जब सह-अभियुक्त को बिना कारण बताए जमानत दी गई हो तो केस में समानता के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती : इलाहाबाद हाईकोर्ट

Sharafat

29 Jun 2022 1:46 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी मामले में यदि सह-अभियुक्तों को बिना कोई कारण बताए जमानत दी जाती है तो ऐसे जमानत आदेशों के आधार पर केवल केस में समानता का हवाला देकर जमानत आवेदन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

    जस्टिस समीर जैन की खंडपीठ एक मनीष के मामले से निपट रही थी, जो एक हत्या के मामले में जमानत की मांग कर रहा था। आरोपी पर यह आरोप लगाया है कि उसने अपने माता-पिता के साथ मिलकर एक महिला पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी थी।

    मृतक के मरने से पहले दिए गए बयान में यह सामने आया था कि घटना की तारीख को आवेदक, उसके माता-पिता और आवेदक के भाई ने उसे अपने घर में घसीटा और मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी।

    दूसरी ओर, जमानत आवेदक ने प्रस्तुत किया कि एफआईआर में लगाए गए सभी आरोप और मृतक का मृत्युकालिक बयान (dying declaration) पूरी तरह से गलत और निराधार है और शुरू में जांच के दौरान आवेदक और उसके माता-पिता के खिलाफ लगाए गए आरोप झूठे पाए गए इसलिए,मामले में फाइनल रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी।

    हालांकि आगे यह भी कहा गया कि इसके बाद संबंधित एसएसपी के निर्देश पर आगे की जांच शुरू की गई और उसके बाद आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई।

    यह तर्क दिया गया कि मृतक का मृत्युकालीन बयान कानून के अनुसार नहीं है और यह बयान सिखाया-पढ़ाया गया बयान है और सह-अभियुक्तों को पहले ही अदालत की समन्वय पीठ ने जमानत दे दी है और इसलिए केस में समानता के आधार पर आवेदक को भी जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि मृतक के मृत्युपूर्व बयान में आवेदक के खिलाफ विशिष्ट आरोप थे। इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि सह-आरोपी मिंटू @ अमित को अगस्त 2021 में कोर्ट की को-ऑर्डिनेट बेंच ने जमानत दी थी, हालांकि, उसे केवल उसके वकील द्वारा दिए गए तर्क के आधार पर जमानत दी गई थी।

    कोर्ट ने कहा कि अन्य दो आरोपियों को भी इसी तरह से कोर्ट ने जमानत दी थी। इस पर न्यायालय ने मामले में समानता के आधार पर रखे गए सह-आरोपियों के जमानत आदेशों का अवलोकन किया और कहा कि बिना कोई कारण बताए अभियुक्तों को उनके वकीलों द्वारा दिए गए तर्क के आधार पर जमानत दी गई है।

    इसके अलावा न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का उल्लेख किया जहां सुप्रीम कोर्ट ने जमानत आदेश में कारण देने करने की आवश्यकता पर बल दिया और यह नोट किया कि न्यायालय ने हाईकोर्ट द्वारा अभियुक्त को दी गई जमानत को इस आधार पर रद्द कर दिया कि हाईकोर्ट ने ज़मानत देने का कोई कारण नहीं बताया।

    कोर्ट ने माना कि मामले में समानता जमानत देने का एकमात्र आधार नहीं बन सकती और यदि समान रूप से रखे गए सह-आरोपी व्यक्तियों को बिना कोई कारण बताए जमानत दी जाती है तो ऐसे जमानत आदेशों के आधार पर केवल समानता का हवाला देते हुए जमानत आवेदन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और समानता प्रकृति में केवल प्रेरक हो सकती है, बाध्यकारी नहीं।

    इस प्रकार अदालत ने आवेदक को जमानत देने से इनकार कर दिया और टिप्पणी की:

    " मौजूदा मामले में मृतक के मृत्युपूर्व बयान में आवेदक के खिलाफ विशिष्ट आरोप है कि उसने सह-अभियुक्तों के साथ मृतक को अपने घर में घसीटा और उस पर मिट्टी का तेल डाला और जब उसने भागने का प्रयास किया तो उसके बाद उसके आवेदक और सह-अभियुक्तों का पीछा करते हुए उसे आग लगा दी।

    मृतक की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि उसकी मृत्यु जलने की चोटों और सह-अभियुक्तों के कारण हुई थी, जिन्हें इस न्यायालय की समन्वय पीठ द्वारा जमानत पर रिहा कर दिया गया, लेकिन उनकी जमानत आदेशों से पता चलता है कि उन्हें बिना कोई कारण बताए उनके संबंधित वकीलों द्वारा दिए गए तर्क के आधार पर जमानत पर रिहा किया गया है, इसलिए मेरे विचार में यह एक उपयुक्त मामला नहीं है जिसमें आवेदक को या तो योग्यता के आधार पर या मामले में समानता के आधार पर जमानत पर रिहा किया जा सकता है। "


    केस टाइटल- मनीष बनाम यूपी राज्य

    साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एबी) 303


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