संविदा विधि (Law of Contract ) भाग 11: समाश्रित संविदा (Contingent Contracts) क्या होती है
Shadab Salim
24 Oct 2020 12:45 PM IST
संविदा विधि से संबंधित अब तक के आलेखों में संविदा विधि के आधारभूत सिद्धांतों का अध्ययन किया गया है। भाग 11 से संविदा विधि के अगले विषयों का अध्ययन किया जा रहा है।
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के अध्याय 3 के अंतर्गत धारा 31 से लेकर 36 तक समाश्रित संविदा (Contingent Contracts) के विषय में उल्लेख किया गया है।
इस अधिनियम की धारा 30 के अंतर्गत पंधम के तौर पर अर्थात सट्टे वाले करार संविदा नहीं होते हैं क्योंकि उन में में एक पक्षकार जीतता है तथा दूसरा पक्षकार हारता है। इस ही से मिलता-जुलता रूप एक और है जिसे समाश्रित संविदा कहते हैं। समाश्रित संविदा को भारतीय संविदा अधिनियम 1872 के अंतर्गत संविदा की मान्यता प्राप्त है अर्थात समाश्रित संविदा कानूनी बल रखती है।
समय के साथ विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने विकास किया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास करने के परिणामस्वरूप व्यापार और वाणिज्य का भी विकास हुआ है। मनुष्य की आवश्यकताएं भी बड़ी है इसे ध्यान में रखते हुए समाश्रित संस्थाओं को मान्यता प्रदान की गई है। जीवन बीमा को छोड़कर सभी प्रकार के बीमा की संविदा समाश्रित संविदा होती है।
समाश्रित संविदा (धारा- 31)
भारतीय संविदा अधिनियम 1872 की धारा 31 के अंतर्गत समाश्रित संविदा की परिभाषा प्रस्तुत की गई है जिसके अनुसार समाश्रित संविदा वह संविदा है जो ऐसी संविदा को समपार्श्विक किसी घटना के घटित होने या न होने पर किसी बात को करने या न करने के लिए हो।
धारा 31 के अंतर्गत एक दृष्टांत प्रस्तुत किया गया है जो इस प्रकार है-
ख से क संविदा करता है कि यदि ख का ग्रह जल जाए तो वह ख को ₹10000 देगा, यह समाश्रित संविदा है
धारा 31 के अंतर्गत कुछ तत्वों का समावेश होता है जिसके अनुसार-
समाश्रित संविदा एक प्रकार की संविदा है जिसे कानूनी बल प्राप्त है।
यह संविदा से समपार्श्विक किसी घटना से संबंधित हो सकती है।
यह उक्त घटना से संबंधित नहीं भी हो सकती है।
जिसमें किसी बात को करने या न करने की बात होती है।
समाश्रित संविदा में अनिश्चितता होती है इसमें भविष्य में कोई घटना होने या ना होने जैसी बात होती है। समाश्रित संविदा से उत्पन्न होने वाले अधिकारों का प्रवर्तन उक्त घटना के घटने न घटने पर निर्भर करता है। यह किसी भी संविदा का समपार्श्विक होता है इसमें व्युत्क्रमानुपाती प्रतिज्ञाएं होती हैं।
कृपाल दास बनाम मैनेजर इकबाल एआईआर 1936 सिंध 26 के प्रकरण में कहा गया है कि कोई संविदा किसी संपत्ति का विक्रय किया जाना जबकि जो संयुक्त स्वामित्व के अधीन हैं और जब संयुक्त स्वामी संपदा को विभाजित कराने हेतु अग्रसर होंगे तो यह प्रवर्तनीय होगा अर्थात विभाजन संबंधी घटना के घटने पर ही यह प्रवर्तन योग्य माना जाएगा।
यदि वह भावी घटना जिस पर की कोई संविदा निर्भर है वह इस प्रकृति की है कि जिसके अनुसार कोई व्यक्ति बिना विनिर्दिष्ट किए हुए समय पर कोई कार्य करेगा तो वह घटना उस समय अवश्य हुई समझी जाएगी जबकि ऐसा व्यक्ति कोई बात करता है जिससे किसी निश्चित समय के भीतर या भविष्य में घटित होने वाली अनिश्चितताओं के बिना वैसा किया जाना संभव न हो।
जैसे कि 'क' यह करार करता है कि 'ख' यदि 'ग' से विवाह कर ले तो वह 'ख' को धनराशि देगा किंतु 'ग' 'घ' से विवाह कर लेता है न कि 'ख' से ऐसी स्थिति में 'ग' से 'ख' का विवाह होना संभव नहीं माना जाएगा क्योंकि उसने अपना विवाह 'घ' से कर लिया है किंतु यह संभव है कि 'घ' की मृत्यु हो जाने पर 'ख' 'ग' से विवाह कर सकता है।
जहां कोई संविदा किसी तृतीय पक्षकार द्वारा अनुमोदन पर निर्भर करती है तो ऐसी स्थिति में संविदा विधिमान्य होगी। कोई भी अनुमोदन कर दिया जाता है तो शर्त युक्तियुक्त रूप से संतुष्ट मानी जाएगी।
वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड बनाम राजेश 2012 बी सी 365 बॉम्बे के प्रकरण में कहा गया है कि-
एक प्रत्याभूति की संविदा बैंक के उसके हिताधिकारी के बीच एक स्वतंत्र संविदा है तथा यदि यह एक संविदा था जो अनिश्चित भावी घटना घटित होने पर बैंक प्रत्याभूति का अवलंब लेने हेतु क्रेडिटर को अनुज्ञा देती है तो यह समाश्रित संविदा होती है जैसा की धारा 31 के अंतर्गत परिभाषित है तो वह जब तक घटना घटित नहीं होती विधि द्वारा पप्रवर्तनीय नहीं हो सकती। धारा 32 के उपबंध की दृष्टि से घटना घटित होने तक यह मात्र एक संविदा है जो प्रवर्तन नहीं होती है। समाश्रित संविदा के मामले में हिताधिकारी को तत्कालिक अदायगी की मांग करने को बैंक प्रत्याभूति का अवलंब लेने का अधिकार नहीं है।
समाश्रित संविदा को न्यायालय में कब प्रवर्तन कराया जा सकता है-
समाश्रित संविदा को न्यायालय में प्रवर्तन कराना अर्थात इस प्रकार की संविदा को न्यायालय से इंफोर्स करवाना इसके संबंध में संविदा अधिनियम की धारा 32 में उल्लेख किया गया है। धारा 32 समाश्रित संविदाओं के प्रवर्तन के संबंध में उल्लेख कर रही है।
इस धारा के अनुसार ऐसी संविदा के पालन हेतु नियम का स्पष्ट उल्लेख है। किसी अनिश्चित भविष्य संबंधी घटना के घटित होने अथवा न घटित होने पर आधारित होती है और ऐसी संविदा का प्रवर्तन जब तक नहीं कराया जा सकता जब तक कि वह घटित न हो जाए। इसके अंतर्गत समाश्रित संविदा का प्रवर्तन तब ही संभव है जबकि वह घटना घटित हो जाए जिसके घटित होने की बाबत कोई प्रतिज्ञा किसी कार्य को करने या न करने के संदर्भ में की गई।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि यदि वह घटना इस प्रकृति की है कि उसका घटित होना असंभव है तो ऐसी स्थिति में संविदा शून्य होगी।
धारा 32 का संबंध समाश्रित संविदा के पालन से है। इस धारा के अंतर्गत स्पष्ट यह कहा गया है कि जिस समाश्रित घटना के घटने पर की गई है तो ऐसी घटना के घटने पर ही किसी समाश्रित संविदा का पालन कराया जा सकता है।
जैसे कि राम श्याम से संविदा करता है कि यदि घनश्याम जिसे कार बेचने का प्रस्ताव किया गया है उसे खरीदने से इंकार कर देता है तो वह श्याम को वह कार बेच देगा। अब श्याम न्यायालय के समक्ष जाकर तब तक अनुतोष प्राप्त नहीं कर सकता है जब तक घनश्याम उस कार को खरीदने से इंकार नहीं करता है। राम और श्याम के बीच होने वाली समाश्रित संविदा का प्रवर्तन घनश्याम के कार खरीदने से इनकार करने पर निर्भर करता है। अब यदि घनश्याम कार खरीदने से इंकार कर देता और राम शाम को कार बेचने से इंकार कर दे तो ऐसी स्थिति में श्याम न्यायालय की शरण ले सकता है।
इसी प्रकार किसी समाश्रित संविदा के अंतर्गत किसी घटना के नहीं घटने के आधार पर कोई संविदा की गई है और यदि वह घटना नहीं घटती है तब ही उस संविदा के प्रवर्तन के लिए न्यायालय के समक्ष जाया जा सकता है क्योंकि यह घटना उस घटना के न घटने के आधार पर निर्भर कर रही है।
जैसे कि किसी व्यक्ति ने एक हवाई जहाज को आसमान में उड़ाया तथा यह संविदा की यदि हवाई जहाज वापस लौट कर नहीं आया तो वह एक निश्चित धनराशि देगा। अब हवाई जहाज लौट कर नहीं आया उस परिस्थिति में ही इस संविदा का प्रवर्तन हो सकता है।
असंभव घटनाओं पर आधारित समाश्रित करार शून्य होते हैं (धारा- 36)
धारा 36 के अंतर्गत यह उल्लेख किया गया है कि कोई भी ऐसा करार जो किसी असंभव घटना पर आधारित होता है जिसका घट पाना ही असंभव है तो इस प्रकार का करार संविदा नहीं बनता है। किसी समाश्रित करार के संविदा बनने के लिए भी कुछ नियम होते हैं। कोई भी ऐसा करार जो असंभव है जिसका घट पाना ही संभव नहीं है तो इस प्रकार की घटना पर कोई करार संविदा नहीं बनता है।
जैसे कि कोई व्यक्ति यह करार कर ले कि चंद्रमा धरती पर आ जाए अब चंद्रमा का धरती पर आना असंभव है। इस प्रकार का करार संविदा नहीं होता है।
36 के अंतर्गत एक दृष्टांत प्रस्तुत किया गया है उस दृष्टांत के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति से अपनी पुत्री से विवाह करने के लिए संविदा कर ले तथा यह कहे कि यदि वह उसकी पुत्री से विवाह करेगा तो वह उसे कुछ धनराशि देगा परंतु यदि इस प्रकार का करार करते समय पुत्री की मृत्यु हो चुकी है तो अब इस घटना का घट पाना संभव हो जाता है। इस प्रकार की असंभव घटना किसी भी परिस्थिति में घट ही नहीं सकती है तो यह करार संविदा नहीं हो सकता।
हम पूर्व से यह जानते आ रहे हैं कि कोई करार ही संविदा बनता है। करार संविदा का शैशव रूप है तथा वह अपनी युवावस्था आने पर संविदा बन जाता है।