हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

3 July 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (27 जून, 2022 से 1 जुलाई, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    विशेष विवाह अधिनियम की धारा 5 के तहत विवाह के इरादा की सूचना विवाह के संस्कार से "पहले" दी जानी चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में विशेष विवाह अधिनियम के तहत जोड़े के मैरिज रजिस्ट्रेशन के लिए निर्देश जारी करने से इनकार कर दिया। इसमें कहा गया कि विशेष विवाह के लिए अधिनियम की धारा 4 के तहत निर्धारित शर्तें और धारा 5-13 के तहत निहित प्रक्रिया को पूरा करना होगा।

    वर्तमान मामले में अधिनियम की धारा 5 के तहत परिकल्पित प्रक्रिया के उल्लंघन का हवाला देते हुए, जो "विवाह के इरादे की सूचना" से संबंधित है, मदुरै पीठ के जज जीआर स्वामीनाथन ने कहा: "चीजों को केवल क्रमिक क्रम में चलना है। प्रश्न में जोड़े ने घोड़े के आगे गाड़ी रख दी है। पक्षकारों ने अपनी तथाकथित शादी करने के बाद अधिनियम की धारा 5 के तहत नोटिस दिया। अधिनियम की धारा 5 की भाषा स्पष्ट है। याचिकाकर्ता ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत लीडिया से शादी नहीं की। वह अधिनियम की धारा 4 में निर्धारित लाभ का फायदा नहीं उठा सकता। दूसरे प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता के अनुरोध को सही तरीके से अस्वीकार कर दिया। कानून के विपरीत कोई परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है। रिट याचिका खारिज की जाती है।"

    केस टाइटल: एस.सरथ कुमार बनाम जिला कलेक्टर और अन्य

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    विवाद को तब तक मध्यस्थता के लिए नहीं भेजा जा सकता जब तक कि अधिकार का स्पष्ट इनकार न हो: केरल ‌हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना कि किसी पक्ष को विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने का अधिकार देने वाली कार्रवाई का कारण केवल तभी निकलता है, जब एक पक्ष दूसरे पक्ष के अधिकार से स्पष्ट इनकार करता है। ऐसा मानते हुए जस्टिस पीबी सुरेश कुमार और जस्टिस सीएस सुधा ने अतिरिक्त जिला न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली दक्षिणी रेलवे की अपील खारिज कर दी।

    केस टाइटल: दक्षिणी रेलवे बनाम मेसर्स चेरियन वर्की कंस्ट्रक्शन कंपनी प्राइवेट लिमिटेड

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    [प्रयागराज विध्वंस] "बिल्डिंग का उपयोग 'वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया' कार्यालय के रूप में किया गया, जावेद की नेमप्लेट थी": यूपी सरकार ने इलाहाबाद एचसी में बताया

    प्रयागराज जिला प्रशासन और प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) द्वारा 12 जून को वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के नेता जावेद पंप (प्रयागराज हिंसा मामले में एक आरोपी) के मकान को ध्वस्त करने के अपने कदम का बचाव करते हुए यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को बताया कि इमारत में जावेद की नेमप्लेट थी और उसी का इस्तेमाल पार्टी के कार्यालय में किया जा रहा था। यह जवाब राज्य सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के 28 जून के आदेश के अनुसार दायर किया है जिसमें उसने प्रयागराज हिंसा (10 जून) के आरोपी जावेद मोहम्मद की पत्नी द्वारा दायर याचिका पर अपना जवाब मांगा था।

    केस टाइटल - परवीन फातिमा और अन्य बनाम यूपी राज्य और 5 अन्य

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    धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश से दूषित ऑर्बिट्रल अवॉर्ड रिट याचिका में रद्द किया जा सकता हैः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना है कि एक ऑर्बिट्रल अवॉर्ड, जो धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश से दूषित है, शून्य और गैर-स्थायी होगा और एक रिट याचिका में रद्द किया जा सकता है और ए एंड सी एक्ट की धारा 34 के तहत एक वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता याचिका के सुनवाई योग्य होने के लिए कोई रोक नहीं है।

    चीफ जस्टिस अनूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस राजेंद्र चंद्र सामंत की खंडपीठ ने आगे कहा कि ए एंड सी एक्ट की धारा 34 को पढ़ने पर यह पता चलता है कि धोखाधड़ी और साजिश एक आर्बिट्रल अवॉर्ड को चुनौती देने का आधार नहीं है।

    केस टाइटल:बाली नागवंशी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य, WA No. 81 of 2022

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    कुर्की के लिए अर्जी कोर्ट के समक्ष दायर की जा सकती है, भले ही संपत्ति क्षेत्राधिकार से बाहर हो: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि एक आर्बिट्रल अवार्ड (मध्यस्थता आदेश) को लागू करने के लिए निष्पादन याचिका देश में किसी भी स्थान पर किसी भी कोर्ट में दायर की जा सकती है। हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि उक्त कोर्ट के पास अवार्ड को निष्पादित करने का अधिकार क्षेत्र होना चाहिए, जो कि अवार्ड देनदार और उसके स्थान पर निर्भर करेगा।

    मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति अभिनंद कुमार शाविली की खंडपीठ ने माना कि भले ही कुर्क की जाने वाली संपत्ति एक वाणिज्यिक न्यायालय के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर हो, लेकिन नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी), 1908 के आदेश 21 नियम 46 के तहत संपत्ति की कुर्की के लिए एक याचिका दायर की जा सकती है।

    केस शीर्षक: मेसर्स रश्मि मेटालिक्स लिमिटेड बनाम मेसर्स टेक्नो यूनिक इंफ्राटेक प्रा. लिमिटेड

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    निष्पादन न्यायालय डिक्री की गई सूट संपत्ति के लिए डिलीवरी वारंट जारी कर सकता है, भले ही विशिष्ट प्रदर्शन के लिए सूट में कब्जा नहीं मांगा गया हो: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि भले ही वादी ने विशिष्ट प्रदर्शन के लिए एक मुकदमे में कब्जे से राहत की मांग नहीं की हो, बल्‍कि केवल बिक्री विलेख के निष्पादन के लिए प्रार्थना मांगी थी, निष्पादन न्यायालय निर्णय देनदार को निर्देश देते हुए, डिक्री में बताए गए सभी दायित्वों का पालन करने वाले डिक्री धारक पर संपत्ति का कब्जा सौंपने के लिए, डिलीवरी वारंट जारी कर सकता है।

    केस टाइटल: दादा पुत्र बालू रूज बनाम अप्पासाहेब पुत्र किरण केस्टे

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    'स्थाई कर्मी' के रूप में वर्गीकृत किए गए मृतक कर्मचारियों के आश्रित अनुकंपा नियुक्ति के पात्र: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि राज्य सरकार की ओर से 07.10.2016 को जारी परिपत्र के अनुसार, ऐसे मृत कर्मचारियों के आश्रितों की अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन पर विचार करने के संबंध में कोई बाधा नहीं है, जिन्हें 'स्थाई कर्मचारी' के रूप में वर्गीकृत किया गया था।

    एक मृत सरकारी कर्मचारी के आश्रित द्वारा दायर रिट याचिका पर निर्णय लेते हुए जस्टिस एमएस भट्टी ने कहा, पार्टियों के प्रतिद्वंदी प्रस्तुतीकरणों पर विचार करने के बाद कोर्ट का विचार है कि एक डेली रेटेड कर्मचारी को 07-10-2016 के परिपत्र के खंड- 2 के आधार पर एक बार 'स्थायी कर्मचारी' के रूप में वर्गीकृत किए जाने के बाद उसे डेली रेटेड कर्मचारी नहीं माना जा सकता है, क्योंकि उसे अकुशल/अर्ध-कुशल/कुशल के रूप में वर्गीकृत किया गया है और एक विशेष वेतनमान पर नियुक्त किया गया है और इसलिए, ऐसे मृत कर्मचारी के आश्रितों की ओर से पेश अनुकंपा नियुक्ति के आवेदनों पर विचार करने में कोई बाधा नहीं है। इसलिए, इसके ऊपर आक्षेपित आदेश गैर-अनुमानित है और तदनुसार रद्द किए जाने योग्य है।

    केस टाइटल: आशीष सोनी बनाम रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय

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    तीन महीने का नोटिस देकर 55 साल की उम्र में कर्मचारियों को सेवानिवृत्त करने का नगर पालिका के पास अधिकार: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने गुजरात नगर पालिका अधिनियम और उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत नगर पालिका कर्मचारी 55 वर्ष की आयु प्राप्त करने या इसके बाद तीन महीने का नोटिस देकर किसी भी समय सेवानिवृत्त हो सकते हैं।

    जस्टिस बीरेन वैष्णव की पीठ ने कहा, "नियम बनाने के लिए धारा 271 के तहत शक्तियों के प्रयोग में यह नगरपालिका की शक्तियों के भीतर है। नियम 5 के प्रावधान से संकेत मिलता है कि एक कर्मचारी के खिलाफ नगरपालिका द्वारा कार्रवाई की जा सकती है जहां कर्मचारी सेवानिवृत्ति की आयु तक पहुंचता है। यह निश्चित रूप से उसके एवज में तीन महीने का नोटिस और नोटिस वेतन दिए जाने के अधीन है।"

    केस टाइटल: मुख्य अधिकारी बनाम डीईसीडी कानूनी वारिस मंजुलाबेन डब्ल्यू/ओ कनुभाई सोलंकी के माध्यम से सोलंकी कनुभाई दानाभाई

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    आवेदक को धमकी की अनुपस्थिति आर्म्स एक्ट के तहत फायर आर्म्स लाइसेंस से इनकार करने का आधार नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने हाल ही में कहा कि आर्म्स एक्ट (Arms Act) के तहत फायर आर्म्स लाइसेंस से इनकार करने के कारणों में एक संबंध होना चाहिए और अधिनियम के प्रावधानों के संदर्भ में होना चाहिए और अप्रासंगिक विचारों पर लाइसेंस रद्द नहीं किया जा सकता है। जस्टिस एएस सुपेहिया की खंडपीठ ने आगे कहा कि प्राधिकरण केवल इसलिए आवेदक का लाइसेंस रद्द नहीं कर सकता क्योंकि उसे कोई धमकी नहीं मिली या उस पर हमले की कोई घटना नहीं हुई।

    केस टाइटल: खांजी मोहम्मद सैय्यद गुलामरासूल बनाम अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट

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    केवल अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति पर दोषसिद्धि नहीं हो सकती, जब तक कि ठोस परिस्थितियों की श्रृंखला द्वारा समर्थित न हो: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने अभियोजन पक्ष के मामले में खामियों को देखते हुए हाल ही में एक ऐसे व्यक्ति की सजा और सजा के आदेश को रद्द कर दिया, जिस पर अपने दोस्त की हत्या करने और उसके शरीर को दफनाने का आरोप था, कथित तौर पर दोस्त ने उसके साथ समलैंगिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया था।

    अदालत ने कहा कि चूंकि अभियोजन पक्ष का मामला उचित संदेह से परे साबित नहीं हो सका, इसलिए अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति के आधार पर व्यक्ति को दोषी ठहराना सुरक्षित नहीं था।

    केस टाइटल: दिनेश बनाम राज्य

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    सीआरपीसी की धारा 279, 281 का पालन न करना केवल एक अनियमितता है लेकिन इसका उल्लंघन करने की अनुमति नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने फैसला सुनाया है कि आरोपियों के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 279 और 281 के तहत अनिवार्य भाषा में साक्ष्य की व्याख्या करने में विफलता केवल एक अनियमितता हो सकती है, लेकिन अभियोजन पक्ष को इन प्रावधानों का उल्लंघन करने की अनुमति नहीं है।

    जस्टिस पीजी अजीतकुमार ने उदाहरणों के आलोक में ऐसा देखा, जो यह स्थापित करते हैं कि धारा 279(1), 279(2) या 281(4) का पालन न करना एक मात्र अनियमितता है, और जब तक कि आरोपी के प्रति पूर्वाग्रह नहीं होता है, वह अनियमितता होगी।

    केस टाइटल: के.बी. रशीद बनाम केरल राज्य

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    नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के समक्ष एक प्रभावी और वैधानिक उपाय मौजूद होने पर अनुच्छेद 226 को लागू नहीं किया जा सकता: मद्रास हाईकोर्ट

    सुंकू वसुंधरा बनाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में दायर एक रिट याचिका पर फैसला सुनाते हुए मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) के जस्टिस टी. राजा और जस्टिस के. कुमारेश बाबू की बेंच ने कहा कि जब नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के समक्ष एक प्रभावी और वैधानिक उपाय मौजूद होता है तो पीड़ित पक्ष राहत के लिए अनुच्छेद 226 को लागू नहीं कर सकते हैं। आदेश दिनांक 15.06.2022 को पारित किया गया।

    केस टाइटल: सनकू वसुंधरा बनाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, डब्ल्यू.पी.नं. 14398 ऑफ 2022

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    जब सह-अभियुक्त को बिना कारण बताए जमानत दी गई हो तो केस में समानता के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी मामले में यदि सह-अभियुक्तों को बिना कोई कारण बताए जमानत दी जाती है तो ऐसे जमानत आदेशों के आधार पर केवल केस में समानता का हवाला देकर जमानत आवेदन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

    जस्टिस समीर जैन की खंडपीठ एक मनीष के मामले से निपट रही थी, जो एक हत्या के मामले में जमानत की मांग कर रहा था। आरोपी पर यह आरोप लगाया है कि उसने अपने माता-पिता के साथ मिलकर एक महिला पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी थी।

    केस टाइटल- मनीष बनाम यूपी राज्य

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    पूजा का अधिकार मंदिर की प्रबंध समिति द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के अधीन एक नागरिक अधिकार: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में गुरुवायुर देवस्वम प्रबंध समिति को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि गुरुवायुर श्री कृष्ण मंदिर के नालम्बलम में लगाए गए किसी भी प्रवेश प्रतिबंध का कड़ाई से पालन किया जाए और सदस्य, प्रशासक या पूर्व अधिकारी समेत किसी भी व्यक्ति द्वारा उल्लंघन ना किया जाए।

    जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस पीजी अजितकुमार की खंडपीठ ने यह भी फैसला सुनाया कि एक उपासक परंपराओं और प्रतिबंधों के अधीन पूजा करने के अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए बाध्य है।

    केस टाइटल: स्वतः संज्ञान बनाम प्रबंध समिति और अन्य।

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    एनआई एक्ट| कानून की उचित प्रक्रिया को बाधित करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के क्षेत्राधिकार को लागू नहीं किया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने चेक डिसऑनर से संबंधित मामले में माना कि याचिकाकर्ता सीआरपीसी की धारा 482 को लागू नहीं कर सकता है। हालांकि, अप्रत्यक्ष रूप से उक्त अधिकार को बहाल करने का निर्देश मांग सकता है। उक्त मामले में परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत कार्यवाही लागू करने की सीमा अवधि समाप्त हो गई थी।

    जस्टिस विनोद एस. भारद्वाज ने कहा, "कानून में निर्धारित प्रक्रिया को दरकिनार करने के लिए कानून की प्रक्रिया का सहारा नहीं लिया जा सकता।"

    केस टाइटल: हरजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य

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    पर्सनल रिलेशन की सामाजिक स्वीकृति कानून की नजर में उन्हें मान्यता देने का आधार नहीं: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने कहा कि पर्सनल रिलेशन की सामाजिक स्वीकृति उन्हें कानून की नजर में मान्यता देने का आधार नहीं है। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस पूर्णेंदु सिंह की पीठ अमित राज द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार कर रही थी।

    उक्त याचिका में उसकी पत्नी (कथित तौर पर उसके परिवार के सदस्यों की कस्टडी में थी) को पेश किए जाने की मांग की गई थी। अदालत के आदेश के अनुसार, लड़की/पत्नी को अदालत के समक्ष पेश किया गया, जहां अदालत ने उससे पूछा कि क्या उसने स्वेच्छा से याचिकाकर्ता से शादी की है। इस पर उसने हां कहा और उसके साथ रहने की इच्छा व्यक्त की।

    केस टाइटल- अमित राज बनाम बिहार राज्य और अन्य [आपराधिक रिट क्षेत्राधिकार मामला 2022 का 511]

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    ट्रायल कोर्ट को मुख्य केस और काउंटर-केस में स्पीकिंग ऑर्डर देना चाहिए, तुच्छ आधार पर काउंटर-केस को खारिज करने से बचना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने केस और काउंटर केस होने पर अपनाई जाने वाली प्रक्रिया निर्धारित की, यदि ट्रायल कोर्ट की राय है कि काउंटर केस को डिस्चार्ज किया जाना है। न्यायमूर्ति पी वी कुन्हीकृष्णन ने कहा कि निचली अदालतों को नन-स्पीकिंग आदेशों के माध्यम से फिल्मी अंदाज में काउंटर-केस को खारिज करके शॉर्टकट लेने से बचना चाहिए।

    केस टाइटल: आमिर और अन्य बनाम केरल सरकार

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    जब तक देश के आर्थिक हित में न हो, बैंक बकाया की वसूली के लिए 'लुक आउट सर्कुलर' जारी करने की मांग नहीं कर सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि लुक आउट सर्कुलर (एलओसी) जारी करने या किसी व्यक्ति (लोन डिफॉल्टर) को विदेश यात्रा करने से रोकने का अनुरोध बैंक द्वारा बकाया राशि की वसूली का तरीका नहीं हो सकता है, जब तक कि धोखाधड़ी की आशंका न हो और उसमें देश का आर्थिक हित जुड़ा हो।

    जस्टिस एसजी पंडित की एकल पीठ ने लीना राकेश द्वारा दायर याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया, जिसने विदेशी क्षेत्रीय रजिस्ट्रेशन अधिकारी (एफआरआरओ) द्वारा जारी किए गए निर्देश पर सवाल उठाया था। उसका पासपोर्ट रद्द कर दिया गया और उसे बेंगलुरु से फिलीपींस वापस जाने से रोक दिया गया। याचिकाकर्ता के खिलाफ एलओसी जारी करने के लिए अधिकारियों को यूको बैंक द्वारा किए गए अनुरोध के बाद कार्रवाई की गई थी, क्योंकि उसने लोन भुगतान में चूक की थी।

    केस टाइटल: श्रीमती लीना राकेश बनाम गृह मंत्रालय के आप्रवासन ब्यूरो।

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    बैंक क्लाइंट के पीपीएफ अकाउंट को उसके ऋण के निपटान के लिए संलग्न नहीं कर सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने हाल ही में कानून के तय किए गए प्रस्ताव को दोहराया कि सार्वजनिक भविष्य निधि खाते (PPF Account) की राशि खाताधारक के किसी भी ऋण या देयता के संबंध में किसी भी कुर्की के लिए उत्तरदायी नहीं होगी।

    जस्टिस एएस सुपेहिया की पीठ एक याचिकाकर्ता के मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसने प्रतिवादी-बैंक ऑफ बड़ौदा के साथ केंद्र की सार्वजनिक भविष्य निधि योजना के तहत हिंदू अविभाजित परिवार के पैसे का निवेश किया था।

    केस टाइटल : रजनीकांत पुंजालाल शाह बनाम प्रबंधक, बैंक ऑफ बड़ौदा के रजनीकांत पुंजालाल शाह कर्ता

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    सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट में ऐसे किसी प्रावधान की परिकल्पना नहीं कि स्तनपान के लिए सरोगेट मां नवजात की कस्टडी अपने पास रखेः गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट, 2021 में किसी ऐसे प्रावधान की परिकल्पना नहीं की गई है जिसके तहत स्तनपान के मकसद से एक विशेष अवधि के लिए सरोगेट मां को नवजात बच्चे की कस्टडी की आवश्यकता होगी।

    जस्टिस विपुल एम पंचोली और जस्टिस संदीप एन भट्ट की खंडपीठ ने कहा कि अदालत को कानून की व्याख्या उसी रूप में करनी चाहिए जैसा वह है, न कि कथित नैतिकता के आधार पर। इस प्रकार सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट, 2021 के प्रावधानों और पार्टियों के बीच हस्ताक्षरित सरोगेसी समझौते के कारण एक नवजात को अदालत के आदेश के बिना भी इच्छित माता-पिता को सौंपा जा सकता है।

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    धारा 19(2) खाद्य अपमिश्रण अधिनियम| लिखित वारंटी के साथ निर्माता से खरीदे गए सामानों के लिए विक्रेता उत्तरदायी नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने खाद्य अपमिश्रण अधिनियम की धारा 19(2) का हवाला देते हुए स्पष्ट किया है कि एक विक्रेता का कृत्य अधिनियम के तहत अपराध नहीं माना जाएगा, यदि उसने किसी निर्माता, वितरक या डीलर से लिखित वारंटी के साथ खाद्य पदार्थ खरीदा है। हाईकोर्ट ने प्रावधान को ध्यान में रखते हुए एक दीदार ट्रेडर्स के वेंडर और मालिक को बरी करने के न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया।

    मामले के तथ्य यह थे कि दीदार ट्रेडर्स के मालिक आरोपी के पास एक खाद्य निरीक्षक अधिकारी ने दौरा किया था, उसने विश्लेषण के लिए 450 ग्राम मिर्च पाउडर का नमूना लिया था। आवश्यक जांच के बाद, यह पाया गया कि मिर्च पाउडर में गेहूं का स्टार्च और कृत्रिम रंग था और इसलिए, यह मिलावटी था।

    केस शीर्षक: गुजरात राज्य, बीएम पटेल, खाद्य निरीक्षक के माध्यम से बनाम नौशादली नजराली धनानी C/O दीदार ट्रेडर्स और 1 अन्य

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    हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम | विधवा की पहली शादी से पैदा हुए बच्चे, उसके दूसरे पति से मिली संपत्ति प्राप्त कर सकते हैं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 के तहत जब एक विधवा की मृत्यु हो जाती है तो उसके बेटे और बेटी सहित उसके उत्तराधिकारी या उसके अवैध संबंधों से भी उसकी संपत्ति में हिस्से के हकदार होते हैं।

    जस्टिस एपी ठाकर ने आगे कहा कि चूंकि मौजूदा मामले में मृतक विधवा सूट संपत्ति के मालिकों में से एक थी, इसलिए उसे अपनी वसीयत के माध्यम से किसी को भी अपना अविभाजित हिस्सा देने का पूरा अधिकार था, खासकर जब वसीयत को किसी ने हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती नहीं दी थी।

    केस टाइटल: निरुबेन चिमनभाई पटेल के वारिश बनाम गुजरात राज्य

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    बिना तय किए हुए नुकसान के खिलाफ निर्विवाद दावों का सेट-ऑफ नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि निर्विवाद दावे के खिलाफ सुनिश्चित या स्वीकार नहीं किए गए अविवादित हर्जाने का सेट-ऑफ़ उचित नहीं है। जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी की एकल पीठ ने दोहराया कि न्यायालय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा नौ में निहित प्रक्रियात्मक कानून से अनावश्यक रूप से बाध्य नहीं होगा, जिसका मूल सिद्धांत मध्यस्थता को विवाद समाधान का प्रभावी रूप बनाना है। यह बैंक ग्यारंटी अदायगी ("पीबीजी") को पीबीजी में ही लागू करने के प्रावधान के विपरीत लागू नहीं किया जा सकता।

    केस टाइटल: ओशन स्पार्कल लिमिटेड बनाम ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अन्य

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    धारा 41A सीआरपीसी के तहत पुलिस अधिकारियों के समक्ष पेशी की सूचना जारी करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने पर विचार करें : झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा

    झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में झारखंड राज्य को धारा 41ए सीआरपीसी के तहत पुलिस अधिकारियों के समक्ष पेशी का नोटिस जारी करने के संबंध में उचित दिशा-निर्देश तैयार करने पर विचार करने को कहा है ताकि झारखंड पुलिस को आदर्श पुलिस के रूप में संदर्भित किया जा सके।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने अपने फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट के 2018 के फैसले का भी उल्लेख किया [अमनदीप सिंह जौहर बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य], जिसमें आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 41ए के तहत पुलिस अधिकारियों के समक्ष पेश होने का नोटिस जारी करने के लिए दिशानिर्देश रखे गए थे।

    केस टाइटल- महेश कुमार चौधरी और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य

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    अगर रिकॉर्ड में कोई त्रुटि नहीं है तो वकील मुवक्किलों को मामले को दोबारा उठाने की सलाह न दें: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जब रिकॉर्ड में किसी प्रकार की गलती ना हो, ना ही ऐसा कोई कारण हो कि फैसले के बाद मामले को दोबारा आगे क्यों बढाया जाए, एक वकील को अपने मुव‌क्किल को मामले को आगे बढ़ाने की सलाह नहीं देनी चा‌‌हिए।

    जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस विवेक वर्मा की खंडपीठ ने एक सिविल र‌िव्यू आवेदन का निस्तारण करते हुए यह टिप्पणी की। आवेदन में संबंधित वकील ने अपने मुवक्किल को छह साल की अवधि के बाद मौजूदा रिव्यू आवेदन दाखिल करने की सलाह दी थी।

    केस टाइटल- मल्हान और 17 अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य [CIVIL MISC REVIEW APPLICATION No. - 22 of 2022]

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