सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2021-10-10 06:15 GMT

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (चार सितंबर 2021 से आठ अक्टूबर 2021) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं, सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप।

पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

भ्रष्टाचार के मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं, आरोपी इसे अधिकार के रूप में नहीं मांग सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार के मामलों में केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, विक्रम नाथ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा,

"यदि शिकायत या "स्रोत की जानकारी" के माध्यम से सीबीआई द्वारा प्राप्त जानकारी में संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, तो यह प्रारंभिक जांच करने के बजाय सीधे एक नियमित मामला दर्ज कर सकती है, जहां अधिकारी संतुष्ट है कि जानकारी के खुलासे से एक संज्ञेय अपराध का गठन होता है।"

केस और उद्धरण : केंद्रीय जांच ब्यूरो बनाम थोमांद्रू हन्ना विजयलक्ष्मी LL 2021 SC 551

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सुप्रीम कोर्ट ने चार्जशीट दाखिल होने पर जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किए गए आरोपियों को जमानत देने के पहलू पर गाइडलाइंस जारी की

सुप्रीम कोर्ट ने चार्जशीट दाखिल होने पर जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं होने वाले आरोपियों को जमानत देने के पहलू पर गाइडलाइंस जारी की है।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने इस संबंध में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजा और वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा द्वारा दिए गए सुझावों को स्वीकार कर लिया। इस दिशानिर्देश को लागू करने के लिए आवश्यक शर्तें हैं- (1) जांच के दौरान गिरफ्तार नहीं किया गया हो। (2) जब भी बुलाया जाता है, जांच अधिकारी के सामने पेश होने सहित जांच में पूरा सहयोग किया जाएगा।

केस का नाम: सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई एलएल 2021 एससी 550

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लखीमपुर खीरी हिंसा: यूपी पुलिस की जांच से सुप्रीम कोर्ट संतुष्ट नहीं, पूछा, हत्या के बाकी केसों में भी आरोपियों के साथ ऐसा करते हैं, समन भेजते हैं?

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को लखीमपुर खीरी हिंसा में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा की गई जांच पर अपनी असंतुष्टि दर्ज की, जिसमें 8 लोगों की जान चली गई। इनमें से चार किसान प्रदर्शनकारी थे, जिन्हें कथित तौर पर केंद्रीय मंत्री और भाजपा सांसद अजय कुमार मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा के काफिले में वाहनों द्वारा कुचल दिया गया था।

भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने आदेश में दर्ज किया कि अदालत राज्य के कार्यों से संतुष्ट नहीं है।

केस: लखीमपुर खीरी (यूपी) में हिंसा में जानमाल का नुकसान| एसएमडब्ल्यू (सीआरएल) 3/2021

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अगर आप लोगों को सालों तक जेल में डाल रहे हैं तो मुकदमे की क्या जरूरत? सुप्रीम कोर्ट ने एनसीबी से पूछा

सुप्रीम कोर्ट ने एनडीपीएस अधिनियम के तहत 66 वर्षीय आरोपी की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए गुरुवार को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो से कहा, "अगर आप लोगों को सालों तक जेल में डाल रहे तो मुकदमे की क्या जरूरत है?"

उक्त आरोपी लगभग चार वर्षों से जेल में बंद है।

सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने आरोपी को 16 अक्टूबर 2017 से हिरासत में है और निकट भविष्य में मुकदमे के पूरा होने की कोई संभावना नहीं है।

केस: तपन दास बनाम भारत संघ

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सुप्रीम कोर्ट ने यस बैंक- डीएचएफएल घोटाले में राणा कपूर की पत्नी और बेटियों को अंतरिम जमानत दी

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यस बैंक के संस्थापक राणा कपूर की पत्नी बिंदु कपूर और दो बेटियों राधा और रोशनी कपूर को 4000 करोड़ रूपये के घोटाले के यस बैंक- डीएचएफएल केस में अंतरिम जमानत दे दी। इस मामले की फिलहाल सीबीआई जांच कर रही है।

28 सितंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा कपूर की पत्नी और बेटियों द्वारा दायर जमानत याचिकाओं को खारिज करने के बाद जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की बेंच ने जमानत दे दी।

केस का शीर्षक: रोशनी कपूर बनाम सीबीआई एंड अन्य जुड़े मामले

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लोक अदालत के पास मैरिट पर मामले पर फैसला करने का कोई अधिकार नहींः सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक बार जब यह पता चल जाता है कि पार्टियों के बीच समाधान या समझौता नहीं हो सका है तो लोक अदालत के पास मामले को मैरिट के आधार पर तय करने का कोई अधिकार नहीं है।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा कि लोक अदालत का अधिकार क्षेत्र विवाद के पक्षों के बीच समाधान या समझौता करवाना है। अदालत ने कहा कि एक बार जब समाधान/समझौता विफल हो जाता है, तो लोक अदालत को मामला उस अदालत को वापस भेजना होगा जहां से संदर्भ प्राप्त हुआ था।

केस का नाम और उद्धरणः एस्टेट ऑफिसर बनाम कर्नल एच.वी. मनकोटिया (सेवानिवृत्त) एलएल 2021 एससी 548

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

छात्रों से बकाया फीस वसूली के लिए कानून के अनुसार उचित कार्रवाई शुरू करने के लिए स्कूल स्वतंत्र: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों को फीस का भुगतान न करने के कारण किसी भी छात्र को कक्षाओं में भाग लेने से रोकने के अपने आदेश के स्पष्टीकरण की मांग वाली याचिका पर, बुधवार को स्कूल प्रबंधन को उन छात्रों से बकाया शुल्क की वसूली के लिए कानून के अनुसार उचित कार्रवाई शुरू करने की अनुमति दी, जिन्होंने डिफॉल्ट किया है।

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की पीठ ने माता-पिता या आश्रित द्वारा किए गए अनुरोधों पर विचार करने को स्कूल प्रबंधन के लिए खुला छोड़ दिया है, जो उचित कारणों के लिए कुछ रियासत की मांग कर रहे हैं।

केस: प्रोग्रेसिव स्कूल एसोसिएशन बनाम राजस्थान राज्य और अन्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अवमानना के लिए यतिन ओझा से वरिष्ठता वापस लेने का मामलाः सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हम ओझा और हाईकोर्ट के हितों को संतुलित करने के लिए एक समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं'

गुजरात हाईकोर्ट की अवमानना ​​कार्रवाई और एडवोकेट यतिन ओझा की वरिष्ठता को छीनने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वह एक ऐसा समाधान खोजने की प्रक्रिया में है, जो श्री ओझा और हाईकोर्ट दोनों के हितों को संतुलित करता हो।

पिछली सुनवाई में कोर्ट यह देखते हुए कि श्री ओझा ने अपनी सजा का विशेष हिस्सा भुगत लिया है, उनकी ओर से पेश सीन‌ियर एडवोकेट एएम सिंघवी के सुझाव पर यह जांच करने के लिए सहमत हो गया था कि उन पर लगे आजीवन प्रतिबंध को, उनके आचरण के अधीन, कुछ समय के लिए स्थग‌ित किया जा सकता है। मामले में भविष्य में किसी भी उल्लंघन पर आजीवन प्रतिबंध को बहाल करना हाईकोर्ट के हाथ में होगा।

केस शीर्षक: यतिन नरेंद्र ओझा बनाम गुजरात हाईकोर्ट

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

एडहॉक कर्मचारियों की वरिष्ठता की गणना के ‌लिए नियमितीकरण से पहले की सेवाओं को नहीं गिना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है एडहॉक (तदर्थ) कर्मचारियों की वरिष्ठता की गणना के ‌लिए नियमितीकरण से पहले की सेवाओं को नहीं गिना जा सकता है।

हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने मौजूदा मामले में कुछ नियमित कर्मचारियों की रिट याचिका (मलूक सिंह बनाम पंजाब राज्य में) को अनुमति देते हुए कहा ‌था कि एक बार सेवाओं में नियमित होने के बाद कर्मचारी अपनी नियुक्ति की प्रारंभिक तारीख से संबंधित होंगे। वरिष्ठता और अन्य लाभ के निर्धारण में एडहॉक सेवा को ध्यान में रखना होगा।

केस का नाम और उद्धरण: मलूक सिंह बनाम पंजाब राज्य एलएल 2021 एससी 547

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

एनडीए के बाद अब 2022 के लिए भारतीय सैन्य कॉलेज में लड़कियों को प्रवेश परीक्षा देने की इजाजत दी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र को जून 2022 से शुरू होने वाले सत्र के लिए 18 दिसंबर, 2021 को आगामी परीक्षा में शामिल होने की अनुमति देकर राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कॉलेज ( आरआईएमसी) में लड़कियों को शामिल करने की व्यवस्था करने का निर्देश दिया। केंद्र को इस संबंध में नए सिरे से विज्ञापन जारी करने का निर्देश दिया गया।

न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने सूचित किया कि आगामी 18 दिसंबर, 2021 की परीक्षा की तैयारी पहले से ही एक उन्नत चरण में है और इसलिए आरआईएमसी और राष्ट्रीय सैन्य स्कूल में लड़कियों को शामिल करने की अनुमति देने के लिए जून 2022 नहीं बल्कि जनवरी 2023 से शुरू होने वाले सत्र के लिए अदालत की अनुमति मांगी।

केस: कैलास उधवराव मोरे बनाम भारत संघ

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सिर्फ इसलिए कि आपराधिक मामलों के बारे में सही घोषणा की गई है, नियोक्ता को किसी उम्मीदवार को नियुक्त करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक नियोक्ता को केवल इसलिए उम्मीदवार को नियुक्त करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता क्योंकि उम्मीदवार ने आपराधिक मामलों की सही घोषणा की है। अदालत ने कहा कि नियोक्ता के पास उम्मीदवारों के आपराधिक इतिहास पर विचार करने का अधिकार है।

जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने हाईकोर्ट के ‌फैसले को रद्द करते हुए उक्त टिप्‍पण‌ियां की। पीठ ने कहा, यदि नैतिक अधमता से जुड़े अपराध के आरोप से एक व्यक्ति को संदेह का लाभ देते हुए या गवाहों के मुकर जाने के कारण बरी कर दिया जाता है तो यह उसे स्वचालित रूप से रोजगार के लिए हकदार नहीं होगा, वह भी अनुशासित बल में। हाईकोर्ट के फैसले में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल को कांस्टेबल पद पर एक उम्मीदवार की नियुक्ति का निर्देश ‌‌दिया गया था।

केस और सिटेशन: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मिठू मेडा एलएल 2021 एससी 545

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियां निहित हैं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा की कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में पत्रों, अभ्यावेदन और मीडिया रिपोर्टों के आधार पर स्वत: संज्ञान लेने की शक्तियां निहित हैं।

जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने याचिकाओं के एक बैच पर फैसला सुनाया, जिसमें यह मुद्दा उठाया गया था कि क्या एनजीटी के पास स्वत: संज्ञान अधिकार क्षेत्र है (ग्रेटर मुंबई बनाम अंकिता सिन्हा और अन्य और जुड़े मामले)।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

राजस्व रिकॉर्ड टाइटिल दस्तावेज नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि राजस्व रिकॉर्ड स्वत्वाधिकार का दस्तावेज नहीं है। कोर्ट ने आगे कहा कि केवल राजस्व रिकॉर्ड में एक प्रविष्टि के आधार पर एक पट्टेदार भूमि पर किसी भी अधिकार का हकदार नहीं होगा।

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें न्यायालय ने चकबंदी उप निदेशक, लखनऊ द्वारा पारित 8 जुलाई 2004 के आदेश को रद्द कर दिया था, जिसमें खसरा संख्या 1576 और 1738 के राजस्व प्रविष्टि को वन विभाग के नाम से संशोधित करने का आदेश दिया गया था और प्रतिद्वंद्वी दावेदारों के दावे को खारिज कर दिया गया था।

केस शीर्षक: प्रभागीय वन अधिकारी अवध वन प्रभाग बनाम अरुण कुमार भारद्वाज (मृत) कानूनी प्रतिनिधियों के जरिये। सिविल अपील संख्या 7017/2009

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सजा काटने का 50 प्रतिशत का व्यापक मानदंड अपील के लंबित रहने पर दोषी को जमानत का आधार हो सकता है: सुप्रीम कोर्ट

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबे समय से लंबित आपराधिक अपीलों के मुद्दे पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि उच्च न्यायालय को उन दोषियों को जमानत देने का विकल्प तलाशना चाहिए जो आठ साल की सजा काट चुके हैं।

अदालत ने कहा कि जमानत वह नियम है जहां दोषी पहले ही आठ साल की वास्तविक सजा काट चुका है। अपील में दोषियों को जमानत देने के लिए आजीवन कारावास के अलावा अन्य मामलों में सजा के 50 प्रतिशत का व्यापक मानदंड लागू होता है।

केस: सौदान सिंह बनाम यूपी राज्य | अपील की विशेष अनुमति (क्रिमिनल) संख्या 4633/2021

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

उपभोक्ता संरक्षण कानून: सेवा में कमी का साक्ष्य देने का भार शिकायतकर्ता पर है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, एक उपभोक्ता मामले में, सेवा में कमी का साक्ष्य देने का भार शिकायतकर्ता पर है।

न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम ने कहा कि कमी के किसी भी साक्ष्य के बिना, सेवा में कमी के लिए विरोधी पक्ष को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। शिकायतकर्ता डॉल्फ़िन इंटरनेशनल लिमिटेड ने प्रतिवादी एसजीएस इंडिया लिमिटेड को ग्रीस और नीदरलैंड को निर्यात करने के उद्देश्य से खरीदी गई मूंगफली के निरीक्षण के लिए सेवाएं प्रदान करने के लिए नियुक्त किया।

केस और उद्धरण: एसजीएस इंडिया बनाम डॉल्फिन इंटरनेशनल लिमिटेड LL 2021 SC 544

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सुप्रीम कोर्ट ने यूनिटेक मामले के आरोपियों के साथ मिलीभगत करने वाले तिहाड़ जेल के अधिकारियों को निलंबित करने का निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यूनिटेक के पूर्व प्रमोटरों संजय चंद्रा और अजय चंद्रा को जेल में रहने के दौरान अनुचित सहायता प्रदान करने वाले तिहाड़ जेल के अधिकारियों को निलंबित करने का निर्देश दिया। इससे पहले कोर्ट ने चंद्र बंधुओं को तिहाड़ से स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था और दिल्ली पुलिस द्वारा जांच के आदेश दिए थे।

कोर्ट ने यूनिटेक कंपनी से जुड़े एक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में हिरासत में लिए गए चंद्र बंधुओं को तिहाड़ से मुंबई की तलोजा जेल में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने यह आदेश प्रवर्तन निदेशालय की एक जांच रिपोर्ट में यह पता चलने के बाद दिया था कि तिहाड़ जेल के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से वे कई अवैध गतिविधियों में शामिल हैं।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

ब्याज के भुगतान पर रोक लगाने का खंड अनुबंध अधिनियम की धारा 28 से प्रभावित नहीं होगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि एक समझौते में सुरक्षा जमा राशि, बयाना राशि या किसी अन्य राशि पर ब्याज के भुगतान पर रोक लगाने का एक खंड अनुबंध अधिनियम की धारा 28 से प्रभावित नहीं होगा।

भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 28 के अनुसार, एक अनुबंध उस सीमा तक शून्य है, जब तक कि वह किसी पक्ष को सामान्य अदालतों में सामान्य कार्यवाही द्वारा अपने अधिकारों को लागू करने से प्रतिबंधित करता है या यदि वह उस समय को सीमित करता है जिसके भीतर वह अपने अधिकारों को लागू कर सकता है। इस खंड के अपवाद I में एक नियम है कि एक अनुबंध जिसके द्वारा दो या दो से अधिक व्यक्ति सहमत हैं कि किसी भी विषय या विषयों के वर्ग के संबंध में उनके बीच उत्पन्न होने वाला कोई विवाद मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया जाएगा, अवैध नहीं है।

केस और उद्धरण: गर्ग बिल्डर्स बनाम भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड LL 2021 SC 535

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

विशिष्ट अदायगी : हलफनामे के जरिए प्रार्थना में संशोधन किए बिना हाईकोर्ट में पहली बार तत्परता और इच्छा को साबित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर विशिष्टअदायगी के लिए वाद में साक्ष्य की सराहना पर यह पाया जाता है कि वादी अनुबंध के अपने हिस्से को पूरा करने की इच्छा नहीं रखता है, तो वादी विशिष्ट प्रदर्शन की डिक्री का हकदार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "... विशिष्ट अदायगी के लिए एक डिक्री पारित करने के उद्देश्य के लिए, तत्परता और इच्छा को स्थापित और साबित करना होगा और विशिष्ट प्रदर्शन के लिए एक डिक्री पारित करने के उद्देश्य से ये प्रासंगिक विचार है।"

केस और उद्धरण : के करुप्पुराज बनाम एम गणेशन LL 2021 SC 534

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

विद्युत अधिनियम - किसी गलती का पता लगाने के बाद अतिरिक्त बिल दो साल की सीमा अवधि के बाद देय नहीं होगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि एक बिजली वितरण कंपनी द्वारा विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत लाइसेंसधारी के रूप में किसी गलती का पता लगाने के बाद जारी अतिरिक्त बिल, अधिनियम की धारा 56 (2) के तहत दो साल की सीमा अवधि के बाद देय नहीं होगा।

धारा 56(2) कहती है कि, "इस धारा के तहत किसी भी उपभोक्ता से देय कोई राशि उस तारीख से दो साल की अवधि के बाद वसूली योग्य नहीं होगी जब ऐसी राशि पहली बार देय हो गई थी।"

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि लाइसेंसधारी द्वारा गलती का पता लगाने के बाद किया गया कोई भी दावा शरारत के अंतर्गत नहीं आ सकता है, यानी, "इस धारा के तहत किसी भी उपभोक्ता से कोई राशि नहीं होगी, जो धारा 56 की उप-धारा (2) में प्रदर्शित होती है।

केस शीर्षक: मैसर्स प्रेम कॉटेक्स बनाम उत्तर हरियाणा बिजली वितरण निगम लिमिटेड और अन्य | 2009 की सिविल अपील संख्या 7235

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

NEET-SS 2021 परीक्षा पैटर्न में किए गए बदलाव शैक्षणिक वर्ष 2022-23 से लागू किए जाएंगे: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा

केंद्र सरकार को NEET-SS 2021 पैटर्न में लाए गए बदलाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। केंद्र सरकार ने बुधवार को कोर्ट से कहा कि संशोधित पैटर्न अगले साल से लागू किया जाएगा।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि NEET-SS 2021 मौजूदा पैटर्न के अनुसार आयोजित किया जाएगा। संशोधित पैटर्न केवल शैक्षणिक वर्ष 2022-2023 से प्रभावी होगा।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

आश्रित अनुकम्पा के आधार पर मृतक कर्मचारी की तुलना में ऊंचे पद पर नियुक्ति की मांग नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक आश्रित/आवेदक मृतक कर्मचारी द्वारा धारित पद की तुलना में अधिक उच्च पद पर अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की मांग नहीं कर सकता है।

कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति एक रियायत है न कि अधिकार। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि यह सार्वजनिक सेवाओं में नियुक्ति के सामान्य नियम के लिए एक अपवाद है और उस मृतक के आश्रितों के पक्ष में है जो अपने परिवार को बदहाली में और आजीविका को कोई साधन छोड़े बिना दुनिया छोड़ देते हैं।

केस का नाम और उद्धरण: उत्तर प्रदेश राज्य बनाम प्रेमलता एलएल 2021 एससी 540

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

'कोई और स्थगन नहीं': सुप्रीम कोर्ट गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट के खिलाफ जकिया जाफरी की याचिका पर 26 अक्टूबर को सुनवाई करेगा

सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य उच्च पदाधिकारियों को क्लीन चिट देने वाली एसआईटी रिपोर्ट को चुनौती देने वाली जकिया अहसान जाफरी की याचिका को मंगलवार को 26 अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दिया।

जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने याचिकाकर्ता की ओर से किए गए अनुरोध के आधार पर स्थगन को मंजूरी दी। याचिकाकर्ता को कंपाइलेशन दायर करने की स्वतंत्रता देते हुए बेंच ने स्पष्ट किया कि भविष्य की तारीखों पर किसी भी स्थगन अनुरोध पर विचार नहीं किया जाएगा।

केस टाइटल: जकिया अहसान जाफरी बनाम गुजरात राज्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

कोर्ट बॉयकॉट: सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, जयपुर को अवमानना नोटिस जारी किया

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राजस्थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, जयपुर के पदाधिकारियों को हाईकोर्ट की एक पीठ का बहिष्कार करने के आरोप में अवमानना का ​​​​नोटिस जारी किया।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अदालतों के ब‌हिष्कार और वकीलों हड़ताल के खिलाफ दिए बार-बार के फैसलों के बावजूद राजस्‍थान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन 27 सितंबर को हड़ताल पर चला गया।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया अध्यक्ष सीनियर एडवोकेट मनन कुमार मिश्रा ने पीठ को बताया कि बीसीआई ने जयपुर बार एसोसिएशन को बहिष्कार पर नोटिस जारी किया है और उन्होंने यह कहते हुए जवाब दिया है कि बहिष्कार केवल हाईकोर्ट की एक अदालत के संबंध में था।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में आपराधिक अपीलों के लंबित रहने पर स्वतः संज्ञान लिया

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में आपराधिक अपीलों के लंबे समय से लंबित रहने के मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया। अदालत उन दोषियों को जमानत देने के संबंध में दिशा-निर्देश देने पर विचार कर रही है, जो अपनी आपराधिक अपीलों की सुनवाई में देरी के कारण लंबे समय तक सजा काट चुके हैं।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा हलफनामे में दिए गए सुझावों को "बोझिल" बताते हुए स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज करने का आदेश दिया।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अभियुक्‍त का आचरण, अपराध की गंभीरता, सामाजिक प्रभाव आदि जमानत रद्द करने के आधार हैं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी को दी गई जमानत को सुपीरियर कोर्ट ही रद्द कर सकता है, यदि अदालत ने अप्रासंगिक कारकों पर विचार किया है, या रिकॉर्ड पर उपलब्ध प्रासंगिक सामग्री की अनदेखी की है, जो जमानत देने के आदेश को कानूनी रूप से अस्थिर बनाता है।

सीजेआई एनवी रमाना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ ने एक फैसले में कहा, "अपराध की गंभीरता, आरोपी का आचरण और जब जांच सीमा पर हो तो न्यायालय द्वारा अनुचित क्षमा का सामाजिक प्रभाव भी कुछ स्थितियों में से हैं, जहां एक सुपीरियर कोर्ट न्याय के गर्भपात को रोकने के लिए और आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रशासन को मजबूत करने के लिए जमानत आदेश में हस्तक्षेप कर सकता है।"

केस और सिटेशन: विपन कुमार धीर बनाम पंजाब राज्य एलएल 2021 एससी 537

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अगर अनुबंध में ब्याज के भुगतान पर प्रतिबंध को लेकर स्पष्ट उपबंध है, तो मध्यस्थ वादकालीन ब्याज मंजूर नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक मध्यस्थ वादकालीन ब्याज मंजूर नहीं कर सकता है, यदि अनुबंध में एक विशिष्ट उपबंध होता है जो स्पष्ट रूप से ब्याज के भुगतान को रोकता है।

न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि ऐसा संविदात्मक उपबंध भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 28 का उल्लंघन नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996, स्पष्ट रूप से एक मध्यस्थ की शक्ति को पूर्व-संदर्भ और वादकालीन ब्याज देने से प्रतिबंधित करता है, जब दोनों पक्ष स्वयं इसके विपरीत सहमत होते हैं।

केस का नाम और उद्धरण: गर्ग बिल्डर्स बनाम भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड एलएल 2021 एससी 535

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

कोविड से मौत- मृतकों के परिजनों को जरूरत पड़ने पर अस्पताल तमाम दस्तावेज मुहैया कराएंगे: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उन सभी अस्पतालों, जो कोविड ​​​​रोगियों को इलाज प्रदान करते हैं, उन्हें निर्देश दिया की मांग किए जाने पर महामारी से मरने वालों के परिवार के सदस्यों को इलाज आदि के सभी आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराए जाएं।

कोविड पीड़ितों के परिवारों को प्रदान की जा रही अनुग्रह राशि प्राप्त करने में परिजनों को सक्षम करने के लिए मृत्यु के कारण के रूप में कोविड को स्थापित करने के लिए आवश्यक दस्तावेजों के संबंध में ये अवलोकन किए गए हैं।

केस: गौरव कुमार बंसल बनाम भारत संघ | एमए 1120/2021 डब्ल्यू पी (सी) संख्या 539/202

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

प्रथम अपीलीय न्यायालय सभी मुद्दों और साक्ष्यों से निपटे, सीपीसी की प्रक्रिया का पालन करे: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रथम अपीलीय न्यायालय का कर्तव्य है कि वह अपने निष्कर्षों को दर्ज करने से पहले सभी मुद्दों और पक्षकारों द्वारा दिए गए साक्ष्यों से निपटे।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का पालन करने के बाद पहली अपील पर फैसला किया जाना चाहिए।

इस मामले में, ट्रायल कोर्ट ने वादी द्वारा दायर एक विशिष्ट प्रदर्शन सूट को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसने किरायेदारों के साथ ही संपत्ति खरीदने की इच्छा नहीं दिखाई थी और वाद में ऐसी कोई दलील नहीं है और वादी ने ये फैसला नहीं किया है कि संपत्ति को उसकी प्रकृति के रूप में ही खरीदे।

केस और उद्धरण : के करुप्पुराज बनाम एम गणेशन LL 2021 SC 534

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लखीमपुर खीरी हादसा- "जब ऐसी घटनाएं होती हैं, तो कोई जिम्मेदारी नहीं लेता": सुप्रीम कोर्ट

भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लखीमपुर खीरी की हालिया घटना का उल्लेख करते हुए इसे 'दुर्भाग्यपूर्ण घटना' बताया।

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि जब इस तरह की घटनाएं होती हैं, तो कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेता।

न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा, "जब ऐसी घटनाएं होती हैं तो कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेता है। संपत्ति को नुकसान और शारीरिक क्षति हुई है और कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेता।"

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

राज्य COVID से मरने वाले व्यक्तियों के परिजनों को मुआवजे से इस आधार पर इनकार नहीं करेंगे कि मृत्यु प्रमाण पत्र में COVID कारण नहीं लिखा है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आदेश दिया कि कोई भी राज्य COVID से मरने वाले व्यक्तियों के परिजनों को 50,000 रुपये की अनुग्रह राशि से केवल इस आधार पर इनकार नहीं करेगा कि मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु के कारण के रूप में COVID का उल्लेख नहीं है।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने COVID मौत के मामलों में मुआवजा देने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा जारी दिशा-निर्देशों को मंजूरी देते हुए आदेश पारित किया।

केस: गौरव कुमार बंसल बनाम भारत संघ | एमए 1120/2021 डब्ल्यू.पी (सी) संख्या 539/2021

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

केवल आपराधिक अपील के लंबित होने के आधार पर पासपोर्ट के नवीनीकरण से इनकार नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल आपराधिक अपील लंबित होने के आधार पर पासपोर्ट के नवीनीकरण से इनकार नहीं किया जा सकता है। मामले में आवेदक को भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी, 420, 468, 471, 477 ए सहपठित धारा 13 (2) सहपठित और 13(1) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत दोषी ठहराया गया था।

इसके खिलाफ उसने अपील दायर की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। हालांकि मामले में सजा को घटाकर एक साल कर दिया गया। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील विचाराधीन है।

केस और सिटेशन: वंगला कस्तूरी रंगाचार्युलु बनाम सीबीआई एलएल 2021 एससी 533

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

'स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति' की मांग तभी की जा सकती है जब अधिकारी पात्रता मानदंड को पूरा करता हो; इस्तीफा कभी भी हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक व्यक्ति अपनी सेवा के दौरान किसी भी समय इस्तीफा दे सकता है, लेकिन वह स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए तभी मांग कर सकता है, जब वह पात्रता मानदंडों को पूरा करता हो।

न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने 'भारत सरकार एवं अन्य बनाम अभिराम वर्मा' मामले में फैसले सुनाते हुए कहा, "एक व्यक्ति अपनी सेवा के दौरान किसी भी समय इस्तीफा दे सकता है, हालांकि, एक अधिकारी समय से पहले / स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए नहीं कह सकता है जब तक कि वह पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करता है।"

केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम अभिराम वर्मा

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

मोटर दुर्घटना दावा - न्यूनतम वेतन अधिसूचना वेतन प्रमाण पत्र के अभाव में मृतक की आय तय करने का एक पूर्ण पैमाना नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मोटर वाहन दुर्घटना मामले में मुआवजे की गणना पर कहा है कि केवल इसलिए कि दावेदार ने मृतक की मासिक आय का दस्तावेजी सबूत पेश नहीं किया है, मृतक की आय की गणना के लिए न्यूनतम मजदूरी का निम्नतम स्तर अपनाने का कोई औचित्य नहीं है।

कोर्ट ने चंद्रा@ चंदा बनाम मुकेश कुमार यादव और अन्य के मामले में कहा, "वेतन प्रमाण पत्र के अभाव में न्यूनतम वेतन अधिसूचना एक पैमाना हो सकती है लेकिन साथ ही मृतक की आय तय करने के लिए एक पूर्ण तरीका नहीं हो सकता है। रिकॉर्ड पर दस्तावेजी साक्ष्य के अभाव में कुछ अनुमान लगाने की आवश्यकता है, लेकिन साथ ही मृतक की आय का आकलन करने के लिए अनुमान को वास्तविकता से पूरी तरह से अलग नहीं किया जाना चाहिए।"

केस टाइटल: चंद्रा @ चंदा बनाम मुकेश कुमार यादव और अन्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News