Check Unit' की केंद्र की अधिसूचना पर रोक लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (21 मार्च) को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम 2023 (आईटी संशोधन नियम 2023) के तहत Fact Check Unit (FCU) की केंद्र की अधिसूचना पर रोक लगा दी। यह रोक तब तक लागू रहेगी, जब तक बॉम्बे हाईकोर्ट आईटी नियम संशोधन 2023 की चुनौतियों पर अंतिम निर्णय नहीं ले लेता। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बुधवार को प्रेस सूचना ब्यूरो को FCU के रूप में अधिसूचित किया था।
केंद्र सरकार के व्यवसाय के संबंध में सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई कोई भी जानकारी, जिसे FCU द्वारा नकली या गलत के रूप में चिह्नित किया गया है, उनको सोशल मीडिया मध्यस्थों द्वारा हटा दिया जाना चाहिए, अन्यथा वे पोस्ट की गई ऐसी जानकारी से उत्पन्न होने वाली कानूनी कार्यवाही के विरुद्ध 'सुरक्षित आश्रय' प्रतिरक्षा खो देंगे।
केस टाइटल- एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य। | विशेष अनुमति याचिका (सिविल) नंबर 6717-6719 दिनांक 2024। कुणाल कामरा बनाम भारत संघ | विशेष अनुमति याचिका (सिविल) नंबर 6871-6873 2024