धारा 41A सीआरपीसी के तहत पुलिस अधिकारियों के समक्ष पेशी की सूचना जारी करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने पर विचार करें : झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा

Avanish Pathak

26 Jun 2022 1:49 PM GMT

  • झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में झारखंड राज्य को धारा 41ए सीआरपीसी के तहत पुलिस अधिकारियों के समक्ष पेशी का नोटिस जारी करने के संबंध में उचित दिशा-निर्देश तैयार करने पर विचार करने को कहा है ताकि झारखंड पुलिस को आदर्श पुलिस के रूप में संदर्भित किया जा सके।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने अपने फैसले में दिल्ली हाईकोर्ट के 2018 के फैसले का भी उल्लेख किया [अमनदीप सिंह जौहर बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य], जिसमें आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 41ए के तहत पुलिस अधिकारियों के समक्ष पेश होने का नोटिस जारी करने के लिए दिशानिर्देश रखे गए थे।

    अप्रैल 2018 में तत्कालीन कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल की खंडपीठ ने उल्लेख किया था कि "पुलिस तंत्र के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करने और संदिग्ध आरोप‌ियों और जिन्होंने पुलिस के समक्ष पेश होना है, उनके लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जा रहे थे।".

    झारखंड हाईकोर्ट ने यह आदेश झारखंड पुलिस द्वारा सीआरपीसी के अध्याय VI के समन की तामील यानी 41ए सीआरपीसी नोटिस के संबंध में गैर-अनुपालन के मद्देनजर जारी किया है।

    अदालत ने मौजूदा मामले में क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र की कमी को देखते हुए धारा 498ए के तहत दर्ज एफआईआर को भी खारिज कर दिया और उम्मीद की कि झारखंड पुलिस अमनदीप सिंह जौहर के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित धारा 41ए सीआरपीसी के तहत नोटिस के प्रारूप को अपनाकर आदर्श पुलिस बन जाएगी।

    यह देखते हुए कि मौजूदा मामले में, याचिकाकर्ता एक और दो को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना गिरफ्तार किया गया है, कोर्ट ने झारखंड राज्य को कुछ दिशा-निर्देशों के साथ आगे आने के लिए कहा ताकि ऐसे मामलों में, जो प्रकृति में सामान्य हो, निर्दोष लोग केवल पुलिस की सख्ती के कारण गिरफ्तार नहीं किया जाए।

    मामला

    इस मामले में एक महिला ने दहेज की मांग को लेकर अपने ससुराल पक्ष और पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए के तहत एफआईआर दर्ज करायी थी। महिला फिलहाल अपने पति के घर जर्मनी में रह रही है।

    एफआईआर दर्ज होने के बाद अप्रैल 2021 में न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी, जमशेदपुर ने गिरफ्तारी के छह गैर-जमानती वारंट जारी किए। इसे चुनौती देते हुए ससुराल पक्ष और पति ने एफआईआर रद्द करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    याचिकाकर्ताओं ने निम्नलिखित तीन तर्क पेश किए-

    - सीआरपीसी की धारा 41ए के तहत नोटिस दिए बिना, वह भी धारा 498-ए के तहत मामले में गिरफ्तारी का गैर जमानती वारंट जारी किया गया था।

    - जमशेदपुर अदालत का क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र नहीं है, क्योंकि कथित घटना कोलकाता या जर्मनी में हुई है और

    - याचिकाकर्ता नंबर एक से पांच के खिलाफ आरोप सामान्य और सर्वव्यापक हैं।

    उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता संख्या एक और दो (ससुर और सास) को राज्य पुलिस ने कोलकाता पुलिस की सहायता के बिना गिरफ्तार कर लिया और जमशेदपुर कोर्ट में लाया गया।

    कोर्ट को यह भी बताया गया कि गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर दोनों को कोर्ट के सामने पेश नहीं किया गया और जमानत अर्जी दाखिल करने के बाद ही 48 घंटे के बाद पेश किया गया।

    धारा 41ए सीआरपीसी के तहत नोटिस देने के बिंदु पर, राज्य ने प्रस्तुत किया कि नोटिस वास्तव में धारा 41ए सीआरपीसी के तहत दो पतों पर (कथित रूप से याचिकाकर्ताओं के) भेजे गए थे, यानी बिहार के पते पर और कोलकाता के पुराने पते पर, लेकिन दोनों पते बंद पाए गए।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    शुरुआत में, कोर्ट ने नोट किया कि याचिकाकर्ता संख्या एक और दो ने अपना फ्लैट बदल दिया था, इसलिए धारा 41ए सीआरपीसी उन पर तामील नहीं की गई थी, हालांकि, नया पता पुलिस को अच्छी तरह से पता था।

    इस संबंध में कोर्ट ने कहा कि यह पुलिस का दायित्व है कि यदि नोटिस धारा 41ए सीआरपीसी के तहत दी जाती है, उसे वापस कर दिया गया हो तो, कम से कम इसे एक विशिष्ट स्थान पर चिपकाने की आवश्यकता है, जो कि मामले में नहीं किया गया है।

    इसके अलावा, अर्नेश कुमार बनाम स्टेट ऑफ बिहार (2014) 8 एससीसी 273 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए, कोर्ट ने जोर देकर कहा कि बार-बार सुप्रीम कोर्ट और साथ ही हाईकोर्टों ने दिशानिर्देश जारी किए हैं कि कैसे भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत मामले में कार्रवाई करें।

    गिरफ्तारी के तरीके और याचिकाकर्ता एक और दो को न्यायालय के समक्ष पेश करने में देरी के बारे में, हाईकोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी कानून की प्रक्रिया का पालन किए बिना की गई थी और तथ्य यह है कि दो वृद्ध व्यक्तियों की स्वतंत्रता छीन ली गई है, इसलिए, इसने राज्य से मुआवजा प्राप्त करने का सवाल को उठा दिया है।

    इसके अलावा, एफआईआर में वर्णित तथ्यों और आरोपों को देखते हुए कोर्ट ने पाया कि पत्नी के पति को छोड़कर याचिकाकर्ताओं के खिलाफ सामान्य और सर्वव्यापी आरोप थे। इसलिए, न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता संख्या एक से पांच के खिलाफ कोई विशिष्ट आरोप नहीं लगाया गया था, और इसलिए, न्यायालय ने माना कि क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के बिंदु पर पति का मामला सफल होता है।

    तदनुसार, विद्वान न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी, जमशेदपुर द्वारा 03.04.2021 को पारित आदेश सहित एफआईआर, जिसमें याचिकाकर्ताओं के खिलाफ गिरफ्तारी के छह गैर-जमानती वारंट जारी किए गए थे, को रद्द कर दिया गया।

    केस टाइटल- महेश कुमार चौधरी और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story