मैरिटल रेप को अपवाद की श्रेणी में रखना अनुच्छेद 14 का उल्लंघन: कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

24 March 2022 6:00 AM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पति द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के आरोप को हटाने की मांग की गई थी।

    दरअसल, रेप का आरोप उसकी पत्नी द्वारा उसके खिलाफ लगाए गए थे।

    अदालत ने पति के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 से लेकर बलात्कार के अपराध में वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपवाद की श्रेणी में रखने के कारण उसके खिलाफ आरोप तय नहीं किया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों में इस तरह के हमले/बलात्कार करने पर पति को पूर्ण छूट नहीं हो सकती है, क्योंकि कानून में कोई भी छूट इतनी पूर्ण नहीं हो सकती है कि यह समाज के खिलाफ अपराध करने का लाइसेंस बन जाए।"

    कोर्ट ने कहा कि वैवाहिक बलात्कार को अपवाद की श्रेणी में रखना "प्रतिगामी" है और यह अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत के विपरीत होगी।

    न्यायमूर्ति एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा,

    "संविधान, सभी विधियों का एक स्रोत है, समानता को दर्शाता है। संहिता भेदभाव का अभ्यास करती है। संहिता के तहत महिला के खिलाफ अपराधों में लिप्त हर दूसरे व्यक्ति को उन अपराधों के लिए दंडित किया जाता है। लेकिन, जब आईपीसी की धारा 375 की बात आती है तो अपवाद हो जाता है। मैं मानता हूं कि अभिव्यक्ति प्रगतिशील नहीं बल्कि प्रतिगामी है, जिसमें एक महिला को पति के अधीनस्थ के रूप में माना जाता है, जो अवधारणा समानता से घृणा करती है।"

    बेंच ने कहा,

    "अगर एक पुरुष (पति) को आईपीसी की धारा 375 के कमीशन के आरोप से छूट दी जा सकती है, तो कानून के ऐसे प्रावधान में असमानता फैल सकती है। इसलिए, यह अनुच्छेद 14 में निहित के विपरीत होगा।"

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "संविधान के तहत सभी मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए, चाहे वह पुरुष हो, चाहे वह महिला हो और अन्य। कानून के किसी भी प्रावधान में असमानता का कोई भी विचार, संविधान के अनुच्छेद 14 की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा। महिला और पुरुष संविधान के तहत समान होने को आईपीसी की धारा 375 के अपवाद -2 द्वारा असमान नहीं बनाया जा सकता है। यह कानून निर्माताओं के लिए कानून में ऐसी असमानताओं के अस्तित्व पर विचार करना है"।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 की संवैधानिकता पर फैसला नहीं सुनाया है।

    यह भी याद किया जा सकता है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर फैसला सुरक्षित रखा है।

    पति ने महिला से किया रेप, आईपीसी की धारा 376 के तहत सजा

    कोर्ट ने कहा,

    "एक पुरुष जो एक महिला से अच्छी तरह से परिचित है, वह सभी अवयवों का प्रदर्शन करता है जैसा कि आईपीसी की धारा 375 में संशोधन से पहले या बाद में पाया जाता है, उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए कार्रवाई की जा सकती है। इसलिए, एक पुरुष यौन संबंध रखता है। किसी महिला के साथ मारपीट या बलात्कार करना आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय है।"

    पूरा मामला

    पत्नी ने पति के खिलाफ 21.03.2017 को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। शिकायत के अनुसार, भारतीय दंड संहिता की धारा 506, 498ए, 323, 377 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 10 के तहत दंडनीय अपराध है।

    पुलिस ने जांच के बाद याचिकाकर्ता के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। आरोप पत्र दाखिल करते समय, आईपीसी की धारा 498ए, 354, 376, 506 और पोक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 5(एम) और (एल) आर/डब्ल्यू धारा 6 के तहत दंडनीय अपराध लागू किए जाते हैं।

    विशेष अदालत ने केवल याचिकाकर्ता के खिलाफ अपने आदेश दिनांक 10.08.2018 के तहत आईपीसी की धारा 376, 498ए और 506 और पोक्सो अधिनियम की धारा 5(एम) और (एल) आर/डब्ल्यू धारा 6 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोप तय किए।

    न्यायालय का निष्कर्ष

    पीठ ने आरोप पत्र पर विचार करते हुए कहा, "जांच के बाद पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र में आरोपी नंबर 1 की राक्षसी वासना का विवरण भी दर्शाया गया है, जो जांच के अनुसार अप्राकृतिक यौन संबंध रखता है। हर बार संभोग करता है। पत्नी को प्रताड़ित करना या गाली देना, या बेटी को पीटने की धमकी देना या बेटी को पीटना, ये सब घोर कामुक वासना की संतुष्टि के लिए है।"

    कोर्ट ने कहा,

    "भारतीय दंड संहिता की धारा 375 का अपवाद वर्ष 1860 में अंग्रेजों द्वारा इसके अधिनियमित होने के समय से ही अस्तित्व में है। अपवाद -2 तब उन कानूनों द्वारा निर्देशित था जो उन सभी देशों में मौजूद थे जहां अंग्रेजों का पैर था। वे कई दशक पहले थे। यह मध्ययुगीन कानून में एक अनुबंध के आधार पर स्थापित और बना रहा कि पतियों ने अपनी पत्नियों पर अपनी शक्ति का प्रयोग किया।"

    इसके बाद यह देखा गया कि रिपब्लिक के बाद, भारत संविधान द्वारा शासित है। संविधान महिला को पुरुष के बराबर मानता है और विवाह को बराबरी का संघ मानता है। संविधान किसी भी तरह से महिला को पुरुष के अधीनस्थ होने का चित्रण नहीं करता है। संविधान है अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 के तहत मौलिक अधिकार गारंटी देता है जो गरिमा के साथ जीने का अधिकार, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, शारीरिक अखंडता, यौन स्वायत्तता, प्रजनन विकल्पों का अधिकार, निजता का अधिकार, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। अधिकार समान हैं, सुरक्षा भी समान है।

    अन्य देशों में वैवाहिक बलात्कार अवैध

    अदालत ने उल्लेख किया कि 50 अमेरिकी राज्यों, 3 ऑस्ट्रेलियाई राज्यों, न्यूजीलैंड, कनाडा, इज़राइल, फ्रांस, स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे, सोवियत संघ, पोलैंड और चेकोस्लोवाकिया और कई अन्य में वैवाहिक बलात्कार अवैध है। यूनाइटेड किंगडम ने वर्ष 1991 में आर वी आर में हाउस ऑफ लॉर्ड्स द्वारा दिए गए निर्णय के अनुसार अपवाद को भी हटा दिया है।

    केस का शीर्षक: हृषिकेश साहू बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: 2018 की रिट याचिका संख्या 48367

    प्रशस्ति पत्र: 2022 लाइव लॉ (कर) 89

    आदेश की तिथि: 23 मार्च, 2022

    उपस्थिति: याचिकाकर्ता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता हशमथ पाशा, अधिवक्ता रंजन कुमार

    एडवोकेट नमिता महेश बीजी, एजीए आरडी रेणुकाराध्या, आर 1 के लिए

    एडवोकेट मदन पिल्लै आर फॉर आर2 के लिए, ए.डी.रामानंद आर3 के लिए

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