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संविदा विधि (Contract Law) भाग 7 : स्वतंत्र सहमति के अंतर्गत कपट, दुर्व्यपदेशन और भूल
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के अंतर्गत धारा 10 सभी करारों को संविदा घोषित करती है। इस धारा के अंतर्गत यह उल्लेख किया गया है कि किसी भी करार के संविदा होने के लिए स्वतंत्र सहमति उसमें एक प्रमुख गुण होता है। अधिनियम की धारा 14 के अंतर्गत स्वतंत्र सहमति की परिभाषा प्रस्तुत की गई है जिसमें स्वतंत्र सहमति में पांच तत्वों का समावेश दिया गया है। इन पांच तत्वों में अंत के तीन तत्व कपाट, दुर्व्यपदेशन और भूल है जिन्हें इस आलेख में प्रस्तुत किया जा रहा है। यदि किसी सहमति में कपट नहीं है दुर्व्यपदेशन नहीं है...
संविदा विधि (Contract Law) भाग 6 : स्वतंत्र सहमति (Free Consent) क्या होती है?
संविदा विधि के पिछले आलेखों में अब तक हमने जाना है कि किसी भी करार के लिए प्रस्थापना और प्रस्थापना का प्रतिग्रहीत होना आवश्यक होता है तथा जब प्रस्थापना प्रतिग्रहीत हो जाती है तो वह करार बन जाती है। भाग पांच के अंतर्गत हमने जाना है कि कोई करार वैध संविदा कब बनता है तथा किसी भी करार को वैध संविदा होने हेतु सक्षम पक्षकार तथा स्वतंत्र सहमति का होना नितांत आवश्यक होता है। पिछले आलेख में यह भी अध्ययन किया जा चुका है कि कोई करार के सक्षम पक्षकार क्या होते है, सक्षम पक्षकार होने के लिए वयस्कता, स्वस्थ...
संविदा विधि (Contract Law) भाग 5 : कोई करार कब संविदा बनता है और संविदा करने के लिए सक्षम कौन होता है (धारा 10-12)
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के अंतर्गत सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि जब करार हो जाता है तो कौन से करार संविदा बनते हैं और संविदा करने के लिए सक्षम पक्षकार कौन होते हैं? इस प्रश्न का जवाब हमें इस अधिनियम की धारा 10 और 12 में प्राप्त होता है। इस अधिनियम की धारा 10 भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के सर्वाधिक महत्वपूर्ण धाराओं में से एक धारा है। यदि इस धारा को गहनता से अध्ययन किया जाए तो यह प्राप्त होता है कि संविदा अधिनियम का संपूर्ण निचोड़ तथा निष्कर्ष इस धारा के अंतर्गत समाहित कर दिया गया है। इस...
जानिए विशिष्ट राहत अधिनियम (Specific Relief Act, 1963) के बारे में ये खास बातें
विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 (Specific Relief Act, 1963) संसद द्वारा अधिनियमित किया गया और यह 1 मार्च, 1964 को लागू हुआ था। वर्तमान विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 पूर्व विशिष्ट राहत अधिनियम 1877 का एक संशोधित रूप है जिसे वर्तमान अधिनियम की धारा 44 द्वारा निरस्त कर दिया गया था। यह अधिनियम ठेकों, टोरंट और अन्य मामलों से संबंधित मामलों में राहत प्रदान करने के उद्देश्य से बनाया गया था। यह अधिनियम भारतीय अनुबंध अधिनियम(Indian Contract Act), 1872 की शाखाओं में से एक में माना जाता है।हाल ही में, विशिष्ट...
संविदा विधि (Contract Law) भाग 4 : संविदा अधिनियम के अंतर्गत प्रतिसंहरण ( Revocation) क्या होता है और कैसे किया जाता है (धारा 5-6)
प्रतिसंहरण का सामान्य सा अर्थ होता है रद्द करना अर्थात अपने प्रस्ताव और स्वीकृति को रद्द करना। प्रश्न उठता है कि कोई भी प्रस्ताव या स्वीकृति को रद्द किया जा सकता है रद्द करने की समय अवधि क्या है।इस प्रश्न का उत्तर हमें संविदा अधिनियम 1872 धारा 5 के अंतर्गत प्राप्त होता है। इस धारा के अनुसार कोई भी प्रस्थापना उसके प्रतिग्रहण की सूचना प्रस्थापक के विरुद्ध संपूर्ण हो जाने के पूर्व किसी भी समय प्रतिसंहरण की जा सकेगी किंतु उसके पश्चात नहीं।कोई भी प्रतिग्रहण या प्रतिग्रहण की सूचना प्रतिग्रहिता के...
संविदा विधि (Law of Contract ) भाग 3 : संविदा अधिनियम के अंतर्गत प्रस्ताव ( Proposal) और स्वीकृति (acceptance) कैसे किया जाता है (धारा 3-4)
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के अंतर्गत अब तक के दो आलेखों में हमने इस अधिनियम का मूल अर्थ और उससे संबंधित परिभाषाओं को समझने का प्रयास किया है, इस आलेख के अंतर्गत प्रस्थापना (प्रस्ताव) और प्रतिग्रहण ( स्वीकृति) कैसे किया जाता है प्रस्थापना और प्रतिग्रहण की सूचना कैसे संपूर्ण होती है, इस संदर्भ में उल्लेख किया जा रहा है।प्रस्ताव ( Proposal) की संसूचनासंविदा अधिनियम 1872 की धारा 3 प्रस्थापनाओं की संसूचना, प्रतिग्रहण कि संसूचना और प्रतिसंहरण के संबंध में उल्लेख कर रही है। इस धारा का सर्वाधिक महत्व...
संविदा विधि ( Law of Contract) भाग 2 : संविदा अधिनियम के अंतर्गत परिभाषाएं (धारा- 2)
किसी भी अधिनियम की उद्देशिका उसकी परिभाषा वाली धारा होती है। भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के अंतर्गत भी परिभाषाओं के संबंध में (धारा-2) दी गई है। इस धारा के अंतर्गत इस अधिनियम से संबंधित संपूर्ण महत्वपूर्ण परिभाषाओं का समावेश कर दिया गया है। यदि इन परिभाषाओं को जिज्ञासा पूर्वक समझ लिया जाए तो भारतीय संविदा अधिनियम 1872 सरलतापूर्वक समझा जा सकता है। इस आलेख में भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा-2 के अंतर्गत जो 10 परिभाषाएं प्रस्तुत की गई है उनमे महत्वपूर्ण परिभाषाओं पर टीका टिप्पणी सहित सारगर्भित...
संविदा विधि (Law of Contract ) भाग 1 : संविदा विधि का अर्थ और उससे संबंधित महत्वपूर्ण बातें
यह सीरीज संविदा विधि से संबंधित आलेखों को लेकर प्रारंभ की जा रही है। इस सीरीज के अंतर्गत संविदा विधि से संबंधित समस्त महत्वपूर्ण प्रावधानों को टीका टिप्पणी सहित सारगर्भित आलेखों में समावेश किया जा रहा है। इस सीरीज का उद्देश्य विधि के छात्रों और कानूनी जानकारी प्राप्त करने के इच्छुक व्यक्तियों को सरल से सरलतम भाषा में संविदा विधि की सभी महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध कराना है। यह इस सीरीज का प्रथम आलेख है जिसके माध्यम से संविदा विधि के अर्थ और उस पर संबंधित महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा की जा रही है...
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया सदोष हत्या का प्रयास, जिसमें हत्या न हुई हो [Section 308 IPC] और स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाना [ Section 324 IPC] के बीच अंतर
एक आपराधिक अपील में पिछले महीने पारित एक आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने सदोष हत्या के प्रयास, जिसमें हत्या न हुई हो [धारा 308 आईपीसी] और जानबूझ़-कर तेज धारदार हथियार से घायल करने [ धारा 324 आईपीसी] के बीच 'सूक्ष्म और बारीक' अंतर समझाया।तीन जजों की पीठ ने कहा, धारा 308 के तहत, चोटें ऐसी होनी चाहिए जिनसे मौत हो सकती हो, जबकि धारा 324 के तहत चोटें जीवन को खतरे में डाल सकती या नहीं डाल सकती है।अदालत एक अभियुक्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के तहत दी गई सजा के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही...
हिंदू विधि भाग 19 : कोई हिंदू व्यक्ति अपनी साहदायिकी संपत्ति सहित कोई भी संपत्ति कहीं भी वसीयत कर सकता है
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 किसी निर्वसीयती मरने वाले हिंदुओं की संपत्ति के उत्तराधिकार के संबंध में वारिसान की व्यवस्था करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत हिंदू पुरुष और हिंदू नारी दोनों की संपत्ति के उत्तराधिकार की व्यवस्था की गई है पर यह अधिनियम केवल तब ही लागू होता है जब कोई हिंदू व्यक्ति अपने उत्तराधिकार के संबंध में कोई वसीयत कर कर नहीं मृत हुआ है। इस अधिनियम की धारा 30 महत्वपूर्ण धाराओं में से एक धारा है। इस धारा के अंतर्गत किसी हिंदू व्यक्ति को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपनी संपत्ति को...
हिंदू विधि भाग 18 : उत्तराधिकार से संबंधित संपत्ति में हिस्सेदारों को अग्रक्रयाधिकार (Peferential Right) प्राप्त होता है
हिंदू विधि के अधीन किसी निर्वसीयती मरने वाले हिंदू व्यक्ति की संपत्ति के सभी वारिसों को संपत्ति में अग्रक्रयाधिकार प्राप्त होता है अर्थात उत्तराधिकार के किसी हिस्से को खरीदने का पहला अधिकार उस संपत्ति के हिस्सेदारों को ही प्राप्त होता है। जहां निर्वसीयती मृत व्यक्ति की अचल संपत्ति अनुसूची के वर्ग -1 ही के दो या दो से अधिक वारिसों पर न्यागत होती है और उनमें से कोई वारिस उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति या व्यवसाय में अपने हित को अंतरित करना चाहता है, तो अन्य वारिस या वारिसगण को यह अधिमानी विधिक...
हिंदू विधि भाग- 17 : कोई हिंदू वारिस उत्तराधिकार से कब बेदखल होता है
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 किसी बगैर वसीयत के स्वर्गीय होने वाले हिंदू पुरुष और स्त्री की संपत्ति के उत्तराधिकार के संबंध में नियमों को प्रस्तुत करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत वारिसों का निर्धारण किया गया है। कौन से वारिस किस समय संपत्ति में उत्तराधिकार का हित रखते हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत किसी संपत्ति में उत्तराधिकार रखने वाले वारिसों के बेदखल के संबंध में भी प्रावधान किए गए।कुछ परिस्थितियां ऐसी है जिनके आधार पर विधि वारिसों को उत्तराधिकार के हित से अयोग्य कर देती है। उत्तराधिकार के संबंध...
हिंदू विधि भाग 16 : बगैर वसीयत के स्वर्गवासी होने वाली हिंदू नारी की संपत्ति का उत्तराधिकार (Succession) कैसे तय होता है
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 ( Hindu Succession Act, 1956) हिंदू पुरुष और हिंदू स्त्रियों में किसी प्रकार का उत्तराधिकार के संबंध में कोई भेदभाव नहीं करता है। यह विधि प्राकृतिक स्नेह और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है। भारत की संसद द्वारा इसका निर्माण सामाजिक समरसता और समानता के आधार पर किया है। इस अधिनियम के अंतर्गत हिंदू पुरुष की संपत्ति को उत्तराधिकार में बांटने का अलग वैज्ञानिक तरीका है जिसका वर्णन इस अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत किया गया है। लेखक द्वारा इस अधिनियम की धारा 8 पर...
हिंदी विधि भाग-15: बगैर वसीयत के स्वर्गवासी होने वाले हिंदू पुरुष के उत्तराधिकारियों में संपत्ति के बंटवारे का क्रम क्या होता है?
इससे पूर्व के आलेख में किसी बगैर वसीयत के मरने वाले हिंदू पुरुष की संपत्ति के उत्तराधिकार के निर्धारण के संबंध में उल्लेख किया गया था तथा उन वारिसों को बताया गया था जिन्हें इस प्रकार बगैर वसीयत के मरने वाले हिंदू पुरुष की संपत्ति हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 8 के अंतर्गत उत्तराधिकार में प्राप्त होती है। इस आलेख में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार संपत्ति जब उत्तराधिकारियों को प्राप्त होती है तो वह किस क्रम में प्राप्त होगी! इस संबंध में चर्चा की जा रही है।हिंदू उत्तराधिकार...
हिंदू विधि भाग 14 : जानिए बगैर वसीयत के स्वर्गवासी होने वाले हिंदू पुरुष की संपत्ति का उत्तराधिकार (Succession) कैसे तय होता है
हिंदू विधि (Hindu Law) किसी भी हिंदू पुरुष को यह अधिकार देती है कि वह अपनी कोई भी अर्जित संपत्ति को कहीं पर भी वसीयत कर सकता है। हिंदू विधि के अंतर्गत किसी भी हिंदू पुरुष को इस बात की बाध्यता नहीं है कि वह अपनी संपत्ति अपने परिवारजनों को ही वसीयत करे या उन्हें ही उत्तराधिकार में दे, स्वतंत्रतापूर्वक हिंदू पुरुष को यह अधिकार दिया गया है कि वह उसकी कमाई हुई संपत्ति को अपनी इच्छा के अनुरूप कहीं भी उत्तराधिकार में दे सकता है या उसे दान कर सकता है, उसे अपना उत्तराधिकार चुनने की स्वतंत्रता है।मुस्लिम...
हिन्दू विधि भाग 13: हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत परिभाषाएं और इस अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम ( Hindu Succession Act) 1956 किसी निर्वसीयती हिंदू की मृत्यु के बाद उसकी अर्जित संपत्ति उत्तराधिकार से संबंधित एक संहिताबद्ध अधिनियम है। इस अधिनियम के अंतर्गत कुछ विशेष शब्दों की परिभाषाएं दी गई हैं तथा यह अधिनियम कहां-कहां और किन-किन विधियों को अध्यारोही कर सकता है, उस संबंध में भी उल्लेख किया गया है। इस लेख के माध्यम से लेखक हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 से संबंधित धारा 3 एवं धारा 4 के प्रावधानों पर चर्चा कर रहा है। अधिनियम के अंतर्गत कुछ विशेष शब्दों की...
कोर्ट की अवमानना के लिए एक वकील को प्रैक्टिस से रोकने की न्यायालयों की शक्ति
एडवोकेट प्रशांत भूषण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए अवमानना के फैसले के संदर्भ में, कई पाठकों ने अदालतों की शक्ति के बारे में प्रश्न पूछा था, क्या कोर्ट एक वकील को प्रैक्टिस करने से रोक सकती है। उस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने एक रुपए के जुर्माने की सजा दी थी और कहा था कि यदि जुर्माना अदा नहीं किया जाता है तो भूषण को तीन महीने की कैद से गुजरना होगा और तीन साल के लिए सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने से रोक दिया जाएगा। यहां सुप्रीम कोर्ट के उदाहरणों के आधार पर इस मुद्दे पर कानून की...
हिन्दू विधि भाग 12 : हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 और उससे संबंधित महत्वपूर्ण बातें
लेखक द्वारा लाइव लॉ पर हिंदू विधि के अंतर्गत हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के समस्त महत्वपूर्ण प्रावधानों पर सारगर्भित टीका टिप्पणी के साथ आलेख लिखे गए हैं। इसके आगे भाग 12 से हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के महत्वपूर्ण प्रावधान पर टीका टिप्पणी सहित आलेख लिखे जाएंगे। इस लेख भाग -12 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 से संबंधित महत्वपूर्ण बातों का समावेश किया जा रहा है तथा इस अधिनियम की प्रस्तावना को प्रस्तुत किया जा रहा है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 हिंदू पर्सनल लॉ (Hindu Personal Law)...
हिंदू विधि भाग 11 : जानिए पति पत्नी के बीच मुकदमेबाज़ी के दौरान बच्चों की अभिरक्षा (Child Custody) कैसे निर्धारित की जाती है
वैवाहिक बंधन आपसी सूझबूझ पर निर्भर करता है। जब किसी वैवाहिक बंधन में ऐसी आपसी सूझबूझ का अभाव होता है तथा वैचारिक मत मिल नहीं पाते हैं तब मतभेद का जन्म होता है। ऐसे मतभेद से पति पत्नी के बीच अलगाव का भी जन्म हो जाता है। इस अलगाव के परिणामस्वरूप पति-पत्नी न्यायालय की शरण लेते हैं तथा दांपत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापन, न्यायिक पृथक्करण और तलाक के मुकदमों का जन्म होता है। जब इस प्रकार की कार्यवाही अदालतों में चलती रहती है, उस समय विवाह से उत्पन्न होने वाली संतानों पर संकट आ जाता है। किसी भी बच्चे...
हिन्दू विधि भाग 10 : विवाह विच्छेद (Divorce) के बाद पुनः विवाह कब किया जा सकता है? हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत क्या दाण्डिक प्रावधान है
हिंदू विवाह अधिनियम 1955 तलाक की संपूर्ण व्यवस्था करता है। धारा 13 के अंतर्गत उन आधारों का उल्लेख किया गया है, जिनके आधार पर तलाक की डिक्री पारित की जाती है और धारा 13b के अंतर्गत पारस्परिक तलाक का उल्लेख किया गया है। अब प्रश्न आता है कि न्यायालय से किसी विवाह विच्छेद की डिक्री पारित हो जाने के बाद विवाह कब किया जा सकता है? लेखक इस लेख के माध्यम से पुनर्विवाह के संबंध में और हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के अंतर्गत जो दाण्डिक प्रावधान है उनका उल्लेख कर रहा है। पुनर्विवाह विवाह एक पवित्र...









![सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया सदोष हत्या का प्रयास, जिसमें हत्या न हुई हो [Section 308 IPC] और स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाना [ Section 324 IPC] के बीच अंतर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया सदोष हत्या का प्रयास, जिसमें हत्या न हुई हो [Section 308 IPC] और स्वेच्छा से खतरनाक हथियारों से चोट पहुंचाना [ Section 324 IPC] के बीच अंतर](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2019/07/26/500x300_362576-360061-supreme-court.jpg)






