अदालतें राज्य में वैकल्पिक केंद्रीय सरकार की योजनाओं के कार्यान्वयन का आदेश नहीं दे सकतीं, नीतियां लागू करना राज्य सरकार का काम: पटना हाईकोर्ट

Shahadat

11 Sep 2023 6:30 AM GMT

  • अदालतें राज्य में वैकल्पिक केंद्रीय सरकार की योजनाओं के कार्यान्वयन का आदेश नहीं दे सकतीं, नीतियां लागू करना राज्य सरकार का काम: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि न्यायालय न्यायिक आदेश के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा तैयार की गई योजना के कार्यान्वयन का निर्देश नहीं दे सकता है, जिसे केवल राज्य सरकार के विकल्प पर लागू किया जा सकता है। इसके साथ ही कोर्ट उक्त मांग को लेकर दायर जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी।

    इस याचिका में भारत में अनुसूचित जाति के स्टूडेंट के लिए पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम से संबंधित दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी।

    चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सारथी की खंडपीठ ने कहा,

    “राज्य सरकार ने समाज के सभी हाशिये पर पड़े वर्गों की अधिकतम कवरेज सुनिश्चित करने के लिए धन के इष्टतम वितरण के बारे में भी चिंता जताई है; जिसे दरकिनार नहीं किया जा सकता। ये सभी राज्य के नीतिगत क्षेत्र में आने वाले मामले हैं; जिसमें यह न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करेगा और कार्यकारी सरकार के विवेक का उल्लंघन करने के लिए निर्देश जारी नहीं करेगा।''

    जनहित याचिका में बिहार सरकार और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को 2020-21 से 2025-26 की अवधि पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत में अनुसूचित जाति के स्टूडेंट के लिए केंद्र की पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम से संबंधित अनुबंध-2 दिशानिर्देशों के क्लॉज 8 को लागू करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

    दिशानिर्देशों का क्लॉज 8 विशेष रूप से फ्रीशिप कार्ड जारी करने को संबोधित करता है, जैसा कि क्लॉज 3(जी) में परिभाषित है। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि बिहार राज्य ने केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों का पूरी तरह से पालन नहीं किया है। इस कारण योजना के तहत पात्र लाभार्थियों के लिए ट्यूशन फीस और अन्य गैर-वापसी योग्य शुल्क सहित पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए आवंटित अधिकतम राशि पर मनमानी सीमाएं लागू हो गई हैं।

    पटना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग के प्रधान सचिव ने प्रस्तुत किया कि योजना के कार्यान्वयन के लिए दिशानिर्देशों में केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारों या केंद्र शासित प्रदेशों दोनों पर वित्तीय दायित्व लगाए गए हैं, जिन्हें उनके संबंधित बजट में शामिल किया जाना है।

    इसके अलावा, उन्होंने प्रस्तुत किया कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच लागत-साझाकरण अनुपात 60:40 के रूप में स्पष्ट किया गया है, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा केवल 5% वार्षिक वृद्धि शामिल है। इस अनुपात से परे कोई भी अतिरिक्त वित्तीय बोझ राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाना है।

    सरकारी वकील ने समान कोर्स के लिए विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों द्वारा ली जाने वाली फीस में असमानताओं पर प्रकाश डाला, जिसे राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी के साथ तर्कसंगत बनाया गया है। इसके अतिरिक्त, वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिए अधिकतम स्कॉलरशिप सीमा निर्धारित की गई है।

    यह बताया गया कि अदालत के निर्देशों के अनुपालन में 29.07.2021 को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय, भारत सरकार सहित विभिन्न हितधारकों की बैठक बुलाई गई। इस बैठक के दौरान फंडिंग पैटर्न, पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम के तहत जारी की जाने वाली राशि, आय सीमा समायोजन और अनुसूचित जाति के स्टूडेंट के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने सहित कई मुद्दों पर चर्चा की गई।

    आगे बताया गया कि बाद में विभागीय प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें शामिल वित्तीय बोझ को ध्यान में रखते हुए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के स्टूडेंट की स्कॉलरशिप के लिए ऊपरी सीमा निर्धारित करने के लिए राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी की आवश्यकता है। सरकारी वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उल्लिखित दिशानिर्देश विशेष रूप से अनुसूचित जाति के छात्रों पर लागू होते हैं, जबकि बिहार राज्य में अनुसूचित जनजाति के स्टूडेंट के लिए अलग योजना है।

    न्यायालय ने शुरुआत में कहा,

    “दिशानिर्देश केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई योजना के कार्यान्वयन के लिए है; जो प्रकृति में वैधानिक नहीं है और राज्य सरकार पर इसे लागू करने का कोई आदेश नहीं है। खासकर तब जब लक्षित वर्ग के लिए बेहतर योजनाएं उपलब्ध हों।''

    न्यायालय ने रेखांकित किया कि योजना का प्राथमिक उद्देश्य उच्च शिक्षा में अनुसूचित जाति के स्टूडेंट के नामांकन को बढ़ाना था। इसमें सबसे अधिक आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के लोगों पर विशेष ध्यान दिया गया है।

    न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि योजना के प्रावधानों के अनुसार, राज्य सरकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर पात्र स्टूडेंट की पहचान के लिए उपयुक्त तरीके तैयार करें। उन्हें विभिन्न स्रोतों के ज़रिये सबसे गरीब परिवारों की पहचान करने के लिए विशेष प्रयास करने के लिए भी प्रोत्साहित किया गया, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि पात्र स्टूडेंट को तत्काल योजना के तहत नामांकित किया गया है।

    दिशानिर्देशों के पैराग्राफ 10.3 का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने बताया कि यह स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि योजना को लागू करने का निर्णय राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेश प्रशासनों के पास है। दिशानिर्देश केवल तभी लागू होते हैं, जब राज्य योजना को लागू करने का विकल्प चुनता है।

    न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला,

    “हम राज्य सरकार द्वारा पहले से तैयार की गई योजना में हस्तक्षेप से इनकार करते हैं। साथ ही अनुबंध-2 में दिए गए दिशानिर्देशों के आधार पर कोई भी सकारात्मक निर्देश जारी करने से इनकार करते हैं। हम रिट याचिका को इस आशा के साथ खारिज करते हैं कि राज्य हमेशा हाशिए पर मौजूद लोगों की जरूरतों के लिए सक्रिय रहेगा और दलितों के उत्थान के लिए लगातार प्रयास करता रहेगा।''

    याचिकाकर्ताओं के वकील: विकास कुमार पंकज, प्रत्युष कुमार। यूओआई के लिए वकील: डॉ. के.एन. सिंह, ए.एस.जी., प्रभात कुमार सिंह, श्रीराम कृष्ण और राज्य के लिए वकील: प्रशांत प्रताप, जीपी-2

    केस टाइटल: राजीव कुमार और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य

    केस नंबर: सिविल रिट क्षेत्राधिकार केस नंबर 18297/2022

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