हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

17 Sep 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (11 सितंबर 2023 से 15 सितंबर 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    दहेज की मांग को पूरा करने के लिए पत्नी को उचित चिकित्सा सहायता उपलब्ध नहीं कराना आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि दहेज की मांग को पूरा करने के लिए किसी की पत्नी को उचित चिकित्सा सहायता प्रदान नहीं करना भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत क्रूरता की परिभाषा के अंतर्गत आएगा। इस प्रकार, ज‌स्टिस अंबुज नाथ की पीठ ने आरोपी संजय कुमार राय की सजा को बरकरार रखा और उसे अपनी पत्नी के खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए के तहत क्रूरता करने का दोषी पाया।

    केस टाइटलः राम कृपाल सिंह बनाम झारखंड राज्य और अन्य संबंधित पुनरीक्षण याचिकाओं के साथ

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    जहां अभियोजन पक्ष प्रारंभिक या अपूर्ण आरोप पत्र दाखिल करता है, वहां आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि आरोपी को डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा होने का अधिकार है, जहां अभियोजन वैधानिक अवधि के भीतर प्रारंभिक या अधूरा आरोप पत्र दाखिल करता है। जस्टिस अमित शर्मा ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत जीवन और स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार और सीआरपीसी की धारा 167(2) के साथ इसका सह-संबंध वर्षों से न्यायिक उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट रूप से स्थापित किया गया है।

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    'सनातन धर्म' शाश्वत कर्तव्यों का एक समूह, जबकि‌ फिलहाल ऐसा विचार सामने आ रहा है कि यह जातिवाद और अस्पृश्यता को बढ़ावा देने वाला: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि "सनातन धर्म" शाश्वत कर्तव्यों का एक समूह है, जिसमें राष्ट्र के प्रति कर्तव्य, राजा के प्रति कर्तव्य, माता-पिता और गुरुओं के प्रति कर्तव्य आदि शामिल हैं और उस संदर्भ में, सनातन धर्म के विरोध का अर्थ ये होगा कि ये सभी कर्तव्य नष्ट होने योग्य थे। कोर्ट ने कहा, "आम तौर पर सनातन धर्म को 'शाश्वत कर्तव्यों' के एक समूह के रूप में समझा जाता है, और इसे एक विशिष्ट साहित्य में नहीं खोजा जा सकता है....इसमें राष्ट्र के प्रति कर्तव्य, राजा के प्रति कर्तव्य, राजा का अपनी प्रजा के प्रति कर्तव्य, अपने माता-पिता और गुरुओं के प्रति कर्तव्य, गरीबों की देखभाल और कई अन्य कर्तव्य शामिल हैं।”

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    स्वावलंबी सारथी योजना की सांप्रदायिक कवरेज| कर्नाटक हाईकोर्ट ने सुधीर चौधरी को अंतरिम सुरक्षा दी, लेकिन कहा कि उनकी रिपोर्ट अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत पैदा कर सकती है

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि समाचार चैनल आज तक के न्यूज़ एंकर सुधीर चौधरी के खिलाफ राज्य की 'स्वावलंबी सारथी योजना' के कथित सांप्रदायिक कवरेज का प्रथम दृष्टया मामला बनता है। उक्त योजना के तहत वाहनों की खरीद के लिए धार्मिक अल्पसंख्यकों को सब्सिडी दी जाती है।

    हालांकि, जस्टिस हेमंत चंदनगौदर की एकल पीठ ने कहा कि हिरासत में पूछताछ की कोई आवश्यकता नहीं है और इसलिए कर्नाटक पुलिस से कहा कि अगले सप्ताह मामले के अंतिम निस्तारण तक चौधरी के खिलाफ कोई कठोर कदम न उठाया जाए। आजतक ने भी एक अलग याचिका में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। आज दोनों याचिकाओं पर एक सामान्य आदेश पारित किया गया।

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    रेस जुडिकाटा| सिविल कोर्ट योग्यता के आधार पर फैसला सुनाते समय कार्रवाई के समान कारण पर नया मुकदमा दायर करने की स्वतंत्रता नहीं दे सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी सिविल कोर्ट को ही यह अनुमति नहीं होती कि कार्रवाही के एक ही कारण पर योग्यता के आधार पर डिक्री पारित करते समय एक नया मुकदमा दायर करने की स्वतंत्रता दे या कार्रवाई के उसी कारण पर एक नया मुकदमा स्थापित करने में किसी भी वैधानिक बाधा को हटा दे।

    जस्टिस पी सोमराजन ने बताया कि नया मुकदमा दायर करने की स्वतंत्रता केवल आदेश XXIII नियम 1 और 2 सीपीसी के तहत दी जा सकती है, जबकि उस प्रावधान के तहत मुकदमा वापस लेने की अनुमति मांगने के लिए एक आवेदन प्रस्तुत किया जाता है।

    केस टाइटल: कार्लोज़ बनाम स्टेला लासर और अन्य।

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    केवल विकलांगता किसी व्यक्ति को कोई भी पेशा अपनाने या व्यवसाय करने के संवैधानिक अधिकार से वंचित नहीं करती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल विकलांगता किसी व्यक्ति को कोई पेशा अपनाने या कोई धन्‍धा, व्यापार या व्यवसाय करने के संवैधानिक अधिकार से वंचित नहीं करती। जस्टिस सचिन दत्ता ने कहा, "इस प्रकार यह पूरी तरह से प्रतिगामी होगा, विकलांगता से पीड़ित किसी भी व्यक्ति को कोई भी व्यापार या व्यवसाय करने के अधिकार से वंचित करना अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत दी गई संवैधानिक गारंटी का अपमान होगा।"

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    'बलात्कार पीड़िता को गर्भ जारी रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता': गुजरात हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़की को 19 सप्ताह से अधिक के गर्भ का गर्भपात कराने की अनुमति दी

    गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता की 19 सप्ताह की गर्भावस्था को मेडिकल रूप से समाप्त करने की अनुमतिदी। कोर्ट ने साथ ही यह भी कहा कि यदि पीड़िता अनिच्छुक है तो उसे अपनी गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस समीर जे. दवे की पीठ ने 16 वर्षीय बलात्कार पीड़िता की बड़ी बहन द्वारा 17 सप्ताह से अधिक के गर्भ को समाप्त करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल - XYZ बनाम गुजरात राज्य

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    पत्नी से लंबे समय तक अलग रहने के बाद दूसरी महिला के साथ रह रहा पति 'क्रूरता' साबित होने पर तलाक से इनकार करने का आधिकारी नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अपनी पत्नी से लंबे समय तक अलग रहने और तलाक की याचिका लंबित रहने के दौरान पुनर्मिलन की कोई संभावना नहीं होने के बाद दूसरी महिला के साथ रहने वाला पति क्रूरता के सिद्ध आधारों पर पत्नी को तलाक मांगने से वंचित नहीं कर सकता। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा आपराधिक मामलों में लगाए गए क्रूरता के आरोपों को तलाक की कार्यवाही में प्रमाणित किया जाना चाहिए।

    केस टाइटल: एक्स बनाम वाई

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    भारतीय अदालतें कस्टडी सहित बच्चों के कल्याण मामलों से जुड़े विदेशी न्यायालय के फैसलों की स्वतंत्र रूप से जांच करने के लिए बाध्य हैं: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि विदेशी राष्ट्रीयता वाले बच्चों की कस्टडी के मामलों से निपटते समय, भारतीय अदालतों को बच्चों के कल्याण से संबंधित मामलों में इनपुट के रूप में केवल एक विदेशी अदालत के निष्कर्षों को स्वीकार करना चाहिए और बच्चे का सर्वोत्तम हित के लिए किसी निर्णय पर पहुंचने के लिए एक स्वतंत्र जांच करनी चाहिए।

    जस्टिस के लक्ष्मण और जस्टिस के सुजाना की खंडपीठ ने कहा कि भारतीय सिविल अदालतों को रुचि माजू बनाम संजीव माजू के मामले में विदेशों की उच्चतर अदालतों द्वारा पारित निर्णयों का सम्मान करना होगा, हालांकि बच्चे के कल्याण का निर्धारण करने के मामलों में न्यायालय स्वतंत्र रूप से मामले की जांच करने के लिए बाध्य है।

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    तलाकशुदा बेटी हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम की धारा 21 के तहत 'आश्रित' नहीं है, दिवंगत पिता की संपत्ति से भरण-पोषण की हकदार नहीं है : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि एक तलाकशुदा बेटी हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत "आश्रित" नहीं है और वह अपने मृत पिता की संपत्ति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार नहीं है। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्ण की खंडपीठ ने कहा, " एक अविवाहित या विधवा बेटी को मृतक की संपत्ति में दावा करने के लिए मान्यता दी गई है, लेकिन एक "तलाकशुदा बेटी" भरण-पोषण के हकदार आश्रितों की श्रेणी में शामिल नहीं है।"

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    डीजीसी/एडीजीसी (सीआरएल) के पदों पर नियुक्ति केवल व्यावसायिक अनुबंध, जिसे बिना किसी सूचना/कारण के समाप्त किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार द्वारा जिला/अतिरिक्त सरकारी वकील (आपराधिक) [डीजीसी/एडीजीसी (सीआरएल)] के पदों पर नियुक्ति वकील की प्रोफेशनल इंगेजमेंट है और यह सिविल पद नहीं है। इसलिए इस तरह की इंगेजमेंट को किसी भी पक्ष द्वारा बिना किसी सूचना के और बिना कोई कारण बताए समाप्त किया जा सकता है। जस्टिस सलिल कुमार राय और जस्टिस सुरेंद्र सिंह-प्रथम की खंडपीठ ने यह माना कि कार्यकाल को नवीनीकृत नहीं करने में राज्य की कार्रवाई को न्यायिक जांच के अधीन नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल- संतोष कुमार दोहरे बनाम प्रमुख सचिव न्याय एवं विधि परामर्शी उ.प्र. और 4 अन्य, लाइव लॉ (एबी) 326/2023 [WRIT - C नंबर 42430/2014]

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    लाठी घातक हथियार नहीं, लाठी से हुई मौत हत्या के इरादे के अभाव में 'हत्या' नहीं: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने माना कि किसी व्यक्ति को लाठी या छड़ी से मारकर उसकी हत्या करने का मतलब यह नहीं है कि वह मौत का कारण बना है। इस प्रकार इसे गैर-इरादतन हत्या के रूप में गिना जा सकता है। जस्टिस के. लक्ष्मण और जस्टिस के. सृजना की खंडपीठ ने आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत आरोपी की सजा को 304-II (गैर इरादतन हत्या) में बदल दिया।

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    आरक्षित श्रेणी के अभ्यर्थी उम्र और फीस में छूट पाने के बाद सामान्य श्रेणी में प्रतिस्पर्धा करने से वंचित नहीं होंगे: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि 'आरक्षित श्रेणियों' के तहत उम्मीदवारों को 'अनारक्षित' सीटों के खिलाफ रिक्तियों के लिए विचार किया जा सकता है, भले ही उन्होंने आरक्षित श्रेणियों के सदस्यों के रूप में उनके लिए वैधानिक रूप से उपलब्ध शुल्क और आयु छूट का लाभ उठाने का विकल्प चुना हो।

    मामला: सहीम हुसैन और अन्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य और जुड़े हुए एप्लिकेशन

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    इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा हापुड घटना पर वकीलों की शिकायतें दूर करने के लिए गठित न्यायिक समिति की बैठक 16 सितंबर को होगी

    इलाहाबाद हाईकोर्ट हापुड घटना के संबंध में बार में उठाई गई शिकायतों के समाधान के लिए गठित न्यायिक समिति 16 सितंबर को सुबह 11:00 बजे बैठक करेगी। सीनियर रजिस्ट्रार (न्यायिक) द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार, “ समिति के माननीय अध्यक्ष को यह निर्देश देते हुए खुशी हो रही है कि समिति 16.09.2023 को सुबह 11.00 बजे इलाहाबाद हाईकोर्ट के समिति कक्ष में अपनी बैठक आयोजित करेगी।”

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    अपीलीय प्राधिकारी या संविधान का अनुच्छेद 226 निर्दिष्ट समय सीमा के साथ विलंब माफी अवधि नहीं बढ़ा सकता: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने बिहार माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 (बीजीएसटी) से जुड़े मामलों में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 की सीमाओं को स्पष्ट करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने माना है कि जब कोई कानून देरी को माफ करने के लिए एक विशिष्ट समय सीमा निर्धारित करता है, तो अनुच्छेद 226 के तहत अपीलीय प्राधिकरण के पास इस निर्धारित अवधि को बढ़ाने का अधिकार नहीं है।

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    विवाहित व्यक्ति लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकते: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि विवाह के बिना एक साथ रहने के जोड़े की पसंद की मान्यता विवाहित लोगों को उनकी शादी के दौरान दूसरों के साथ रहने का अधिकार नहीं देती है।

    जस्टिस रवि नाथ तिलहरी और जस्टिस बीवीएलएन चक्रवर्ती की खंडपीठ ने एक विवाहित व्यक्ति द्वारा उस महिला को पेश करने के लिए दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया, जिसके साथ वह रह रहा था, जिसे कथित तौर पर उसका पिता वापस ले गया था।

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    फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की परिसीमा अवधि 30 दिन, पर्याप्त कारण दिखाने पर देरी माफ की जा सकती है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि फैमिली कोर्ट के फैसले या आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की समय-सीमा 30 दिन है। जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विकास महाजन की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह की अपील दायर करने में देरी को परिसीमन अधिनियम, 1963 की धारा 5 के तहत पर्याप्त कारण दिखाने पर माफ किया जा सकता है।

    अदालत ने कहा, “…फैमिली कोर्ट के किसी फैसले या आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की समय-सीमा 30 दिन है। हालांकि, पर्याप्त कारण दिखाने के लिए परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 5 के तहत फाइलिंग में देरी को माफ किया जा सकता है।“

    केस टाइटल: पल्लविमोहनलियास्पल्लाविमेनन बनाम रघु मेनन

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    बैप्‍टिजम स‌र्टिफिकेट को एसएसएलसी स‌र्टिफिकेट, आधार कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस जैसे आधिकारिक दस्तावेजों पर प्रधानता नहीं दी जा सकतीः केरल हाईकोर्ट

    केरल ‌हाईकोर्ट ने एक फैसले में माना कि ईसाई समुदाय से संबंधित व्यक्ति की जन्मतिथि सुनिश्चित करने के लिए बैप्‍टिजम सर्ट‌िफिकेट को एसएसएलसी सर्ट‌िफिकेट, आधार कार्ड, पैन कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस जैसे आधिकारिक दस्तावेजों पर प्रधानता नहीं दी जा सकती है।

    जस्टिस मुरली पुरूषोतमन ने कहा, “किसी व्यक्ति के बपतिस्मा को रिकॉर्ड करने के लिए चर्च बपतिस्मा प्रमाणपत्र जारी करता है। जब जन्मतिथि संबंधी सार्वजनिक दस्तावेज़ उपलब्ध हों तो बपतिस्मा प्रमाणपत्र को प्रधानता नहीं दी जा सकती।''

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    प्राप्त सेवाओं के बारे में केवल निगेटिव Google रिव्यू लिखना सेवा देने वाले की मानहानि नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति द्वारा प्राप्त सेवाओं के लिए Google Review जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर प्रतिकूल विचार व्यक्त करना सेवा देने वाले की मानहानि नहीं होगी, क्योंकि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A)के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है।

    अदालत ने कहा, “निचली अदालत ने सही कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत व्यक्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म में प्राप्त सेवाओं के लिए किसी की रिव्यू की अभिव्यक्ति जैसे कि Google रिव्यू और रिव्यू शेयर करना शामिल नहीं है। इसलिए प्रथम प्रतिवादी द्वारा Google रिव्यू में यह याचिकाकर्ता को बदनाम करने के समान नहीं है।”

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    विवाहित भाई की मृत्यु पर बहन अनुकंपा नियुक्ति की मांग नहीं कर सकती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि बहन को उसके विवाहित भाई की मृत्यु पर अनुकंपा के आधार पर नियुक्त (Compassionate Appointment) नहीं किया जा सकता है। मृतक बैंगलोर बिजली आपूर्ति कंपनी (बेस्कॉम) में जूनियर लाइन मैन के रूप में कार्यरत था।

    चीफ जस्टिस प्रसन्ना बी वराले और जस्टिस कृष्ण एस दीक्षित की खंडपीठ ने कर्नाटक सिविल सेवा (अनुकंपा आधार पर नियुक्ति) नियम, 1996 के नियम 2(1)(बी) का उल्लेख किया, जो यह निर्धारित करता है कि इन नियमों के प्रयोजन के लिए 'परिवार' - (i) मृत पुरुष विवाहित सरकारी कर्मचारी के मामले में उसकी विधवा, बेटा और बेटी (अविवाहित/विवाहित/तलाकशुदा/विधवा) जो उस पर निर्भर थे और उसके साथ रह रहे थे।"

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    स्किल डेवेलपमेंट घोटाला: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ सुनवाई पर 18 सितंबर तक रोक लगाई

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार वाले आंध्र प्रदेश स्किल डेवेलपमेंट कार्यक्रम घोटाला मामले में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी के नेता एन चंद्रबाबू नायडू के खिलाफ निचली अदालत की कार्यवाही पर अगले सोमवार तक रोक लगा दी।

    कोर्ट ने विजयवाड़ा की अदालत को सीआईडी द्वारा दायर चंद्रबाबू नायडू की हिरासत याचिका पर सोमवार, 18 सितंबर तक सुनवाई नहीं करने का भी निर्देश दिया है। सीआईडी को अगले सोमवार तक उन्हें अपनी हिरासत में नहीं लेने का भी निर्देश दिया गया है।

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    उम्र कैद के दोषियों को समय से पहले रिहाई का दावा करने का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं है : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि उम्रकैद की सजा काट रहे किसी कैदी को समय से पहले रिहाई का दावा करने का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं है, क्योंकि यह महज एक रियायत है, जो दोषी के जेल में आचरण, कैदी की गंभीरता और अपराध की प्रकृति आदि जैसे विभिन्न कारकों को देखने के बाद राज्य सरकार के विवेक पर दी जाती है।

    जस्टिस जसजीत सिंह बेदी की बेंच ने कहा, “ एक दोषी को समय से पहले रिहाई का दावा करने का कोई अंतर्निहित अधिकार नहीं है क्योंकि आजीवन कारावास का मतलब जेल में दोषी को पूरा जीवन गुज़ारना है, इसलिए ऐसे कैदी को छूट सहित किसी विशेष अवधि की समाप्ति पर बिना शर्त रिहा करने का कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं है। हालांकि, यदि आवश्यक हो तो उपयुक्त सरकार को सजा के शेष हिस्से को माफ करने के लिए एक अलग आदेश पारित करना होगा। ”

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    एमवी अधिनियम की धारा 2(21) के तहत 'लाइट मोटर वाहन' के रूप में अर्हता प्राप्त वाणिज्यिक वाहन के लिए चालक को "परिवहन" समर्थन की आवश्यकता नहीं: गुवाहाटी हाईकोर्ट

    गुवाहाटी हाईकोर्ट ने एक वाणिज्यिक वाहन मालिक को सड़क दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को दिए गए मुआवजे के लिए अपने बीमाकर्ता को क्षतिपूर्ति देने से इस आधार पर छूट दे दी है कि पॉलिसी की शर्तों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है, क्योंकि चालक के पास 'परिवहन' समर्थन वाला लाइसेंस नहीं था। यह नोट किया गया कि संबंधित वाहन 7500 किलोग्राम से कम का था और इसलिए, एक हल्का मोटर वाहन है, जिसके लिए अलग से 'परिवहन' समर्थन की आवश्यकता नहीं है।

    केस टाइटल: श्री होरेन राज कोंवर और अन्य बनाम यूनियन इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और अन्य।

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    दूसरों को दिखाए बिना निजी तौर पर अश्लील वीडियो देखना आईपीसी की धारा 292 के तहत अश्लीलता का अपराध नहीं होगा: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह एक व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया, जिसे पुलिस ने अपने मोबाइल फोन पर पोर्न (pornography) देखने के आरोप में सड़क किनारे से गिरफ्तार किया था।

    जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा कि निजी तौर पर किसी के फोन पर अश्लील तस्वीरें या वीडियो को डिस्ट्रिब्यूट या सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किए बिना देखना आईपीसी के तहत अश्लीलता के अपराध को आकर्षित नहीं करेगा। इसमें कहा गया है कि ऐसी सामग्री देखना किसी व्यक्ति की निजी पसंद है और अदालत उसकी निजता में दखल नहीं दे सकती।

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    (शांति स्थापना के लिए बांड) सीआरपीसी की धारा 111 के तहत आदेश का पालन किए बिना मजिस्ट्रेट की ओर से जारी किया गया कारण बताओ नोटिस अस्‍थायी है : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने माना कि शांति स्थापना आदि के लिए बांड के प्रावधानों के तहत कारण बताने के लिए समन जारी करते समय, मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 111 के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होगा।

    जस्टिस ए बदहरुदीन ने कहा, "यह आदेश है कि जब भी कोई मजिस्ट्रेट धारा 107, धारा 108, धारा 109, या धारा 110 के तहत कार्रवाई करने का इरादा रखता है, तो ऐसी धारा के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति से कारण बताने की अपेक्षा करना आवश्यक समझता है, वह लिखित रूप में एक आदेश देगा, जिसमें प्राप्त जानकारी का सार, निष्पादित किए जाने वाले बांड की राशि, वह अवधि जिसके लिए यह लागू रहेगा, का उल्लेख होगा, और जमानतदारों (यदि कोई हो) की संख्या, चरित्र और वर्ग आवश्यक है और ऐसे विवरण प्रस्तुत किए बिना, आदेश गैर-स्थायी होगा। अत: आदेश निरस्त किये जाने योग्य है।”

    केस टाइटल: इस्माइल साहब बनाम केरल राज्य

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    भारतीय सेना पूर्व सैनिक की दूसरी पत्नी को फैमिलीपेंशन दे सकती है, भले ही पहली शादी कानूनी रूप से खत्म न हुई हो: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि भारतीय सेना के लिए मृत सैनिक की दूसरी पत्नी को फैमिली पेंशन देने में कोई बाधा नहीं है, भले ही पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त न हुई हो। भारतीय सेना यह कार्यवाही तब कर सकती है, जब तक कि पहली पत्नी को अपने मृतक पति की पेंशन में कोई दिलचस्पी नहीं है। जस्टिस देवन रामचंद्रन ने कहा कि भारतीय सेना दूसरी पत्नी के दावे पर विचार कर सकती है, क्योंकि उनकी शादी को भारतीय डाक विभाग ने मान्यता दी थी।

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    एक बार बर्खास्तगी अवैध ठहरा दी गई हो तो लेबर कोर्ट कामगार को बकाया वेतन देने के लिए बाध्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया है कि एक बार जब लेबर कोर्ट यह मान लेता है कि कामगार की बर्खास्तगी अवैध थी और कामगार को सर्विस में बहाल कर दिया जाता है, तो उसे पिछला वेतन दिया जाना, बाध्यकारी है।

    जस्टिस पीयूष अग्रवाल ने कहा, "यदि किसी टर्मिनेशन ऑर्डर को अवैध होने के कारण रद्द कर दिया जाता है, तो इसका परिणाम यह होगा कि टर्मिनेशन का ऑर्डर कभी पारित नहीं किया गया था और इसलिए, पूर्ण बकाया वेतन के साथ सेवा में बहाली टर्मिनेशन ऑर्डर को रद्द करने का स्वाभाविक परिणाम है।"

    केस टाइटल: श्रीमती विद्या रावत बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [रिट - सी नंबर- 11692/2007]

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    ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ भूमि स्वामित्व विवाद | 'प्रक्रियात्मक विचलन, क्षेत्राधिकार संबंधी अनौचित्य': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिंगल जज से मामले को वापस लेने के कारण बताए

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले महीने (25 अगस्त, 2023) काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद भूमि स्वामित्व विवाद मामलों की सुनवाई एक अलग पीठ को सौंप दी थी, जब अगस्त, 2021 से मामले की सुनवाई जस्टिस प्रकाश पाड़िया की पीठ कर रही थी।

    हाईकोर्ट ने तब यह स्पष्ट नहीं किया था कि मामले को नई पीठ को क्यों सौंपा गया है, जबकि पुरानी पीठ ने 25 जुलाई तक सुनवाई पूरी कर ली ‌‌‌थी और मामले में आदेश सुरक्षित रख लिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में मामले को पुरानी पीठ से वापस लेने के कारणों का ब्योरा दिया है। चीफ जस्टिस की ओर से दिए गए आदेश में कहा गया है कि पीठ में बदलाव का फैसला उन्होंने ही लिया था, ऐसा "न्यायिक औचित्य और न्यायिक अनुशासन के साथ-साथ मामलों की सूची में पारदर्शिता के" लिए किया गया था।

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    लापता व्यक्तियों का पता लगाने के लिए हैबियस कार्पस रिट जारी नहीं की जा सकती: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया है कि बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) रिट लापता व्यक्तियों' का पता लगाने के लिए जारी नहीं की जा सकती, क्योंकि किसी विशेष व्यक्ति द्वारा अवैध हिरासत को साबित करना उक्त रिट दायर करने से पहले एक पूर्व शर्त है। जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस सिबो शंकर मिश्रा की खंडपीठ ने अपनी बेटी का पता लगाने के लिए रिट जारी करने की प्रार्थना करने वाली याचिकाकर्ता को राहत देने से इनकार कर दिया।

    केस टाइटल : निमानंद बिस्वाल बनाम ओडिशा राज्य एवं अन्य।

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    बच्चे द्वारा उपेक्षित होने पर सीनियर सिटीजन संपत्ति को पुनः प्राप्त कर सकते हैं, 'प्यार और स्नेह' स्थानांतरण के लिए विचाराधीन है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) की धारा 23(1) में प्रयुक्त वाक्यांश 'शर्त के अधीन' को समग्र रूप से सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण के लिए निहित शर्त के रूप में समझा जाना चाहिए।

    एक्ट की धारा 23(1) के अनुसार, जहां किसी भी सीनियर सिटीजन ने इस एक्ट के प्रारंभ होने के बाद अपनी संपत्ति गिफ्ट या अन्यथा के माध्यम से हस्तांतरित की है, इस शर्त के अधीन है कि जिस व्यक्ति को संपत्ति हस्तानान्तरित की गई है वह हस्तांतरक को बुनियादी सुविधाएं प्रदान करेगा। यदि संपत्ति प्राप्त करने वाला व्यक्ति (transferee) ऐसी सुविधाएं और भौतिक आवश्यकताएं प्रदान करने से इनकार करता है, या विफल रहता है तो संपत्ति का उक्त हस्तांतरण धोखाधड़ी या जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव के तहत किया गया माना जाएगा और हस्तांतरक के पास यह विकल्प होगा कि ट्रिब्यूनल के माध्यम से इसे शून्य घोषित कर दिया जाये।

    केस टाइटल: मोहम्मद दयान बनाम जिला कलेक्टर और अन्य

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    ट्रायल कोर्ट की राय से अलग सबूतों की जांच नहीं कर सकता हाईकोर्ट: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक फैसले में कहा जम्मू-कश्मीर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 561-ए के तहत अपने अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए, आरोप के समर्थन में अभियोजन पक्ष द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्य और सामग्री की हाईकोर्ट द्वारा जांच, आरोप तय करने वाली अदालत की तुलना में कुछ भी अधिक नहीं है।

    जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस राजेश सेखरी ने कहा, "ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोप तय करने के दौरान निकाले गए निष्कर्ष के विपरीत निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सबूतों को छांटना स्वीकार्य नहीं है।"

    केस टाइटल: बृज भूषण शर्मा बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

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    अदालतें राज्य में वैकल्पिक केंद्रीय सरकार की योजनाओं के कार्यान्वयन का आदेश नहीं दे सकतीं, नीतियां लागू करना राज्य सरकार का काम: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि न्यायालय न्यायिक आदेश के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा तैयार की गई योजना के कार्यान्वयन का निर्देश नहीं दे सकता है, जिसे केवल राज्य सरकार के विकल्प पर लागू किया जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट उक्त मांग को लेकर दायर जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी। इस याचिका में भारत में अनुसूचित जाति के स्टूडेंट के लिए पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम से संबंधित दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी।

    केस टाइटल: राजीव कुमार और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य

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