कोर्ट सीआरपीसी की धारा 104 के तहत पासपोर्ट जब्त नहीं कर सकता, पासपोर्ट अधिनियम के तहत यह केवल प्राधिकरण कर सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

24 March 2022 1:45 AM GMT

  • कोर्ट सीआरपीसी की धारा 104 के तहत पासपोर्ट जब्त नहीं कर सकता, पासपोर्ट अधिनियम के तहत यह केवल प्राधिकरण कर सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    Karnataka High Court

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि अदालत आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 104 के तहत किसी भी दस्तावेज को जब्त कर सकती है लेकिन किसी आरोपी का पासपोर्ट जब्त नहीं कर सकती। यह केवल पासपोर्ट अधिनियम के तहत किया जा सकता है, जो एक विशेष अधिनियम है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने कहा,

    "सीआरपीसी की धारा 104 के तहत न्यायालय के पास दस्तावेज जब्त करने की शक्ति है। यह पासपोर्ट जब्त करने की सीमा तक उपलब्‍ध नहीं हो सकती है। पासपोर्ट एक अन्य अधिनियम के दायरे में शामिल है और यह एक विशेष कानून होने के कारण सीआरपीसी की धारा 104 के प्रावधानों पर प्रभावी होगा।

    कोर्ट किसी भी दस्तावेज को जब्त कर सकता है, लेकिन पासपोर्ट को नहीं....। अधिनियम की धारा 10 के अनुसार केवल सक्षम प्राधिकारी को ही जब्त करने की शक्ति उपलब्ध है।"

    इसके अलावा, अदालत ने स्पष्ट किया कि पुलिस के पास सीआरपीसी की धारा 102 के तहत पासपोर्ट अपने कब्जे में लेने की शक्ति है। हालांकि इस प्रकार जब्त किया गया पासपोर्ट पुलिस अनिश्चित काल तक नहीं रख सकती है, क्योंकि एक निश्चित अवधि के बाद अपने कब्जे में लेना जब्त करने के बराबर होगा, जब कि कानून के तहत जब्त करने की शक्ति बिलकुल अलग है और सीआरपीसी की धारा 102 के तहत पुलिस को नहीं दी गई है।

    मामला

    याचिकाकर्ता प्रवीण सुरेंद्रन पर एमईएमजी इंटरनेशनल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के समूह मुख्य कार्यकारी अधिकारी वैथीस्वरन एस द्वारा दर्ज एक शिकायत पर आईपीसी की धारा 420, 465, 467, 468 और 471 के तहत दंडनीय अपराधों का आरोप लगाया गया था। पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट दाखिल कर दी है और मुकदमा चल रहा है। हाईकोर्ट ने आरोपी के खिलाफ मामले में आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी है और उसे जमानत पर रिहा कर दिया गया है।

    आरोपी ने इस आधार पर अपना पासपोर्ट जारी करने के लिए निचली अदालत के समक्ष एक आवेदन दायर किया कि याचिकाकर्ता का बेटा पेरिस के एक स्कूल में पढ़ता है। चूंकि कक्षाएं अब शारीरिक रूप से शुरू हो गई हैं, याचिकाकर्ता अपने बेटे को स्कूल में भर्ती कराने के लिए उसके साथ जाना चाहता था। यह आवेदन अदालत ने 2 मार्च, 2022 के अपने आदेश से खारिज कर दिया।

    निष्कर्ष

    अदालत ने पासपोर्ट अधिनियम की धारा 10 का उल्लेख किया, जिसके तहत पासपोर्ट और यात्रा दस्तावेजों में बदलाव, जब्ती और निरस्तीकरण का प्रावधान है।

    कोर्ट ने कहा, "अध‌िनियम की धारा 10 की उप-धारा (3) पासपोर्ट प्राधिकरण को धारा 10 की उप-धारा (3) में निर्धारित शर्तों के अधीन पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज को जब्त करने या रद्द करने का अधिकार देती है।"

    फैसले में कहा गया, "पासपोर्ट को जब्त करने की एक शर्त यह है कि क्या पासपोर्ट धारक द्वारा कथित रूप से किए गए अपराध के संबंध में कार्यवाही भारत की आपराधिक अदालत में लंबित है? इसलिए अधिनियम के तहत जब्ती में सक्षम प्राधिकारी की शक्तियों को अधिनियम की धारा 10 की उप-धारा 3 के खंड (ई) में ही पाया जा सकता है, और यह मामले में लागू होने वाला एकमात्र प्रावधान है।"

    यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता एक आपराधिक कार्यवाही का सामना कर रहा है और यह ऐसा मामला नहीं है जहां पासपोर्ट जब्त या कब्जे में नहीं किया जा सकता है, अदालत ने कहा,

    "पासपोर्ट अधिनियम एक विशेष अधिनियम है और यह स्पष्ट है कि यह एक विशेष अधिनियम होने के कारण सीआरपीसी की धारा 102 या धारा 104 पर प्रभावी होगा.... जो पुलिस को किसी भी दस्तावेज को अपने कब्जे में लेने और न्यायालय को किसी भी दस्तावेज को जब्त करने का अधिकार देता है। अदालत के समक्ष पेश किए गए किसी भी दस्तावेज को जब्त करना इस हद तक नहीं बढ़ सकता है कि वह पासपोर्ट को जब्त कर सकती है।"

    इसने कहा, "इसलिए, अदालत के समक्ष पासपोर्ट जमा करना या पुलिस का पासपोर्ट रखना, दोनों कानून के अधिकार के बिना हो जाएंगे। अदालत ने आगे कहा कि यह मुकदमे के समापन तक उसके पास रहेगा, जो स्पष्ट रूप से कानून के अधिकार के बिना है, क्योंकि यह पासपोर्ट को जब्त करने के बराबर होगा।"

    सुरेश नंदा बनाम सीबीआई (2008) 3 एससीसी 674 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए, अदालत ने कहा, "न्यायालय द्वारा पासपोर्ट जारी करने के आवेदन को खारिज करने का आदेश यह कहते हुए कि यह सुरक्षित कस्टडी में है, टिकाऊ नहीं है। इसलिए, याचिकाकर्ता पासपोर्ट पाने का हकदार है, क्योंकि पासपोर्ट रखने और यात्रा करने का अधिकार, निस्संदेह, निर्णयों की अधिकता में मौलिक अधिकार माना जाता है।"

    जिसके बाद अदालत ने याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया और ट्रायल कोर्ट द्वारा पासपोर्ट जारी करने को खारिज करने के आदेश को रद्द कर दिया और ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह इस आदेश की एक प्रति प्राप्त होने की तारीख से 3 सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को पासपोर्ट सौंप दे।

    इसके अलावा, इसने याचिकाकर्ता को उचित अवसर प्रदान करने के बाद, याचिकाकर्ता के पासपोर्ट को कानून के अनुसार जब्त करने के लिए प्रतिवादी को पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 10 के तहत पासपोर्ट प्राधिकरण से संपर्क करने की अनुमति दी।

    केस शीर्षक: प्रवीण सुरेंद्रन बनाम कर्नाटक राज्य

    केस नंबर: 2022 की आपराधिक याचिका संख्या 1892

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 87


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