हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

14 April 2024 10:00 AM IST

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (08 अप्रैल, 2024 से 12 अप्रैल, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    किसी व्यक्ति की यात्रा संबंधी जानकारी निजी होती है, RTI Act के तहत उसे किसी तीसरे पक्ष को नहीं बताया जा सकता: दिल्ली हाइकोर्ट

    दिल्ली हाइकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी व्यक्ति की यात्रा संबंधी जानकारी निजी जानकारी होती है, जिसे सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 (RTI Act) के तहत किसी तीसरे पक्ष को नहीं बताया जा सकता, जब तक कि यह व्यापक जनहित में न हो।

    जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, "किसी भी व्यक्ति की यात्रा संबंधी जानकारी निजी जानकारी होती है। इस तरह के विवरण किसी तीसरे पक्ष को तब तक नहीं बताए जा सकते, जब तक कि यह व्यापक जनहित में न हो, जो उक्त जानकारी के प्रकटीकरण को उचित ठहराता हो।"

    केस टाइटल- एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी बनाम सीपीआईओ सहायक निदेशक

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    स्टाम्प अधिनियम | सरकार द्वारा अवैध रूप से ली गई अतिरिक्त ड्यूटी पर ब्याज का भुगतान किया जाना चाहिए: इलाहाबाद ‌हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि जहां राजस्व ने भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 के तहत अधिकारियों द्वारा एकत्र किए गए अतिरिक्त स्टांप शुल्क को अवैध रूप से रोक लिया है, वहां ब्याज का भुगतान सरकार द्वारा किया जाना चाहिए, भले ही इस तरह के ब्याज के लिए कोई प्रावधान न हो।

    सितंबर 2013 में याचिकाकर्ता के पक्ष में 5,35,454/- रुपये की वापसी का आदेश पारित किया गया। हालांकि, राशि दिसंबर 2023 में वापस कर दी गई थी। याचिकाकर्ता ने रिफंड राशि के विलंबित भुगतान पर ब्याज की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया था।

    केस टाइटल: विनोद कुमारी बनाम यूपी राज्य और 2 अन्य [रिट - सी नंबर- 5832/2024 ]

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    नियमों/विनियमों के अभाव में सेवानिवृत्त कर्मचारी के खिलाफ कोई कारण बताओ नोटिस/विभागीय कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि उत्तर प्रदेश सहकारी समिति कर्मचारी सेवा नियमावली, 1975 और उत्तर प्रदेश राज्य सहकारी भूमि विकास बैंक कर्मचारी सेवा नियमावली, 1976 में किसी नियम या विनियम के अभाव में किसी कर्मचारी के खिलाफ उसकी सेवानिवृत्ति के बाद न तो कारण बताओ नोटिस जारी किया जा सकता है और न ही विभागीय कार्यवाही की जा सकती है।

    सेवानिवृत्त कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करते हुए जस्टिस नीरज तिवारी ने कहा कि "नियमों और विनियमों में प्रावधानों के अभाव में सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी कर्मचारी के खिलाफ कोई कारण बताओ नोटिस या विभागीय कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती है।"

    केस टाइटलः प्रेम कुमार त्रिपाठी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [रिट - ए नंबर - 19256/2023]

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    अनुबंध द्वारा शासित संविदा कर्मचारी के टर्मिनेशन पर अनुच्छेद 226 के तहत निर्णय नहीं लिया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि हाईकोर्ट अनुबंध की शर्तों या शर्तों के उल्लंघन के संदर्भ में किसी संविदा कर्मचारी की बर्खास्तगी पर संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत निर्णय नहीं कर सकता, क्योंकि जहां अनुबंध की शर्तें मनमानी नहीं हैं, वहां अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 16 का उल्लंघन नहीं हो सकता। न्यायालय ने कहा कि ऐसे संविदात्मक विवादों को उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत संदर्भित किया जाना चाहिए।

    केस टाइटलः महेश कुमार बनाम यूपी राज्य और अन्‍य [रिट- ए नंबर 13670/2023 ]

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    गर्भवती नाबालिग को मेडिकल केयर प्रदान करने के लिए अस्पताल पूर्व शर्त के रूप में पुलिस शिकायत पर जोर नहीं दे सकते: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को एक 17 वर्षीय गर्भवती लड़की को मेडिकल केयर प्रदान करने का निर्देश दिया। लड़की ने अपने नाबालिग साथी, जिसके कारण वह गर्भवती हुई ‌थी, उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई थी, जिसके परिणामस्वरूप उसे मेडिकल सुविधाएं देने से इनकार कर दिया गया था।

    जस्टिस जीएस कुलकर्णी और जस्टिस फिरदोश पी पूनीवाला की खंडपीठ ने आदेश में कहा कि अस्पताल इस बात पर जोर नहीं दे सकते कि लड़की की मां मेडिकल ट्रीटमेंट पाने की शर्त के रूप में पुलिस में शिकायत दर्ज कराए।

    केस टाइटलः XYZ बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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    सीनियर सिटीजन के उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति विवादों को निपटाने के लिए Senior Citizens Act का इस्तेमाल मशीनरी के रूप में नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि माता-पिता और सीनियर सिटीजन का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 का उपयोग सीनियर सिटीजन के उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति विवादों को निपटाने के लिए एक मशीनरी के रूप में नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस संदीप मार्ने ने ये टिप्पणियां एक व्यक्ति की रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए कीं, जिसमें उसके सीनियर सिटीजन पिता द्वारा उसके पक्ष में निष्पादित विभिन्न गिफ्ट कार्यों को रद्द करने के भरण-पोषण न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती दी गई।

    केस टाइटल- नितिन राजेंद्र गुप्ता बनाम डिप्टी कलेक्टर, मुंबई और अन्य।

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    भारत में हर कोई धर्म बदलने के लिए स्वतंत्र: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भारत में लोग अपना धर्म चुनने और बदलने के लिए स्वतंत्र हैं। हालांकि, ऐसे परिवर्तनों के लिए कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।

    जस्टिस प्रशांत कुमार की पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि किसी के धर्म परिवर्तन की इच्छा का विश्वसनीय प्रमाण आवश्यक है। इसके बाद ऐसी इच्छा को पूरा करने के लिए स्पष्ट कार्रवाई की जानी चाहिए। महत्वपूर्ण बात यह है कि न्यायालय ने कानूनी औपचारिकताओं और सार्वजनिक जांच के महत्व पर जोर देते हुए किसी के धर्म को बदलने के लिए स्पष्ट चरण-दर-चरण प्रक्रिया की भी रूपरेखा तैयार की।

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    दहेज की मांग पूरी न होने पर विवाहित महिला को खाना देने से इनकार करना शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के बराबर: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि दहेज की मांग पूरी न होने पर विवाहित महिला को भोजन न देना शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के समान होगा। जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने कहा कि दहेज की मांग पूरी न होने पर किसी विवाहित महिला को अपने माता-पिता के घर में रहने के लिए मजबूर करना निश्चित रूप से मानसिक उत्पीड़न होगा, जो आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दंडनीय है।

    अदालत ने एक पति (आवेदक संख्या एक) और उसके परिवार के सदस्यों की ओर से दायर एक याचिका को खारिज़ करते हुए ये टिप्पणियां की। याचिका में उन्होंने पत्नी (प्रतिवादी संख्या 2) की ओर से धारा 498-ए, धारा 506, धारा 34 आईपीसी सहपठित दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दर्ज कराई गई एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी।

    केस टाइटलः नीतीश उमरिया और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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    राजनीतिक दल को PMLA Act के तहत लाया जा सकता है, केजरीवाल एक्ट की धारा 70(1) के तहत AAP के मामलों के लिए उत्तरदायी होंगे: दिल्ली हाईकोर्ट

    शराब नीति मामले में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की याचिका खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राजनीतिक दल को धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA Act) के दायरे में लाया जा सकता है।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने PMLA Act की धारा 70 और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 2 (एफ) (राजनीतिक दल) और 29ए का विश्लेषण करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल: अरविंद केजरीवाल बनाम प्रवर्तन निदेशालय

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    आरोपी के साथ समझौता करने पर POSCO Act के मामले रद्द नहीं किए जा सकते: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा है कि POSCO Act, 2019 के तहत, जिसे "विशेष क़ानून" माना जाता है, केवल अभियुक्त और अभियोक्ता-पीड़ित के बीच समझौते के आधार पर अपराधों को खारिज नहीं किया जा सकता है।

    "एक बार जब नाबालिग अभियोक्ता की सहमति अपराध के पंजीकरण के लिए सारहीन होती है, तो ऐसी सहमति अभी भी समझौते के लिए सहित सभी चरणों में सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए सारहीन रहेगी। केवल इसलिए कि नाबालिग अभियोक्ता बाद में आवेदक के साथ समझौता करने के लिए सहमत हो गया है, कार्यवाही को रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा (पॉक्सो अधिनियम के तहत)।

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    प्रवेश कर | भारत में बनी विदेशी शराब यूपी के स्थानीय क्षेत्र में माल प्रवेश अधिनियम 2007 के तहत कर योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद ‌हाईकोर्ट ने हाल ही में यूपी स्थानीय क्षेत्र में माल प्रवेश अधिनियम 2007 के तहत भारत निर्मित विदेशी शराब पर कर लगाने के मूल्यांकन आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया है कि यह अधिनियम की अनुसूची में प्रदान नहीं किया गया है।

    याचिकाकर्ता के खिलाफ उत्तर प्रदेश स्थानीय क्षेत्र में माल प्रवेश कर अधिनियम, 2000 की धारा 4-ए (निर्माता के माध्यम से कर की वसूली) सहपठित उत्तर प्रदेश बिक्री कर नियमावली 2000 के नियम 41(5) के तहत 19 अप्रैल 2006 को एक अनंतिम मूल्यांकन आदेश पारित किया गया था। अंतिम मूल्यांकन आदेश 30 मार्च 2008 को यूपी स्थानीय क्षेत्र में माल प्रवेश अधिनियम 2007 के तहत पारित किया गया था।

    केस टाइटल: एम/एस यूनाइटेड स्पिरिट्स लिमिटेड बनाम यूपी राज्य और 3 अन्य [रिट टैक्स नंबर 619/2023]

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    धारा 58 UPVAT | हाईकोर्ट को पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार में निर्णयों/आदेशों की पवित्रता बरकरार रखनी चाहिए, केवल तभी हस्तक्षेप करना चाहिए जब बाध्यकारी कारण हों: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में 'अपील' और 'रीविजन' (पुनरीक्षण) के बीच अंतर को स्पष्ट किया। हाईकोर्ट ने माना कि अपने पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट को निर्णयों और आदेशों की पवित्रता को बरकरार रखना चाहिए और केवल तभी हस्तक्षेप करना चाहिए जब ऐसा करने के लिए बाध्यकारी कारण हों।

    जस्टिस शेखर बी सराफ ने कहा, "उच्च न्यायालयों को, पुनरीक्षण निकायों के रूप में उनकी क्षमता में, ऐसे निर्णयों और आदेशों की पवित्रता को बनाए रखने का गंभीर कर्तव्य सौंपा गया है, और उन्हें तब तक हल्के में परेशान नहीं करना चाहिए जब तक कि सर्वोपरि महत्व के बाध्यकारी कारणों से इस तरह के हस्तक्षेप की आवश्यकता न हो।"

    केस टाइटल: आयुक्त, वाणिज्य कर, उ.प्र. बनाम M/S Godfrey Philips India Limited [SALES/TRADE TAX REVISION NO.150 OF 2023]

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    कानून के किसी प्रश्न पर निर्णय, जिसे बाद में किसी अन्य मामले में हाईकोर्ट द्वारा पलट दिया गया या संशोधित किया गया, पुनर्विचार का आधार नहीं बनता: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में कर अपील मामलों में निर्णयों की पुनर्विचार के मानदंड स्पष्ट किए हैं, विशेष रूप से कानूनी प्रश्नों पर आधारित निर्णयों के संबंध में। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 47 के नियम 1 के स्पष्टीकरण के अनुसार, अदालत ने कहा कि यदि अदालत के फैसले का आधार बनने वाले कानूनी प्रश्न पर निर्णय बाद में किसी अन्य मामले में हाईकोर्ट द्वारा उलट या संशोधित किया जाता है तो यह मूल निर्णय की पुनर्विचार के लिए आधार के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता।

    केस टाइटल: आदर्श सहकारी गृह निर्माण स्वावलंबी समिति लिमिटेड बनाम आयकर आयुक्त, जमशेदपुर

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    नियोक्ता-कर्मचारी संबंध साबित करने का बोझ मुख्य रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि कौन अपने अस्तित्व का दावा करता है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने राकेश शर्मा बनाम इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और एक अन्य के मामले में लेटर्स पेटेंट अपील का फैसला करते हुए कहा कि नियोक्ता-कर्मचारी संबंध साबित करने का बोझ मुख्य रूप से उस व्यक्ति पर टिका हुआ है जिसने अपने अस्तित्व का दावा किया है। एक बार प्रबंधन का कर्मचारी होने का दावा करने वाला व्यक्ति उनके पक्ष में सबूत देता है, तभी प्रबंधन पर कर्मचारी के ऐसे दावों का मुकाबला करने के लिए साक्ष्य देने का भार बदलेगा।

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    पति द्वारा नवजात शिशु के भरण-पोषण के लिए पत्नी के माता-पिता से पैसे मांगना 'दहेज' नहीं: पटना हाइकोर्ट

    पटना हाइकोर्ट ने कहा कि यदि पति अपने नवजात शिशु के पालन-पोषण और भरण-पोषण के लिए पत्नी के पैतृक घर से पैसे मांगता है तो ऐसी मांग दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 (i) के अनुसार 'दहेज' की परिभाषा के दायरे में नहीं आती।

    जस्टिस बिबेक चौधरी की पीठ ने पति द्वारा आईपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 4 के तहत अपनी सजा को चुनौती देने वाली पुनर्विचार याचिका स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल - नरेश पंडित बनाम बिहार राज्य और अन्य

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    SC/ST कोटे के तहत नियुक्त व्यक्ति बाद में भूतपूर्व सैनिक कोटे के तहत आरक्षण का दावा नहीं कर सकता: हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट की चीफ जस्टिस एम.एस. रामचंद्र राव और जस्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ की खंडपीठ ने कहा कि हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य बनाम जय राम कौंडल के मामले में लेटर्स पेटेंट अपील का फैसला करते हुए कहा कि एक बार जब कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति कोटे के तहत नियुक्त हो जाता है तो बाद में वह भूतपूर्व सैनिक कोटे के तहत आरक्षण का दावा नहीं कर सकता।

    केस टाइटल- हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य बनाम जय राम कौंडल

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    जिला मजिस्ट्रेट जो हिरासत आदेश जारी करने के लिए अधिकृत, वह सरकार की मंजूरी से पहले इसे रद्द भी कर सकता है: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाइकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जिला मजिस्ट्रेट के पास जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (PSA) के तहत पारित हिरासत आदेश तब तक रद्द करने का अधिकार है, जब तक कि इसे सरकार द्वारा अनुमोदित नहीं किया जाता।

    जस्टिस संजय धर द्वारा पारित फैसले में अदालत ने कहा, “प्राधिकरण, जिसे आदेश बनाने का अधिकार है, उसे ऐसे आदेश को जोड़ने संशोधित करने बदलने या रद्द करने का अधिकार है। इसलिए जिला मजिस्ट्रेट जिसे हिरासत का आदेश बनाने का अधिकार है, उसे तब तक इसे रद्द करने का भी अधिकार है, जब तक कि इसे सरकार द्वारा अनुमोदित नहीं किया जाता।”

    केस टाइटल- बशीर अहमद नाइक बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश

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    वारंट जारी होने से पहले किसी दूर की जगह चले जाना वाला व्यक्ति फरार नहीं होता: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति गिरफ्तारी के वारंट से पहले किसी दूर की जगह पर चला गया है तो उसे फरार या गिरफ्तारी से बचने वाला नहीं कहा जा सकता।

    गौरतलब है कि सीआरपीसी की धारा 82 में कहा गया, "यदि किसी कोर्ट को यह विश्वास करने का कारण है (चाहे साक्ष्य लेने के बाद या नहीं) कि कोई व्यक्ति, जिसके विरुद्ध उसके द्वारा वारंट जारी किया गया, फरार हो गया या खुद को छिपा रहा है जिससे ऐसे वारंट को निष्पादित नहीं किया जा सके तो ऐसा न्यायालय लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है, जिसमें उसे किसी विशिष्ट स्थान पर और निर्दिष्ट समय पर उपस्थित होने की आवश्यकता होगी, जो ऐसी उद्घोषणा प्रकाशित होने की तिथि से कम से कम तीस दिन की अवधि का होगा।"

    केस टाइटल- सुच्चा सिंह बनाम पंजाब राज्य

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    सहमति से तलाक के समय भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार छोड़ने वाली पत्नी बाद में इसकी हकदार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई महिला आपसी सहमति से तलाक के समय अपने पति से गुजारा भत्ता का दावा करने का अधिकार छोड़ देती है, तो वह बाद में इसकी मांग नहीं कर सकती है। जस्टिस विपिन चंद्र दीक्षित की पीठ ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपनी पत्नी द्वारा दायर याचिका में फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली एक पति की पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए यह राय दी, जिसमें पति को प्रतिवादी पत्नी को अंतरिम भरण-पोषण के रूप में प्रति माह 25 हजार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

    केस टाइटलः गौरव मेहता बनाम अनामिका चोपड़ा संबंधित मामले के साथ 2024 लाइव लॉ (एबी) 218 [CRIMINAL REVISION No. - 4152 of 2023]

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    तदर्थ आधार पर नियुक्त कर्मचारी किसी पद से जुड़े वेतन के हकदार नहीं, जब तक कि उन्हें पर्याप्त क्षमता में नियुक्त न किया जाए: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट के जस्टिस पीबी बजंथरी और जस्टिस अरुण कुमार झा की खंडपीठ ने गणेश महतो बनाम बिहार राज्य के मामले में लेटर्स पेटेंट अपील पर निर्णय लेते हुए कहा कि कर्मचारी उस पद से जुड़े वेतन के हकदार नहीं हैं, जिसके लिए उन्हें तदर्थ आधार पर नियुक्त किया जाता है, जब तक कि वे उस पद पर वास्तविक क्षमता में न हों।

    मामले में अदालत ने कहा कि वर्ष 2014 से 2015 तक जारी नियमितीकरण आदेश को चुनौती न देने और नवंबर, 2006 से नियमितीकरण की मांग करने पर यदि उत्तरदाता नवंबर, 2006 से नियमितीकरण के हकदार थे, तो उत्तरदाता हस्तक्षेप अवधि या उस तारीख के दौरान पद से जुड़े वेतन के हकदार नहीं थे जिस दिन उनकी सेवाएं नियमित की गई थीं, इसलिए एकल न्यायाधीश ने हस्तक्षेप अवधि के दौरान वेतन की बकाया राशि के मामले में उत्तरदाताओं को राहत देने में गलती की और यह कानून के तहत स्वीकार्य नहीं था।

    केस टाइटल: गणेश महतो बनाम बिहार राज्य

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