SC के ताज़ा फैसले
पति की प्रेमिका या रोमांटिक पार्टनर को धारा 498A IPC मामले में आरोपी नहीं बनाया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए के तहत क्रूरता का आपराधिक मामला उस महिला के खिलाफ नहीं चलाया जा सकता, जिसके साथ पति का विवाहेतर संबंध था। ऐसी महिला धारा 498ए IPC के तहत "रिश्तेदार" शब्द के दायरे में नहीं आती।जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने ऐसा मानते हुए एक महिला के खिलाफ आपराधिक मामला खारिज किया, जिसे इस आरोप पर आरोपी बनाया गया था कि वह शिकायतकर्ता-पत्नी के पति की रोमांटिक पार्टनर थी।खंडपीठ ने कहा,"एक प्रेमिका या यहां तक कि महिला, जिसके साथ...
निजी घर के पिछले हिस्से में जाति-आधारित अपमान "सार्वजनिक दृश्य में" नहीं, SC/ST Act की धारा 3 के तहत कोई अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि निजी घर के पिछवाड़े में हुआ कथित जाति-आधारित अपमान या धमकी SC/ST Act की धारा 3 के तहत "सार्वजनिक दृश्य में" होने के योग्य नहीं है।जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस नोंगमईकापम कोटिस्वर सिंह की खंडपीठ ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC/ST Act) के तहत उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों से एक व्यक्ति को बरी कर दिया, जिसमें कहा गया -"कथित अपराध की घटना का स्थान अपीलकर्ता के घर का पिछवाड़ा था। निजी घर का पिछवाड़ा सार्वजनिक दृश्य में नहीं हो सकता। दूसरे...
अनुकंपा नियुक्तियां केवल सरकारी कर्मचारियों के रिश्तेदारों के लिए, विधायकों के लिए नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (2 दिसंबर) को केरल हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें दिवंगत विधायक रामचंद्रन नायर के बेटे की राज्य के लोक निर्माण विभाग में 'अनुकंपा रोजगार' के तहत नियुक्ति रद्द कर दी गई थी।चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ केरल हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ चुनौती पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिवंगत सीपीआई(एम) विधायक के.के. रामचंद्रन नायर के बेटे आर. प्रशांत की लोक निर्माण विभाग में अनुकंपा नियुक्ति रद्द कर दी...
रिटायर्ड कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद पदोन्नति या पदोन्नति के लाभों का हकदार नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस कर्मचारी की पदोन्नति उसकी रिटायरमेंट से पहले नहीं हुई है, वह पूर्वव्यापी पदोन्नति और पदोन्नति से जुड़े काल्पनिक लाभों का हकदार नहीं होगा।जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने कहा,"पदोन्नति केवल पदोन्नति के पद पर कार्यभार ग्रहण करने पर ही प्रभावी होती है, न कि रिक्ति होने की तिथि या सिफारिश की तिथि पर।"खंडपीठ ने प्रतिवादी नंबर 1 कर्मचारी को काल्पनिक लाभ दिए जाने के खिलाफ पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा दायर अपील पर सुनवाई की, जिसकी मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी...
साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत अभियुक्त के बयान को साबित नहीं किया जा सकता, केवल तथ्यों की खोज से संबंधित बयान ही स्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि साक्ष्य अधिनियम (Evidence Act) की धारा 27 के तहत अभियुक्त के बयान का केवल वही विशिष्ट हिस्सा स्वीकार्य है, जो साक्ष्य की खोज/पुनर्प्राप्ति से सीधे जुड़ा हुआ है। धारा 27 के तहत बयान साबित करते समय अभियुक्त के बयान को शामिल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने माना कि ऐसे बयानों के अस्वीकार्य हिस्सों को अभियोजन पक्ष के गवाह की मुख्य परीक्षा में शामिल नहीं किया जा सकता है।जस्टिस अभय एस. ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने इस बात पर चिंता व्यक्त की...
S. 14 HSA | हिंदू महिला अपने पूर्ववर्ती भरण-पोषण अधिकार के तहत संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का दावा कर सकती है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू महिला पूर्ण स्वामित्व का दावा कर सकती है, यदि संपत्ति उसके पूर्ववर्ती भरण-पोषण अधिकार से जुड़ी हो।जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA) की धारा 14(1) के तहत किसी कब्जे के अधिकार को पूर्ण स्वामित्व में बदलने के लिए यह स्थापित होना चाहिए कि हिंदू महिला भरण-पोषण के बदले संपत्ति रखती है। हालांकि, खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि यदि कोई हिंदू महिला लिखित दस्तावेज या अदालती आदेश के माध्यम से संपत्ति अर्जित करती है। ऐसा...
Hindu Succession Act | धारा 14 के अनुसार महिला को दिया गया आजीवन हित पूर्ण स्वामित्व में नहीं बदलेगा : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि जब किसी हिंदू महिला को संपत्ति में केवल सीमित संपदा दी जाती है तो वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 (Hindu Succession Act) की धारा 14(2) के लागू होने के कारण संपत्ति की पूर्ण स्वामी होने का दावा नहीं कर सकती। इसलिए ऐसी संपत्ति वसीयत के माध्यम से नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हिंदू महिला के पास मौजूद संपत्ति धारा 14(1) के आधार पर पूर्ण स्वामित्व में तभी बदलेगी, जब वह किसी पूर्व-मौजूदा अधिकार या भरण-पोषण के एवज में हो। हालांकि, जब डीड में ही संपत्ति में सीमित...
तीसरा पक्ष आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के खिलाफ अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति याचिका दायर कर सकता है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि तीसरा पक्ष आपराधिक कार्यवाही रद्द करने के खिलाफ संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति याचिका दायर कर सकता है।राष्ट्रीय महिला आयोग बनाम दिल्ली राज्य एवं अन्य 2010) 12 एससीसी 599 6 और अमानुल्लाह एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य (2016) 6 एससीसी 699 के उदाहरणों पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने कहा कि निजी व्यक्ति द्वारा की गई अपील पर संयम से और उचित सतर्कता के बाद विचार किया जा सकता है।न्यायालय ने यह भी उल्लेख किया कि पी.एस.आर. साधनांथम बनाम अरुणाचलम एवं अन्य (1980) 3...
राज्य प्राइवेट सिटीजन की संपत्ति पर प्रतिकूल कब्जे का दावा नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि राज्य प्राइवेट सिटीजन की संपत्ति पर प्रतिकूल कब्जे का दावा नहीं कर सकता।जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की खंडपीठ ने कहा,"राज्य को प्रतिकूल कब्जे के माध्यम से निजी संपत्ति पर कब्जा करने की अनुमति देना नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को कमजोर करेगा और सरकार में जनता का विश्वास खत्म करेगा।"यह टिप्पणी हरियाणा राज्य द्वारा प्राइवेट सिटीजन की संपत्ति के खिलाफ प्रतिकूल कब्जे का दावा करने वाली अपील को खारिज करते हुए किए गए फैसले में की गई।निजी पक्षों ने 1981 में...
अनुकंपा नियुक्ति कोई निहित अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुकंपा नियुक्ति कोई निहित अधिकार नहीं है, जिसे किसी भी तरह की जांच या चयन प्रक्रिया के बिना दिया जा सकता है।कोर्ट ने दोहराया कि अनुकंपा नियुक्ति हमेशा विभिन्न मापदंडों की उचित और सख्त जांच के अधीन होती है।जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर फैसला कर रही थी, जिसके पिता, जो पुलिस कांस्टेबल थे, उसकी मृत्यु के कारण अनुकंपा नियुक्ति के लिए दावा खारिज कर दिया गया।याचिकाकर्ता के पिता की मृत्यु...
सरकार जज नहीं बन सकती, किसी व्यक्ति को दोषी ठहराकर उसकी संपत्ति को ध्वस्त करके उसे दंडित नहीं कर सकती : सुप्रीम कोर्ट
'बुलडोजर मामले' में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि कार्यपालिका द्वारा कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी आरोपी के घर को ध्वस्त करना 'शक्ति का दुरुपयोग' माना जाएगा। यदि वह इस तरह की मनमानी कार्रवाई करती है तो कार्यपालिका कानून के सिद्धांतों को ताक पर रखकर मनमानी करने की दोषी होगी, जिससे 'कानून के कठोर हाथ' से निपटना होगा।जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने कहा,"जब अधिकारी प्राकृतिक न्याय के बुनियादी सिद्धांतों का पालन करने में विफल रहे और...
BREAKING| सुप्रीम कोर्ट ने 'बुल्डोज़र जस्टिस' पर कहा: केवल आपराधिक आरोपों/दोषसिद्धि के आधार पर संपत्तियां नहीं गिराई जा सकतीं
"बुलडोजर न्याय" की प्रवृत्ति के खिलाफ कड़ा संदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (13 नवंबर) को कहा कि कार्यपालिका केवल इस आधार पर किसी व्यक्ति के घर नहीं गिरा सकती कि वह किसी अपराध में आरोपी या दोषी है।कार्यपालिका द्वारा ऐसी कार्रवाई की अनुमति देना कानून के शासन के विपरीत है और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का भी उल्लंघन है, क्योंकि किसी व्यक्ति के अपराध पर फैसला सुनाना न्यायपालिका का काम है।न्यायालय ने कहा,"कार्यपालिका किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकती। केवल आरोप के आधार पर यदि...
BREAKING| सुप्रीम कोर्ट ने AMU का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ ने (4:3 बहुमत से) एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में 1967 के फैसला खारिज किया। उक्त फैसले में कहा गया था कि कानून द्वारा गठित कोई संस्था अल्पसंख्यक संस्था होने का दावा नहीं कर सकती। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा।अब यह मुद्दा कि AMU अल्पसंख्यक संस्था है या नहीं, बहुमत के इस दृष्टिकोण के आधार पर नियमित पीठ द्वारा तय किया जाना...
POCSO के तहत यौन उत्पीड़न मामले को 'समझौते' के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट का फैसला खारिज किया, जिसमें शिक्षक (पीड़िता के स्तन को रगड़ने के आरोपी) के खिलाफ 'यौन उत्पीड़न' की शिकायत खारिज कर दी गई थी। हाईकोर्ट ने पीड़िता के पिता और शिक्षक के बीच 'समझौते' के आधार पर मामला खारिज कर दिया था।सुप्रीम कोर्ट ने कहा,"हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि हाईकोर्ट इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचा कि इस मामले में पक्षों के बीच विवाद है, जिसे सुलझाया जाना है। साथ ही सद्भाव बनाए रखने के लिए एफआईआर और उससे जुड़ी सभी आगे की कार्यवाही को खारिज कर दिया जाना...
BREAKING| DRI अधिकारी कस्टम एक्ट के तहत कारण बताओ नोटिस जारी कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) के अधिकारियों को कस्टम एक्ट, 1962 (Customs Act) के तहत शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार है, जिससे वे कारण बताओ नोटिस जारी कर सकें और शुल्क वसूल सकें।कोर्ट ने माना कि DRI अधिकारी कस्टम एक्ट, 1962 की धारा 28 के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करने के लिए "उचित अधिकारी" हैं।कोर्ट ने माना,"फैसले में की गई टिप्पणियों के अधीन, राजस्व खुफिया निदेशालय, कस्टम-निवारक आयुक्तालय, केंद्रीय उत्पाद शुल्क खुफिया महानिदेशालय और केंद्रीय उत्पाद शुल्क आयुक्तालय और...
BREAKING| सुप्रीम कोर्ट ने रिसॉल्यूशन योजना के विफल होने पर जेट एयरवेज के परिसमापन का आदेश दिया
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए जेट एयरवेज के परिसमापन का आदेश दिया, क्योंकि "विचित्र और चिंताजनक" परिस्थिति यह है कि रिसॉल्यूशन योजना (Resolution Plan) को पांच वर्षों से क्रियान्वित नहीं किया गया।न्यायालय ने NCLAT के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें नकदी संकट से जूझ रही जेट एयरवेज के स्वामित्व को Resolution Plan के अनुसार पूर्ण भुगतान किए बिना सफल समाधान आवेदक (SRA) को हस्तांतरित करने की अनुमति दी गई थी।न्यायालय ने NCLT की मुंबई पीठ को...
BREAKING| LMV ड्राइविंग लाइसेंस धारक को 7500 किलोग्राम से कम भार वाले परिवहन वाहन चलाने के लिए अलग से प्राधिकरण की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हल्के मोटर वाहन (LMV) के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति बिना किसी विशेष अनुमोदन के, 7500 किलोग्राम से कम भार वाले परिवहन वाहन को चला सकता है।यदि वाहन का कुल भार 7500 किलोग्राम से कम है तो LMV लाइसेंस वाला चालक ऐसे परिवहन वाहन को चला सकता है। कोर्ट ने कहा कि उसके समक्ष ऐसा कोई अनुभवजन्य डेटा नहीं लाया गया है, जो यह दर्शाता हो कि परिवहन वाहन चलाने वाले LMV लाइसेंस धारक सड़क दुर्घटनाओं का महत्वपूर्ण कारण हैं।मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (MV Act) के प्रावधानों की...
संविधान के मूल ढांचे के उल्लंघन के आधार पर किसी क़ानून को रद्द नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 (Uttar Pradesh Board of Madarsa Education Act, 2004) से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी क़ानून की संवैधानिक वैधता को केवल इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि उसने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया।सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा इस आधार पर क़ानून को रद्द करने पर असहमति जताई कि उसने धर्मनिरपेक्षता की मूल संरचना विशेषता का उल्लंघन किया।चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज...
सुप्रीम कोर्ट ने UP Madarsa Education Act की वैधता बरकरार रखी
सुप्रीम कोर्ट ने 'उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004' (Uttar Pradesh Board of Madarsa Education Act 2004) की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी और इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला खारिज कर दिया, जिसने पहले इसे खारिज कर दिया था।सुप्रीम कोर्ट ने कहा,हाईकोर्ट ने इस आधार पर अधिनियम खारिज करने में गलती की कि यह धर्मनिरपेक्षता के मूल ढांचे के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। किसी क़ानून को तभी खारिज किया जा सकता है, जब वह संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो या विधायी क्षमता से संबंधित...
BREAKING| सभी निजी संपत्ति 'समुदाय के भौतिक संसाधन' नहीं, जिन्हें राज्य को अनुच्छेद 39(बी) के अनुसार समान रूप से वितरित करना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने 8:1 के बहुमत से माना कि सभी निजी संपत्तियां 'समुदाय के भौतिक संसाधनों' का हिस्सा नहीं बन सकती , जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के अनुसार समान रूप से पुनर्वितरित करने के लिए राज्य बाध्य है।कोर्ट ने कहा कि कुछ निजी संपत्तियां अनुच्छेद 39(बी) के अंतर्गत आ सकती हैं, बशर्ते वे भौतिक हों और समुदाय की हों।9 जजों की पीठ में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस बी.वी. नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस...