नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के समक्ष एक प्रभावी और वैधानिक उपाय मौजूद होने पर अनुच्छेद 226 को लागू नहीं किया जा सकता: मद्रास हाईकोर्ट

Brij Nandan

30 Jun 2022 4:04 AM GMT

  • मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट

    सुंकू वसुंधरा बनाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में दायर एक रिट याचिका पर फैसला सुनाते हुए मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) के जस्टिस टी. राजा और जस्टिस के. कुमारेश बाबू की बेंच ने कहा कि जब नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल के समक्ष एक प्रभावी और वैधानिक उपाय मौजूद होता है तो पीड़ित पक्ष राहत के लिए अनुच्छेद 226 को लागू नहीं कर सकते हैं।

    आदेश दिनांक 15.06.2022 को पारित किया गया।

    क्या है पूरा मामला?

    याचिकाकर्ता ने मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका दायर की थी, जिसमें नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल ("एनसीएलटी"), चेन्नई बेंच द्वारा 29.04.2022 को पारित एक आदेश के खिलाफ सर्टिफिकेट जारी करने की मांग की गई थी।

    एनसीएलटी बेंच ने अपने आदेश में रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 की धारा 106 के तहत 29.06.2022 को या उससे पहले अंतरिम आवेदन दाखिल करने का निर्देश दिया था।

    हाईकोर्ट का फैसला

    हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता के पास अपीलीय प्राधिकरण यानी नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के समक्ष एक प्रभावी और वैधानिक उपाय है और इस प्रकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 को लागू नहीं किया जा सकता है। एनसीएलएटी के समक्ष अपील दायर की जानी चाहिए थी न कि हाईकोर्ट में।

    बेंच ने रिट याचिका को खारिज कर दिया और याचिकाकर्ता को एनसीएलएटी के समक्ष अपनी याचिका दायर करने की स्वतंत्रता दी।

    केस टाइटल: सनकू वसुंधरा बनाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, डब्ल्यू.पी.नं. 14398 ऑफ 2022

    याचिकाकर्ताओं के लिए वकील: एडवोकेट विनीत सुब्रमण्यम

    प्रतिवादियों के लिए वकील: एडवोकेट के.चंद्रशेखरन, एसबीआई (पैनल) R1 के लिए

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