आईपीसी की धारा 304बी- घर बनाने के लिए रुपए की मांग दहेज की मांग : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

12 Jan 2022 5:59 AM GMT

  • आईपीसी की धारा 304बी- घर बनाने के लिए रुपए की मांग दहेज की मांग : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घर के निर्माण के लिए रुपए की मांग 'दहेज की मांग' है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 304 बी के प्रावधानों के तहत अपराध है।

    सीजेआई एनवी रमना, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ कहा कि "दहेज" शब्द को एक व्यापक अर्थ के रूप में वर्णित किया जाना चाहिए ताकि इसमें एक महिला से की गई किसी भी मांग को शामिल किया जा सके, चाहे संपत्ति के संबंध में हो या किसी भी प्रकृति की मूल्यवान प्रतिभूति के रूप में।

    इस मामले में निचली अदालत ने मृतका के पति और ससुर को आईपीसी की धारा 304-बी, 306 और 498-ए के तहत दोषी ठहराया था। यह पाया गया कि आरोपी अपना घर बनाने के लिए मृतका से पैसे की मांग कर रहा था, लेकिन उसके परिवार के सदस्य पैसे देने में असमर्थ थे और परिणामस्वरूप, उसे लगातार परेशान किया गया और उसे प्रताड़ित किया गया, जिसके कारण उसने आत्महत्या कर ली। अपील में, हाईकोर्ट ने कहा कि घर के निर्माण के लिए पैसे की मांग को दहेज की मांग के रूप में नहीं माना जा सकता है। हाईकोर्ट ने पाया कि उनके खिलाफ धारा 304-बी के तहत अपराध स्थापित नहीं किया गया था, क्योंकि मृतक से कथित तौर पर घर बनाने के लिए पैसे की मांग की गई थी, जिसे दहेज की मांग के रूप में उसकी मौत के उक्त कारण से नहीं जोड़ा जा सकता।

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने राज्य द्वारा दायर अपील से संबंधित अपने फैसले में धारा 304-बी के तहत दंडनीय अपराध के लिए एक आरोपी को दोषी ठहराने के लिए चार पूर्व-आवश्यकताएं सूचीबद्ध कीं:

    (i) कि किसी महिला की मृत्यु जलने या शारीरिक चोट के कारण हुई हो या सामान्य परिस्थितियों से अलग हुई हो;

    (ii) कि ऐसी मृत्यु उसकी शादी के सात साल की अवधि के भीतर हुई होगी;

    (iii) महिला को उसकी मृत्यु से ठीक पहले अपने पति के हाथों क्रूरता या उत्पीड़न का शिकार होना चाहिए; तथा

    (iv) इस तरह की क्रूरता या उत्पीड़न दहेज की किसी मांग के लिए या उससे संबंधित होना चाहिए

    उच्च न्यायालय द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण से असहमत पीठ ने कहा:

    "13. लैटिन कहावत है "यूट रेस मैगिस वैलेट क्वाम पेरेट" यानी, लिखित दस्तावेजों पर एक उदार निर्माण किया जाना चाहिए, ताकि यदि संभव हो तो उन्हें बनाए रखा जा सके, और पार्टियों के इरादे को प्रभावी बनाने के लिए, इसे सारांशित किया जा सके। कानून के एक प्रावधान की व्याख्या, जो विधायिका के इरादे को विफल कर देगी, को उस व्याख्या के पक्ष में छोड़ दिया जाना चाहिए, जो दहेज की मांग जैसी सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए कानून के माध्यम से हासिल किये जाने वाले उद्देश्य को बढ़ावा दे। इस संदर्भ में शब्द "दहेज" को एक विस्तृत अर्थ के रूप में वर्णित किया जाना चाहिए, ताकि एक महिला से की गई किसी भी मांग को शामिल किया जा सके, चाहे संपत्ति हो या किसी भी प्रकृति की मूल्यवान प्रतिभूति। दहेज की मांग के जघन्य अपराध से निपटने और समाज में निवारक के तौर पर तैयार किये गये कानून के प्रावधान के मद्देनजर आईपीसी की धारा 304-बी के तहत मामलों से निपटने के दौरान, अदालतों के दृष्टिकोण में बदलाव सख्त से उदारवादी, संकुचित से व्यापक होना चाहिए। कोई भी कठोर अर्थ प्रावधान के उद्देश्य को नष्ट कर देगा। इसलिए, हमारे समाज में गहरी पैठ बना चुकी इस बुराई को मिटाने के कार्य को पूरा करने के लिए सही दिशा में जोर लगाने की आवश्यकता है।"

    पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने घर के निर्माण के लिए प्रतिवादियों द्वारा मृतक से की गयी धन की मांग को "दहेज" शब्द की परिभाषा के अंतर्गत रखकर सही व्याख्या की है।

    कोर्ट ने कहा,

    "प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत किया गया कि मृतका भी ऐसी मांग में एक पक्षकार थी, क्योंकि उसने स्वयं अपनी माँ और मामा से घर के निर्माण में योगदान के लिए कहा था, इसे सही परिप्रेक्ष्य में समझा जाना चाहिए। यह अनदेखा नहीं किया जा सकता कि प्रतिवादी लगातार मृतक को प्रताड़ित कर रहे थे और घर बनाने के लिए पैसे मांगने के वास्ते अपने परिवार के सदस्यों से संपर्क करने को कह रहे थे और यह केवल उनका हठ ही था कि मृतका को कुछ राशि के योगदान के लिए परिवार से कहने मजबूर किया गया था। कोर्ट को उस सामाजिक परिवेश के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, जिससे पार्टियां जुड़ी होती हैं।"

    इस प्रकार, पीठ ने आईपीसी की धारा 304बी के तहत आरोपी की दोषसिद्धि को बहाल कर दिया।

    केस का नाम: मध्य प्रदेश सरकार बनाम जोगेंद्र

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एससी) 37

    मामला संख्या। : सीआरए 190/2012 | 11 जनवरी 2022

    कोरम: सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली

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