सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (10 जनवरी, 2022 से 14 जनवरी, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
अगर सह-आरोपियों बरी हो गए हैं, 'गैरकानूनी रूप से जमा भीड़ के सदस्यों की संख्या 5 से कम हुई, मामले में अज्ञात आरोपी नहीं है तो आईपीसी की धारा 149 की मदद से दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर सह-आरोपियों को बरी कर दिया गया है, कथित गैरकानूनी रूप से जमा भीड़ की सदस्यता 5 से कम है और मामले में कोई अज्ञात आरोपी नहीं है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 149 (गैरकानूनी रूप से जमा भीड़ की सदस्यता का अपराध) की सहायता से दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं है।
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति एएस ओक की पीठ 25 जून, 2018 के मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एक आपराधिक अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 325 आर/डब्ल्यू धारा 149 के तहत अपीलकर्ताओं की दोषसिद्धि के साथ- साथ एक साल की आरआई और 500 रुपये का जुर्माना और डिफॉल्ट होने पर एक महीने के कारावास की सजा को बरकरार रखा था।
केस : महेंद्र बनाम मध्य प्रदेश राज्य
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मामले की सामग्री के पहलुओं पर विचार किए बिना दिया गया गुप्त और सामान्य जमानत आदेश रद्द करने योग्य : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि मामले की सामग्री के पहलुओं पर विचार किए बिना एक गुप्त और सामान्य आदेश द्वारा जमानत नहीं दी जा सकती है। शीर्ष अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि भले ही जमानत देने के बाद कोई नई परिस्थिति विकसित नहीं हुई हो, राज्य जमानत रद्द करने की मांग करने का हकदार है, अगर उन सामग्री पहलुओं की अनदेखी की गई है जो आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्ट्या मामला स्थापित करते हैं।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली अपील की अनुमति दी जिसमें बिना कारण बताए आरोपी को जमानत दे दी थी।
केस : मनोज कुमार खोखर बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।
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कर्मचारी मुआवजा अधिनियम - बीमाकर्ता यह कहकर कवरेज से इनकार नहीं कर सकता कि मरने वाला वाहन का 'सहायक' था न कि 'क्लीनर': सुप्रीम कोर्ट
"हेल्पर या क्लीनर के कर्तव्यों के किसी स्पष्ट सीमांकन के अभाव में और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि हेल्पर और क्लीनर का परस्पर उपयोग किया जाता है, इसलिए, इस कारण से दावा अस्वीकार करना कि मृतक एक हेल्पर के रूप में लगा था न कि क्लीनर, पूरी तरह से अनुचित है।"
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कर्मचारी मुआवजा अधिनियम 1923 के तहत बीमा कवरेज से इस आधार पर इनकार करना कि मृतक वाहन पर "सहायक" के रूप में नियुक्त किया गया था, न कि "क्लीनर" के रूप में, पूरी तरह अनुचित है।
केस: मेसर्स मांगिलाल विश्नोई बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, सीए 291/2022
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किसी पुराने दावे को एक रिप्रेजेंटेशन से फिर से जीवित नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट ने कर्मचारी को बहाल करने के हाईकोर्ट का फैसला रद्द किया
सुप्रीम कोर्ट ने यह मानते हुए कि किसी पुराने दावे को एक अभ्यावेदन (रिप्रेजेंटेशन) द्वारा पुनर्जीवित नहीं किया जा सकता है, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें एक कर्मचारी को पिछले वेतन पर बहाल करने का निर्देश दिया गया था।
अदालत ने कहा कि पहले की एक कार्यवाही में हाईकोर्ट ने कदाचार के लिए कर्मचारी की सेवाओं की बर्खास्तगी को बरकरार रखा था। पंद्रह साल बाद कर्मचारी ने बहाली के लिए एक अभ्यावेदन दायर किया और हाईकोर्ट ने उस पर विचार करने का निर्देश दिया, जिससे मुकदमेबाजी का दूसरा दौर शुरू हुआ, जिसके परिणामस्वरूप 1 सितंबर, 2020 को फैसला सुनाया गया।
केस: नगर पंचायत, किमोर बनाम हनुमान प्रसाद द्विवेदी| 2022 की सिविल अपील संख्या 289-290
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अदालत द्वारा नाबालिग बच्चे की कस्टडी देते समय माता- पिता को विदेश जाने का आदेश निजता के अधिकार का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक अदालत बच्चे की कस्टडी के मुद्दे पर फैसला करते समय माता-पिता को भारत छोड़ने और बच्चे के साथ विदेश जाने का निर्देश नहीं दे सकती है।
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओक की पीठ ने अवलोकन किया, "बंदी प्रत्यक्षीकरण के मुद्दे से निपटने के दौरान एक रिट कोर्ट माता-पिता को भारत छोड़ने और बच्चे के साथ विदेश जाने का निर्देश नहीं दे सकती है। यदि माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध इस तरह के आदेश पारित किए जाते हैं, तो यह उनके निजता के अधिकार का उल्लंघन करेगा।"
केस : वसुधा सेठी बनाम किरण वी भास्कर
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सुरक्षा की दृष्टि से गहनों की कस्टडी लेना आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सुरक्षा की दृष्टि से आभूषणों को अपने पास रखना भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत क्रूरता नहीं हो सकता। इस मामले में, शिकायतकर्ता द्वारा उसके पति और ससुराल वालों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 323, 34, 406, 420, 498A और 506 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
शिकायतकर्ता ने अपने पति के भाई (जो अमेरिका के टेक्सास में कार्यरत थे) को एक आरोपी के रूप में रखा गया था। सुप्रीम कोर्ट पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश के खिलाफ एक अपील पर विचार कर रहा था, जिसने अमेरिका वापस जाने की अनुमति के लिए उनके (शिकायतकर्ता के देवर) द्वारा दायर अर्जी खारिज कर दी थी।
केस का नाम: दीपक शर्मा बनाम हरियाणा सरकार
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आर्टिकल 226 - हाईकोर्ट को रिट याचिका का निपटारा करते समय चुनौती देने के आधार पर अपना दिमाग लगाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उड़ीसा हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करने वाली एक विशेष अनुमति याचिका पर विचार करते हुए हाल ही में कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिका पर विचार करते हुए हाईकोर्ट को याचिका में दी गई चुनौती के आधार को गंभीरता से देखना चाहिए और उस पर अपना दिमाग लगाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने चुनौती के आधार पर अपना दिमाग लगाए बिना रिट याचिका का निपटारा करने के लिए हाईकोर्ट की कार्यवाही की आलोचना की।
केस शीर्षक: उड़ीसा राज्य और अन्य बनाम प्रशांत कुमार स्वैन|
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अनुच्छेद 227 - पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार हर त्रुटि को ठीक करने के लिए नहीं है जब अंतिम निष्कर्ष उचित है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (11 जनवरी 2022) को दिए गए एक फैसले में कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार कानूनी दोष को ठीक करने के लिए नहीं है, जब अंतिम निष्कर्ष उचित है या इसका समर्थन किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की खंडपीठ ने कहा कि अनुच्छेद 227 के तहत शक्ति का प्रयोग उचित मामलों में किफायत से किया जाता है, जैसे न्यायोचित ठहराने के लिए यदि कोई सबूत नहीं है, या निष्कर्ष इतना विकृत है कि कोई भी तार्किक व्यक्ति संभवतः निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सकता, जिस निष्कर्ष पर न्यायालय या न्यायाधिकरण पहुंचा हो।
केस का नाम: गारमेंट क्राफ्ट बनाम प्रकाश चंद गोयल
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जब अदालत नाबालिग बच्चे की कस्टडी के मुद्दे पर फैसला करती है तो माता-पिता के अधिकार अप्रासंगिक हैं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब कोई अदालत नाबालिग बच्चे की कस्टडी के मुद्दे पर फैसला करती है तो माता-पिता के अधिकार अप्रासंगिक होते हैं।
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओक की पीठ ने कहा कि नाबालिग की कस्टडी का मुद्दा, चाहे बंदी प्रत्यक्षीकरण की मांग वाली याचिका में हो या कस्टडी की याचिका में, इस सिद्धांत की कसौटी पर तय किया जाना चाहिए कि नाबालिग का कल्याण सर्वोपरि है।
केस : वसुधा सेठी बनाम किरण वी भास्कर
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एक बार उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के आधार पर अधिग्रहण कार्यवाही समाप्त हुई तो भूमि मालिक 1894 एक्ट की धारा 48 के तहत भूमि मांगने के हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक बार जब हाईकोर्ट ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुन: स्थापन अधिनियम, 2013 ("अधिनियम") में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार की धारा 24 (2) के आधार पर अधिग्रहण कार्यवाही को समाप्त करने का आदेश पारित किया है तो भूमि मालिक इस दलील पर वापस नहीं जा सकते कि वे भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 48 के तहत भूमि को मुक्त करने की मांग करने के हकदार हैं।
केस : अपने सचिव और अन्य के माध्यम से दिल्ली राज्य एनसीटी बनाम ओम प्रकाश और अन्य। 2022 की सिविल अपील संख्या 199
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निजी बैंकों/ एआरसी द्वारा शुरू की गई सरफेसी अधिनियम के तहत कार्यवाही को चुनौती देने वाली रिट याचिका सुनवाई योग्य नहींः सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजी बैंकों/परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों द्वारा शुरू की गई सरफेसी अधिनियम के तहत कार्यवाही को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, "यदि सरफेसी अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू की जाती है और/या कोई प्रस्तावित कार्रवाई की जानी है और उधारकर्ता निजी बैंक/बैंक/एआरसी की किसी भी कार्रवाई से व्यथित है, तो उधारकर्ता को सरफेसी अधिनियम के तहत उपाय का लाभ उठाना होगा और रिट याचिका दाखिल करने योग्य और / या बनाए रखने योग्य और / या सुनवाई योग्य नहीं है।"
केस : फीनिक्स एआरसी प्राइवेट लिमिटेड बनाम विश्व भारती विद्या मंदिर
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हाईकोर्ट मध्यस्थता अधिनियम की धारा 37 तहत अपील में दावे के गुण-दोष की जांच नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 37 के तहत एक अपील में दावे के गुणदोष की जांच नहीं कर सकता है।
इस मामले में, मध्यस्थ ने एक पक्ष को 9.5 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया था। दूसरे पक्ष ने मध्यस्थ द्वारा पारित निर्णय के खिलाफ मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, चंडीगढ़ के समक्ष आपत्ति याचिका दायर की। उक्त याचिका खारिज कर दी गई।
केस शीर्षक: हरियाणा टूरिज्म लिमिटेड बनाम मेसर्स कंधारी बेवरेजेज लिमिटेड
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प्रत्यावर्तित किए गए कैदी की विदेशी कोर्ट द्वारा दी गई सजा को सिर्फ इसलिए कम नहीं किया जा सकता क्योंकि ये भारत में समान अपराध की सजा से ज्यादा है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कैदियों के प्रत्यावर्तन अधिनियम, 2003 के अनुसार कैदियों के प्रत्यावर्तन के सिद्धांतों को निर्धारित करते हुए एक उल्लेखनीय फैसला दिया है। न्यायालय ने इस मुद्दे पर चर्चा की कि क्या एक विदेशी अदालत द्वारा एक भारतीय अपराधी, जिसे भारत प्रत्यावर्तित किया गया है, पर लगाया गया दंड भारत में इसी तरह के अपराध के लिए सजा से अधिक हो सकता है।
कोर्ट ने माना कि सजा की अवधि विदेश और भारत के बीच स्थानांतरण के समझौते से नियंत्रित होगी। भारत सरकार विदेशी अदालत की सजा को तभी संशोधित कर सकती है जब ऐसी सजा "भारतीय कानून के साथ असंगत" हो। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि केवल इसलिए कि विदेशी अदालत की सजा भारतीय कानून के तहत उससे अधिक है, यह "भारतीय कानून के साथ असंगत" नहीं हो जाती है। यहां "असंगति" का अर्थ भारत के मौलिक कानूनों के विपरीत होगा।
केस : भारत संघ और अन्य बनाम शेख इस्तियाक अहमद और अन्य।
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आईपीसी की धारा 304बी- घर बनाने के लिए रुपए की मांग दहेज की मांग : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घर के निर्माण के लिए रुपए की मांग 'दहेज की मांग' है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के प्रावधानों के तहत अपराध है।
सीजेआई एनवी रमना, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ कहा कि "दहेज" शब्द को एक व्यापक अर्थ के रूप में वर्णित किया जाना चाहिए ताकि इसमें एक महिला से की गई किसी भी मांग को शामिल किया जा सके, चाहे संपत्ति के संबंध में हो या किसी भी प्रकृति की मूल्यवान प्रतिभूति के रूप में।
केस का नाम: मध्य प्रदेश सरकार बनाम जोगेंद्र
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बिल्डर द्वारा ओक्यूपेंसी सर्टिफिकेट प्राप्त करने में विफलता उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत 'सेवा में कमी' : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बिल्डर द्वारा ओक्यूपेंसी सर्टिफिकेट प्राप्त करने में विफलता उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत सेवा में कमी है।
न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि फ्लैट खरीदार 'उपभोक्ता' के रूप में परिणामी दायित्व पर मुआवजे के लिए प्रार्थना करने के लिए अपने अधिकारों के भीतर हैं जैसे कि ओक्यूपेंसी सर्टिफिकेट की कमी से उत्पन्न होने वाले उच्च करों और पानी के शुल्क का मालिकों द्वारा भुगतान करना करना।
केस : समृद्धि को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड बनाम मुंबई महालक्ष्मी कंस्ट्रक्शन प्रा लिमिटेड
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जमानत रद्द करने के खिलाफ एसएलपी के साथ आत्मसमर्पण से छूट की मांग करने वाले आवेदन को दाखिल करने की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम ने कहा कि "रजिस्ट्री के अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के नियमों को बखूबी जानना चाहिए।" इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि जमानत आदेश को रद्द किये जाने के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका के साथ आत्मसमर्पण से छूट की मांग करने वाली अर्जी दायर करने की आवश्यकता नहीं है।
न्यायमूर्ति पामिडिघंटम श्री नरसिम्हा ने ऐसे ही एक मामले पर विचार करते हुए कहा कि छूट के लिए बड़ी संख्या में ऐसे आवेदन नियमित रूप से दायर किए जाते हैं जबकि इस तरह की प्रक्रिया को अपनाने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है।
केस का नाम: महावीर आर्य बनाम एनसीटी दिल्ली सरकार
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जब वैवाहिक विवादों का वास्तविक समाधान हो तो IPC की धारा 498A की सजा को बरकरार नहीं रखा जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक विवादों के वास्तविक समाधान को प्रोत्साहित करने के लिए न्यायालय के कर्तव्य पर जोर देते हुए, भारतीय दंड संहिता, 1860 ('आईपीसी') की धारा 498 ए के तहत एक व्यक्ति की सजा को रद्द कर दिया।
इस मामले में पति को आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दोषी करार देते हुए तीन साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी। सत्र न्यायाधीश ने उसकी अपील को खारिज कर दिया था। पुनरीक्षण याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए झारखंड हाईाकोर्ट ने दोनों पक्षों के बीच समझौते को ध्यान में रखते हुए, धारा 498-ए आईपीसी के तहत दोषसिद्धि की पुष्टि की, जबकि सजा को पहले से ही भुगती गई कारावास की अवधि तक कम कर दिया।
केस शीर्षक: राजेंद्र भगत बनाम झारखंड राज्य
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महाराष्ट्र विद्युत शुल्क अधिनियम 2016 के तहत धर्मार्थ शिक्षा संस्थानों को बिजली शुल्क के भुगतान से छूट नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि महाराष्ट्र विद्युत शुल्क अधिनियम, 2016 के प्रावधानों के अनुसार धर्मार्थ शिक्षण संस्थान 08.08.2016 के बाद बिजली शुल्क के भुगतान से छूट के हकदार नहीं हैं।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के खिलाफ दायर महाराष्ट्र सरकार की अपील को अनुमति दी, जिसने एक सार्वजनिक ट्रस्ट द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों को महाराष्ट्र विद्युत शुल्क अधिनियम, 2016 के तहत बिजली शुल्क का भुगतान करने से छूट का अधिकार प्रदान किया था।
केस शीर्षक: महाराष्ट्र राज्य बनाम श्री विले पार्ले केलवानी मंडल और अन्य।
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कौन हैं 'अतिसंवेदनशील गवाह' ? सुप्रीम कोर्ट ने जारी की विस्तृत परिभाषा
यह कहते हुए कि "विशेष सुविधाओं की स्थापना की आवश्यकता और महत्व जो अंतिसंवेदनशील गवाहों के साक्ष्य दर्ज करने के लिए एक सुरक्षित और बाधा मुक्त वातावरण के निर्माण को पूरा करती है, पिछले दो दशकों में इस अदालत का ध्यान आकर्षित कर रही है, " सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस संबंध में व्यापक निर्देश जारी किए।
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जमानत रद्द किये जाने के खिलाफ एसएलपी के साथ आत्मसमर्पण से छूट संबंधी अर्जी दाखिल करने की आवश्यकता नहीं : सुप्रीम कोर्ट
"रजिस्ट्री के अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के नियमों को बखूबी जानना चाहिए।" सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत आदेश को रद्द किये जाने के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका के साथ आत्मसमर्पण से छूट की मांग करने वाली अर्जी दायर करने की आवश्यकता नहीं है।
न्यायमूर्ति पामिडिघंटम श्री नरसिम्हा ने ऐसे ही एक मामले पर विचार करते हुए कहा कि छूट के लिए बड़ी संख्या में ऐसे आवेदन नियमित रूप से दायर किए जाते हैं जबकि इस तरह की प्रक्रिया को अपनाने की बिल्कुल भी आवश्यकता नहीं है।
केस का नाम: महावीर आर्य बनाम एनसीटी दिल्ली सरकार
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ऑटोनोमस बॉडी के कर्मचारी सरकारी कर्मचारियों के समान सेवा लाभ का अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वायत्त निकाय (Autonomous Bodies) के कर्मचारी सरकारी कर्मचारियों के समान सेवा लाभ (Service Benefits) के अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने सोमवार को दिए गए एक फैसले में कहा कि राज्य सरकार और स्वायत्त बोर्ड / निकाय को समान मूल्य पर नहीं रखा जा सकता और ऑटोनोमस बोर्ड/बॉडी के कर्मचारी अपने स्वयं के सेवा नियमों और सेवा शर्तों द्वारा शासित होते हैं।
केस का नाम: महाराष्ट्र राज्य बनाम भगवान
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हिरासत में लिए गए व्यक्ति के प्रतिनिधित्व पर लंबे समय बाद विचार किया जाता है तो हिरासत आदेश रद्द किया जा सकता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक हिरासत आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि अधिकारी ने लंबी देरी के बाद बंदी के प्रतिनिधित्व पर विचार किया। कोर्ट ने कहा कि नजरबंदी आदेश के खिलाफ किए गए अभ्यावेदन पर विचार करने के मामले में, सक्षम प्राधिकारी "अत्यंत शीघ्रता" के साथ ऐसा करने के लिए बाध्य है।
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ 18 नवंबर, 2021 को मद्रास उच्च न्यायालय, मदुरै की बेंच द्वारा पारित एक विशेष अनुमति याचिका पर विचार कर रही थी। ("आक्षेपित आदेश")
केस शीर्षक: एस. अमुथा बनाम तमिलनाडु सरकार और अन्य
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आईपीसी की धारा 149 - गैरकानूनी सभा की अनिवार्य शर्त है कि इसमें सदस्यों की संख्या पांच या इससे अधिक हो : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि गैरकानूनी रूप से जमा होने की एक अनिवार्य शर्त है कि इसमें सदस्यों की संख्या पांच या इससे अधिक होनी चाहिए।
न्यायमूर्ति अजय की खंडपीठ रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने कहा कि पांच से कम व्यक्तियों को धारा 149 के तहत तभी आरोपित किया जा सकता है, यदि अभियोजन पक्ष के पास यह मामला है कि न्यायालय के समक्ष गैरकानूनी जमावड़ा वाले व्यक्तियों की संख्या पांच से अधिक है जिनमें से अन्य ऐसे व्यक्ति हैं जिनकी पहचान नहीं की गई है और वे निहत्थे हैं।
केस का नाम: महेंद्र बनाम मध्य प्रदेश सरकार
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परिसीमा अवधि का विस्तार करने के स्वत: संज्ञान आदेश उस अवधि पर भी लागू होंगे जिसे माफ किया जा सकता था : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि परिसीमा अवधि जिसे कोर्ट या ट्रिब्यूनल द्वारा माफ किया जा सकता था, को भी कोविड-19 के मद्देनज़र शीर्ष न्यायालय द्वारा सीमा अवधि बढ़ाने के लिए स्वत: संज्ञान से पारित आदेशों के तहत 07.10.2021 तक की सीमा अवधि से बाहर रखा गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "यहां तक कि बाद के आदेशों में इस न्यायालय द्वारा आयोजित किया गया था कि परिसीमा अवधि जिसे बढ़ाया जा सकता था और / या ट्रिब्यूनल / कोर्ट द्वारा माफ किया जा सकता था और / या 07.10.2021 तक भी बढ़ाया गया है। "
केस: सेंटूर फार्मास्यूटिकल्स प्रा लिमिटेड और अन्य बनाम स्टैनफोर्ड लेबोरेटरीज प्रा लिमिटेड एसएलपी (सी) 17298/ 2021
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[दहेज मृत्यु] साक्ष्य अधिनियम की धारा 113बी के तहत धारणा : निकटता परीक्षण कोई विशेष समय अवधि परिभाषित नहीं करता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने हाल के फैसले में दहेज मृत्यु और इससे संबंधित मामलों में अपराध की धारणा से संबंधित कानून की एक महत्वपूर्ण स्थिति को बरकरार रखा। भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 113बी के घटक की व्याख्या की गयी है। कोर्ट ने 'माया देवी एवं अन्य बनाम हरियाणा सरकार (2015) 17 एससीसी 405' के ऐतिहासिक मामले में निर्धारित निकटता परीक्षण पर भी भरोसा जताया।
केस शीर्षक: पार्वती देवी बनाम बिहार सरकार अब झारखंड सरकार; राम सहाय महतो बनाम बिहार सरकार अब झारखंड सरकार