[POCSO Act] पीड़िता के पक्षद्रोही हो जाने पर अभियोजन पक्ष प्रति-परीक्षण कर सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
23 March 2022 8:33 AM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत अभियोजन पक्ष पीड़िता के पक्षद्रोही (Hostile) हो जाने पर प्रति-परीक्षण (Cross Examination) कर सकता है।
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,
"पॉक्सो अधिनियम की धारा 33 की उप-धारा (2) के अनुसार, विशेष लोक अभियोजक या जैसा भी मामला होगा, अभियुक्त की ओर से पेश होने वाले वकील, मुख्य परीक्षण, प्रति-परीक्षण या पुन:परीक्षण में बच्चे से पूछे जाने वाले प्रश्नों को विशेष न्यायालय में संप्रेषित करती है जो बदले में उन प्रश्नों को बच्चे के सामने रखेगी। इसलिए, पीड़िता को उसके मुकरने पर पोक्सो अधिनियम के तहत ही प्रति परीक्षण की अनुमति है, जो पोक्सो अधिनियम की धारा 33 की उप-धारा (2) के तहत स्थिति को भी कवर करेगा।"
पूरा मामला
राज्य सरकार ने प्रधान जिला और सत्र न्यायाधीश, चामराजनगर के एक आदेश को चुनौती देते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसके तहत पॉस्को अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 की धारा 9, 10 और 11 के तहत प्रावधानों से उत्पन्न होने वाले मामले में पीड़िता को उसके मुकर जाने पर प्रति परीक्षण करने की राज्य की अनुमति से इनकार कर दिया गया था।
राज्य की ओर से पेश अधिवक्ता शंकर एच.एस ने कहा कि आक्षेपित आदेश कानून के विपरीत है क्योंकि एक बार गवाह के मुकरने के बाद प्रति परीक्षण करना एक अधिकार है। केवल इसलिए कि कार्यवाही POCSO अधिनियम के तहत है, प्रति परीक्षण का अधिकार नहीं छीना जा सकता क्योंकि अधिनियम ही इस तरह की प्रति परीक्षण की अनुमति देता है।
न्यायालय का निष्कर्ष
बेंच ने डौला वी. द स्टेट, क्रिमिनल अपील नंबर 100260/2016 के फैसले पर भरोसा किया, जहां यह माना गया था कि पॉक्सो एक्ट की धारा 33 (2) नाबालिग पीड़ित को उसी से बचाने के लिए बनाई गई है। यह अनिवार्य करता है कि बच्चे के साक्ष्य को रिकॉर्ड करते समय, विशेष पीपी या जैसा भी मामला हो, विशेष अदालत को सूचित करने के लिए अभियुक्त के वकील, पीड़ित से सवाल किया जाना चाहिए और अदालत इसे बदले में रखेगी।
निचली अदालत के आदेश पर गौर करने पर पीठ ने कहा,
"आक्षेपित आदेश के अवलोकन से जो स्पष्ट रूप से सामने आ रहा है वह यह है कि यह पॉक्सो अधिनियम की धारा 33, सर्वोच्च न्यायालय और इस न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों के विपरीत है और परिणामस्वरूप बरकरार रखने योग्य नहीं है।"
आगे कहा गया है,
"राज्य को पीड़ित से प्रति परीक्षण करने की अनुमति दी जानी चाहिए। लेकिन, इस तरह की प्रति परीक्षण केवल POCSO अधिनियम की धारा 33 के संदर्भ में हो सकती है, जिसमें कहा गया है कि प्रति परीक्षण के दौरान प्रश्न पूछे जाएंगे। कोर्ट बारी-बारी से पीड़ित से सवाल करते हैं। सत्र न्यायाधीश इस तरह की सावधानी बरतेंगे ताकि पीड़ित को प्रश्न पोक्सो अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप हो।"
इसके बाद अदालत ने आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया और मामले को निचली अदालत में वापस भेज दिया और उसे POCSO अधिनियम की धारा 33 के अनुसार पीड़ित से प्रति परीक्षण की अनुमति देने का निर्देश दिया।
केस का शीर्षक: कर्नाटक राज्य बनाम सोमन्ना
मामला संख्या:। आपराधिक याचिका संख्या 8167/2020
प्रशस्ति पत्र: 2022 लाइव लॉ 86
आदेश की तिथि: 3 मार्च, 2022
Appearance: याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट शंकर एच.एस.
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