सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट में ऐसे किसी प्रावधान की परिकल्पना नहीं कि स्तनपान के लिए सरोगेट मां नवजात की कस्टडी अपने पास रखेः गुजरात हाईकोर्ट

Avanish Pathak

28 Jun 2022 6:40 AM GMT

  • सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट में ऐसे किसी प्रावधान की परिकल्पना नहीं कि स्तनपान के लिए सरोगेट मां नवजात की कस्टडी अपने पास रखेः गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट, 2021 में किसी ऐसे प्रावधान की परिकल्पना नहीं की गई है जिसके तहत स्तनपान के मकसद से एक विशेष अवधि के लिए सरोगेट मां को नवजात बच्चे की कस्टडी की आवश्यकता होगी।

    जस्टिस विपुल एम पंचोली और जस्टिस संदीप एन भट्ट की खंडपीठ ने कहा कि अदालत को कानून की व्याख्या उसी रूप में करनी चाहिए जैसा वह है, न कि कथित नैतिकता के आधार पर। इस प्रकार सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट, 2021 के प्रावधानों और पार्टियों के बीच हस्ताक्षरित सरोगेसी समझौते के कारण एक नवजात को अदालत के आदेश के बिना भी इच्छित माता-पिता को सौंपा जा सकता है।

    मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता एक विवाहित जोड़े थे, जिन्होंने माता-पिता बनने के लिए सरोगेसी का‌‌ विकल्प अपनाने का फैसला किया था। जिसके बाद उन्होंने एक महिला के साथ समझौता किया, जो सरोगेट मां बनने के लिए सहमत हो गई। यह निर्णय लिया गया कि बच्चे के जन्म के तुरंत बाद बच्चे की कस्टडी याचिकाकर्ताओं यानी इच्छित माता-पिता को सौंप दी जाएगी। प्रसव की नियत तारीख से पहले, सरोगेट मां को एक एफआईआर के सिलसिले में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद उसने एक बच्ची को जन्म दिया।

    याचिकाकर्ताओं ने मेडिकल स्टाफ और पुलिस अधिकारियों को बताया कि सरोगेसी समझौते के अनुसार सरोगेट मां नवजात बच्चे की कस्टडी उन्हें सौंपने के लिए बाध्य थी। जिसके बाद मेडिकल स्टाफ और संबंधित चिकित्सक की उपस्थिति में याचिकाकर्ताओं को नवजात की कस्टडी दी गई।

    हालांकि, सिविल अस्पताल के संबंधित चिकित्सा अधिकारी और कर्मचारियों ने याचिकाकर्ताओं से बच्चे को वापस सिविल अस्पताल लाने के लिए कहा क्योंकि प्रतिवादी, यानी पुलिस अधीक्षक, साबरमती जेल ने बच्चे की कस्टडी के लिए जोर दिया था। यह सरोगेट मां द्वारा सरोगेसी समझौते की सामग्री की पुष्टि करने और याचिकाकर्ताओं को बच्चे की कस्टडी देने की सहमति के बावजूद था।

    सहायक लोक अभियोजक ने इस मुद्दे से संबंधित कानूनी प्रावधानों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट, 2021 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं था, जिसके तहत एक विशेष अवधि के लिए बच्चे की कस्टडी को सरोगेट मां को स्तनपान के मकसद से दी जाए। उन्होंनक कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय महिला और बाल विकास विभाग (खाद्य और पोषण बोर्ड), भारत सरकार द्वारा जारी शिशु और बच्चे के आहार पर राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के अनुसार, जन्म की तारीख से पहले छह महीने तक बच्चे को स्तनपान कराने का महत्व है।

    जिस आधार पर प्रतिवादी याचिकाकर्ताओं को नवजात बच्चे की कस्टडी देने से इनकार कर रहे थे, वह यह था कि इसके लिए कोर्ट का कोई आदेश नहीं था और इसलिए, चूंकि सरोगेट मां को न्यायिक हिरासत में भेजा जाना जरूरी थी, इसलिए याचिकाकर्ताओं को नवजात बच्चे की कस्टडी नहीं सौंपा गई।

    कोर्ट ने क्लॉज 1 (जे), क्लॉज 1 (ओ), क्लॉज 6 (बी), सेक्शन 2 (जेडडी) और सेक्शन 8 सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट, 2021 और पार्टियों के बीच हुए समझौते पर भरोसा किया कि-

    "यह स्पष्ट है कि बच्चे को जन्म देने के बाद, प्रतिवादी संख्या 5 को नवजात की कस्टडी वर्तमान याचिकाकर्ताओं को सौंपने की आवश्यकता है, जो इच्छुक माता-पिता। सरोगेसी प्रक्रिया से पैदा हुए बच्चे को अभिष्ट दंपत्ति की जैविक संतान माना जाएगा, और उक्‍त बच्‍चा किसी भी कानून के तहत प्राकृतिक बच्चे को उपलब्ध सभी अधिकारों और विशेषाधिकारों का हकदार होगा।"

    अदालत ने नवजोत सिंह सिद्धू बनाम पंजाब राज्य और एक अन्य (2007) 2 SCC 574 के मामले पर भी भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालयों को कानून की व्याख्या वैसे ही करनी होगी, जैसे की वो हैं, न कि नैतिकता या अधिक सही होने के आधार पर।

    इस प्रकार, सरोगेसी रेगुलेशन एक्ट, 2021 में निहित किसी भी प्रावधान के अभाव में कोर्ट ने माना कि कॉर्पस की कस्टडी यानी नवजात को इच्छित माता-पिता/याचिकाकर्ता को सौंपना आवश्यक है।

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