सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : जानिए सुप्रीम कोर्ट में कैसा रहा पिछला सप्ताह

Update: 2021-03-13 13:20 GMT

08 मार्च 2021 से 12 मार्च 2021 तक सुप्रीम कोर्ट के कुछ ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

स्‍थानांतरण याचिका की सुनवाई कर रही सिंगल बेंच सहमति से विवाह विच्छेद करने की ड‌िक्री पारित करने के लिए अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति का उपयोग नहीं कर सकतीः सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने केस कि सुनवाई के दौरान कहा कि स्‍थानांतरण याचिका पर सुनवाई करते हुए उसकी सिंगल बेंच आपसी सहमति से विवाह विच्छेद करने की ड‌िक्री पारित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति का उपयोग नहीं कर सकती। इस मामले में, एक स्‍थानांतरण याचिका की पार्टियों (पति और पत्नी) ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आपसी सहमति से तलाक के लिए एक संयुक्त आवेदन दायर किया ‌था। उन्होंने अदालत से संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने, और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी में विचार की गई कुछ प्रक्रियात्मक औपचारिकताओं और समयरेखा का अनुपालन करने के लिए कहा था।

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मैं इस न्यायालय को पूर्णता की भावना के साथ छोड़ रही हूं", जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में अपने अंतिम कार्य दिवस पर कहा

"मैं खुश हूं और न्यायालय को पूर्णता की भावना के साथ छोड़ रही हूं", जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में अपने अंतिम कार्य दिवस पर यह टिप्‍पणी की। परंपरा के अनुरूप, जस्टिस मल्होत्रा जज के रूप में अंतिम कार्य दिवस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ पीठ साझा की। सुनवाई के बाद, CJI बोबडे और बार के सदस्यों ने जस्टिस मल्होत्रा के रिटायरमेंट पर मेंअपने विचार व्यक्त किए। सेरेमोनियल बेंच द्वारा मामले की सुनवाई पूरी करने के बाद, CJI बोबडे ने कहा कि बेंच तब तक नहीं उठेगी, जब तक बार को अपने विचार व्यक्त करने का मौका नहीं मिल जाता है।

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"वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आपकी सुनवाई फिजिकल कोर्ट से अधिक धैर्य से होती हैं": जस्टिस एसके कौल

वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से आपकी सुनवाई फिजिकल कोर्ट से अधिक धैर्य से होती हैं," जस्टिस एस.के. कौल ने गुरुवार को एससीबीए के अध्यक्ष और सीनियर वकील विकास सिंह से कहा। जस्टिस कौल और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी की पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब सीनियर एडवोकेट विकास सिंह पीठ के समक्ष पेश हो रहे थे और ऐसा लगा जैसे वह थोड़ी देर के लिए अनम्यूट हो गए। बेंच ने कहा, "हम आपको सुन नहीं सकते, मि. सिंह।" एडवोकेट सिंह ने अनम्यूटिड होने पर कहा,

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"मुझे टाइगर बाम का इस्तेमाल करना पड़ा"; जस्टिस एमआर शाह ने हाईकोर्ट के समझ से परे जजमेंट पर टिप्पणी की

सुप्रीम कोर्ट ने (शुक्रवार) उन अनुचित तरीकों पर अपनी नाराजगी जाहिर की, जिस तरह से उच्च न्यायालयों के समझ से परे लिखित निर्णय (जजमेंट) आ रहे हैं। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर एक याचिका में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ दायर एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर सुनवाई कर रही थी, जो केंद्र सरकार के औद्योगिक न्यायाधिकरण के अवार्ड के मामले से संबंधित है। उच्च न्यायालय ने एक कर्मचारी के खिलाफ कदाचार के आरोप के संबंध में सीजीआईटी के आदेश की पुष्टि की थी।

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सिर्फ इसलिए कि एक सिविल उपचार मौजूद है, आपराधिक कार्यवाही को रद्द नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए सिविल उपचार का अस्तित्व अपने आप में एक आधार नहीं है। जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने टिप्पणी की, केवल इसलिए कि शिकायतकर्ता के कहने पर शुरू किए गए अनुबंध या मध्यस्थ कार्यवाही को भंग करने के लिए एक उपाय प्रदान किया गया है, जो कि न्यायालय द्वारा किसी निष्कर्ष पर आने के लिए खुद को नहीं रोकता है कि सिविल उपचार एकमात्र उपाय है, और आपराधिक कार्यवाही की शुरुआत किसी भी तरीके से, इस तरह की कार्यवाही को रोकने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत उच्च न्यायालय की निहित शक्तियों का प्रयोग करना अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

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सीबीआई के नियमित निदेशक की नियुक्ति की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज द्वारा दायर जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है जिसमें केंद्रीय जांच ब्यूरो के लिए एक नियमित निदेशक की नियुक्ति की मांग की गई है। जनहित याचिका में इसी साल दो फरवरी को ऋषि कुमार शुक्ला का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, अंतरिम / कार्यवाहक सीबीआई निदेशक के रूप में प्रवीण सिन्हा की नियुक्ति का विरोध भी किया गया है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवींद्र भट की एक पीठ ने मामले को दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया है।

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ऐसा सरकारी अधिकारी जो राज्य सरकार की सेवा में है, उसे चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि सरकार की सेवा करने वाले एक सरकारी अधिकारी को उस राज्य के चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता है। राज्य चुनाव आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए न्यायालय ने यह महत्वपूर्ण निर्देश पारित किया। न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत निर्देश जारी किया कि भारत के सभी राज्य और क्षेत्र इस बात को सुनिश्चित करेंगे कि इसके पास संविधान के अनुच्छेद 243 (4) के तहत उनके यहां अनिवार्य रूप से एक स्वतंत्र राज्य चुनाव आयुक्त होगा। (गोवा बनाम फौजिया इम्तियाज शेख राज्य)।

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'गलत अभियोजन के पीड़ितों को मुआवजा दिया जाए'': सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका, केंद्र को निर्देश देने की मांग

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर कर मांग की गई है कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह गलत(अनधिकृत) अभियोजन के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए दिशानिर्देश तय करे और अदालत की गलती (मिसकैरेज ऑफ जस्टिस) पर विधि आयोग की रिपोर्ट संख्या -277 की सिफारिशों को लागू करे। अधिवक्ता और भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की तरफ से दायर इस याचिका में राज्यों को भी निर्देश देने की मांग की गई है ताकि वह गलत अभियोजन के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए दिशा-निर्देश को लागू कर सके और अदालत की गलती पर विधि आयोग की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों की मूलभावना के अनुसार निर्दोष लोगों को मुआवजा दे सके। उन्होंने न्यायालय से आग्रह किया है कि वह गलत मुकदमों के पीड़ितों को मुआवजा देने के मामले में दिशानिर्देश तय करने के लिए अपनी पूर्ण संवैधानिक शक्ति का उपयोग करें और केंद्र व राज्यों को निर्देश दें कि जब तक कि मिसकैरेज ऑफ जस्टिस पर लॉ कमीशन रिपोर्ट -277 की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू नहीं किया जाता है,तब तक कोर्ट द्वारा तय किए गए दिशा-निर्देश को लागू किया जाए।

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'आपको ईश्वर से इतनी कानूनी कुशाग्रता उपहार में मिली है, तो आप अपना आपा क्यों खो देते हैं?' जस्टिस आर सुभाष रेड्डी ने वकील यतिन ओझा को कहा

कई अवसरों पर आपको सुनकर, मुझे आश्चर्य हुआ कि आपको ईश्वर से इतनी कानूनी कुशाग्रता उपहार में मिली है, तो आप अपना आपा क्यों खो देते हैं? आपके खिलाफ इतनी शिकायतें?' गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रह चुके जस्टिस आर सुभाष रेड्डी ने बुधवार को वकील और जीएचसीएए के अध्यक्ष यतिन ओझा को कहा। जस्टिस आर सुभाष रेड्डी गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी रह चुके हैं। जस्टिस रेड्डी ने ये टिप्पणी यतिन ओझा की गुजरात हाईकोर्ट के वरिष्ठता गाउन को वापस लेने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान की।

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राज्य द्वारा सहमति वापस लेने से ' रेलवे क्षेत्रों' में जांच पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा : सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाबी हलफनामा दायर किया है, जिसके तहत राज्य की सहमति के बिना पश्चिम बंगाल में रेलवे में कोयले के अवैध खनन और परिवहन से संबंधित एक मामले की जांच करने की अनुमति दी गई है। हलफनामे में सबसे पहले ये कहा गया है कि एसएलपी किसी भी योग्यता से रहित है और इसलिए ये खारिज होने के लिए उत्तरदायी है। इसके अलावा, मामले में याचिकाकर्ताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट के राम किशन फौजी बनाम हरियाणा राज्य मामले में फैसले पर निर्भरता रखी गई है जो कि सीबीआई के अनुसार, वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर वर्गीय रूप से लागू नहीं होगा।

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एनआई अधिनियम धारा 138 : सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों के त्वरित निपटारे के लिए कदमों पर विचार के लिए समिति का गठन किया

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बुधवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आरसी चव्हाण की अध्यक्षता में एक समिति के गठन का निर्देश दिया है, ताकि निगोशिबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस मामलों के त्वरित निपटारे के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर विचार किया जा सके। सीजेआई बोबडे की अगुवाई वाली एक संविधान पीठ ने इस मामले में दिए गए सभी सुझावों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने और देश की सभी न्यायपालिका के माध्यम से इन मामलों के शीघ्र निपटान की सुविधा के लिए उठाए जाने वाले कदमों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने के लिए एक रिपोर्ट पेश करने को उचित पाया। समिति इस मामले में किसी भी विशेषज्ञ से परामर्श कर सकती है, और अपनी पहली बैठक के 3 महीने में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर सकती है।

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'अदालत में अपनी साख फिर से बनानी होगी, हम आपके सिर पर अवमानना की तलवार लटकाए रखेंगे ' : सुप्रीम कोर्ट ने वकील यतिन ओझा से कहा

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कदम उठाया कि यदि यतिन ओझा पर वरिष्ठ वकील के रूप में प्रैक्टिस करने पर आजीवन प्रतिबंध को गुजरात उच्च न्यायालय की पूर्ण अदालत के उनका पद वापस लेने के फैसले के एक साल पूरा होने पर रोक दिया जाए, और 6-6 महीने की 2-3 अवधि के लिए प्रत्येक मामले की निगरानी के लिए उच्चतम न्यायालय के समक्ष यह मामला लंबित रहेगा। न्यायमूर्ति एस के कौल ने कहा, "हम रिट याचिका (गाउन की वापसी के खिलाफ) और अवमानना मामले को लंबित रख रहे हैं। जो भी अवधि हम तय करते हैं, उसके बाद आपको अंतरिम उपाय के रूप में कुछ समय के लिए आपका गाउन वापस दिया जा सकता है, जिसके दौरान हम आपके आचरण की निगरानी करेंगे। तब उच्च न्यायालय यह देख सकता है कि वह इस छूट के योग्य है या नहीं।"

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धारा 11' के तहत आवेदन दाखिल करने के लिए सीमा अवधि को सीमा अधिनियम की पहली अनुसूची के अनुच्छेद 137 द्वारा नियंत्रित किया जाएगा : सुप्रीम कोर्ट

मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 11 के तहत एक आवेदन पत्र दाखिल करने के लिए सीमा अवधि को सीमा अधिनियम की पहली अनुसूची के अनुच्छेद 137 द्वारा नियंत्रित किया जाएगा, और मध्यस्थ नियुक्त करने में विफलता होने की तारीख से ये शुरू हो जाएगा। जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस अजय रस्तोगी पीठ ने कहा, दुर्लभ और असाधारण मामलों में, जहां दावे निर्धारित समय से पूर्व रोक दिए जाते हैं, और यह प्रकट होता है कि कोई विवाद नहीं है, अदालत संदर्भ बनाने से इनकार कर सकती है। अदालत ने इस प्रावधान के तहत आवेदन दाखिल करने के लिए सीमा अवधि प्रदान करने के लिए अधिनियम की धारा 11 में संशोधन करने का भी सुझाव दिया, जो मध्यस्थता कार्यवाही के शीघ्र निपटान के उद्देश्य के अनुरूप है।

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वो अधिकारी जिसने मूल्यांकन किया है, केवल वही सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 28 (4) के तहत पुनर्मूल्यांकन कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो अधिकारी जिसने मूल्यांकन किया है, केवल वही सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 28 (4) के तहत पुनर्मूल्यांकन कर सकता है। इस मामले में न्यायालय द्वारा विचाराधीन मुद्दा यह था कि क्या राजस्व खुफिया निदेशालय के पास आयात के लिए ड्यूटी लगाने के लिए कानून की धारा 28 (4) के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करने का अधिकार है, जब कस्टम के उपायुक्त ने तय किया हो कि सामान को इससे छूट दी गई है। इस मामले में, कैनन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को धारा 28 (4) के तहत एक कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था जिसमें आरोप लगाया गया था कि सीमा शुल्क अधिकारियों को कैमरों के बारे में जानबूझकर गलत बयान और तथ्यों को छिपाते हुए कैमरों को निकालने के लिए प्रेरित किया गया था।

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"जब आप जज बन जाते हैं तो अपनी कमाई नहीं देखते, 365 महिला अफसरों को परमानेंट कमीशन देना बहुत संतुष्टि देने वाला काम" : जस्टिस चंद्रचूड़

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने मंगलवार को टिप्पणी की, "मैंने अपनी पसंद के बारे में कभी दोबारा नहीं सोचा है (बार से बेंच पर जाने का)। आप देख रहे हैं कि जिस तरह का हम काम करते हैं, यह ज्यादातर रूटीन का काम है, खासकर सोमवार और शुक्रवार को। लेकिन एक जज के जीवन में, ये हमें नौकरी से मिलने वाली जबरदस्त संतुष्टि के बारे में हैं।" सशस्त्र बलों में महिलाओं को स्थायी कमीशन (Permanent Commission) के अनुदान के विषय में ये टिप्पणी आई।

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"हाईकोर्ट के सिर्फ 'पुनर्विचार आदेश' के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका सुनवाई योग्य नहीं": सुप्रीम कोर्ट ने कहा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के सिर्फ 'पुनर्विचार आदेश (Review Order)' के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) सुनवाई योग्य नहीं है। इस मामले में मूल आदेश के खिलाफ दायर विशेष अनुमित याचिका 2010 को पुनर्विचार आवेदन (आवेदनों) दायर करने या पुनर्विचार आवेदन (आवेदनों) में एक प्रतिकूल फैसले के मामले में फिर से शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने की स्वतंत्रता दिए बिना ही खारिज कर दी गई। इसके बाद याचिकाकर्ताओं द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर की गई, इसे भी खारिज कर दिया गया। उच्च न्यायालय द्वारा पुनर्विचार याचिका को खारिज करने के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई।

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एक आपराधिक मामले में जांच और ट्रायल सामान्य तौर पर वहां होने चाहिए जहां कार्रवाई का कारण घटित हुआ है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि एक आपराधिक मामले में जांच और ट्रायल सामान्य तौर पर वहां होने चाहिए जहां कार्रवाई का कारण घटित हुआ है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पीठ ने आरोपी की आपराधिक मामले को नई दिल्ली स्थित मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के न्यायालय से उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद (प्रयागराज) के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के न्यायालय में ट्रांसफर करने की याचिका को खारिज करते हुए इस प्रकार कहा।

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"वो पहले माउंट एवरेस्ट पर चढ़ी होंगी .. लेकिन अब आप कहते हैं कि वो शेप-1 में नहीं हैं ? " : सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना में स्थायी कमीशन के लिए केंद्र से कहा

मंगलवार को न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, "जब यह आपको सूट करता है, तो आप आज की फिटनेस की मांग करते हैं, आज की तरह ही शेप 1। लेकिन आप 5 वें वर्ष या 10 वें वर्ष में प्रदान की गई सराहनीय सेवा के वर्षों को नजरअंदाज कर देते हैं। इससे पता चलता है कि यह कितना विकृत है। यह महिलाओं को बाहर करने का विचार है या उन्हें समान अवसर देने के लिए है?" ये टिप्पणियां केंद्र की उस महिला अधिकारी की याचिका के जवाब में आईं, जिसे स्थायी आयोग से वंचित कर दिया गया था, जबकि योग्यता के आधार पर उनकी उपयुक्तता की पुष्टि करते समय, भर्ती के 5 वें या 10 वें वर्ष के बाद उनके बीच के सेवा रिकॉर्ड की अवहेलना की गई है, मेडिकल प्रासंगिक कारकों में ग्रेड 1 - मनोवैज्ञानिक (संज्ञानात्मक कार्य और सामान्यता), श्रवण, अनुबंध, शारीरिक और आंखों की रोशनी (संक्षिप्त नाम '

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