ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ भूमि स्वामित्व विवाद | 'प्रक्रियात्मक विचलन, क्षेत्राधिकार संबंधी अनौचित्य': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिंगल जज से मामले को वापस लेने के कारण बताए

Avanish Pathak

12 Sep 2023 6:27 AM GMT

  • ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ भूमि स्वामित्व विवाद | प्रक्रियात्मक विचलन, क्षेत्राधिकार संबंधी अनौचित्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिंगल जज से मामले को वापस लेने के कारण बताए

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले महीने (25 अगस्त, 2023) काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद भूमि स्वामित्व विवाद मामलों की सुनवाई एक अलग पीठ को सौंप दी थी, जब अगस्त, 2021 से मामले की सुनवाई जस्टिस प्रकाश पाड़िया की पीठ कर रही थी। हाईकोर्ट ने तब यह स्पष्ट नहीं किया था कि मामले को नई पीठ को क्यों सौंपा गया है, जबकि पुरानी पीठ ने 25 जुलाई तक सुनवाई पूरी कर ली ‌‌‌थी और मामले में आदेश सुरक्षित रख लिया था।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में मामले को पुरानी पीठ से वापस लेने के कारणों का ब्योरा दिया है। चीफ जस्टिस की ओर से दिए गए आदेश में कहा गया है कि पीठ में बदलाव का फैसला उन्होंने ही लिया था, ऐसा "न्यायिक औचित्य और न्यायिक अनुशासन के साथ-साथ मामलों की सूची में पारदर्शिता के" लिए किया गया था।

    चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर ने यह आदेश 28 अगस्त को दिया था, जिसकी कॉपी आज उपलब्ध कराई गई है।

    आदेश में कहा गया है कि मामलों को सूचीबद्ध करने में प्रक्रिया का पालन न करना, निर्णय सुरक्षित रखने के लिए लगातार आदेश पारित करना और मामलों को सुनवाई के जज (जस्टिस प्रकाश पाड़िया) के समक्ष फिर से सूचीबद्ध करना, जिनके पास सुनवाई के लिए रोस्टर के मास्टर के अनुसार क्षेत्राधिकार नहीं था, आदि कारणों से मामलों को वापस ले लिया गया था।

    चीफ जस्टिस का आदेश मामलों को उनकी पीठ में स्थानांतरित करने पर आपत्तियों से संबंधित है, जिसमें 11 अगस्त को उनकी ओर से दिए गए प्रशासनिक आदेश का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें जस्टिस प्रकाश पाडिया की पीठ से मामलों को वापस ले लिया गया था।

    दरअसल 28 अगस्त को, जब मामले चीफ जस्टिस की बेंच के सामने सुनवाई के लिए आया तो ज्ञानवापी मस्जिद की प्रबंधकर्ता अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने आपत्ति जताई थी कि मामलों को प्रशासनिक पक्ष पर चीफ जस्टिस द्वारा दोबारा सुनवाई के लिए जस्टिस प्रकाश पाडिया की पीठ से वापस नहीं लिया जाना चाहिए था।

    12 पेज के आदेश में चीफ जस्टिस ने कहा है कि प्रशासनिक पक्ष ने यह आदेश एक शिकायत के कारण दिया था। दरअसल 27 जुलाई, 2023 को कार्यवाही के एक पक्ष के वकील ने उनसे शिकायत की थी कि विवादित मामलों की सुनवाई नियमों के अनुसार मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए कानून में निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए चल रही है।

    आइए उन परिस्थितियों को क्रमशः समझते हैं, जिनके कारण जस्टिस प्रकाश पाड़िया से मामले को वापस लिया गया था-

    सीजे के समक्ष दायर शिकायत में क्या कहा गया?

    एक पक्ष के वकील की ओर से की गई शिकायत में शुरुआती दलील यह थी कि मामले में 35 सुनवाई के बाद, जस्टिस पाडिया ने पहली बार मामले में फैसला मार्च 2021 में सुरक्षित रखा, हालांकि 7 महीनों तक फैसला नहीं सुनाया गया और मामले को फिर से अक्टूबर 2021 में अन्य रिट याचिकाओं के साथ सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया।

    इसके बाद, मामले की सुनवाई लगभग 12 महीने तक चली और 28 नवंबर, 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया गया और मामले को मई 2023 में फिर से सूचीबद्ध किया गया और इस साल जुलाई में फिर से फैसला सुरक्षित रखा गया।

    इसके अलावा, उमेश राय बनाम यूपी राज्य 2023 लाइव लॉ एससी 448 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया गया, जिसमें यह माना गया कि छह महीने की अवधि के भीतर निर्णय सुनाया जाना चाहिए, अन्यथा मामले को नए सिरे से बहस के लिए दूसरी पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए।

    शिकायत में तर्क दिया गया कि चूंकि मौजूदा मामले में 6 महीने की अवधि 26 मई को समाप्त हो चुकी है, इसलिए मामलों को अब किसी अन्य पीठ को सौंपा जाना चाहिए क्योंकि इस मामले में तीन बार फैसला सुरक्षित रखा गया है और यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुलेआम उल्लंघन है।

    चीफ ज‌स्टिस ने रजिस्ट्री से स्पष्टीकरण मांगा

    उपरोक्त शिकायत को निस्तार‌ित करने के दरमियान रजिस्ट्री के कार्यालय से यह बताने के लिए एक रिपोर्ट मांगी गई कि दिसंबर 2013 के प्रशासनिक आदेश (रोस्टर के अनुसार जजों के समक्ष मामलों की लिस्टिंग को विनियमित करना) के संदर्भ में उचित आदेश पारित करने के लिए मामले को चीफ जस्टिस के समक्ष क्यों नहीं रखा गया।

    चीफ जस्टिस के समक्ष रजिस्ट्री द्वारा अन्य बातों के अलावा, प्रस्तुत रिपोर्ट में यह बताया गया कि 22 नवंबर, 2021 को अधिसूचित रोस्टर और उसके बाद के रोस्टर, जिन्हें समय-समय पर चीफ जस्टिस द्वारा अधिसूचित किया जाता है, के अनुसार चीफ जस्टिस से उचित नामांकन प्राप्त किए बिना इन मामलों को सिंगल जज के समक्ष सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता।

    रजिस्ट्री ने यह भी बताया कि इन मामलों के रिकॉर्ड को, प्रशासनिक पक्ष और न्यायिक पक्ष दोनों पर लागू आदेशों के संदर्भ में मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं के लिए रजिस्ट्री में मूल सेक्‍शन को कभी नहीं भेजा गया।

    रजिस्ट्री ने यह भी कहा कि संबंधित मामलों के साथ प्रमुख फाइलों के सभी रिकॉर्ड जज के कक्ष में रहते थे और मामलों को पीठ सचिव और एकल न्यायाधीश के कक्ष से जुड़े अधिकारियों के निर्देश पर सूचीबद्ध किया गया था और रजिस्ट्री के अनुसार, मूल न्यायालय के समक्ष मामलों को सूचीबद्ध करने के लिए जिम्मेदार सेक्‍शन की मामलों के रिकॉर्ड तक कोई पहुंच नहीं थी, क्योंकि फाइलें कभी भी रजिस्ट्री को नहीं भेजी गईं थीं।

    सीजे ने प्रशासनिक पक्ष से मामले वापस लेने का आदेश दिया

    रजिस्ट्री की रिपोर्ट और मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, प्रशासनिक पक्ष की ओर से सीजे ने सिंगल जज से मामलों को वापस लेने का फैसला किया, जबकि इस बात पर जोर दिया कि मामले के तथ्यों ने एक और अधिक परेशान करने वाला परिदृश्य प्रस्तुत किया है, जिसमें प्रक्रियाओं को पालन नहीं किया गया है।

    11 अगस्त को मामले को वापस लेते हुए प्रशासनिक पक्ष की ओर से पारित अपने आदेश में चीफ जस्टिस ने राय दी थी कि उपरोक्त को वापस लेना न्यायिक औचित्य और न्यायिक अनुशासन के साथ-साथ मामलों की सूची में पारदर्शिता के हित में होगा। जिसके बाद 25 अगस्त को याचिकाओं का एक समूह वर्तमान पीठ (मुख्य न्यायाधीश) के समक्ष नामांकित किया गया था।

    पृष्ठभूमि

    न्यायालय के समक्ष दायर याचिकाओं में वाराणसी अदालत के समक्ष दायर एक मुकदमे के सुनवाई योग्य होने को चुनौती भी शामिल है, जिसमें उस स्थान पर एक मंदिर की बहाली की मांग की गई है, जहां ज्ञानवापी मस्जिद मौजूद है।

    पीठ के समक्ष एक और याचिका अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने की है, जिसमें मस्जिद परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने के वाराणसी कोर्ट के 2021 के आदेश को चुनौती दी गई है।

    उल्लेखनीय है कि वाराणसी कोर्ट के समक्ष लंबित मामले की कार्यवाही पर सितंबर 2021 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी, साथ ही एएसआई सर्वेक्षण आदेश पर भी प्रभावी रूप से रोक लगा दी थी।

    वाराणसी कोर्ट का आदेश स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से वकील विजय शंकर रस्तोगी द्वारा दायर याचिका पर आया था। 1991 में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर और 5 अन्य की ओर से दायर एक मुकदमे में आवदेन दायर किया गया था, जिसमें उस भूमि को जिस पर ज्ञानवापी मस्जिद है, उसे हिंदुओं के लिए बहाल करने का आग्रह किया गया था।

    मुकदमे में वादी ने यह घोषित करने की मांग की कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है वह हिंदुओं की है। जैसा कि सर्वविदित है, भूमि स्वामित्व विवाद कथित तौर पर काशी विश्वनाथ मंदिर के खंडहरों पर बनी ज्ञानपवी मस्जिद से संबंधित है। मुकदमे को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई है और उस चुनौती को विवाद से संबंधित कई मामलों के साथ जोड़ दिया गया है।

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