दोषियों की समय से पहले रिहाई के लिए जेल प्राधिकरण की सिफारिश राज्य के लिए बाध्यकारी नहीं: मद्रास हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
22 March 2022 7:00 AM IST
मद्रास हाईकोर्ट ने समय पूर्व रिहाई के लिए जॉन डेविड के मामले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया है। उल्लेखनीय है कि जॉन डेविड 1996 में हुए पोन नवरसु हत्या मामले में दोषी है। जस्टिस पीएन प्रकाश और जस्टिस एए नक्कीरन ने कहा कि राज्य सरकार और राज्यपाल जेल अधिकारियों द्वारा जॉन डेविड के पक्ष में की गई सिफारिश से बाध्य नहीं हैं।
अदालत ने कहा कि केवल राज्यपाल ही संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत किसी कैदी को समय से पहले रिहा करने के लिए दी गई शक्ति का राज्य मंत्रिमंडल की सलाह पर कर सकते हैं। मद्रास हाईकोर्ट ने जॉन डेविड को बरी किया था, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को उलट दिया था। कुड्डालोर ट्रायल कोर्ट ने उसे 2011 में दोहरी उम्र कैद की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश की पुष्टि की थी।
जॉन डेविड पोन नवरसु की हत्या का मुख्य आरोपी था। पोन नवरसु अन्नामलाई यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस फर्स्ट इयर का स्टूडेंट थे और मद्रास यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति के बेटे थे।
मामले में जघन्य हत्या के बाद जनता में व्यापक आक्रोश व्यक्त किया था, जिसके बाद शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग को अपराध घोषित करने के लिए राज्य सरकार ने तमिलनाडु रैगिंग निषेध अधिनियम, 1997 लागू किया था।
जीओ (डी) 372 के खिलाफ, जिसने डॉ एमजी रामचंद्रन के जन्म शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में जारी जीओ 64 का लाभ लेने से वंचित किया था, जॉन डेविड की मां डॉ एस्थर की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई से डिवीजन बेंच ने इनकार कर दिया।
बेंच ने नोट किया,
"राज्य स्तरीय समिति, जिसमें कारागार महानिरीक्षक और कारागार उप महानिरीक्षक (मुख्यालय) शामिल है, केवल वहीं राज्य सरकार से अनुशंशा कर सकती है और संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता। राज्य के राज्यपाल अनुच्छेद 161 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हैं, अलबत्ता यह कैबिनेट की अनुशंशा पर हो सकता है। इस प्रकार, मंत्रिमंडल के पास राज्य स्तरीय समिति की अनुशंशा को स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार है और उसी अनुसर वह राज्यपाल को अपनी सलाह दे सकती है।"
पीठ ने कहा कि गृह सचिव (कारागार) और अन्य बनाम एच निलोफर निशा [(2020) 14 एससीसी 161] के अनुसार पैरोल की छूट कैदी का निहित अधिकार नहीं है।
पीठ ने कहा कि वह अनुच्छेद 226 के तहत सरकारी आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है क्योंकि उसके पास अनुच्छेद 142 के तहत कोई शक्ति है। नीलोफर शाह में कैदियों की रिहाई सुप्रीम कोर्ट ने केस दर केस आधार पर की थी। अदालत ने एपुरु सुधाकर और अन्य बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य [(2006 8 एससीसी 161] पर यह रेखांकित करने के लिए भरोसा किया कि राष्ट्रपति और राज्यपाल 'क्षमा और राहत देने की उपयुक्तता के एकमात्र जज हैं'।
सतीश @ सब्बे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [2020] पर याचिकाकर्ता वकील की निर्भरता पर अदालत ने कहा कि उस फैसले में समय से पहले रिहाई की अनुमति दी गई थी क्योंकि कार्यकारी अधिकारी उत्तर प्रदेश कैदी रिहाई पर परिवीक्षा अधिनियम, 1938 की धारा 2 का पालन करने में विफल रहे और इसलिए नहीं कि छूट का दावा अधिकार के रूप में किया जा सकता है।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि के राजशेखर बनाम राज्य और अन्य (2022) में मद्रास हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच का फैसला इस तथ्य के आधार पर था कि एक जोड़े ने एक बच्चे की हत्या की थी, और चूंकि कोई नहीं जानता था कि हत्या किसने की थी, के पति को छूट दी जा सकती है जबकि पत्नी को इसलिए छूट ने देने से मना कर दिया गया क्योंकि उसने एक जघन्य अपराध किया है।
अदालत ने स्वीकार किया कि पुलिस अधीक्षक (जेल) की ओर से दिए गए आचरण प्रमाण पत्र से संकेत मिलता है कि जॉन डेविड ने जेल में अनुकरणीय आचरण दिखाया है। हालांकि, यही कारण उसे योजना के तहत समय से पहले रिहाई के लिए योग्य नहीं बनाता और यह राज्यपाल का विवेकाधिकार होगा।
केस शीर्षक: डॉ. एस्थर, MBBS, DGO बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य
केस नंबर: W.P. No.8237 of 2020 & W.M.P. Nos.9842 and 9845 of 2020
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (Mad) 108