हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
LiveLaw News Network
27 March 2022 10:00 AM IST
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (18 मार्च, 2022 से 25 मार्च, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट| नोटिस और भुगतान के अवसर के बावजूद चेक की राशि का भुगतान नहीं करने पर जारीकर्ता आपराधिक मुकदमे का सामना करने के लिए बाध्य: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कि एक बार जब कोई व्यक्ति चेक जारी करता है तो उसका भुगतान जरूर किया जाना चाहिए, कहा कि ऐसा व्यक्ति आपराधिक मुकदमे का सामना करने और परिणाम भुगतने के लिए बाध्य है, यदि नोटिस जारी करने और उक्त राशि का भुगतान करने का अवसर देने के बावजूद भुगतान नहीं किया जाता है।
शीर्षक: संजय गुप्ता बनाम राज्य और अन्य।
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अगर नियोक्ता की संपत्ति को हानि होती है तो कर्मचारी की ग्रेच्युटी जब्त हो सकती है, ज़ब्ती केवल क्षति या हानि की सीमा तक हो सकती है : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि किसी कार्य या चूक या लापरवाही के लिए, जिससे नियोक्ता की संपत्ति को कोई क्षति या हानि होती है, किसी कर्मचारी को बर्खास्त किया जाता है तो नियोक्ता किसी कर्मचारी की ग्रेच्युटी को जब्त कर सकता है।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने हालांकि कहा कि इस तरह की ज़ब्ती केवल क्षति या हानि की सीमा तक हो सकती है, और इससे आगे नहीं। कोर्ट कर्मचारी और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के बीच विवादों से संबंधित दो याचिकाओं पर विचार कर रहा था। एक याचिका में, कर्मचारी के खिलाफ आरोप पत्र जारी किया गया था जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसके द्वारा कुछ पक्षकारों को समायोजित करने के लिए ऋण जारी किए गए जिससे बैंक को नुकसान हुआ।
केस: यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और अन्य बनाम श्री डीसी चतुर्वेदी और अन्य और अन्य जुड़े मामले
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सार्वजनिक स्थान पर अगर 'भगवान' के नाम पर अतिक्रमण किया गया तो उसे भी हटाने का आदेश देंगे: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि "भले ही भगवान के नाम पर सरकारी स्थान पर अतिक्रमण हुआ हो तो अदालतें ऐसे अतिक्रमणों को हटाने का निर्देश देंगी, क्योंकि सरकारी हित और कानून के शासन को सुरक्षित बनाए रखा जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने सार्वजनिक सड़क पर अरुलमिघू पालपट्टराई मरिअम्मन तिरुकोइल द्वारा किए गए अतिक्रमण की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि अतिक्रमण अब 'किससे या किस नाम से' होता है, इससे अदालतों को कोई सरोकार नहीं है।
केस का शीर्षक: अरुलमिघु पालपट्टराई मरिअम्मन तिरुकोइल बनाम पप्पयी और अन्य।
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कारण बताओ नोटिस और जवाब का अवसर ना देने की स्थिति में अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बावजूद कर्मचारी की सेवा समाप्त नहीं की जा सकती: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराए गए एक कर्मचारी की बर्खास्तगी के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि उसे इस तरह टर्मिनेट करने से पहले न तो कारण बताओ नोटिस दिया गया था और न ही अपने पक्ष को रखने का अवसर दिया गया था।
जस्टिस बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने नियोक्ता को परिणामी लाभ और बैकवेज के साथ कर्मचारी को उसके मूल पद पर बहाल करने का निर्देश दिया। फिर भी याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर देने और दायर किए जा सकने वाले उत्तर पर विचार करने के बाद कानून के अनुसार नए सिरे से उचित आदेश पारित करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई।
केस शीर्षक:रामसिंह भाई सबूरभाई पटेल बनाम गुजरात राज्य
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अगर जांच पूरी करने के लिए वैधानिक अवधि को 180 दिनों की समाप्ति से पहले धारा 36A(4) एनडीपीएस एक्ट के तहत बढ़ाया गया है तो कोई डिफॉल्ट जमानत नहींः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में निर्धारित किया कि अगर गांजे की वाणिज्यिक मात्रा के अवैध कब्जे के मामले में जांच नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 36 ए (4) के तहत काफी पहले से दिए गए विस्तार के आधार पर 180 दिनों की वैधानिक सीमा से परे लंबित है तो धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत डिफॉल्ट जमानत नहीं दी जा सकती।
कोर्ट ने कहा, "एनडीपीएस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार, आरोपी की गिरफ्तारी की तारीख से 180 दिनों के भीतर जांच पूरी करनी होती है। उक्त अवधि 11.12.2021 तक समाप्त हो जाएगी। हालांकि, रिकॉर्ड से पता चलता है कि अभियोजन पक्ष ने एनडीपीएस एक्ट की धारा 36ए(4) के तहत 180 दिनों की समाप्ति से पहले यानी 22.11.2021 को जांच पूरी करने की अवधि के विस्तार के लिए एक आवेदन दायर किया है। उक्त याचिका को न्यायालय ने अनुमति दी थी और जांच पूरी होने की अवधि को 180 दिनों के लिए और बढ़ा दिया था। इसलिए, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 36ए (4) के तहत जांच पूरी होने का समय बढ़ाया गया था, निचली अदालत ने याचिकाकर्ता की ओर से धारा 167(2) सीआरपीसी के तहत दायर डिफ़ॉल्ट जमानत की याचिका को उचित ही खारिज किया है।"
केस शीर्षक: एम मोहनराज बनाम आंध्र प्रदेश राज्य
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उत्पीड़न के संबंध में अस्पष्ट आरोप प्रथम दृष्टया आईपीसी धारा 498ए के तहत अपराध नहीं बनता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने हाल ही में फैसला सुनाया कि जब दहेज उत्पीड़न के मामले में पति के रिश्तेदारों के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं लगाया जाता है, तो यह प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत अपराध नहीं बनता है।
केस का शीर्षक: गुडीमेटला श्रीनिवासुलु बनाम आंध्र प्रदेश राज्य
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[मोटर वाहन अधिनियम] दूसरी अनुसूची के तहत गुणक लागू होंगे, भले ही दुर्घटना के समय वे लागू न हों: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट (Orissa High Court) ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की दूसरी अनुसूची (Second Schedule) के तहत प्रदान किए गए 'गुणकों (Multipliers)' को उन मामलों में भी लागू किया जा सकता है भले ही दुर्घटना उस समय हुई हो जब अनुसूची लागू नहीं थी।
मुख्य न्यायाधीश डॉ. एस. मुरलीधर और न्यायमूर्ति आर.के. पटनायक की खंडपीठ ने कहा, "एमवी एक्ट दुर्घटना पीड़ितों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से एक क़ानून होने के कारण, दुर्घटना पीड़ितों के लंबित मामलों में अनुसूची को लागू किया जाना चाहिए, भले ही दुर्घटना उस समय हुई हो जब अनुसूची लागू नहीं थी।"
केस का शीर्षक: डिवीजनल मैनेजर, न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, भुवनेश्वर बनाम सौरी दास एंड अन्य।
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मैरिटल रेप को अपवाद की श्रेणी में रखना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पति द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के आरोप को हटाने की मांग की गई थी। दरअसल, रेप का आरोप उसकी पत्नी द्वारा उसके खिलाफ लगाए गए थे।
अदालत ने पति के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 से लेकर बलात्कार के अपराध में वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपवाद की श्रेणी में रखने के कारण उसके खिलाफ आरोप तय नहीं किया जा सकता है।
केस का शीर्षक: हृषिकेश साहू बनाम कर्नाटक राज्य
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कोर्ट सीआरपीसी की धारा 104 के तहत पासपोर्ट जब्त नहीं कर सकता, पासपोर्ट अधिनियम के तहत यह केवल प्राधिकरण कर सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि अदालत आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 104 के तहत किसी भी दस्तावेज को जब्त कर सकती है लेकिन किसी आरोपी का पासपोर्ट जब्त नहीं कर सकती। यह केवल पासपोर्ट अधिनियम के तहत किया जा सकता है, जो एक विशेष अधिनियम है।
जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने कहा, "सीआरपीसी की धारा 104 के तहत न्यायालय के पास दस्तावेज जब्त करने की शक्ति है। यह पासपोर्ट जब्त करने की सीमा तक उपलब्ध नहीं हो सकती है। पासपोर्ट एक अन्य अधिनियम के दायरे में शामिल है और यह एक विशेष कानून होने के कारण सीआरपीसी की धारा 104 के प्रावधानों पर प्रभावी होगा।
केस शीर्षक: प्रवीण सुरेंद्रन बनाम कर्नाटक राज्य
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फैमिली कोर्ट एक्ट| ससुराल पक्ष के साथ सभी लेन-देन 'वैवाहिक संबंधों से पैदा परिस्थितियों' के रूप नहीं माना जा सकता: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 के तहत पति या पत्नी या दोनों द्वारा ससुराल या रिश्तेदारों के साथ प्रत्येक लेनदेन को 'वैवाहिक संबंधों से पैदा परिस्थितियों में' के रूप में नहीं माना जा सकता है।
जस्टिस ए मोहम्मद मुस्ताक और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने पाया कि याचिका में आक्षेपित लेन-देन दामाद और ससुर के बीच विशुद्ध रूप से व्यापारिक लेनदेन था, और इसलिए यह माना गया कि इसे वैवाहिक संबंधों से पैदा परिस्थितियों के रूप में नहीं कहा जा सकता है।
केस का शीर्षक: पी.टी. फिलिपोस और अन्य बनाम सुनील जैकब और अन्य।
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समझौते के आधार पर नैतिक पुलिसिंग मामलों को रद्द करने से लोगों के बीच गलत संदेश जाता है: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में फैसला सुनाया कि नैतिक पुलिसिंग एक ऐसा अपराध है जिसमें मानसिक भ्रष्टता शामिल है और ऐसे मामलों को आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता है। न्यायमूर्ति के. हरिपाल उस मामले पर फैसला सुना रहे थे जिसमें हिंसक भीड़ ने एक निहत्थे व्यक्ति पर एक अलग समुदाय की महिला को अपनी कार में ले जाने पर हमला किया था।
केस का शीर्षक: मुहम्मद नज़र एंड अन्य बनाम केरल राज्य एंड अन्य।
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[POCSO Act] पीड़िता के पक्षद्रोही हो जाने पर अभियोजन पक्ष प्रति-परीक्षण कर सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत अभियोजन पक्ष पीड़िता के पक्षद्रोही (Hostile) हो जाने पर प्रति-परीक्षण (Cross Examination) कर सकता है।
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "पॉक्सो अधिनियम की धारा 33 की उप-धारा (2) के अनुसार, विशेष लोक अभियोजक या जैसा भी मामला होगा, अभियुक्त की ओर से पेश होने वाले वकील, मुख्य परीक्षण, प्रति-परीक्षण या पुन:परीक्षण में बच्चे से पूछे जाने वाले प्रश्नों को विशेष न्यायालय में संप्रेषित करती है जो बदले में उन प्रश्नों को बच्चे के सामने रखेगी। इसलिए, पीड़िता को उसके मुकरने पर पोक्सो अधिनियम के तहत ही प्रति परीक्षण की अनुमति है, जो पोक्सो अधिनियम की धारा 33 की उप-धारा (2) के तहत स्थिति को भी कवर करेगा।"
केस का शीर्षक: कर्नाटक राज्य बनाम सोमन्ना
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अपीलीय अदालत अंतरिम आदेश में तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकती जब तक कि ट्रायल कोर्ट ने सामग्री को उचित परिप्रेक्ष्य में नहीं माना / खुद को गलत तरीके से निर्देशित नहीं किया: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने स्थापित कानून की पुष्टि करते हुए कि अपीलीय अदालतों को अंतरिम स्तर पर ट्रायल कोर्ट के विवेकाधीन आदेश को भंग नहीं करना चाहिए, भले ही मामले का दूसरा दृष्टिकोण संभव हो, निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली अपील की अनुमति दी है, जिसमें अंतरिम निषेधाज्ञा देने से इनकार किया गया था।
जस्टिस एपी ठाकर की खंडपीठ ने वादी के आवास की पूर्वी दीवार की ओर निर्माण के संबंध में यथास्थिति का आदेश दिया जब तक कि दोनों पक्ष अपने दावे और प्रति-दावे के समर्थन में अपने साक्ष्य पेश नहीं करते।
केस शीर्षक: शांताबेन अंबालाल पटेल और एक अन्य (एस) बनाम सुनीताबेन विजयकुमार जोशी
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पत्नी द्वारा वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए पति की याचिका का विरोध करना घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत उसके निवास के अधिकार को प्रभावित नहीं करता : दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2008 के तहत निवास का अधिकार, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के तहत उत्पन्न होने वाले किसी भी अधिकार से विशिष्ट और अलग है, जो वैवाहिक अधिकारों की बहाली से संबंधित है।
जस्टिस चंद्रधारी सिंह इस मामले में एक दंपति द्वारा दायर एक याचिका पर विचार कर रहे थे, जिसमें अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी। सत्र न्यायाधीश ने उनके बेटे की पत्नी/प्रतिवादी नंबर 1 के पक्ष में दिए गए निवास के अधिकार के आदेश की पुष्टि की थी।
केस का शीर्षक- ओम प्रकाश गुप्ता व अन्य बनाम अंजनी गुप्ता व अन्य
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किसी व्यक्ति की जाति जन्म से निर्धारित होती है, विवाहित महिलाएं दुर्लभ परिस्थितियों में पति की जाति का दर्जा हासिल करती हैं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने एक ग्राम पंचायत सदस्य अर्चना एमजी द्वारा दायर याचिका खारिज किया, जिसमें सिविल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसने उसे सामाजिक स्थिति की कमी के आधार पर खारिज कर दिया था।
जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की सिंगल जज बेंच ने कहा, "इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ता जन्म से अनुसूचित जनजाति से संबंधित नहीं है। हालांकि वह अनुसूचित जनजाति के एक सदस्य से शादी करके उक्त सामाजिक स्थिति हासिल करने का दावा करती है। आमतौर पर, जाति का निर्धारण जन्म से होता है और व्यक्ति की जाति निम्नानुसार होती है जो उसके पिता का है।"
केस का शीर्षक: अर्चना एम जी बनाम अभिलाषा
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[जुवेनाइल जस्टिस एक्ट] जघन्य अपराध करने पर भी बच्चे पर अपने आप वयस्क के रूप में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में एक आपराधिक पुनरीक्षण आवेदन में इस सवाल का निपटारा किया कि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे (सीसीएल) पर कब एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जा सकता है।
एकल पीठ जज जस्टिस एम.जी. सेवलीकर ने कहा कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 15 के तहत जघन्य अपराधों का आकलन करना होता है ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि सीसीएल पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाना है या नहीं।
केस टाइटल: महाराष्ट्र राज्य बनाम शादाब तबारक खान
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जैविक पिता का रिकॉर्ड उपलब्ध न होने पर भी दत्तक पुत्र दत्तक माता की जाति पाने का हकदार: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि गोद लिया हुआ बच्चा हर तरीके से अपने दत्तक माता-पिता के परिवार का सदस्य बन जाता है, अधिकारियों को उसकी मां की अनुसूचित जाति की पहचान के आधार पर 18 वर्षीय बेटे को जाति प्रमाण पत्र जारी करने का निर्देश दिया।
जस्टिस सुनील शुक्रे और जस्टिस जीए सनप की बेंच ने कहा कि एक गोद लिया हुआ बच्चा अपनी दत्तक मां की जातिगत पहचान पाने का हकदार होगा, इसके बावजूद अधिकारियों ने बच्चे के जैविक पिता के रिकॉर्ड उपलब्ध कराने पर जोर दिया।
केस शीर्षक: डॉ सोनल प्रतापसिंह वाहनवाला बनाम उप जिला कलेक्टर, धारावी
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दोषियों की समय से पहले रिहाई के लिए जेल प्राधिकरण की सिफारिश राज्य के लिए बाध्यकारी नहीं: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने समय पूर्व रिहाई के लिए जॉन डेविड के मामले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया है। उल्लेखनीय है कि जॉन डेविड 1996 में हुए पोन नवरसु हत्या मामले में दोषी है। जस्टिस पीएन प्रकाश और जस्टिस एए नक्कीरन ने कहा कि राज्य सरकार और राज्यपाल जेल अधिकारियों द्वारा जॉन डेविड के पक्ष में की गई सिफारिश से बाध्य नहीं हैं।
केस शीर्षक: डॉ. एस्थर, MBBS, DGO बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य
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जब अन्य दंड कानून स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त हों तो निवारक नजरबंदी मान्य नहीं है: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा, "जब तक कि यह मामला बनाने के लिए सामग्री न हो कि व्यक्ति समाज के लिए खतरा बन गया है, जिससे पूरा समाज परेशान हो रहा है और जिससे सामाजिक तंत्र खतरे में है, यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी गुजरात एंटी सोशल एक्टिविटीज एक्ट, 1985 की धारा 2 (बी) के अर्थ में ऐसा व्यक्ति है।"
जस्टिस राजेंद्र सरीन की पीठ अधिनियम की धारा 3 (2) के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ दिसंबर 2021 के नजरबंदी के आदेश के खिलाफ एक विशेष दीवानी आवेदन पर सुनवाई कर रही थी।
केस शीर्षक: दिलीप भवानीशंकर यादव बनाम गुजरात राज्य
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कंपाउंडेबल अपराध के लिए समझौता सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि आरोपी पर एससी/एसटी एक्ट के तहत भी आरोप लगा था, लेकिन बरी कर दिया गया: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने हाल ही में आईपीसी की धारा 323 के तहत अपराध के कंपाउंडिंग की अनुमति दी, भले ही आरोपी पर मूल रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत आरोप लगाया गया था।
जस्टिस अशोक कुमार जोशी की खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालत ने याचिकाकर्ताओं-आरोपियों को आईपीसी की धारा 504, 506 (2), 427 के साथ पठित 114 और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3 (1) (x) के तहत बरी कर दिया था। और इस तरह के दोषमुक्ति के खिलाफ शिकायतकर्ता / राज्य द्वारा कोई अपील नहीं की गई थी।
केस का शीर्षक: जनकभाई @ अल्पेशभाई मफतभाई रबारी एंड अन्य (एस) बनाम गुजरात राज्य
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वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किए बिना सरकारी कर्मचारियों को सेवा से नहीं हटाया जा सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट (Orissa High Court) ने कहा कि वैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किए बिना सरकारी कर्मचारियों को सेवा से नहीं हटाया जा सकता है। जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल न्यायाधीश खंडपीठ ने कहा, "इस तथ्य के बावजूद कि याचिकाकर्ता को पांच साल से अधिक समय तक लगातार अनुपस्थित रहने पर प्राधिकरण के आदेशों की अवहेलना करने का दोषी ठहराया जा सकता है, फिर भी उसे निर्धारित वैधानिक प्रक्रिया का सहारा लिए बिना हटाया नहीं जा सकता है।"
केस का शीर्षक: अक्षय कुमार नायक बनाम ओडिशा राज्य एंड अन्य।
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अभियोजन के लिए स्वीकृति आदेश भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 74(iii) के तहत एक सार्वजनिक दस्तावेज: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते टिप्पणी की कि (अभियोजन के लिए) एक मंजूरी आदेश भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 74 (1) (iii) के अर्थ के भीतर एक सार्वजनिक दस्तावेज है और इसलिए, साक्ष्य अधिनियम की धारा 76/77 के तहत तैयार की गयी उसी की प्रमाणित प्रति साक्ष्य में स्वीकार्य है।
न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान की खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए एसीजेएम, भिवानी (हरियाणा) द्वारा पारित उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट, भिवानी को उनके द्वारा पारित एक मंजूरी आदेश को औपचारिक रूप से साबित करने के लिए गवाह के रूप में पेश होने के लिए तलब किया गया था।
केस का शीर्षक - हरियाणा सरकार बनाम आसमां एवं मामले से संबंधित अन्य व्यक्ति
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सीआरपीसी की धारा 227 - आरोपी को 'गंभीर संदेह' के अभाव में आरोप मुक्त कर दिया जाना चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में यह व्यवस्था दी है कि कोर्ट द्वारा अभियुक्तों के खिलाफ आरोप तय करने से पहले आरोपी के खिलाफ 'गंभीर संदेह' होना चाहिए न कि केवल 'संदेह' होना चाहिए। अन्यथा, आरोपी को बरी करने के लिए सीआरपीसी की धारा 227 के तहत 'पर्याप्त आधार' होगा।
ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण की अनुमति देते हुए, न्यायमूर्ति शशिकांत मिश्रा की एकल पीठ ने कहा, "आगे की व्याख्या करने के लिए, संदेह पूरी तरह से अटकलों या कल्पना के दायरे में हो सकता है और बिना किसी आधार के भी हो सकता है, जबकि गंभीर संदेह कुछ स्वीकार्य सामग्री या सबूत के आधार पर उत्पन्न होता है। यदि कथित घटना के लिए कोई अन्य स्पष्टीकरण नहीं है, इसलिए संदेह की सुई आरोपी की ओर होगी, लेकिन इतने से ही आरोपी के खिलाफ मुकदमे को आगे बढ़ाने का उचित आधार नहीं हो सकता है।"
केस शीर्षक: शांतनु @ प्रियव्रत सेनापति बनाम उड़ीसा सरकार
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कोर्ट शिकायतकर्ता/पीड़ित को सीआरपीसी की धारा 311ए के तहत नमूना हस्ताक्षर देने का निर्देश नहीं दे सकता: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि सीआरपीसी की धारा 311ए कोर्ट को यह अनुमति नहीं देती कि वह किसी शिकायतकर्ता या पीड़ित को संहिता के तहत किसी भी जांच या कार्यवाही के लिए नमूना हस्ताक्षर या लिखावट सौंपने का आदेश दे। गौरतलब है कि यह प्रावधान न्यायिक मजिस्ट्रेट को संहिता के तहत किसी भी जांच या कार्यवाही के उद्देश्य से, आरोपी व्यक्ति सहित किसी भी व्यक्ति को नमूना हस्ताक्षर या लिखावट देने का निर्देश देने का अधिकार देता है।
केस का शीर्षक - संदीप कौर और अन्य बनाम केंद्र शासित प्रदेश, चंडीगढ़