अनुच्छेद 226/227 के तहत हाईकोर्ट का हस्तक्षेप केवल तभी स्वीकार्य, जब आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल का आदेश स्पष्ट रूप से विकृत हो: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने आर्बिट्रल कार्यवाही में अपने रिट क्षेत्राधिकार के तहत हाईकोर्ट के हस्तक्षेप की आलोचना की, जहां उसने आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल को एक पक्ष को दूसरे पक्ष से क्रॉस एक्जामिनेशन करने के लिए अतिरिक्त समय देने का निर्देश दिया था, जबकि ट्रिब्यूनल ने जिरह के लिए पहले ही पर्याप्त समय प्रदान कर दिया था।
हाईकोर्ट का निर्णय खारिज करते हुए जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि हाईकोर्ट अपने रिट क्षेत्राधिकार के तहत विवादित आदेश में केवल असाधारण परिस्थितियों में हस्तक्षेप कर सकता है, जब विवादित आदेश विकृत हो।
न्यायालय ने कहा,
"उपर्युक्त से यह स्पष्ट है कि यहां तक कि उपर्युक्त उद्धरण के अनुसार अनुच्छेद 226/227 के तहत हस्तक्षेप 'केवल तभी स्वीकार्य है, जब आदेश पूरी तरह से विकृत हो, यानी कि विकृतियां सामने हों।"
जस्टिस नरसिम्हा द्वारा लिखित निर्णय में यह पाया गया कि हाईकोर्ट ट्रिब्यूनल के आदेश में किसी भी प्रकार की विकृति को इंगित करने में विफल रहा है तथा मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 (1996 अधिनियम) की धारा 18 के अंतर्गत शासित कार्यवाही में पक्षकारों को अपना मामला प्रस्तुत करने का पूरा अवसर दिए जाने के बावजूद आर्बिट्रेशन प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने की प्रथा की निंदा की गई।
अदालत ने आगे कहा,
“हमने अन्य भागों पर गौर किया, जिससे यह देखा जा सके कि क्या हाईकोर्ट ने वास्तव में ट्रिब्यूनल के निर्णय में कोई विकृति पाई। हमें कोई विकृति नहीं मिली। हाईकोर्ट ने यह इंगित करने की जहमत नहीं उठाई कि किन परिस्थितियों में ट्रिब्यूनल द्वारा पारित आदेश विकृत है। हाईकोर्ट ने केवल इतना कहा कि क्रॉस एक्जामिनेशन सत्य की खोज के सबसे मूल्यवान और प्रभावी साधनों में से एक है। यह मानक कथन है और कोई भी उक्त सिद्धांत पर विवाद नहीं करता। केवल यह जांच आवश्यक थी कि क्या गवाह की प्रभावी क्रॉस एक्जामिनेशन के लिए अवसर से वंचित किया गया। मामले के इस पहलू के बारे में कोई विवेकाधिकार नहीं है, सिवाय इसके कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में और असाधारण परिस्थिति के रूप में भी प्रतिवादी/दावेदार का अनुरोध अत्यधिक है।
“इस मामले पर विस्तार से विचार करने के बाद हमें हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश में कोई औचित्य नहीं मिला, जिसमें आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के निर्देशों में हस्तक्षेप किया गया, जिसमें कहा गया कि आरडब्ल्यू-1 की क्रॉस एक्जामिनेशन करने का पूरा और पर्याप्त अवसर पहले ही दिया जा चुका है और समय का कोई और विस्तार उचित नहीं है। बताए गए कारणों से हम अपील को अनुमति देते हैं। सीएम (एम) 3711/2004 और सीएम आवेदन 63047/2024 दिनांक 25.10.2024 में हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों को रद्द करते हैं।”
केस टाइटल: सेरोसॉफ्ट सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड बनाम डेक्सटर कैपिटल एडवाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड।