किसी व्यक्ति की यात्रा संबंधी जानकारी निजी होती है, RTI Act के तहत उसे किसी तीसरे पक्ष को नहीं बताया जा सकता: दिल्ली हाइकोर्ट

Amir Ahmad

12 April 2024 4:31 PM GMT

  • किसी व्यक्ति की यात्रा संबंधी जानकारी निजी होती है, RTI Act के तहत उसे किसी तीसरे पक्ष को नहीं बताया जा सकता: दिल्ली हाइकोर्ट

    दिल्ली हाइकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी व्यक्ति की यात्रा संबंधी जानकारी निजी जानकारी होती है, जिसे सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 (RTI Act) के तहत किसी तीसरे पक्ष को नहीं बताया जा सकता, जब तक कि यह व्यापक जनहित में न हो।

    जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा,

    "किसी भी व्यक्ति की यात्रा संबंधी जानकारी निजी जानकारी होती है। इस तरह के विवरण किसी तीसरे पक्ष को तब तक नहीं बताए जा सकते, जब तक कि यह व्यापक जनहित में न हो, जो उक्त जानकारी के प्रकटीकरण को उचित ठहराता हो।"

    न्यायालय ने यह टिप्पणी मुंबई दोहरे बम विस्फोट मामले (7/11 बम विस्फोट) में मौत की सजा पाए एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी की याचिका खारिज करते हुए की।

    सिद्दीकी ने जनवरी 2022 में केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी, जिसमें उन्हें 01 जनवरी 2006 से 30 जून 2006 के बीच मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से हांगकांग तक मामले में गवाह की यात्रा (प्रस्थान या आगमन) की प्रविष्टियों के बारे में जानकारी देने से इनकार किया गया था।

    ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन के सीपीआईओ ने इस आधार पर उनके RTI Act आवेदन खारिज कर दी कि ब्यूरो ऑफ इमिग्रेशन को RTI Act की धारा 24 (1) और दूसरी अनुसूची के तहत कोई भी जानकारी प्रदान करने से छूट प्राप्त है।

    सीआईसी ने इस आधार पर उनकी अपील खारिज कर दी कि सिद्दीकी तीसरे पक्ष से सूचना मांग रहे थे, जिसे RTI Act की धारा 8(1)(जे) के तहत छूट प्राप्त है।

    सीआईसी का आदेश बरकरार रखते हुए जस्टिस प्रसाद ने कहा कि आयोग द्वारा लिया गया दृष्टिकोण इतना विकृत नहीं है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हस्तक्षेप की आवश्यकता हो।

    कोर्ट ने कहा कि सिद्दीकी के लिए सीआरपीसी की धारा 391 के तहत संबंधित न्यायालय में उक्त सूचना प्राप्त करने के लिए जाना हमेशा खुला है, यदि वह आपराधिक न्यायालय के रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं है भले ही वह आरोपपत्र का हिस्सा न हो।

    न्यायालय ने कहा,

    “उपर्युक्त के मद्देनजर इस न्यायालय को केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा लिए गए दृष्टिकोण में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता। रिट याचिका लंबित आवेदनों के साथ खारिज की जाती है।

    केस टाइटल- एहतेशाम कुतुबुद्दीन सिद्दीकी बनाम सीपीआईओ सहायक निदेशक

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