"मुझे टाइगर बाम का इस्तेमाल करना पड़ा"; जस्टिस एमआर शाह ने हाईकोर्ट के समझ से परे जजमेंट पर टिप्पणी की
LiveLaw News Network
12 March 2021 4:22 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने (शुक्रवार) उन अनुचित तरीकों पर अपनी नाराजगी जाहिर की, जिस तरह से उच्च न्यायालयों के समझ से परे लिखित निर्णय (जजमेंट) आ रहे हैं।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर एक याचिका में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ दायर एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर सुनवाई कर रही थी, जो केंद्र सरकार के औद्योगिक न्यायाधिकरण के अवार्ड के मामले से संबंधित है। उच्च न्यायालय ने एक कर्मचारी के खिलाफ कदाचार के आरोप के संबंध में सीजीआईटी के आदेश की पुष्टि की थी।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने हिंदी में कहा कि,
"निर्णय (जजमेंट) में क्या लिखा गया है?"
न्यायमूर्ति शाह ने हिंदी में जवाब देते हुए कहा कि,
"मुझे कुछ भी समझ नहीं आया। लंबे, लंबे वाक्य हैं। कहीं भी अल्पविराम दिखाई दे रहा है। पढ़ने के बाद, मुझे कुछ भी समझ नहीं आया। मुझे अपनी समझ पर संदेह होने लगा है।"
न्यायमूर्ति शाह ने चुटकी लेत हुए कहा कि,
"मुझे टाइगर बाम का इस्तेमाल करना पड़ा।"
पीठ ने कहा कि,
"निर्णय (जजमेंट) ऐसा होना चाहिए जिसे हर कोई समझ सके और न्यायाधीश ने कहा है कि कदाचार का आरोप साबित हो गया है!"
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि,
"मैं सुबह 10:10 बजे इसे पढ़ने के लिए बैठ गया और मैंने इसे 10:55 तक पढ़ लिया। मैं पूरी तरह से आश्चर्यचकित हो गया,आप सोच भी नहीं सकते। अंत में, मुझे स्वयं सीजीआईटी के अवार्ड को तलाशना पड़ा। ओह, माय गॉड! मैं आपको बता रहा हूं, यह अविश्वसनीय है!"
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि,
"यह न्याय का अव्यवस्था है। हर मामले में आप इस तरह के ही निणर्य पाते हैं।"
न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि,
"यह कहा जाता है कि निर्णय जितना हो सके उतना सरल होना चाहिए ताकि इसे हर कोई आसानी से समझ सके। यह थीसिस की तरह नहीं होना चाहिए।"
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि,
"इस संबंध में हम जस्टिस कृष्णा अय्यर की बात करते हैं। उनके निर्णयों में गहन विचार होता है, शब्दों के पीछे सीखने की गहरी समझ होती है।"
पीठ ने कहा कि,
"27 नवंबर, 2020 की डिवीजन बेंच के आदेश को पढ़ते हुए, हम ध्यान दें कि 18 पृष्ठों के लंबे फैसले में उच्च न्यायालय द्वारा दर्ज बताए गए कारण समझ से बाहर हैं। नियोजित तर्क और भाषा जिस तरह की है वह अक्षम्य है"।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि,
"यह हमारे समझ से परे है। यह बार-बार हो रहा है।"
जस्टिस शाह ने कहा कि,
"भाई, जजमेंट कैसे लिखा जाना चहिए क्या हमें इसके बारे में कुछ कहना चाहिए? सरल भाषा का इस्तेमाल करके सिर्फ यह बताया जाना चाहिए कि आप क्या कहना चाह रहे हो?"
जस्टिस चंद्रचूड़ ने आदेश में कहा कि,
"निर्णय के तर्क और विचार को रेखांकित करने की आवश्यकता होती है, जो कि निष्कर्ष से गुजरता है, जो कि निर्णय लेने वाले फोरम से आता है। निर्णय न केवल बार के सदस्यों को ही समझ में आना चाहिए जो इस मामले में उपस्थित हुए हैं या जिनके लिए वे मूल्य रखते हैं, बल्कि उन सामान्य वादियों के भी समझ में आना चाहिए, जिन्हें अपने अधिकारों के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ता है, नहीं तो सभी के लिए सुलभ और समझने योग्य न्याय सुनिश्चित करना असंभव होगा।"