अभियुक्‍त का आचरण, अपराध की गंभीरता, सामाजिक प्रभाव आदि जमानत रद्द करने के आधार हैं: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

5 Oct 2021 6:28 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी आरोपी को दी गई जमानत को सुपीरियर कोर्ट ही रद्द कर सकता है, यदि अदालत ने अप्रासंगिक कारकों पर विचार किया है, या रिकॉर्ड पर उपलब्ध प्रासंगिक सामग्री की अनदेखी की है, जो जमानत देने के आदेश को कानूनी रूप से अस्थिर बनाता है।

    सीजेआई एनवी रमाना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली की पीठ ने एक फैसले में कहा, "अपराध की गंभीरता, आरोपी का आचरण और जब जांच सीमा पर हो तो न्यायालय द्वारा अनुचित क्षमा का सामाजिक प्रभाव भी कुछ स्थितियों में से हैं, जहां एक सुपीरियर कोर्ट न्याय के गर्भपात को रोकने के लिए और आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रशासन को मजबूत करने के लिए जमानत आदेश में हस्तक्षेप कर सकता है।"

    अदालत ने दहेज हत्या के एक मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा एक 'सास' को दी गई अग्रिम जमानत को रद्द करते हुए उक्त टिप्‍पणियां की।

    पीठ ने कहा, मामले में आरोपित अपराध जघन्य है और हमारे मध्यकालीन सामाजिक ढांचे को सामने रखता है, जो अभी भी कानून और न्यायपालिका द्वारा किए गए कई प्रयासों के बावजूद सुधारों के लिए रोता है। अदालत ने कहा कि भगोड़ा घोषित होने के बाद भी आरोपी दो साल से अधिक समय से फरार थी।

    कोर्ट ने कहा, "बिना किसी उचित कारण के दो साल से अधिक समय तक फरार रहने वाले आरोपी के आचरण को उसे किसी भी विवेकाधीन राहत प्रदान करते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए था। इन तथ्यों ने उसे सह-अभियुक्त की तुलना में पूरी तरह से अलग कर दिया, जिसके साथ वह समानता चाहती है।"

    जमानत के आदेश को रद्द करते हुए अदालत ने आगे कहा, यह ध्यान में रखना होगा कि मृतक की शादी के तीन महीने के भीतर उसका दुखद अंत हुआ। हालांकि इसे धारा 302 या 304 बी आईपीसी के तहत अपराध करार देना जल्दबाजी होगी, लेकिन तथ्य यह है कि एक युवा जीवन अपने किसी भी सपने को साकार करने से पहले अचानक समाप्त हो गया..। ससुराल में उसकी अप्राकृतिक मौत हो गई। आरोपी मृतक की सास है। इसलिए, जांच एजेंसी बहू की अप्राकृतिक और असामयिक मृत्यु में आरोपी की भूमिका, यदि कोई हो, की जांच करने के लिए स्वतंत्र है।

    केस और सिटेशन: विपन कुमार धीर बनाम पंजाब राज्य एलएल 2021 एससी 537

    केस नंबर और तारीखः सीआरए 1161-­1162 ऑफ 2021 | 4 अक्टूबर 2021

    कोरम: सीजेआई एनवी रमाना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली


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