SC/ST कोटे के तहत नियुक्त व्यक्ति बाद में भूतपूर्व सैनिक कोटे के तहत आरक्षण का दावा नहीं कर सकता: हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट

Amir Ahmad

8 April 2024 10:19 AM GMT

  • SC/ST कोटे के तहत नियुक्त व्यक्ति बाद में भूतपूर्व सैनिक कोटे के तहत आरक्षण का दावा नहीं कर सकता: हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट की चीफ जस्टिस एम.एस. रामचंद्र राव और जस्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ की खंडपीठ ने कहा कि हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य बनाम जय राम कौंडल के मामले में लेटर्स पेटेंट अपील का फैसला करते हुए कहा कि एक बार जब कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति कोटे के तहत नियुक्त हो जाता है तो बाद में वह भूतपूर्व सैनिक कोटे के तहत आरक्षण का दावा नहीं कर सकता।

    मामले की पृष्ठभूमि

    1993 में सेना से रिटायरमेंट के बाद जय राम कौंडल (प्रतिवादी) को अनुसूचित जाति श्रेणी में आरक्षण के माध्यम से चिकित्सा अधिकारी (पोस्ट I) के रूप में नियुक्त किया गया। 1996 में राज्य (अपीलकर्ता) ने अनुसूचित जाति श्रेणी में चिकित्सा अधिकारी (भूतपूर्व सैनिक) (पद II) के लिए विज्ञापन दिया, जहां भूतपूर्व सैनिकों को उनकी पिछली सैन्य सेवा का लाभ उठाने के लिए आरक्षण प्रदान किया गया। इसलिए प्रतिवादी ने कहा कि भूतपूर्व सैनिक होने के नाते उसे सीधे पद II के विरुद्ध नियुक्त किया जाना चाहिए।

    राज्य ने प्रतिवादियों के इस आधार पर अभ्यावेदन अस्वीकार कर दिया कि भूतपूर्व सैनिक (हिमाचल प्रदेश तकनीकी सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण) नियम, 1985 के तहत सैन्य सेवा का लाभ तभी उपलब्ध है, जब प्रतिवादी भूतपूर्व सैनिक होने के नाते पद I में शामिल हुए बिना सीधे पद II में शामिल हुआ हो।

    इससे व्यथित होकर प्रतिवादी ने इस आधार पर पद II में नियुक्ति की मांग करते हुए रिट याचिका दायर की कि वह भूतपूर्व सैनिक है, जिसे सिंगल जज ने अनुमति दे दी। अब इससे व्यथित होकर अपीलकर्ता राज्य ने लेटर्स पेटेंट अपील दायर की।

    अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि कार्मिक विभाग के निर्देश (निर्देश) के अनुसार एक बार जब किसी व्यक्ति को अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति कोटे के तहत नियुक्ति के लिए विचार किया जाता है तो बाद में वह भूतपूर्व सैनिक होने के कारण आरक्षण का दावा नहीं कर सकता।

    दूसरी ओर प्रतिवादी द्वारा यह प्रस्तुत किया गया कि भूतपूर्व सैनिक होने के नाते वह अपनी पिछली सेना सेवा के लाभों का लाभ उठाने का हकदार है। प्रतिवादी ने आगे प्रस्तुत किया कि वह पद I में शामिल हुआ, क्योंकि यह सेना से उसकी सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद उपलब्ध हो गया था। वह पद II की उपलब्धता तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता था, इसलिए यह मजबूर करने वाली परिस्थिति थी कि प्रतिवादी ने पद I के विरुद्ध नियुक्ति स्वीकार कर ली।

    न्यायालय के निष्कर्ष

    न्यायालय ने निर्देशों से यह देखा कि जब अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति श्रेणी से संबंधित किसी व्यक्ति को भूतपूर्व सैनिक के लिए आरक्षण के कोटे के तहत नियुक्त किया जाता है तो ऐसी नियुक्ति भी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण के समग्र कोटे के अंतर्गत आएगी।

    न्यायालय ने माना कि प्रतिवादी भूतपूर्व सैनिक होने का कोई लाभ नहीं ले सकता, क्योंकि वह पहले से ही अनुसूचित जाति कोटे के तहत नियुक्त था। इसलिए पद II के विरुद्ध उसकी नियुक्ति के लिए प्रतिवादी का दावा स्वीकार्य नहीं है।

    न्यायालय ने सिंगल जज द्वारा आदेश में लिए गए दृष्टिकोण से असहमति जताई। तदनुसार इसे खारिज कर दिया। परिणामस्वरूप रिट याचिका खारिज कर दी गई।

    उपर्युक्त टिप्पणियों के साथ लेटर्स पेटेंट अपील को अनुमति दी गई।

    केस टाइटल- हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य बनाम जय राम कौंडल

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